- कुल की प्रतिष्ठा भी विनम्रता और सदव्यवहार से होती है, हेकड़ी और रुआब दिखाने से नहीं। - प्रेमचंद
- मन एक भीरु शत्रु है जो सदैव पीठ के पीछे से वार करता है। - प्रेमचंद
- चापलूसी का ज़हरीला प्याला आपको तब तक नुकसान नहीं पहुँचा सकता जब तक कि आपके कान उसे अमृत समझ कर पी न जाएँ। - प्रेमचंद
- महान व्यक्ति महत्वाकांक्षा के प्रेम से बहुत अधिक आकर्षित होते हैं। - प्रेमचंद
- जिस साहित्य से हमारी सुरुचि न जागे, आध्यात्मिक और मानसिक तृप्ति न मिले, हममें गति और शक्ति न पैदा हो, हमारा सौंदर्य प्रेम न जागृत हो, जो हममें संकल्प और कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करने की सच्ची दृढ़ता न उत्पन्न करे, वह हमारे लिए बेकार है वह साहित्य कहलाने का अधिकारी नहीं है। - प्रेमचंद
- आकाश में उड़ने वाले पंछी को भी अपने घर की याद आती है। - प्रेमचंद
- जिस प्रकार नेत्रहीन के लिए दर्पण बेकार है उसी प्रकार बुद्धिहीन के लिए विद्या बेकार है। - प्रेमचंद
- न्याय और नीति लक्ष्मी के खिलौने हैं, वह जैसे चाहती है नचाती है। - प्रेमचंद
- युवावस्था आवेशमय होती है, वह क्रोध से आग हो जाती है तो करुणा से पानी भी। - प्रेमचंद
- अपनी भूल अपने ही हाथों से सुधर जाए तो यह उससे कहीं अच्छा है कि कोई दूसरा उसे सुधारे। - प्रेमचंद
- देश का उद्धार विलासियों द्वारा नहीं हो सकता। उसके लिए सच्चा त्यागी होना आवश्यक है। - प्रेमचंद
- मासिक वेतन पूरनमासी का चाँद है जो एक दिन दिखाई देता है और घटते घटते लुप्त हो जाता है। - प्रेमचंद
- क्रोध में मनुष्य अपने मन की बात नहीं कहता, वह केवल दूसरों का दिल दुखाना चाहता है। - प्रेमचंद
- अनुराग, यौवन, रूप या धन से उत्पन्न नहीं होता। अनुराग, अनुराग से उत्पन्न होता है। - प्रेमचंद
- दुखियारों को हमदर्दी के आँसू भी कम प्यारे नहीं होते। - प्रेमचंद
- विजयी व्यक्ति स्वभाव से, बहिर्मुखी होता है। पराजय व्यक्ति को अन्तर्मुखी बनाती है। - प्रेमचंद
- अतीत चाहे जैसा हो, उसकी स्मृतियाँ प्रायः सुखद होती हैं। - प्रेमचंद
- दुखियारों को हमदर्दी के आंसू भी कम प्यारे नहीं होते। - प्रेमचंद
- मै एक मजदूर हूँ। जिस दिन कुछ लिख न लूँ, उस दिन मुझे रोटी खाने का कोई हक नहीं। - प्रेमचंद
- निराशा सम्भव को असम्भव बना देती है। — प्रेमचन्द
- बल की शिकायतें सब सुनते हैं, निर्बल की फरियाद कोई नहीं सुनता। - प्रेमचन्द
- दौलत से आदमी को जो सम्मान मिलता है, वह उसका नहीं, उसकी दौलत का सम्मान है। - प्रेमचन्द
- संसार के सारे नाते स्नेह के नाते हैं, जहां स्नेह नहीं वहां कुछ नहीं है। - प्रेमचन्द
- जिस बंदे को पेट भर रोटी नहीं मिलती, उसके लिए मर्यादा और इज्जत ढोंग है। - प्रेमचंद
- खाने और सोने का नाम जीवन नहीं है, जीवन नाम है, आगे बढ़ते रहने की लगन का। - मुंशी प्रेमचंद
- जीवन की दुर्घटनाओं में अक्सर बड़े महत्व के नैतिक पहलू छिपे हुए होते हैं! - प्रेमचंद
- नमस्कार करने वाला व्यक्ति विनम्रता को ग्रहण करता है और समाज में सभी के प्रेम का पात्र बन जाता है। - प्रेमचंद
- अच्छे कामों की सिद्धि में बड़ी देर लगती है, पर बुरे कामों की सिद्धि में यह बात नहीं। - प्रेमचंद
Monday, 27 February 2012
प्रेमचंद
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Bhut mast hai ye blog or mujhe mast lga sach me mujhe munsi p.chand ji ke vichar bhut pasan hai, ye bhut achcha paryas hai ,
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