डॉ. रामकुमार वर्मा
- दुख और वेदना के अथाह सागर वाले इस संसार में प्रेम की अत्यधिक आवश्यकता है। ~ डॉ. रामकुमार वर्मा
- सौंदर्य और विलास के आवरण में महत्त्वाकांक्षा उसी प्रकार पोषित होती है जैसे म्यान में तलवार। ~ डॉ. रामकुमार वर्मा
- कवि और चित्रकार में भेद है। कवि अपने स्वर में और चित्रकार अपनी
रेखा में जीवन के तत्व और सौंदर्य का रंग भरता है। ~ डॉ. रामकुमार वर्मा
भगवान महावीर
- जिस प्रकार बिना जल के धान नहीं उगता उसी प्रकार बिना विनय के प्राप्त की गई विद्या फलदायी नहीं होती। - भगवान महावीर
- भोग में रोग का, उच्च-कुल में पतन का, धन में राजा का, मान में
अपमान का, बल में शत्रु का, रूप में बुढ़ापे का और शास्त्र में विवाद का डर
है। भय रहित तो केवल वैराग्य ही है। - भगवान महावीर
- पीड़ा से दृष्टि मिलती है, इसलिए आत्मपीड़न ही आत्मदर्शन का माध्यम है। - भगवान महावीर
- आलसी सुखी नहीं हो सकता, निद्रालु ज्ञानी नहीं हो सकता, मम्त्व
रखनेवाला वैराग्यवान नहीं हो सकता और हिंसक दयालु नहीं हो सकता। - भगवान
महावीर
- वह पुरूष धन्य है जो काम करने में कभी पीछे नहीं हटता, भाग्यलक्ष्मी उसके घर की राह पूछती हुई चली आती है। - भगवान महावीर
- दूसरों को दण्ड देना सहज है, किन्तु उन्हें क्षमा करना और उनकी भूल सुधारना अत्यधिक कठिन कार्य है। – भगवान महावीर स्वामी
लोकमान्य तिलक
- कष्ट और विपत्ति मनुष्य को शिक्षा देने वाले श्रेष्ठ गुण हैं। जो
साहस के साथ उनका सामना करते हैं, वे विजयी होते हैं। - लोकमान्य तिलक
- शरीर को रोगी और निर्बल रखने के सामान दूसरा कोई पाप नहीं है। - लोकमान्य तिलक
- स्वतंत्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है! - लोकमान्य तिलक
- अन्याय और अत्याचार करने वाला, उतना दोषी नहीं माना जा सकता, जितना कि उसे सहन करने वाला। - बाल गंगाधर तिलक
जवाहरलाल नेहरू
- अपने को संकट में डाल कर कार्य संपन्न करने वालों की विजय होती है, कायरों की नहीं। - जवाहरलाल नेहरू
- महान ध्येय के प्रयत्न में ही आनंद है, उल्लास है और किसी अंश तक प्राप्ति की मात्रा भी है। - जवाहरलाल नेहरू
- जय उसी की होती है जो अपने को संकट में डालकर कार्य संपन्न करते हैं। जय कायरों की कभी नहीं होती। - जवाहरलाल नेहरू
- जो पुस्तकें सबसे अधिक सोचने के लिए मजबूर करती हैं, वही तुम्हारी सबसे बड़ी सहायक हैं। - जवाहरलाल नेहरू
- केवल कर्महीन ही ऐसे होते हैं, जो सदा भाग्य को कोसते हैं और जिनके, पास शिकायतों का अंबार होता है। - जवाहर लाल नेहर
- श्रेष्ठतम मार्ग खोजने की प्रतीक्षा के बजाय, हम गलत रास्ते से बचते रहें और बेहतर रास्ते को अपनाते रहें। - पं. जवाहर लाल नेहरू
- जीवन ताश के खेल के समान है, आप को जो पत्ते मिलते हैं वह नियति
है, आप कैसे खेलते हैं वह आपकी स्वेच्छा है। - पं. जवाहर लाल नेहरू
- स्वयं कर्म, जब तक मुझे यह भरोसा होता है कि यह सही कर्म है, मुझे संतुष्टि देता है। - जवाहर लाल नेहरु
हरिऔध
- प्रकृति अपरिमित ज्ञान का भंडार है, पत्ते-पत्ते में शिक्षापूर्ण पाठ हैं, परंतु उससे लाभ उठाने के लिए अनुभव आवश्यक है। - हरिऔध
- जहाँ चक्रवर्ती सम्राट की तलवार कुंठित हो जाती है, वहाँ महापुरुष का एक मधुर वचन ही काम कर देता है। - हरिऔध
- अनुभव, ज्ञान उन्मेष और वयस् मनुष्य के विचारों को बदलते हैं। - हरिऔध
मधूलिका गुप्ता
- ऐ अमलतास किसी को भी पता न चला तेरे क़द का अंदाज जो आसमान था पर
सिर झुका के रहता था, तेज़ धूप में भी मुसकुरा के रहता था। ~ मधूलिका
गुप्ता
- दस गरीब आदमी एक कंबल में आराम से सो सकते हैं, परंतु दो राजा एक ही राज्य में इकट्ठे नहीं रह सकते। ~ मधूलिका गुप्ता
- समझौता एक अच्छा छाता भले बन सकता है, लेकिन अच्छी छत नहीं। ~ मधूलिका गुप्ता
- अपने दोस्त के लिए जान दे देना इतना मुश्किल नहीं है जितना मुश्किल ऐसे दोस्त को ढूँढ़ना जिस पर जान दी जा सके। ~ मधूलिका गुप्ता
वाल्मीकि
- पिता की सेवा करना जिस प्रकार कल्याणकारी माना गया है वैसा प्रबल साधन न सत्य है, न दान है और न यज्ञ हैं। - वाल्मीकि
- जैसे पके हुए फलों को गिरने के सिवा कोई भय नहीं वैसे ही पैदा हुए मनुष्य को मृत्यु के सिवा कोई भय नहीं। - वाल्मीकि
- हताश न होना सफलता का मूल है और यही परम सुख है। उत्साह मनुष्य
को कर्मो में प्रेरित करता है और उत्साह ही कर्म को सफल बनता है। -
वाल्मीकि
- तप ही परम कल्याण का साधन है। दूसरे सारे सुख तो अज्ञान मात्र हैं। - वाल्मीकि
- जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी। (जननी (माता) और जन्मभूमि स्वर्ग से भी अधिक श्रेष्ठ है) - महर्षि वाल्मीकि (रामायण)
शुक्रनीति
- कोई भी व्यक्ति अयोग्य नहीं होता केवल उसको उपयुक्त काम में लगाने वाला ही कठिनाई से मिलता है। - शुक्रनीति
- बलवान व्यक्ति की भी बुद्धिमानी इसी में है कि वह जानबूझ कर किसी को शत्रु न बनाए। - शुक्रनीति
- समूचे लोक व्यवहार की स्थिति बिना नीतिशास्त्र के उसी प्रकार
नहीं हो सकती, जिस प्रकार भोजन के बिना प्राणियों के शरीर की स्थिति नहीं
रह सकती। - शुक्रनीति
श्री परमहंस योगानंद
- विश्व की सर्वश्रेष्ठ कला, संगीत व साहित्य में भी कमियाँ देखी जा
सकती है लेकिन उनके यश और सौंदर्य का आनंद लेना श्रेयस्कर है। - श्री
परमहंस योगानंद
- तर्क से किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँचा जा सकता। मूर्ख लोग तर्क करते हैं, जबकि बुद्धिमान विचार करते हैं। - श्री परमहंस योगानंद
- खुद के लिये जीनेवाले की ओर कोई ध्यान नहीं देता पर जब आप दूसरों
के लिये जीना सीख लेते हैं तो वे आपके लिये जीते हैं। - श्री परमहंस
योगानंद
- असफलता का मौसम, सफलता के बीज बोने के लिए सर्वश्रेष्ठ समय होता है। - परमहंस योगानंद
महर्षि अरविंद
- सारा जगत स्वतंत्रता के लिए लालायित रहता है फिर भी प्रत्येक जीव
अपने बंधनो को प्यार करता है। यही हमारी प्रकृति की पहली दुरूह ग्रंथि और
विरोधाभास है। - श्री अरविंद
- भातृभाव का अस्तित्व केवल आत्मा में और आत्मा के द्वारा ही होता है, यह और किसी के सहारे टिक ही नहीं सकता। - श्री अरविंद
- कर्म, ज्ञान और भक्ति- ये तीनों जहाँ मिलते हैं वहीं सर्वश्रेष्ठ पुरुषार्थ जन्म लेता है। - श्री अरविंद
- अध्यापक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली होते हैं। वे
संस्कारों की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से उन्हें सींच-सींच कर
महाप्राण शक्तियाँ बनाते हैं। - महर्षि अरविंद
- यदि आप चाहते हैं कि लोग आपके साथ सच्चा व्यवहार करें तो आप
खुद सच्चे बनें और अन्य लोगों से भी सच्चा व्यवहार करें। - महर्षि
अरविन्द
सरदार पटेल
- सत्याग्रह की लड़ाई हमेशा दो प्रकार की होती है। एक ज़ुल्मों के खिलाफ़ और दूसरी स्वयं की दुर्बलता के विरुद्ध। - सरदार पटेल
- लोहा गरम भले ही हो जाए पर हथौड़ा तो ठंडा रह कर ही काम कर सकता है। - सरदार पटेल
- जब तक हम स्वयं निरपराध न हों तब तक दूसरों पर कोई आक्षेप सफलतापूर्वक नहीं कर सकते। - सरदार पटेल
- यह सच है कि पानी में तैरनेवाले ही डूबते हैं, किनारे पर खड़े
रहनेवाले नहीं, मगर किनारे पर खड़े रहनेवाले कभी तैरना भी नहीं सीख पाते। -
सरदार पटेल
- शत्रु का लोहा भले ही गर्म हो जाए, पर हथौड़ा तो ठंडा रहकर ही काम, दे सकता है। - सरदार पटेल
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन
- मानव का मानव होना ही उसकी जीत है, दानव होना हार है, और महामानव होना चमत्कार है। - डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन
- साहित्य का कर्तव्य केवल ज्ञान देना नहीं है परंतु एक नया वातावरण देना भी है। - डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन
- चिड़ियों की तरह हवा में उड़ना और मछलियों की तरह पानी में तैरना
सीखने के बाद अब हमें इन्सानों की तरह ज़मीन पर चलना सीखना है। - डॉ.
सर्वपल्ली राधाकृष्णन
- सब से अधिक आनंद इस भावना में है कि हमने मानवता की प्रगति में
कुछ योगदान दिया है। भले ही वह कितना कम, यहां तक कि बिल्कुल ही तुच्छ
क्यों न हो? - डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन
- धर्म, व्यक्ति एवं समाज, दोनों के लिये आवश्यक है। — डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन
मदनमोहन मालवीय
- अंग्रेज़ी माध्यम भारतीय शिक्षा में सबसे बड़ा विघ्न है। सभ्य
संसार के किसी भी जन समुदाय की शिक्षा का माध्यम विदेशी भाषा नहीं है।" -
मदनमोहन मालवीय
- रामायण समस्त मनुष्य जाति को अनिर्वचनीय सुख और शांति पहुँचाने का साधन है। - मदनमोहन मालवीय
पंचतंत्र
- कोई मनुष्य दूसरे मनुष्य को दास नहीं बनाता, केवल धन का लालच ही मनुष्य को दास बनाता है। - पंचतंत्र
- शासन के समर्थक को जनता पसंद नहीं करती और जनता के पक्षपाती को शासन। इन दोनो का प्रिय कार्यकर्ता दुर्लभ है। - पंचतंत्र
- जो कोई भी हों, सैकडो मित्र बनाने चाहिये। देखो, मित्र चूहे की सहायता से कबूतर (जाल के) बन्धन से मुक्त हो गये थे। — पंचतंत्र
- सत्संगतिः स्वर्गवास: (सत्संगति स्वर्ग में रहने के समान है) — पंचतंत्र
- भय से तब तक ही डरना चाहिये जब तक भय (पास) न आया हो। आये हुए भय को देखकर बिना शंका के उस पर प्रहार करना चाहिये। — पंचतंत्र
- जिसके पास बुद्धि है, बल उसी के पास है। (बुद्धिः यस्य बलं तस्य) — पंचतंत्र
- मौनं सर्वार्थसाधनम्। — पंचतन्त्र (मौन सारे काम बना देता है)
ऋग्वेद
- मातृभाषा, मातृ संस्कृति और मातृभूमि ये तीनों सुखकारिणी देवियाँ स्थिर होकर हमारे हृदयासन पर विराजें। - ऋग्वेद
- चिंता से चित्त को संताप और आत्मा को दुर्बलता प्राप्त होती है, इसलिए चिंता को तो छोड़ ही देना चाहिए। - ऋग्वेद
- मानव जिस लक्ष्य में मन लगा देता है, उसे वह श्रम से हासिल कर सकता है। - ऋग्वेद
- हमारे भीतर कंजूसी न हो। - ऋग्वेद
अमिताभ बच्चन
- दूसरों की ग़लतियों से सीखें। आप इतने दिन नहीं जी सकते कि खुद इतनी ग़लतियाँ कर सकें। - अमिताभ बच्चन
- अगर भगवान से माँग रहे हो तो हल्का बोझ मत माँगो, मजबूत कंधे माँगो। - अमिताभ बच्चन
विदुर
- धन उत्तम कर्मों से उत्पन्न होता है, प्रगल्भता (साहस, योग्यता व
दृढ़ निश्चय) से बढ़ता है, चतुराई से फलता फूलता है और संयम से सुरक्षित
होता है। ~ विदुर
- कुमंत्रणा से राजा का, कुसंगति से साधु का, अत्यधिक दुलार से पुत्र का और अविद्या से ब्राह्मण का नाश होता है। ~ विदुर
शरतचंद्र
- ख़ातिरदारी जैसी चीज़ में मिठास ज़रूर है, पर उसका ढकोसला करने में न तो मिठास है और न स्वाद। - शरतचंद्र
- संसार में ऐसे अपराध कम ही हैं जिन्हें हम चाहें और क्षमा न कर सकें। - शरतचंद्र
अथर्ववेद
- जहाँ मूर्ख नहीं पूजे जाते, जहाँ अन्न की सुरक्षा की जाती है और
जहाँ परिवार में कलह नहीं होती, वहाँ लक्ष्मी निवास करती है। ~ अथर्ववेद
- पुण्य की कमाई मेरे घर की शोभा बढ़ाए, पाप की कमाई को मैंने नष्ट कर दिया है। ~ अथर्ववेद
- जो स्वयं संयमित व नियंत्रित है उसे, व्यर्थ में और अधिक
नियंत्रित नहीं करना चाहिये, जो अभी अनियंत्रित है, उसी को नियंत्रित किया
जाना चाहिए। ~ अथर्ववेद
रामनरेश त्रिपाठी
- शत्रु के साथ मृदुता का व्यवहार अपकीर्ति का कारण बनता है और पुरुषार्थ यश का। ~ रामनरेश त्रिपाठी
- यह सच है कि कवि सौंदर्य को देखता है। जो केवल बाहरी सौंदर्य को
देखता है वह कवि है, पर जो मनुष्य के मन के सौंदर्य का वर्णन करता है वह
महाकवि है। ~ रामनरेश त्रिपाठी
अमृतलाल नागर
- श्रद्धा और विश्वास ऐसी जड़ी बूटियाँ हैं कि जो एक बार घोल कर पी
लेता है वह चाहने पर मृत्यु को भी पीछे धकेल देता है। ~ अमृतलाल नागर
- जैसे सूर्योदय के होते ही अंधकार दूर हो जाता है वैसे ही मन की प्रसन्नता से सारी बाधाएँ शांत हो जाती हैं। ~ अमृतलाल नागर
कमलापति त्रिपाठी
- साध्य कितने भी पवित्र क्यों न हों, साधन की पवित्रता के बिना उनकी उपलब्धि संभव नहीं। - कमलापति त्रिपाठी
- अत्याचार और अनाचार को सिर झुकाकर वे ही सहन करते हैं जिनमें नैतिकता और चरित्र का अभाव होता है। - कमलापति त्रिपाठी
डॉ. मनोज चतुर्वेदी
- मित्र के मिलने पर पूर्ण सम्मान सहित आदर करो, मित्र के पीठ पीछे
प्रशंसा करो और आवश्यकता के समय उसकी मदद अवश्य करो। - डॉ. मनोज चतुर्वेदी
- डूबते को बचाना ही अच्छे इंसान का कर्तव्य होता है। - डॉ. मनोज चतुर्वेदी
हरिशंकर परसाई
- वसंत अपने आप नहीं आता, उसे लाना पड़ता है। सहज आने वाला तो पतझड़ होता है, वसंत नहीं। ~ हरिशंकर परसाई
- मैं ने कोई विज्ञापन ऐसा नहीं देखा जिसमें पुरुष स्त्री से कह
रहा हो कि यह साड़ी या स्नो ख़रीद ले। अपनी चीज़ वह खुद पसंद करती है मगर
पुरुष की सिगरेट से लेकर टायर तक में वह दख़ल देती है। ~ हरिशंकर परसाई
रवीन्द्र नाथ टैगोर
- मानव तभी तक श्रेष्ठ है, जब तक उसे मनुष्यत्व का दर्जा प्राप्त
है। बतौर पशु, मानव किसी भी पशु से अधिक हीन है। ~ रवीन्द्र नाथ टैगोर
- आदर्श के दीपक को, पीछे रखने वाले, अपनी ही छाया के कारण, अपने पथ को, अंधकारमय बना लेते हैं। ~ रवीन्द्र नाथ टैगोर
- तुम अगर सूर्य के जीवन से चले जाने पर चिल्लाओगे तो आँसू भरी आँखे सितारे कैसे देखेंगी? ~ रविंद्रनाथ टैगोर
- प्रत्येक शिशु एक संदेश लेकर आता है कि भगवान मनुष्य को लेकर हतोत्साहित नहीं है। ~ रविन्द्रनाथ टैगोर
गुरु नानक
- दूब की तरह छोटे बनकर रहो। जब घास-पात जल जाते हैं तब भी दूब जस की तस बनी रहती है। - गुरु नानक
- कोई भी देश अपनी अच्छाईयों को खो देने पर पतीत होता है। - गुरु नानक
- शब्द धरती, शब्द आकाश, शब्द शब्द भया परगास! सगली शब्द के पाछे, नानक शब्द घटे घाट आछे!! - गुरु नानक
विष्णु प्रभाकर
- ददीपक सोने का हो या मिट्टी का मूल्य दीपक का नहीं उसकी लौ का होता है जिसे कोई अँधेरा नहीं बुझा सकता। - विष्णु प्रभाकर
- दीपक सोने का हो या मिट्टी का मूल्य उसका नहीं होता, मूल्य होता
है उसकी लौ का जिसे कोई अँधेरा, अँधेरे के तरकश का कोई तीर ऐसा नहीं जो
बुझा सके। - विष्णु प्रभाकर
संतोष गोयल
- हर चीज़ की कीमत व्यक्ति की जेब और ज़रूरत के अनुसार होती है और शायद उसी के अनुसार वह अच्छी या बुरी होती है। - संतोष गोयल
- अवसर तो सभी को ज़िंदगी में मिलते हैं किंतु उनका सही वक्त पर सही तरीक़े से इस्तेमाल कितने कर पाते हैं? - संतोष गोयल
स्वामी रामदेव
- बच्चों को शिक्षा के साथ यह भी सिखाया जाना चाहिए कि वह मात्र एक
व्यक्ति नहीं है, संपूर्ण राष्ट्र की थाती हैं। उससे कुछ भी गलत हो जाएगा
तो उसकी और उसके परिवार की ही नहीं बल्कि पूरे समाज और पूरे देश की दुनिया
में बदनामी होगी। बचपन से उसे यह सिखाने से उसके मन में यह भावना पैदा होगी
कि वह कुछ ऐसा करे जिससे कि देश का नाम रोशन हो। योग-शिक्षा इस मार्ग पर
बच्चे को ले जाने में सहायक है। - स्वामी रामदेव
- स्वदेशी उद्योग, शिक्षा, चिकित्सा, ज्ञान, तकनीक, खानपान, भाषा,
वेशभूषा एवं स्वाभिमान के बिना विश्व का कोई भी देश महान नहीं बन सकता। -
स्वामी रामदेव
- भारतीय संस्कृति और धर्म के नाम पर लोगों को जो परोसा जा रहा है
वह हमें धर्म के अपराधीकरण की ओर ले जा रहा है। इसके लिये पंडे, पुजारी,
पादरी, महंत, मौलवी, राजनेता आदि सभी जिम्मेदार हैं। ये लोग धर्म के नाम पर
नफरत की दुकानें चलाकर समाज को बांटने का काम कर रहे हैं। - स्वामी
रामदेव
स्वामी शिवानंद
- मस्तिष्क इन्द्रियों की अपेक्षा महान है, शुद्ध बुद्धिमत्ता
मस्तिष्क से महान है, आत्मा बुद्धि से महान है, और आत्मा से बढकर कुछ भी
नहीं है। - स्वामी शिवानंद
- बारह ज्ञानी एक घंटे में जितने प्रश्नों के उत्तर दे सकते हैं
उससे कहीं अधिक प्रश्न मूर्ख व्यक्ति एक मिनट में पूछ सकता है। - स्वामी
शिवानंद
- संतोष का वृक्ष कड़वा है लेकिन इस पर लगने वाला फल मीठा होता है। - स्वामी शिवानंद
रश्मि प्रभा
- गलत को गलत कहना हमें आसान नहीं लगता, सही इतना कमज़ोर होता है
इतना अकेला कि, उसके ख़िलाफ़ ही जंग का ऐलान आसान लगता है। - रश्मि प्रभा
- जहाँ सारे तर्क ख़त्म हो जाते हैं, वहाँ से आध्यात्म शुरू होता है। - रश्मि प्रभा
- हिंदी हमारी मातृभाषा है, हमारा गर्व है क्या करें - दूर के ढोल
सुहाने लगते हैं और उस ढोल पर चाल (स्टाइल) बदल जाती है! - रश्मि प्रभा
- जिस तरह फूल पौधों के उचित विकास के लिए समय समय पर काट छांट
ज़रूरी है ठीक उसी तरह बच्चों को उचित बात सिखाने के लिए समय समय पर डांट
ज़रूरी है! - रश्मि प्रभा
- तुम स्वतंत्र होना चाहते तो हो पर स्वतंत्रता देना नहीं चाहते! - रश्मि प्रभा
- कोई तुम्हारे काँधे पर हाथ रखता है तो तुम्हारा हौसला बढ़ता है
पर जब किसी का हाथ काँधे पर नहीं होता तुम अपनी शक्ति खुद बन जाते हो और
वही शक्ति ईश्वर है! - रश्मि प्रभा
डॉ. शंकर दयाल शर्मा
- सहिष्णुता और समझदारी संसदीय लोकतंत्र के लिए उतने ही आवश्यक है जितने संतुलन और मर्यादित चेतना। - डॉ. शंकरदयाल शर्मा
- धर्म का अर्थ तोड़ना नहीं बल्कि जोड़ना है। धर्म एक संयोजक तत्व है। धर्म लोगों को जोड़ता है। - डॉ. शंकर दयाल शर्मा
महाभारत
- धर्म करते हुए मर जाना अच्छा है पर पाप करते हुए विजय प्राप्त करना अच्छा नहीं। - महाभारत
- बुद्धि से विचारकर किए गए कर्म ही सफल होते हैं। - महाभारत
- अपने भाई बंधु जिसका आदर करते हैं, दूसरे भी उसका आदर करते हैं। - महाभारत
- जिस हरे-भरे वृक्ष की छाया का आश्रय लेकर रहा जाए, पहले उपकारों
का ध्यान रखकर उसके एक पत्ते से भी द्रोह नहीं करना चाहिए। - महाभारत
- लक्ष्मी शुभ कार्य से उत्पन्न होती है, चतुरता से बढ़ती है,
अत्यन्त निपुणता से, जड़े जमाती है और संयम से स्थिर रहती है। - महाभारत
गीता
- फल की अभिलाषा छोड़कर कर्म करनेवाला मनुष्य ही मोक्ष प्राप्त करता है। - गीता
- कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन्। (कर्म करने में ही तुम्हारा अधिकार है, फल में कभी भी नहीं) — गीता
- सन्यास हृदय की एक दशा का नाम है, किसी ऊपरी नियम या वेशभूषा का नहीं। - श्रीमद् भगवदगीता
- हम अपने कार्यों के परिणाम का निर्णय करने वाले कौन हैं? यह तो
भगवान का कार्यक्षेत्र है। हम तो एकमात्र कर्म करने के लिए उत्तरदायी हैं। -
गीता
- हम प्रयास के लिए उत्तरदायी हैं, न कि परिणाम के लिए। - गीता
स्वामी रामतीर्थ
- जंज़ीरें, जंज़ीरें ही हैं, चाहे वे लोहे की हों या सोने की, वे समान रूप से तुम्हें गुलाम बनाती हैं। - स्वामी रामतीर्थ
- वही उन्नति करता है जो स्वयं अपने को उपदेश देता है। - स्वामी रामतीर्थ
- केवल प्रकाश का अभाव ही अंधकार नहीं, प्रकाश की अति भी मनुष्य की आँखों के लिए अंधकार है। - स्वामी रामतीर्थ
- त्याग निश्चय ही आपके बल को बढ़ा देता है, आपकी शक्तियों को कई
गुना कर देता है, आपके पराक्रम को दृढ कर देता है, वही आपको ईश्वर बना देता
है। वह आपकी चिंताएं और भय हर लेता है, आप निर्भय तथा आनंदमय हो जाते
हैं। - स्वामी रामतीर्थ
- सूरज और चांद को आप अपने जन्म के समय से ही देखते चले आ रहे हैं। फिर भी यह नहीं जान पाये कि काम कैसे करने चाहिए? - रामतीर्थ
- कृत्रिम प्रेम बहुत दिनों तक चल नहीं पाता, स्वाभाविक प्रेम की नकल नहीं हो सकती। - स्वामी रामतीर्थ
- जो मनुष्य अपने साथी से घृणा करता है, वह उसी मनुष्य के समान हत्यारा है, जिसने सचमुच हत्या की हो। - स्वामी रामतीर्थ
- आलस्य मृत्यु के समान है, और केवल उद्यम ही आपका जीवन है। - स्वामी रामतीर्थ
- सच्चा पड़ोसी वह नहीं जो तुम्हारे साथ, उसी मकान में रहता है,
बल्िक वह है जो तुम्हारे साथ उसी विचार स्तर पर रहता है। - स्वामी
रामतीर्थ
- जब तक तुम्हारें अन्दर दूसरों के, अवगुण ढुंढने या उनके दोष
देखने, की आदत मौजूद है ईश्वर का साक्षात, करना अत्यंत कठिन है। -
स्वामी रामतीर्थ
- व्यक्ति को हानि, पीड़ा और चिंताएं, उसकी किसी आंतरिक दुर्बलता
के कारण होती है, उस दुर्बलता को दूर करके कामयाबी मिल सकती है। - स्वामी
रामतीर्थ
- दुनियावी चीजों में सुख की तलाश, फिजूल होती है। आनन्द का खजाना, तो कहीं हमारे भीतर ही है। - स्वामी रामतीर्थ
इंदिरा गांधी
- जीवन का महत्व तभी है जब वह किसी महान ध्येय के लिए समर्पित हो। यह समर्पण ज्ञान और न्याययुक्त हो। - इंदिरा गांधी
- यदि असंतोष की भावना को लगन व धैर्य से रचनात्मक शक्ति में न बदला जाए तो वह ख़तरनाक भी हो सकती है। - इंदिरा गांधी
- यहाँ दो तरह के लोग होते हैं - एक वो जो काम करते हैं और दूसरे
वो जो सिर्फ क्रेडिट लेने की सोचते है। कोशिश करना कि तुम पहले समूह में
रहो क्योंकि वहाँ कम्पटीशन कम है। — इंदिरा गांधी
- आप भींची मुट्ठी से हाथ नहीं मिला सकते। - इंदिरा गांधी
- प्रश्न कर पाने की क्षमता ही मानव प्रगति का आधार है। - इंदिरा गांधी
- एक राष्ट्र की शक्ति उसकी आत्मनिर्भरता में है, दूसरों से उधार लेकर पर काम चलाने में नहीं। - इंदिरा गांधी
- लोग अपने कर्तव्य भूल जाते हैं लेकिन अपने अधिकार उन्हें याद रहते हैं। - इंदिरा गांधी
मैथिलीशरण गुप्त
- अरूणोदय के पूर्व सदैव घनघोर अंधकार होता है। — मैथिलीशरण गुप्त
- नर हो न निराश करो मन को। कुछ काम करो, कुछ काम करो। जग में रहकर कुछ नाम करो॥ — मैथिलीशरण गुप्त
आचार्य रजनीश
- जब तुम नहीं होगे, तब तुम पहली बार होगे। - आचार्य रजनीश
- यदि तुम्हारे ह्रदय के तार मुझसे जुड़ गए हैं तो अनंतककाल तक आवाज़ देता रहूँगा। - आचार्य रजनीश
- यथार्थवादी बनो: चम्त्कार की योजना बनाओ। - आचार्य रजनीश
- तुम कहते हो की स्वर्ग में शाश्वत सौंदर्य है, शाश्वत सौंदर्य अभी है यहाँ, स्वर्ग में नही। - आचार्य रजनीश
- मसीहा को मरे जितना समय हो जाता है कर्मकांड उतना ही प्रबल हो
जाता है, अगर आज बुद्ध जीवित होते तो तुम उन्हें पसंद न करते। - आचार्य
रजनीश
- मेरी सारी शिक्षा दो शब्दो की है प्रेम और ध्यान। - आचार्य रजनीश
- धर्म जीवन को परमात्मा में जीने की विधि है, संसार में ऐसे जिया जा सकता है जैसे, कमल सरोवर के कीचड़ में जीते हैं। - आचार्य रजनीश
स्वामी सुदर्शनाचार्य जी
- मानवता के दिशा में उठाया गया प्रत्येक कदम आपकी स्वयं की चिंताओं
को कम करने में मील का पत्थर साबित होगा। - स्वामी श्री सुदर्शनाचार्य जी
- आप मृत्यु के उपरांत अपने साथ अपने अच्छे-बुरे कर्मों की पूंजी
साथ ले जाएंगे, इसके अलावा आप कुछ साथ नहीं ले जा सकते, याद रखें 'कुछ
नहीं'। - स्वामी श्री सुदर्शनाचार्य जी
- जिसे इंसान से प्रेम है और इंसानियत की समझ है, उसे अपने आप में ही संतुष्टि मिल जाती है। - स्वामी सुदर्शनाचार्य जी
हंसराज सुज्ञ
- अच्छे विचार और अच्छी सोच से आचरण भी अच्छा बनता है। - हंसराज सुज्ञ
- सम्बोधन अच्छे होंगे तभी सम्बंध अच्छे बनेंगे। - हंसराज सुज्ञ
- यदि हमारे विचार सकारात्मक होंगे तो सब कुछ सकारात्मक हो जायेगा। - हंसराज सुज्ञ
- साधारण मानव परिवेश अनुसार ढलता है, असाधारण मानव परिवेश को ही ढालता है। - हंसराज सुज्ञ
- दूसरों का दिल जीतने के लिए फटकार नहीं मधुर व्यवहार चाहिए। - हंसराज सुज्ञ
- परिस्थिति प्रतिकूल देखकर अपना अच्छा भला स्वभाव बदल देना तो स्वेच्छा बरबाद हो जाने के समान है। - हंसराज सुज्ञ
- उत्तम वस्तु को पचाने की क्षमता भी उत्तम चाहिए। - हंसराज सुज्ञ
- दूसरों के दोष देखने और ढूंढने की तीव्रेच्छा, इतनी गाढ़ हो जाती है कि अपने दोष देखने का वक्त ही नहीं मिलता - हंसराज सुज्ञ
- पतन का मार्ग ढलान का मार्ग है, ढलान में ही हमें रूकना सम्हलना होता है। - हंसराज सुज्ञ
- सच्चा सुधारक वही है जो पहले अपना सुधार करता है। - हंसराज सुज्ञ
- जो समय गया सो गया, उसके लिए पश्चाताप करने की अपेक्षा वर्तमान को सार्थक करने की जरूरत है। - हंसराज सुज्ञ
- विनय धर्म का मूल है अत: विनय आने पर, अन्य गुणों की सहज ही प्राप्ति हो जाती है। - हंसराज सुज्ञ
- यदि कोई हमारा एक बार अपमान करे,हम दुबारा उसकी शरण में नहीं
जाते। और यह मान (ईगो) प्रलोभन हमारा बार बार अपमान करवाता है। हम अभिमान
का आश्रय त्याग क्यों नहीं देते? - हंसराज सुज्ञ
- यदि कोई एक बार हमारे साथ धोखा करे हम उससे मुँह मोड़ लेते है।
और हमारा यह लोभ हमें बार बार धोखा देता है, हम अपने लोभ का मुख नोच क्यों
नहीं लेते? - हंसराज सुज्ञ
- जीवन एक कहानी है, महत्व इस बात का नहीं, यह कहानी कितनी लम्बी
है, महत्व इस बात का है, कि कहानी कितनी सार्थक है। - हंसराज सुज्ञ
- विनयहीन ज्ञानी वस्तुत: ज्ञानी ही नहीं है! - हंसराज सुज्ञ
- ज्ञान बढ़ने के साथ ही अहंकार घटना चाहिए, और नम्रता में वृद्धि होनी चाहिए! - हंसराज सुज्ञ
- देह शुद्धि से अधिक, विचारों की शुद्धि आवश्यक है। - हंसराज सुज्ञ
संत प्रवर श्री ललितप्रभ जी
- जहाँ हिम्मत समाप्त होती हैं वहीं हार की शुरूआत होती हैं। आप धीरज मत खोइये अपना कदम फिर से उठाइये। ~ संत प्रवर श्री ललितप्रभ जी
- आप जीवन में सफल होना चाहते हैं तो धैर्य को अपना धर्म बनाले। ~ संत प्रवर श्री ललितप्रभ जी
- जन्म से महान होना पैतृक विरासत हैं पर आसमान को छूना हैं तो हौसले बुलंद कीजिये। ~ संत प्रवर श्री चंद्रप्रभ जी
- चुनौतियों से घबराइये मत, सामना कीजिये। आग तो हर व्यक्ति के
भीतर छिपी है।, बस उसे जगाने की जरूरत हैं। ~ संत प्रवर श्री चंद्रप्रभ जी
- अर्जित की गई सफलता से बँध कर न रहें, चार कदम आगे बढ़कर दूसरों
के लिये अपने पैरों के निशान छोड़ जाइये। ~ संत प्रवर श्री चंद्रप्रभ जी
- उत्साह जीवन में सबसे बड़ी शक्ति हैं। अगर आपके पास यह हैं तो जीत आपकी हैं। ~ संत प्रवर श्री चंद्रप्रभ जी
अन्य
- तलवार ही सब कुछ है, उसके बिना न मनुष्य अपनी रक्षा कर सकता है और न निर्बल की। ~ गुरु गोविंद सिंह
- निज भाषा उन्नति अहै, सब भाषा को मूल। बिनु निज भाषा ज्ञान के, मिटै न हिय को शूल॥ ~ भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
- सच्चे साहित्य का निर्माण एकांत चिंतन और एकान्त साधना में होता है। ~ अनंत गोपाल शेवड़े
- हिंदी भारत की राष्ट्रभाषा है और यदि मुझसे भारत के लिए एक मात्र
भाषा का नाम लेने को कहा जाए तो वह निश्चित रूप से हिंदी ही है। ~ कामराज
- दुःख का कारण हमारी चित्तवृत्तिओं का प्रभाव ही है। ~ भगवान श्री कृष्ण
- कुलीन और खानदानी मनुष्यों का प्रथम लक्षण है कि नुकसान होते
दिखने पर और हर समय तथा संकट के वक्त भी उनकी कथनी व करनी एक रहती है, तथा
सत्य को स्वयं के और अपने राज्य को नष्ट होने या हानि होने पर भी नहीं
छोड़ते, दूसरा लक्षण है कि वे शरणागत शत्रु को भी आश्रय देकर भयमुक्त
करते है, तीसरा लक्षण है कि उनके भीतर भय कभी भूल कर भी प्रवेश नहीं कर
सकता। ~ भगवान श्री कृष्ण
- हर समय मुस्कराते रहना, चित्त शान्त रहना, उद्विग्नता और
भटकाव का न होना, स्पष्ट विचार, स्पष्ट धारणा और स्पष्ट निर्णय, धीर
पुरूषों और योगीयों के लक्षण है। ~ भगवान श्री कृष्ण
- सपने पूरे होंगे लेकिन आप सपने देखना शुरू तो करें। ~ अब्दुल कलाम
- सपना वह नहीं होता जो आप नींद में देखते हैं, यह तो कुछ ऐसी चीज है जो आपको सोने नहीं देती है। ~ अब्दुल कलाम
- किसी की करुणा व पीड़ा को देख कर मोम की तरह दर्याद्र हो
पिघलनेवाला ह्रदय तो रखो परंतु विपत्ति की आंच आने पर कष्टों-प्रतिकूलताओं
के थपेड़े खाते रहने की स्थिति में चट्टान की तरह दृढ़ व ठोस भी बने रहो। ~
द्रोणाचार्य
- यह सच है कि पानी में तैरनेवाले ही डूबते हैं, किनारे पर खड़े
रहनेवाले नहीं, मगर ऐसे लोग कभी तैरना भी नहीं सीख पाते। ~ वल्लभभाई पटेल
- मेरी हार्दिक इच्छा है कि मेरे पास जो भी थोड़ा-बहुत धन शेष है,
वह सार्वजनिक हित के कामों में यथाशीघ्र खर्च हो जाए। मेरे अंतिम समय में
एक पाई भी न बचे, मेरे लिए सबसे बड़ा सुख यही होगा। ~ पुरुषोत्तमदास टंडन
- खुदी को कर बुलन्द इतना, कि हर तकदीर के पहले। खुदा बंदे से खुद पूछे, बता तेरी रजा क्या है? ~ अकबर इलाहाबादी
- खुदी को कर बुलन्द इतना, के हर तकदीर से पेहले खुदा बन्दे से खुद पूछे, बता तेरी रज़ा क्या है। ~ इक्बाल
- प्रकृति का तमाशा भी ख़ूब है। सृजन में समय लगता है जबकि विनाश कुछ ही पलों में हो जाता है। ~ ज़क़िया ज़ुबैरी
- ज्ञान प्राप्ति का एक ही मार्ग है जिसका नाम है, एकाग्रता। शिक्षा
का सार है, मन को एकाग्र करना, तथ्यों का संग्रह करना नहीं। ~ श्री माँ
- कर्म की उत्पत्ति विचार में है, अतः विचार ही महत्वपूर्ण हैं। ~ साई बाबा
- छोटा आरम्भ करो, शीघ्र आरम्भ करो। ~ रघुवंश महाकाव्यम्
- अकर्मण्य मनुष्य श्रेष्ठ होते हुए भी पापी है। ~ ऐतरेय ब्राह्मण - ३३।३
- जिस प्रकार राख से सना हाथ जैसे-जैसे दर्पण पर घिसा जाता है,
वैसे-वैसे उसके प्रतिबिंब को साफ करता है, उसी प्रकार दुष्ट जैसे-जैसे
सज्जन का अनादर करता है, वैसे-वैसे वह उसकी कांति को बढ़ाता है। ~
वासवदत्ता
- गुणवान पुरुषों को भी अपने स्वरूप का ज्ञान दूसरे के द्वारा ही
होता है। आंख अपनी सुन्दरता का दर्शन दर्पण में ही कर सकती है। ~
वासवदत्ता
- उर्दू लिखने के लिये देवनागरी अपनाने से उर्दू उत्कर्ष को प्राप्त होगी। ~ खुशवन्त सिंह
- जब तुम दु:खों का सामना करने से डर जाते हो और रोने लगते हो, तो
मुसीबतों का ढेर लग जाता है। लेकिन जब तुम मुस्कराने लगते हो, तो मुसीबतें
सिकुड़ जाती हैं। ~ सुधांशु महाराज
- नेकी कर और दरिया में डाल। ~ किस्सा हातिमताई
- जो अकारण अनुराग होता है उसकी प्रतिक्रिया नहीं होती है क्योंकि
वह तो स्नेहयुक्त सूत्र है जो प्राणियों को भीतर-ही-भीतर (ह्रदय में) सी
देती है। ~ उत्तररामचरित
- संयम संस्कृति का मूल है। विलासिता निर्बलता और चाटुकारिता के
वातावरण में न तो संस्कृति का उद्भव होता है और न विकास। ~ काका कालेलकर
- कुल की प्रशंसा करने से क्या लाभ? शील ही (मनुष्य की पहचान का)
मुख्य कारण है। क्षुद्र मंदार आदि के वृक्ष भी उत्तम खेत में पड़ने से अधिक
बढते-फैलते हैं। ~ मृच्छकटिक
- बुद्धिमान मनुष्य अपनी हानि पर कभी नहीं रोते बल्कि साहस के साथ उसकी क्षतिपूर्ति में लग जाते हैं। ~ विष्णु शर्मा
- जिसके जीने से बहुत से लोग जीवित रहें, वहीं इस संसार में वास्तव में जीता है। ~ विष्णु शर्मा
- जैसे रात्रि के बाद भोर का आना या दुख के बाद सुख का आना जीवन
चक्र का हिस्सा है वैसे ही प्राचीनता से नवीनता का सफ़र भी निश्चित है। ~
भावना कुँअर
- प्रत्येक कार्य अपने समय से होता है उसमें उतावली ठीक नहीं, जैसे
पेड़ में कितना ही पानी डाला जाय पर फल वह अपने समय से ही देता है। ~ वृंद
- निराशा के समान दूसरा पाप नहीं। आशा सर्वोत्कृष्ट प्रकाश है तो निराशा घोर अंधकार है। ~ रश्मिमाला
- कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। ~ हरिवंश राय बच्चन
- मनुष्य अपना स्वामी नहीं, परिस्थितियों का दास है। ~ भगवतीचरण वर्मा
- मृत्यु और विनाश बिना बुलाए ही आया करते हैं क्योंकि ये हमारे
मित्रों के रूप में नहीं शत्रुओं के रूप में आते हैं। ~ भगवतीचरण वर्मा
- सच्चाई से जिसका मन भरा है, वह विद्वान न होने पर भी बहुत देश सेवा कर सकता है। ~ पं. मोतीलाल नेहरू
- जो भारी कोलाहल में भी संगीत को सुन सकता है, वह महान उपलब्धि को प्राप्त करता है। ~ डॉ. विक्रम साराभाई
- जैसे जीने के लिए मृत्यु का अस्वीकरण ज़रूरी है वैसे ही सृजनशील बने रहने के लिए प्रतिष्ठा का अस्वीकरण ज़रूरी है। ~ डॉ. रघुवंश
- काम से ज़्यादा काम के पीछे निहित भावना का महत्व होता है। ~ डॉ. राजेंद्र प्रसाद
- उजाला एक विश्वास है जो अँधेरे के किसी भी रूप के विरुद्ध संघर्ष
का बिगुल बजाने को तत्पर रहता है। ये हममें साहस और निडरता भरता है। ~ डॉ.
प्रेम जनमेजय
- अच्छी योजना बनाना बुद्धिमानी का काम है पर उसको ठीक से पूरा करना धैर्य और परिश्रम का। ~ डॉ. तपेश चतुर्वेदी
- देश-प्रेम के दो शब्दों के सामंजस्य में वशीकरण मंत्र है, जादू का
सम्मिश्रण है। यह वह कसौटी है जिसपर देश भक्तों की परख होती है। - बलभद्र
प्रसाद गुप्त 'रसिक'
- असत्य फूस के ढेर की तरह है। सत्य की एक चिनगारी भी उसे भस्म कर देती है। ~ हरिभाऊ उपाध्याय
- आनन्द उछलता - कूदता जाता है; शान्ति मुस्कुराती हुई चलती है। ~ हरिभाऊ उपाध्याय
- जबतक भारत का राजकाज अपनी भाषा में नहीं चलेगा तबतक हम यह नहीं कह सकते कि देश में स्वराज है। ~ मोरारजी देसाई
- जैसे उल्लू को सूर्य नहीं दिखाई देता वैसे ही दुष्ट को सौजन्य दिखाई नहीं देता। ~ स्वामी भजनानंद
- सबसे उत्तम विजय प्रेम की है जो सदैव के लिए विजेताओं का हृदय बाँध लेती है। ~ सम्राट अशोक
- जीवन की जड़ संयम की भूमि में जितनी गहरी जमती है और सदाचार का
जितना जल दिया जाता है उतना ही जीवन हरा भरा होता है और उसमें ज्ञान का
मधुर फल लगता है। ~ दीनानाथ दिनेश
- प्रत्येक व्यक्ति की अच्छाई ही प्रजातंत्रीय शासन की सफलता का मूल सिद्धांत है। ~ राजगोपालाचारी
- अपने अनुभव का साहित्य किसी दर्शन के साथ नहीं चलता, वह अपना दर्शन पैदा करता है। ~ कमलेश्वर
- त्योहार साल की गति के पड़ाव हैं, जहां भिन्न-भिन्न मनोरंजन हैं, भिन्न-भिन्न आनंद हैं, भिन्न-भिन्न क्रीडास्थल हैं। ~ बस्र्आ
- 'शि' का अर्थ है पापों का नाश करने वाला और 'व' कहते हैं मुक्ति
देने वाले को। भोलेनाथ में ये दोनों गुण हैं इसलिए वे शिव कहलाते हैं। ~
ब्रह्मवैवर्त पुराण
- चंद्रमा, हिमालय पर्वत, केले के वृक्ष और चंदन शीतल माने गए हैं,
पर इनमें से कुछ भी इतना शीतल नहीं जितना मनुष्य का तृष्णा रहित चित्त। ~
वशिष्ठ
- इस जन्म में परिश्रम से की गई कमाई का फल मिलता है और उस कमाई से दिए गए दान का फल अगले जन्म में मिलता है। ~ गुरुवाणी
- ईश्वर ने तुम्हें सिर्फ एक चेहरा दिया है और तुम उस पर कई चेहरे
चढ़ा लेते हो, जो व्यक्ति सोने का बहाना कर रहा है उसे आप उठा नहीं सकते। ~
नवाजो
- आहार, स्वप्न (नींद) और ब्रम्हचर्य इस शरीर के तीन स्तम्भ हैं। ~ महर्षि चरक
- संवेदनशीलता न्याय की पहली अनिवार्यता है। ~ कुमार आशीष
- देश कभी चोर उचक्कों की करतूतों से बरबाद नहीं होता बल्कि शरीफ़ लोगों की कायरता और निकम्मेपन से होता है। ~ शिव खेड़ा
- बीस वर्ष की आयु में व्यक्ति का जो चेहरा रहता है, वह प्रकृति की
देन है, तीस वर्ष की आयु का चेहरा जिंदगी के उतार-चढ़ाव की देन है लेकिन
पचास वर्ष की आयु का चेहरा व्यक्ति की अपनी कमाई है। ~ अष्टावक्र
- बेहतर ज़िंदगी का रास्ता बेहतर किताबों से होकर जाता है। ~ शिल्पायन
- राष्ट्र की एकता को अगर बनाकर रखा जा सकता है तो उसका माध्यम हिंदी ही हो सकती है। ~ सुब्रह्मण्यम भारती
- बिखरना विनाश का पथ है तो सिमटना निर्माण का। ~ कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर
- हिंदी ही हिंदुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है। हर महीने कम
से कम एक हिन्दी पुस्तक ख़रीदें! मैं और आप नहीं तो क्या विदेशी लोग हिन्दी
लेखकों को प्रोत्साहन देंगे? ~ शास्त्री फ़िलिप
- यदि तुम्हें अपने चुने हुए रास्ते पर विश्वास है, यदि इस पर चलने
का साहस है, यदि इसकी कठिनाइयों को जीत लेने की शक्ति है, तो रास्ता
तुम्हारा अनुगमन करता है। ~ धीरूभाई अंबानी
- बड़ी बातें सोचो, तेज सोचो, दूसरो से पहले सोचो। विचारों पर किसी का एकाधिकार नहीं हैं। ~ धीरू भाई अम्बानी
- एक पल का उन्माद जीवन की क्षणिक चमक का नहीं, अंधकार का पोषक है, जिसका कोई आदि नहीं, कोई अंत नहीं। ~ रांगेय राघव
- जीवन दूध के समुद्र की तरह है, आप इसे जितना मथेंगे आपको इससे उतना ही मक्खन मिलेगा। ~ घनश्यामदास बिड़ला
- वसंत ऋतु निश्चय ही रमणीय है। ग्रीष्म ऋतु भी रमणीय है। वर्षा,
शरद, हेमंत और शिशिर भी रमणीय है, अर्थात सब समय उत्तम हैं। ~ सामवेद
- अंधेरे को कोसने से बेहतर है कि एक दीया जलाया जाए। ~ उपनिषद
- आंतरिक सौंदर्य का आह्वान करना कठिन काम है। सौंदर्य की अपनी भाषा होती है, ऐसी भाषा जिसमें न शब्द होते हैं न आवाज़। ~ राजश्री
- हँसी छूत की बीमारी है, आपको हँसी आई नहीं कि दूसरे को ज़बरदस्ती अपने दाँत निकालने पड़ेंगे। ~ प्रेमलता दीप
- जो बिना ठोकर खाए मंजिल तक पहुँच जाते हैं, उनके हाथ अनुभव से ख़ाली रह जाते हैं। ~ शिवकुमार मिश्र 'रज्जन'
- कर्मों का फल अवश्य मिलता है, पर हमारी इच्छानुसार नहीं, कार्य के प्रति हमारी आस्था एवं दृष्टि के अनुसार। ~ किशोर काबरा
- श्रेष्ठ वही है जिसके हृदय में दया व धर्म बसते हैं, जो अमृतवाणी बोलते हैं और जिनके नेत्र विनय से झुके होते हैं। ~ संत मलूकदास
- जैसे दीपक का प्रकाश घने अंधकार के बाद दिखाई देता है उसी प्रकार सुख का अनुभव भी दुःख के बाद ही होता है। ~ शूद्रक
- शाला में नया छात्र कुछ लेकर नहीं आता और पुराना कुछ लेकर नहीं जाता फिर भी वहाँ ज्ञान का विकास होता है। ~ राजेन्द्र अवस्थी
- अकेलापन कई बार अपने आप से सार्थक बातें करता है। वैसी सार्थकता भीड़ में या भीड़ के चिंतन में नहीं मिलती। ~ राजेंद्र अवस्थी
- बूढा होना कोई आसान काम नहीं। इसे बड़ी मेहनत से सीखना पड़ता है। ~ निर्मल वर्मा
- आपत्तियां मनुष्यता की कसौटी हैं। इन पर खरा उतरे बिना कोई भी व्यक्ति सफल नहीं हो सकता। ~ पंडित रामप्रताप त्रिपाठी
- कलाविशेष में निपुण भले ही चित्र में कितने ही पुष्प बना दें पर
क्या वे उनमें सुगंध पा सकते हैं और फिर भ्रमर उनसे रस कैसे पी सकेंगे। ~
पंडितराज जगन्नाथ
- अविश्वास आदमी की प्रवृत्ति को जितना बिगाड़ता है, विश्वास उतना ही बनाता है। ~ धर्मवीर भारती
- मैं हिन्दुस्तान की तूती हूँ। अगर तुम वास्तव में मुझसे जानना
चाहते हो तो हिन्दवी में पूछो। मैं तुम्हें अनुपम बातें बता सकूँगा। ~
अमीर ख़ुसरो
- विश्व में अग्रणी भूमिका निभाने की आकांक्षा रखनेवाला कोई भी देश
शुद्ध या दीर्घकालीन अनुसंधान की उपेक्षा नहीं कर सकता। ~ होमी भाभा
- कोई भी भाषा अपने साथ एक संस्कार, एक सोच, एक पहचान और प्रवृत्ति को लेकर चलती है। ~ भरत प्रसाद
- कहानी जहाँ खत्म होती है, जीवन वहीं से शुरू होता है।' ~ संजीव
- हम अमन चाहते हैं जुल्म के ख़िलाफ़, फैसला ग़र जंग से होगा, तो जंग ही सही। ~ राम प्रसाद बिस्मिल
- सपने हमेशा सच नहीं होते पर ज़िंदगी तो उम्मीद पर टिकी होती हैं। ~ रविकिरण शास्त्री
- विनम्रता की परीक्षा 'समृद्धि' में और स्वाभिमान की परीक्षा 'अभाव' में होती है। ~ आदित्य चौधरी
- भ्रमरकुल आर्यवन में ऐसे ही कार्य (मधुपान की चाह) के बिना नहीं
घूमता है। क्या बिना अग्नि के धुएं की शिखा कभी दिखाई देती है? ~
गाथासप्तशती
- दृढ़ इच्छा शक्ति हो तो आतशी शीशा खुद ब खुद मिल जाता हैं, जो अवसरों को खोज निकालता हैं। ~ शिव खेड़ा
- सफलता के लिए किसी सफाई की जरूरत नहीं होती और असफलता की कोई सफाई नहीं होती। ~ प्रमोद बत्रा
- अपनी सफलता के इन्जिनियर आप खुद है। अगर हम अपनी आत्मा की ईंट और
जीवन का सीमेंट उस जगह लगायें जहाँ चाहते हैं तो सफलता की मजबूत इमारत खड़ी
कर सकते हैं अपनी सीमा ऊँचे स्तर पर बनाओ, बड़ा सोचने का साहस करो। ~
नैना लाल किदवई
- जहाँ अकारण अत्यन्त सत्कार हो, वहाँ परिणाम में दुख की आशंका करनी चाहिये। ~ कुमार सम्भव
- किताबों में वजन होता है! ये यूँ ही किसी के जीवन की दशा और दिशा नहीं बदल देतीं। ~ इला प्रसाद
- मानव जीवन धूल की तरह है, रो-धोकर हम इसे कीचड़ बना देते हैं। ~ बकुल वैद्य
- अकर्मण्यता के जीवन से यशस्वी जीवन और यशस्वी मृत्यु श्रेष्ठ होती है। ~ चंद्रशेखर वेंकट रमण
- जिस प्रकार जल कमल के पत्ते पर नहीं ठहरता है, उसी प्रकार मुक्त आत्मा के कर्म उससे नहीं चिपकते हैं। ~ छांदोग्य उपनिषद
- ख्याति नदी की भाँति अपने उद्गम स्थल पर क्षीण ही रहती है किंदु दूर जाकर विस्तृत हो जाती है। ~ भवभूति
- बुद्धि के सिवाय विचार प्रचार का कोई दूसरा शस्त्र नहीं है, क्योंकि ज्ञान ही अन्याय को मिटा सकता है। ~ शंकराचार्य
- बच्चों को पालना, उन्हें अच्छे व्यवहार की शिक्षा देना भी सेवाकार्य है, क्योंकि यह उनका जीवन सुखी बनाता है। ~ स्वामी रामसुखदास
- समस्त भारतीय भाषाओं के लिए यदि कोई एक लिपि आवश्यक हो तो वह देवनागरी ही हो सकती है। ~ (न्यायमूर्ति) कृष्णस्वामी अय्यर
- ईमानदार के लिए किसी छद्म वेश-भूषा या साज-श्रृंगार की आवश्यकता नहीं होती। इसके लिए सादगी ही प्रर्याप्त है। ~ औटवे
- जन्म-मरण का सांसारिक चक्र तभी ख़त्म होता है जब व्यक्ति को मोक्ष
मिलता है। उसके बाद आत्मा अपने वास्तविक सत्-चित्-आनन्द स्वभाव को सदा के
लिये पा लेती है। ~ हिन्दू धर्मग्रन्थ
- कष्ट ही तो वह प्रेरक शक्ति है जो मनुष्य को कसौटी पर परखती है और आगे बढ़ाती है। ~ वीर सावरकर
- उत्तरदायित्व में महान बल होता है, जहाँ कहीं उत्तरदायित्व होता है, वहीं विकास होता है। ~ दामोदर सातवलेकर
- जो सत्य विषय हैं वे तो सबमें एक से हैं झगड़ा झूठे विषयों में होता है। ~ सत्यार्थप्रकाश
- जिस प्रकार रात्रि का अंधकार केवल सूर्य दूर कर सकता है, उसी प्रकार मनुष्य की विपत्ति को केवल ज्ञान दूर कर सकता है। ~ नारदभक्ति
- सही स्थान पर बोया गया सुकर्म का बीज ही समय आने पर महान फल देता है। ~ कथा सरित्सागर
- लोकतंत्र के पौधे का, चाहे वह किसी भी किस्म का क्यों न हो तानाशाही में पनपना संदेहास्पद है। ~ जयप्रकाश नारायण
- बाधाएँ व्यक्ति की परीक्षा होती हैं। उनसे उत्साह बढ़ना चाहिए, मंद नहीं पड़ना चाहिए। ~ यशपाल
- जैसे अंधे के लिए जगत अंधकारमय है और आँखों वाले के लिए प्रकाशमय
है वैसे ही अज्ञानी के लिए जगत दुखदायक है और ज्ञानी के लिए आनंदमय। ~
संपूर्णानंद
- दंड द्वारा प्रजा की रक्षा करनी चाहिए लेकिन बिना कारण किसी को दंड नहीं देना चाहिए। ~ रामायण
- शाश्वत शांति की प्राप्ति के लिए शांति की इच्छा नहीं बल्कि आवश्यक है इच्छाओं की शांति। ~ स्वामी ज्ञानानंद
- त्योहार साल की गति के पड़ाव हैं, जहाँ भिन्न-भिन्न मनोरंजन हैं, भिन्न-भिन्न आनंद हैं, भिन्न-भिन्न क्रीडास्थल हैं। ~ बरुआ
- अपने विषय में कुछ कहना प्राय: बहुत कठिन हो जाता है क्यों कि
अपने दोष देखना आपको अप्रिय लगता है और उनको अनदेखा करना औरों को। ~
महादेवी वर्मा
- ताकतवर होने के लिए अपनी शक्ति में भरोसा रखना जरूरी है, वैसे
व्यक्तियों से अधिक कमज़ोर कोई नहीं होता जिन्हें अपने सामर्थ्य पर
भरोसा नहीं। ~ स्वामी दयानंद सरस्वती
- मनुंष्य का सच्चा जीवन साथी विद्या ही है, जिसके कारण वह विद्वान कहलाता है। ~ स्वामी दयानन्द
- प्रेम संयम और तप से उत्पन्न होता है, भक्ति साधना से प्राप्त
होती है, श्रद्धा के लिए अभ्यास और निष्ठा की जरूरत होती है। ~ हजारी
प्रसाद द्विवेदी
- अधिक धन सम्पन्न होने पर भी जो असंतुष्ट रहता है, वह निर्धन
है, धन से रहित होने पर भी जो संतुष्ट है वह सदा धनी है। ~ अश्वघोष
- भलाई से बढ़कर जीवन और, बुराई से बढ़कर मृत्यु नहीं है। ~ आदिभट्ल नारायण दासु
- कांच का कटोरा, नेत्रों का जन, मोती और मन यह, एक बार टूटने पर
पहले जैसी स्थिति नहीं होती, अत: पहले से ही सावधानी बरतनी चाहिए। ~
लोकोक्ति
- जिस प्रकार काठ अपने ही भीतर से प्रकट हुई अग्नि से भस्म होकर
खत्म हो जाता है, उसी प्रकार मनुष्य अपने ही भीतर रहने वाली तृष्णा से
नष्ट हो जाता है। ~ बाणभट्ट
- जिन्दगी हमारे साथ खेल खेलती है, जो इसे खेल नहीं मानते, वे ही एक दूसरे की शिकायत व आलोचना करते हैं। ~ जैनेंद्र कुमार
- संसार में सब से दयनीय कौन है? धनवान होकर भी जो कंजूस है। ~ विद्यापति
- मूर्खों से बहस करके कोई भी व्यक्ति, बु्द्धिमान नहीं कहला सकता,
मूर्ख पर विजय पाने का एकमात्र उपाय यही है कि उसकी ओर ध्यान नहीं दिया
जाए। ~ संत ज्ञानेश्वर
- प्रयत्न देवता की तरह है जबकि भाग्य दैत्य की भांति, ऐसे में
प्रयत्न देवता की उपासना करना ही श्रेष्ठ काम है। ~ समर्थ गुरु रामदास
- चाहे गुरु पर हो या ईश्वर पर, श्रद्धा अवश्य रखनी चाहिए। क्यों कि बिना श्रद्धा के सब बातें व्यर्थ होती हैं। ~ समर्थ रामदास
- सत्ता की महत्ता तो मोहक भी बहुत होती है, एक बार हांथ में आने पर और कंटीली होने पर भी छोड़ी नहीं जाती। ~ वृंदावनलाल वर्मा
- परोपकारी अपने कष्ट को नहीं देखता, क्योंकि वह परकष्ट जनित करूणा से ओत-प्रोत होता है। ~ संत तुकाराम
- चतुराई और चालबाजी दो चीजें हैं, एक में ईश्वर की प्रेरणा होती है और दूसरा हमारी फितरत से पैदा होता है। ~ सुमन सिन्हा
- जो शिक्षा मनुष्य को संकीर्ण और स्वार्थी बना देती है, उसका
मूल्य किसी युग में चाहे जो रहा हो, अब नहीं है। ~ शरतचन्द्र
चट्टोपाघ्याय
- अपनी पीड़ा तो पशु-पक्षी भी महसूस करते हैं, मनुष्य वह है जो दूसरों की वेदना को अनुभव करे। ~ रसनिधि
- अपना चरित्र उज्जवल होने पर भी सज्जन, अपना दोष ही सामने रखते
हैं, अग्नि का तेज उज्जवल होने पर भी वह पहले धुंआ ही प्रकट करता है। ~
कर्णपूर
- जो व्यक्ति इंसान की बनाई मूर्ति की पूजा करता है, लेकिन भगवान
की बनाई मूर्ति (इंसान) से नफरत करता है, वह भगवान को कभी प्रिय नहीं हो
सकता। ~ स्वामी ज्योतिनंद
- कर्म की उत्पत्ति विचार में है, अतः विचार ही महत्वपूर्ण हैं। ~ साई बाबा
- जीवन की भाग-दौड़ तथा उथल-पुथल में अंदर से शांत बने रहें। ~ दीपक चोपड़ा
- जिस मनुष्य में आत्मविश्वास नहीं है, वह शक्तिमान होकर भी कायर है और पंडित होकर भी मूर्ख है। ~ रामप्रताप
- ब्राहमण होकर विद्वान और साधनारत भी है लेकिन दुष्टमार्ग और
दुष्प्रवृत्तियों में लीन हो गया है उसे ब्रहमराक्षस कहते हैं उस पर
नियंत्रण दुष्कर किन्तु अनिवार्य होता है। ~ तंत्र महौदधि
- जो अप्राप्त वस्तु के लिए चिंता नहीं करता और प्राप्त वस्तु के लिए सम रहता है, वह संतुष्ट कहा जा सकता है। ~ महोपनिषद
- जल से शरीर शुद्ध होता है, मन से सत्य शुद्ध होता है, विद्या और तप से भूतात्मा तथा ज्ञान से बुद्धि शुद्ध होती है। ~ मनुस्मृति
- अपि यत्सुकरं कर्म तदप्येकेन दुष्करम। (आसानी से होने वाला कार्य भी एक व्यक्ति से होना मुश्किल।) ~ मनुस्मृति
- विश्व के निर्माण में जिसने सबसे अधिक संघर्ष किया है और सबसे अधिक कष्ट उठाए हैं वह माँ है। ~ हर्ष मोहन
- कुटिल लोगों के प्रति सरल व्यवहार अच्छी नीति नहीं। ~ श्री हर्ष
- ईशावास्यमिदं सर्व यत्किज्च जगत्यां जगत - भगवन इस जग के कण कण में विद्यमान है! ~ संतवाणी
आचार्य श्रीराम शर्मा
- इस संसार में प्यार करने लायक़ दो वस्तुएँ हैं-एक दुख और दूसरा श्रम। दुख के बिना हृदय निर्मल नहीं होता और श्रम के बिना मनुष्यत्व का विकास नहीं होता। - आचार्य श्रीराम शर्मा
- संपदा को जोड़-जोड़ कर रखने वाले को भला क्या पता कि दान में कितनी मिठास है। - आचार्य श्रीराम शर्मा
- जीवन में दो ही व्यक्ति असफल होते हैं- एक वे जो सोचते हैं पर करते नहीं, दूसरे जो करते हैं पर सोचते नहीं। - आचार्य श्रीराम शर्मा
- मानसिक बीमारियों से बचने का एक ही उपाय है कि हृदय को घृणा से और मन को भय व चिन्ता से मुक्त रखा जाय। - आचार्य श्रीराम शर्मा
- मनुष्य कुछ और नहीं, भटका हुआ देवता है। - आचार्य श्रीराम शर्मा
- असफलता यह बताती है कि सफलता का प्रयत्न पूरे मन से नहीं किया गया। — श्रीराम शर्मा आचार्य
- शारीरिक गुलामी से बौद्धिक गुलामी अधिक भयंकर है। — श्रीराम शर्मा, आचार्य
- ग्रन्थ, पन्थ हो अथवा व्यक्ति, नहीं किसी की अंधी भक्ति। — श्रीराम शर्मा, आचार्य
- जैसी जनता, वैसा राजा। प्रजातन्त्र का यही तकाजा॥ — श्रीराम शर्मा, आचार्य
- केवल वे ही असंभव कार्य को कर सकते हैं जो अदृष्य को भी देख लेते हैं। — श्रीराम शर्मा आचार्य
- नहीं संगठित सज्जन लोग। रहे इसी से संकट भोग॥ — श्रीराम शर्मा, आचार्य
- मनुष्य की वास्तविक पूँजी धन नहीं, विचार हैं। — श्रीराम शर्मा, आचार्य
- प्रज्ञा-युग के चार आधार होंगे - समझदारी, इमानदारी, जिम्मेदारी और बहादुरी। — श्रीराम शर्मा, आचार्य
- मनःस्थिति बदले, तब परिस्थिति बदले। - पं श्रीराम शर्मा आचार्य
- रचनात्मक कार्यों से देश समर्थ बनेगा। — श्रीराम शर्मा, आचार्य
- संसार का सबसे बडा दिवालिया वह है जिसने उत्साह खो दिया। — श्रीराम शर्मा, आचार्य
- समाज के हित में अपना हित है। — श्रीराम शर्मा, आचार्य
- सुख में गर्व न करें, दुःख में धैर्य न छोड़ें। - पं श्री राम शर्मा आचार्य
- उसी धर्म का अब उत्थान, जिसका सहयोगी विज्ञान॥ — श्रीराम शर्मा, आचार्य
- बड़प्पन अमीरी में नहीं, ईमानदारी और सज्जनता में सन्निहित है। — श्रीराम शर्मा आचार्य
- जो बच्चों को सिखाते हैं, उन पर बड़े खुद अमल करें तो यह संसार स्वर्ग बन जाय। — श्रीराम शर्मा आचार्य
- विनय अपयश का नाश करता हैं, पराक्रम अनर्थ को दूर करता है, क्षमा सदा ही क्रोध का नाश करती है और सदाचार कुलक्षण का अंत करता है। — श्रीराम शर्मा आचार्य
- जब तक व्यक्ति असत्य को ही सत्य समझता रहता है, तब तक उसके मन में सत्य को जानने की जिज्ञासा उत्पन्न नहीं होती है। - पं. श्रीराम शर्मा
- अवसर तो सभी को जिन्दगी में मिलते हैं, किंतु उनका सही वक्त पर सही तरीके से इस्तेमाल कुछ ही कर पाते हैं। - श्रीराम शर्मा
माघ
- मनस्वी पुरुष पर्वत के समान ऊँचे और समुद्र के समान गंभीर होते हैं। उनका पार पाना कठिन है। - माघ
- कुशल पुरुष की वाणी प्रतिकूल बोलनेवाले प्रबुद्ध वक्ताओं को मूक बना देती है और पक्ष में बोलने वाले मंदमति को निपुण। - माघ
- जहाँ प्रकाश रहता है वहाँ अंधकार कभी नहीं रह सकता। - माघ्र
संत तिरुवल्लुवर
- नेकी से विमुख हो जाना और बदी करना नि:संदेह बुरा है, मगर सामने हँस कर बोलना और पीछे चुगलखोरी करना उससे भी बुरा है। - संत तिरुवल्लुवर
- नम्रता और मीठे वचन ही मनुष्य के आभूषण होते हैं। शेष सब नाममात्र के भूषण हैं। - संत तिरुवल्लुर
- सोचना, कहना व करना सदा समान हो, नेकी से विमुख हो जाना और बदी करना नि:संदेह बुरा है, मगर सामने हंस कर बोलना और पीछे चुगलखोरी करना उससे भी बुरा है। - संत तिस्र्वल्लुवर
- उस मनुष्य का ठाट-बाट जिसे लोग प्यार नहीं करते, गांव के बीचोबीच उगे विषवृक्ष के समान है। - संत तिरुवल्लुवर
- जो सबके दिल को खुश कर देने वाली वाणी बोलता है, उसके पास दरिद्रता कभी नहीं फटक सकती। - तिरूवल्लुवर
- आलस्य में दरिद्रता बसती है, लेकिन जो, व्यक्ति आलस्य नहीं करते उनकी मेहनत में लक्ष्मी का निवास होता है। - तिरूवल्लुर
- बड़प्पन सदैव ही दूसरों की कमज़ोरियों, पर पर्दा डालना चाहता है, लेकिन ओछापन, दूसरों की कमियों बताने के सिवा और कुछ करना ही नहीं जानता। - तिरूवल्लुवर
कौटिल्य
- ज्ञानी जन विवेक से सीखते हैं, साधारण मनुष्य अनुभव से, अज्ञानी पुरुष आवश्यकता से और पशु स्वभाव से। - कौटिल्य
- सत्य से कीर्ति प्राप्त की जाती है और सहयोग से मित्र बनाए जाते हैं। - कौटिल्य अर्थशास्त्र
पं. रामप्रताप त्रिपाठी
- आपत्तियाँ मनुष्यता की कसौटी हैं। इन पर खरा उतरे बिना कोई भी व्यक्ति सफल नहीं हो सकता। - पं. रामप्रताप त्रिपाठी
- जिस मनुष्य में आत्मविश्वास नहीं है वह शक्तिमान हो कर भी कायर है और पंडित होकर भी मूर्ख है। - पं. रामप्रताप त्रिपाठी
- मित्रों का उपहास करना उनके पावन प्रेम को खंडित करना है। - पं. रामप्रताप त्रिपाठी
कबीर
- साँप के दाँत में विष रहता है, मक्खी के सिर में और बिच्छू की पूँछ में किंतु दुर्जन के पूरे शरीर में विष रहता है। - कबीर
- कष्ट पड़ने पर भी साधु पुरुष मलिन नहीं होते, जैसे सोने को जितना तपाया जाता है वह उतना ही निखरता है। - कबीर
- जिस तरह जौहरी ही असली हीरे की पहचान कर सकता है, उसी तरह गुणी ही गुणवान् की पहचान कर सकता है। – कबीर
- माया मरी न मन मरा, मर मर गये शरीर। आशा तृष्ना ना मरी, कह गये दास कबीर॥ - कबीर
- कबिरा आप ठगाइये, और न ठगिये कोय। आप ठगे सुख होत है, और ठगे दुख होय॥ - कबीर
- कबिरा घास न निन्दिये जो पाँवन तर होय। उड़ि कै परै जो आँख में खरो दुहेलो होय॥ - कबीर
- यदि सदगुरु मिल जाये तो जानो सब मिल गया, फिर कुछ मिलना शेष नहीं रहा। यदि सदगुरु नहीं मिले तो समझों कोई नहीं मिला, क्योंकि माता-पिता, पुत्र और भाई तो घर-घर में होते हैं। ये सांसारिक नाते सभी को सुलभ है, परन्तु सदगुरु की प्राप्ति दुर्लभ है। - कबीरदास
- केवल ज्ञान की कथनी से क्या होता है, आचरण में, स्थिरता नहीं है, जैसे काग़ज़ का महल देखते ही गिर पड़ता है, वैसे आचरण रहित मनुष्य शीघ्र पतित होता है। - कबीर
- खेत और बीज उत्तम हो तो भी, किसानों के बोने में मुट्ठी के अंतर से बीज कहीं ज्यादा कहीं कम पड़ते हैं, इसी प्रकार शिष्य उत्तम होने पर भी गुरुओं की भिन्न-भिन्न शैली होने पर भी शिष्यों को कम ज्ञान हुआ तो इसमें शिष्यों का क्या दोष। - संत कबीर
- जब आपका जन्म हुआ तो आप रोए और जग हंसा था. अपने जीवन को इस प्रकार से जीएं कि जब आप की मृत्यु हो तो दुनिया रोए और आप हंसें। - कबीर