Monday, 27 February 2012

संत तिरुवल्लुवर के अनमोल वचन

संत तिरुवल्लुवर

  • नेकी से विमुख हो जाना और बदी करना नि:संदेह बुरा है, मगर सामने हँस कर बोलना और पीछे चुगलखोरी करना उससे भी बुरा है। - संत तिरुवल्लुवर
  • नम्रता और मीठे वचन ही मनुष्य के आभूषण होते हैं। शेष सब नाममात्र के भूषण हैं। - संत तिरुवल्लुर
  • सोचना, कहना व करना सदा समान हो, नेकी से विमुख हो जाना और बदी करना नि:संदेह बुरा है, मगर सामने हंस कर बोलना और पीछे चुगलखोरी करना उससे भी बुरा है। - संत तिस्र्वल्लुवर
  • उस मनुष्य का ठाट-बाट जिसे लोग प्यार नहीं करते, गांव के बीचोबीच उगे विषवृक्ष के समान है। - संत तिरुवल्लुवर
  • जो सबके दिल को खुश कर देने वाली वाणी बोलता है, उसके पास दरिद्रता कभी नहीं फटक सकती। - तिरूवल्‍लुवर
  • आलस्‍य में दरिद्रता बसती है, लेकिन जो, व्‍यक्ति आलस्‍य नहीं करते उनकी मेहनत में लक्ष्‍मी का निवास होता है। - तिरूवल्‍लुर
  • बड़प्‍पन सदैव ही दूसरों की कमज़ोरियों, पर पर्दा डालना चाहता है, लेकिन ओछापन, दूसरों की कमियों बताने के सिवा और कुछ करना ही नहीं जानता। - तिरूवल्‍लुवर

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