tag:blogger.com,1999:blog-62862000410834517682024-03-06T00:08:04.400-08:00"HINDI VICHAR 2"विश्व के महान लोगों के अनमोल विचार एक ही स्थान पर "हिंदी विचार2"Himmat singhhttp://www.blogger.com/profile/11883720728789144629noreply@blogger.comBlogger66125tag:blogger.com,1999:blog-6286200041083451768.post-72620990538049381082012-02-27T22:26:00.002-08:002012-02-27T22:34:21.813-08:00बहुत से महापुरुषों के अनमोल वचन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.A1.E0.A5.89._.E0.A4.B0.E0.A4.BE.E0.A4.AE.E0.A4.95.E0.A5.81.E0.A4.AE.E0.A4.BE.E0.A4.B0_.E0.A4.B5.E0.A4.B0.E0.A5.8D.E0.A4.AE.E0.A4.BE">डॉ. रामकुमार वर्मा</span></h2>
<ul>
<li> दुख और वेदना के अथाह सागर वाले इस संसार में प्रेम की अत्यधिक आवश्यकता है। ~ डॉ. रामकुमार वर्मा
</li>
<li> सौंदर्य और विलास के आवरण में महत्त्वाकांक्षा उसी प्रकार पोषित होती है जैसे म्यान में तलवार। ~ डॉ. रामकुमार वर्मा
</li>
<li> कवि और चित्रकार में भेद है। कवि अपने स्वर में और चित्रकार अपनी
रेखा में जीवन के तत्व और सौंदर्य का रंग भरता है। ~ डॉ. रामकुमार वर्मा
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.AD.E0.A4.97.E0.A4.B5.E0.A4.BE.E0.A4.A8_.E0.A4.AE.E0.A4.B9.E0.A4.BE.E0.A4.B5.E0.A5.80.E0.A4.B0">भगवान महावीर</span></h2>
<ul>
<li> जिस प्रकार बिना जल के धान नहीं उगता उसी प्रकार बिना विनय के प्राप्त की गई विद्या फलदायी नहीं होती। - भगवान महावीर
</li>
<li> भोग में रोग का, उच्च-कुल में पतन का, धन में राजा का, मान में
अपमान का, बल में शत्रु का, रूप में बुढ़ापे का और शास्त्र में विवाद का डर
है। भय रहित तो केवल वैराग्य ही है। - भगवान महावीर
</li>
<li> पीड़ा से दृष्टि मिलती है, इसलिए आत्मपीड़न ही आत्मदर्शन का माध्यम है। - भगवान महावीर
</li>
<li> आलसी सुखी नहीं हो सकता, निद्रालु ज्ञानी नहीं हो सकता, मम्त्व
रखनेवाला वैराग्यवान नहीं हो सकता और हिंसक दयालु नहीं हो सकता। - भगवान
महावीर
</li>
<li> वह पुरूष धन्य है जो काम करने में कभी पीछे नहीं हटता, भाग्यलक्ष्मी उसके घर की राह पूछती हुई चली आती है। - भगवान महावीर
</li>
<li> दूसरों को दण्ड देना सहज है, किन्तु उन्हें क्षमा करना और उनकी भूल सुधारना अत्यधिक कठिन कार्य है। – भगवान महावीर स्वामी
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.B2.E0.A5.8B.E0.A4.95.E0.A4.AE.E0.A4.BE.E0.A4.A8.E0.A5.8D.E0.A4.AF_.E0.A4.A4.E0.A4.BF.E0.A4.B2.E0.A4.95">लोकमान्य तिलक</span></h2>
<ul>
<li> कष्ट और विपत्ति मनुष्य को शिक्षा देने वाले श्रेष्ठ गुण हैं। जो
साहस के साथ उनका सामना करते हैं, वे विजयी होते हैं। - लोकमान्य तिलक
</li>
<li> शरीर को रोगी और निर्बल रखने के सामान दूसरा कोई पाप नहीं है। - लोकमान्य तिलक
</li>
<li> स्वतंत्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है! - लोकमान्य तिलक
</li>
<li> अन्याय और अत्याचार करने वाला, उतना दोषी नहीं माना जा सकता, जितना कि उसे सहन करने वाला। - बाल गंगाधर तिलक
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.9C.E0.A4.B5.E0.A4.BE.E0.A4.B9.E0.A4.B0.E0.A4.B2.E0.A4.BE.E0.A4.B2_.E0.A4.A8.E0.A5.87.E0.A4.B9.E0.A4.B0.E0.A5.82">जवाहरलाल नेहरू</span></h2>
<ul>
<li> अपने को संकट में डाल कर कार्य संपन्न करने वालों की विजय होती है, कायरों की नहीं। - जवाहरलाल नेहरू
</li>
<li> महान ध्येय के प्रयत्न में ही आनंद है, उल्लास है और किसी अंश तक प्राप्ति की मात्रा भी है। - जवाहरलाल नेहरू
</li>
<li> जय उसी की होती है जो अपने को संकट में डालकर कार्य संपन्न करते हैं। जय कायरों की कभी नहीं होती। - जवाहरलाल नेहरू
</li>
<li> जो पुस्तकें सबसे अधिक सोचने के लिए मजबूर करती हैं, वही तुम्हारी सबसे बड़ी सहायक हैं। - जवाहरलाल नेहरू
</li>
<li> केवल कर्महीन ही ऐसे होते हैं, जो सदा भाग्य को कोसते हैं और जिनके, पास शिकायतों का अंबार होता है। - जवाहर लाल नेहर
</li>
<li> श्रेष्ठतम मार्ग खोजने की प्रतीक्षा के बजाय, हम गलत रास्ते से बचते रहें और बेहतर रास्ते को अपनाते रहें। - पं. जवाहर लाल नेहरू
</li>
<li> जीवन ताश के खेल के समान है, आप को जो पत्ते मिलते हैं वह नियति
है, आप कैसे खेलते हैं वह आपकी स्वेच्छा है। - पं. जवाहर लाल नेहरू
</li>
<li> स्वयं कर्म, जब तक मुझे यह भरोसा होता है कि यह सही कर्म है, मुझे संतुष्टि देता है। - जवाहर लाल नेहरु
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.B9.E0.A4.B0.E0.A4.BF.E0.A4.94.E0.A4.A7">हरिऔध</span></h2>
<ul>
<li> प्रकृति अपरिमित ज्ञान का भंडार है, पत्ते-पत्ते में शिक्षापूर्ण पाठ हैं, परंतु उससे लाभ उठाने के लिए अनुभव आवश्यक है। - हरिऔध
</li>
<li> जहाँ चक्रवर्ती सम्राट की तलवार कुंठित हो जाती है, वहाँ महापुरुष का एक मधुर वचन ही काम कर देता है। - हरिऔध
</li>
<li> अनुभव, ज्ञान उन्मेष और वयस् मनुष्य के विचारों को बदलते हैं। - हरिऔध
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.AE.E0.A4.A7.E0.A5.82.E0.A4.B2.E0.A4.BF.E0.A4.95.E0.A4.BE_.E0.A4.97.E0.A5.81.E0.A4.AA.E0.A5.8D.E0.A4.A4.E0.A4.BE">मधूलिका गुप्ता</span></h2>
<ul>
<li> ऐ अमलतास किसी को भी पता न चला तेरे क़द का अंदाज जो आसमान था पर
सिर झुका के रहता था, तेज़ धूप में भी मुसकुरा के रहता था। ~ मधूलिका
गुप्ता
</li>
<li> दस गरीब आदमी एक कंबल में आराम से सो सकते हैं, परंतु दो राजा एक ही राज्य में इकट्ठे नहीं रह सकते। ~ मधूलिका गुप्ता
</li>
<li> समझौता एक अच्छा छाता भले बन सकता है, लेकिन अच्छी छत नहीं। ~ मधूलिका गुप्ता
</li>
<li> अपने दोस्त के लिए जान दे देना इतना मुश्किल नहीं है जितना मुश्किल ऐसे दोस्त को ढूँढ़ना जिस पर जान दी जा सके। ~ मधूलिका गुप्ता
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.B5.E0.A4.BE.E0.A4.B2.E0.A5.8D.E0.A4.AE.E0.A5.80.E0.A4.95.E0.A4.BF">वाल्मीकि</span></h2>
<ul>
<li> पिता की सेवा करना जिस प्रकार कल्याणकारी माना गया है वैसा प्रबल साधन न सत्य है, न दान है और न यज्ञ हैं। - वाल्मीकि
</li>
<li> जैसे पके हुए फलों को गिरने के सिवा कोई भय नहीं वैसे ही पैदा हुए मनुष्य को मृत्यु के सिवा कोई भय नहीं। - वाल्मीकि
</li>
<li> हताश न होना सफलता का मूल है और यही परम सुख है। उत्साह मनुष्य
को कर्मो में प्रेरित करता है और उत्साह ही कर्म को सफल बनता है। -
वाल्मीकि
</li>
<li> तप ही परम कल्याण का साधन है। दूसरे सारे सुख तो अज्ञान मात्र हैं। - वाल्मीकि
</li>
<li> जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी। (जननी (माता) और जन्मभूमि स्वर्ग से भी अधिक श्रेष्ठ है) - महर्षि वाल्मीकि (रामायण)
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.B6.E0.A5.81.E0.A4.95.E0.A5.8D.E0.A4.B0.E0.A4.A8.E0.A5.80.E0.A4.A4.E0.A4.BF">शुक्रनीति</span></h2>
<ul>
<li> कोई भी व्यक्ति अयोग्य नहीं होता केवल उसको उपयुक्त काम में लगाने वाला ही कठिनाई से मिलता है। - शुक्रनीति
</li>
<li> बलवान व्यक्ति की भी बुद्धिमानी इसी में है कि वह जानबूझ कर किसी को शत्रु न बनाए। - शुक्रनीति
</li>
<li> समूचे लोक व्यवहार की स्थिति बिना नीतिशास्त्र के उसी प्रकार
नहीं हो सकती, जिस प्रकार भोजन के बिना प्राणियों के शरीर की स्थिति नहीं
रह सकती। - शुक्रनीति
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.B6.E0.A5.8D.E0.A4.B0.E0.A5.80_.E0.A4.AA.E0.A4.B0.E0.A4.AE.E0.A4.B9.E0.A4.82.E0.A4.B8_.E0.A4.AF.E0.A5.8B.E0.A4.97.E0.A4.BE.E0.A4.A8.E0.A4.82.E0.A4.A6">श्री परमहंस योगानंद</span></h2>
<ul>
<li> विश्व की सर्वश्रेष्ठ कला, संगीत व साहित्य में भी कमियाँ देखी जा
सकती है लेकिन उनके यश और सौंदर्य का आनंद लेना श्रेयस्कर है। - श्री
परमहंस योगानंद
</li>
<li> तर्क से किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँचा जा सकता। मूर्ख लोग तर्क करते हैं, जबकि बुद्धिमान विचार करते हैं। - श्री परमहंस योगानंद
</li>
<li> खुद के लिये जीनेवाले की ओर कोई ध्यान नहीं देता पर जब आप दूसरों
के लिये जीना सीख लेते हैं तो वे आपके लिये जीते हैं। - श्री परमहंस
योगानंद
</li>
<li> असफलता का मौसम, सफलता के बीज बोने के लिए सर्वश्रेष्ठ समय होता है। - परमहंस योगानंद
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.AE.E0.A4.B9.E0.A4.B0.E0.A5.8D.E0.A4.B7.E0.A4.BF_.E0.A4.85.E0.A4.B0.E0.A4.B5.E0.A4.BF.E0.A4.82.E0.A4.A6">महर्षि अरविंद</span></h2>
<ul>
<li> सारा जगत स्वतंत्रता के लिए लालायित रहता है फिर भी प्रत्येक जीव
अपने बंधनो को प्यार करता है। यही हमारी प्रकृति की पहली दुरूह ग्रंथि और
विरोधाभास है। - श्री अरविंद
</li>
<li> भातृभाव का अस्तित्व केवल आत्मा में और आत्मा के द्वारा ही होता है, यह और किसी के सहारे टिक ही नहीं सकता। - श्री अरविंद
</li>
<li> कर्म, ज्ञान और भक्ति- ये तीनों जहाँ मिलते हैं वहीं सर्वश्रेष्ठ पुरुषार्थ जन्म लेता है। - श्री अरविंद
</li>
<li> अध्यापक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली होते हैं। वे
संस्कारों की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से उन्हें सींच-सींच कर
महाप्राण शक्तियाँ बनाते हैं। - महर्षि अरविंद
</li>
<li> यदि आप चाहते हैं कि लोग आपके साथ सच्चा व्यवहार करें तो आप
खुद सच्चे बनें और अन्य लोगों से भी सच्चा व्यवहार करें। - महर्षि
अरविन्द
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.B8.E0.A4.B0.E0.A4.A6.E0.A4.BE.E0.A4.B0_.E0.A4.AA.E0.A4.9F.E0.A5.87.E0.A4.B2">सरदार पटेल</span></h2>
<ul>
<li> सत्याग्रह की लड़ाई हमेशा दो प्रकार की होती है। एक ज़ुल्मों के खिलाफ़ और दूसरी स्वयं की दुर्बलता के विरुद्ध। - सरदार पटेल
</li>
<li> लोहा गरम भले ही हो जाए पर हथौड़ा तो ठंडा रह कर ही काम कर सकता है। - सरदार पटेल
</li>
<li> जब तक हम स्वयं निरपराध न हों तब तक दूसरों पर कोई आक्षेप सफलतापूर्वक नहीं कर सकते। - सरदार पटेल
</li>
<li> यह सच है कि पानी में तैरनेवाले ही डूबते हैं, किनारे पर खड़े
रहनेवाले नहीं, मगर किनारे पर खड़े रहनेवाले कभी तैरना भी नहीं सीख पाते। -
सरदार पटेल
</li>
<li> शत्रु का लोहा भले ही गर्म हो जाए, पर हथौड़ा तो ठंडा रहकर ही काम, दे सकता है। - सरदार पटेल
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.A1.E0.A5.89._.E0.A4.B8.E0.A4.B0.E0.A5.8D.E0.A4.B5.E0.A4.AA.E0.A4.B2.E0.A5.8D.E0.A4.B2.E0.A5.80_.E0.A4.B0.E0.A4.BE.E0.A4.A7.E0.A4.BE.E0.A4.95.E0.A5.83.E0.A4.B7.E0.A5.8D.E0.A4.A3.E0.A4.A8">डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन</span></h2>
<ul>
<li> मानव का मानव होना ही उसकी जीत है, दानव होना हार है, और महामानव होना चमत्कार है। - डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन
</li>
<li> साहित्य का कर्तव्य केवल ज्ञान देना नहीं है परंतु एक नया वातावरण देना भी है। - डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन
</li>
<li> चिड़ियों की तरह हवा में उड़ना और मछलियों की तरह पानी में तैरना
सीखने के बाद अब हमें इन्सानों की तरह ज़मीन पर चलना सीखना है। - डॉ.
सर्वपल्ली राधाकृष्णन
</li>
<li> सब से अधिक आनंद इस भावना में है कि हमने मानवता की प्रगति में
कुछ योगदान दिया है। भले ही वह कितना कम, यहां तक कि बिल्कुल ही तुच्छ
क्यों न हो? - डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन
</li>
<li> धर्म, व्यक्ति एवं समाज, दोनों के लिये आवश्यक है। — डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.AE.E0.A4.A6.E0.A4.A8.E0.A4.AE.E0.A5.8B.E0.A4.B9.E0.A4.A8_.E0.A4.AE.E0.A4.BE.E0.A4.B2.E0.A4.B5.E0.A5.80.E0.A4.AF">मदनमोहन मालवीय</span></h2>
<ul>
<li> अंग्रेज़ी माध्यम भारतीय शिक्षा में सबसे बड़ा विघ्न है। सभ्य
संसार के किसी भी जन समुदाय की शिक्षा का माध्यम विदेशी भाषा नहीं है।" -
मदनमोहन मालवीय
</li>
<li> रामायण समस्त मनुष्य जाति को अनिर्वचनीय सुख और शांति पहुँचाने का साधन है। - मदनमोहन मालवीय
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.AA.E0.A4.82.E0.A4.9A.E0.A4.A4.E0.A4.82.E0.A4.A4.E0.A5.8D.E0.A4.B0">पंचतंत्र</span></h2>
<ul>
<li> कोई मनुष्य दूसरे मनुष्य को दास नहीं बनाता, केवल धन का लालच ही मनुष्य को दास बनाता है। - पंचतंत्र
</li>
<li> शासन के समर्थक को जनता पसंद नहीं करती और जनता के पक्षपाती को शासन। इन दोनो का प्रिय कार्यकर्ता दुर्लभ है। - पंचतंत्र
</li>
<li> जो कोई भी हों, सैकडो मित्र बनाने चाहिये। देखो, मित्र चूहे की सहायता से कबूतर (जाल के) बन्धन से मुक्त हो गये थे। — पंचतंत्र
</li>
<li> सत्संगतिः स्वर्गवास: (सत्संगति स्वर्ग में रहने के समान है) — पंचतंत्र
</li>
<li> भय से तब तक ही डरना चाहिये जब तक भय (पास) न आया हो। आये हुए भय को देखकर बिना शंका के उस पर प्रहार करना चाहिये। — पंचतंत्र
</li>
<li> जिसके पास बुद्धि है, बल उसी के पास है। (बुद्धिः यस्य बलं तस्य) — पंचतंत्र
</li>
<li> मौनं सर्वार्थसाधनम्। — पंचतन्त्र (मौन सारे काम बना देता है)
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.8B.E0.A4.97.E0.A5.8D.E0.A4.B5.E0.A5.87.E0.A4.A6">ऋग्वेद</span></h2>
<ul>
<li> मातृभाषा, मातृ संस्कृति और मातृभूमि ये तीनों सुखकारिणी देवियाँ स्थिर होकर हमारे हृदयासन पर विराजें। - ऋग्वेद
</li>
<li> चिंता से चित्त को संताप और आत्मा को दुर्बलता प्राप्त होती है, इसलिए चिंता को तो छोड़ ही देना चाहिए। - ऋग्वेद
</li>
<li> मानव जिस लक्ष्य में मन लगा देता है, उसे वह श्रम से हासिल कर सकता है। - ऋग्वेद
</li>
<li> हमारे भीतर कंजूसी न हो। - ऋग्वेद
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.85.E0.A4.AE.E0.A4.BF.E0.A4.A4.E0.A4.BE.E0.A4.AD_.E0.A4.AC.E0.A4.9A.E0.A5.8D.E0.A4.9A.E0.A4.A8">अमिताभ बच्चन</span></h2>
<ul>
<li> दूसरों की ग़लतियों से सीखें। आप इतने दिन नहीं जी सकते कि खुद इतनी ग़लतियाँ कर सकें। - अमिताभ बच्चन
</li>
<li> अगर भगवान से माँग रहे हो तो हल्का बोझ मत माँगो, मजबूत कंधे माँगो। - अमिताभ बच्चन
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.B5.E0.A4.BF.E0.A4.A6.E0.A5.81.E0.A4.B0">विदुर</span></h2>
<ul>
<li> धन उत्तम कर्मों से उत्पन्न होता है, प्रगल्भता (साहस, योग्यता व
दृढ़ निश्चय) से बढ़ता है, चतुराई से फलता फूलता है और संयम से सुरक्षित
होता है। ~ विदुर
</li>
<li> कुमंत्रणा से राजा का, कुसंगति से साधु का, अत्यधिक दुलार से पुत्र का और अविद्या से ब्राह्मण का नाश होता है। ~ विदुर
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.B6.E0.A4.B0.E0.A4.A4.E0.A4.9A.E0.A4.82.E0.A4.A6.E0.A5.8D.E0.A4.B0">शरतचंद्र</span></h2>
<ul>
<li> ख़ातिरदारी जैसी चीज़ में मिठास ज़रूर है, पर उसका ढकोसला करने में न तो मिठास है और न स्वाद। - शरतचंद्र
</li>
<li> संसार में ऐसे अपराध कम ही हैं जिन्हें हम चाहें और क्षमा न कर सकें। - शरतचंद्र
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.85.E0.A4.A5.E0.A4.B0.E0.A5.8D.E0.A4.B5.E0.A4.B5.E0.A5.87.E0.A4.A6">अथर्ववेद</span></h2>
<ul>
<li> जहाँ मूर्ख नहीं पूजे जाते, जहाँ अन्न की सुरक्षा की जाती है और
जहाँ परिवार में कलह नहीं होती, वहाँ लक्ष्मी निवास करती है। ~ अथर्ववेद
</li>
<li> पुण्य की कमाई मेरे घर की शोभा बढ़ाए, पाप की कमाई को मैंने नष्ट कर दिया है। ~ अथर्ववेद
</li>
<li> जो स्वयं संयमित व नियंत्रित है उसे, व्यर्थ में और अधिक
नियंत्रित नहीं करना चाहिये, जो अभी अनियंत्रित है, उसी को नियंत्रित किया
जाना चाहिए। ~ अथर्ववेद
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.B0.E0.A4.BE.E0.A4.AE.E0.A4.A8.E0.A4.B0.E0.A5.87.E0.A4.B6_.E0.A4.A4.E0.A5.8D.E0.A4.B0.E0.A4.BF.E0.A4.AA.E0.A4.BE.E0.A4.A0.E0.A5.80">रामनरेश त्रिपाठी</span></h2>
<ul>
<li> शत्रु के साथ मृदुता का व्यवहार अपकीर्ति का कारण बनता है और पुरुषार्थ यश का। ~ रामनरेश त्रिपाठी
</li>
<li> यह सच है कि कवि सौंदर्य को देखता है। जो केवल बाहरी सौंदर्य को
देखता है वह कवि है, पर जो मनुष्य के मन के सौंदर्य का वर्णन करता है वह
महाकवि है। ~ रामनरेश त्रिपाठी
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.85.E0.A4.AE.E0.A5.83.E0.A4.A4.E0.A4.B2.E0.A4.BE.E0.A4.B2_.E0.A4.A8.E0.A4.BE.E0.A4.97.E0.A4.B0">अमृतलाल नागर</span></h2>
<ul>
<li> श्रद्धा और विश्वास ऐसी जड़ी बूटियाँ हैं कि जो एक बार घोल कर पी
लेता है वह चाहने पर मृत्यु को भी पीछे धकेल देता है। ~ अमृतलाल नागर
</li>
<li> जैसे सूर्योदय के होते ही अंधकार दूर हो जाता है वैसे ही मन की प्रसन्नता से सारी बाधाएँ शांत हो जाती हैं। ~ अमृतलाल नागर
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.95.E0.A4.AE.E0.A4.B2.E0.A4.BE.E0.A4.AA.E0.A4.A4.E0.A4.BF_.E0.A4.A4.E0.A5.8D.E0.A4.B0.E0.A4.BF.E0.A4.AA.E0.A4.BE.E0.A4.A0.E0.A5.80">कमलापति त्रिपाठी</span></h2>
<ul>
<li> साध्य कितने भी पवित्र क्यों न हों, साधन की पवित्रता के बिना उनकी उपलब्धि संभव नहीं। - कमलापति त्रिपाठी
</li>
<li> अत्याचार और अनाचार को सिर झुकाकर वे ही सहन करते हैं जिनमें नैतिकता और चरित्र का अभाव होता है। - कमलापति त्रिपाठी
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.A1.E0.A5.89._.E0.A4.AE.E0.A4.A8.E0.A5.8B.E0.A4.9C_.E0.A4.9A.E0.A4.A4.E0.A5.81.E0.A4.B0.E0.A5.8D.E0.A4.B5.E0.A5.87.E0.A4.A6.E0.A5.80">डॉ. मनोज चतुर्वेदी</span></h2>
<ul>
<li> मित्र के मिलने पर पूर्ण सम्मान सहित आदर करो, मित्र के पीठ पीछे
प्रशंसा करो और आवश्यकता के समय उसकी मदद अवश्य करो। - डॉ. मनोज चतुर्वेदी
</li>
<li> डूबते को बचाना ही अच्छे इंसान का कर्तव्य होता है। - डॉ. मनोज चतुर्वेदी
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.B9.E0.A4.B0.E0.A4.BF.E0.A4.B6.E0.A4.82.E0.A4.95.E0.A4.B0_.E0.A4.AA.E0.A4.B0.E0.A4.B8.E0.A4.BE.E0.A4.88">हरिशंकर परसाई</span></h2>
<ul>
<li> वसंत अपने आप नहीं आता, उसे लाना पड़ता है। सहज आने वाला तो पतझड़ होता है, वसंत नहीं। ~ हरिशंकर परसाई
</li>
<li> मैं ने कोई विज्ञापन ऐसा नहीं देखा जिसमें पुरुष स्त्री से कह
रहा हो कि यह साड़ी या स्नो ख़रीद ले। अपनी चीज़ वह खुद पसंद करती है मगर
पुरुष की सिगरेट से लेकर टायर तक में वह दख़ल देती है। ~ हरिशंकर परसाई
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.B0.E0.A4.B5.E0.A5.80.E0.A4.A8.E0.A5.8D.E0.A4.A6.E0.A5.8D.E0.A4.B0_.E0.A4.A8.E0.A4.BE.E0.A4.A5_.E0.A4.9F.E0.A5.88.E0.A4.97.E0.A5.8B.E0.A4.B0">रवीन्द्र नाथ टैगोर</span></h2>
<ul>
<li> मानव तभी तक श्रेष्ठ है, जब तक उसे मनुष्यत्व का दर्जा प्राप्त
है। बतौर पशु, मानव किसी भी पशु से अधिक हीन है। ~ रवीन्द्र नाथ टैगोर
</li>
<li> आदर्श के दीपक को, पीछे रखने वाले, अपनी ही छाया के कारण, अपने पथ को, अंधकारमय बना लेते हैं। ~ रवीन्द्र नाथ टैगोर
</li>
<li> तुम अगर सूर्य के जीवन से चले जाने पर चिल्लाओगे तो आँसू भरी आँखे सितारे कैसे देखेंगी? ~ रविंद्रनाथ टैगोर
</li>
<li> प्रत्येक शिशु एक संदेश लेकर आता है कि भगवान मनुष्य को लेकर हतोत्साहित नहीं है। ~ रविन्द्रनाथ टैगोर
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.97.E0.A5.81.E0.A4.B0.E0.A5.81_.E0.A4.A8.E0.A4.BE.E0.A4.A8.E0.A4.95">गुरु नानक</span></h2>
<ul>
<li> दूब की तरह छोटे बनकर रहो। जब घास-पात जल जाते हैं तब भी दूब जस की तस बनी रहती है। - गुरु नानक
</li>
<li> कोई भी देश अपनी अच्छाईयों को खो देने पर पतीत होता है। - गुरु नानक
</li>
<li> शब्द धरती, शब्द आकाश, शब्द शब्द भया परगास! सगली शब्द के पाछे, नानक शब्द घटे घाट आछे!! - गुरु नानक
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.B5.E0.A4.BF.E0.A4.B7.E0.A5.8D.E0.A4.A3.E0.A5.81_.E0.A4.AA.E0.A5.8D.E0.A4.B0.E0.A4.AD.E0.A4.BE.E0.A4.95.E0.A4.B0">विष्णु प्रभाकर</span></h2>
<ul>
<li> ददीपक सोने का हो या मिट्टी का मूल्य दीपक का नहीं उसकी लौ का होता है जिसे कोई अँधेरा नहीं बुझा सकता। - विष्णु प्रभाकर
</li>
<li> दीपक सोने का हो या मिट्टी का मूल्य उसका नहीं होता, मूल्य होता
है उसकी लौ का जिसे कोई अँधेरा, अँधेरे के तरकश का कोई तीर ऐसा नहीं जो
बुझा सके। - विष्णु प्रभाकर
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.B8.E0.A4.82.E0.A4.A4.E0.A5.8B.E0.A4.B7_.E0.A4.97.E0.A5.8B.E0.A4.AF.E0.A4.B2">संतोष गोयल</span></h2>
<ul>
<li> हर चीज़ की कीमत व्यक्ति की जेब और ज़रूरत के अनुसार होती है और शायद उसी के अनुसार वह अच्छी या बुरी होती है। - संतोष गोयल
</li>
<li> अवसर तो सभी को ज़िंदगी में मिलते हैं किंतु उनका सही वक्त पर सही तरीक़े से इस्तेमाल कितने कर पाते हैं? - संतोष गोयल
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.B8.E0.A5.8D.E0.A4.B5.E0.A4.BE.E0.A4.AE.E0.A5.80_.E0.A4.B0.E0.A4.BE.E0.A4.AE.E0.A4.A6.E0.A5.87.E0.A4.B5">स्वामी रामदेव</span></h2>
<ul>
<li> बच्चों को शिक्षा के साथ यह भी सिखाया जाना चाहिए कि वह मात्र एक
व्यक्ति नहीं है, संपूर्ण राष्ट्र की थाती हैं। उससे कुछ भी गलत हो जाएगा
तो उसकी और उसके परिवार की ही नहीं बल्कि पूरे समाज और पूरे देश की दुनिया
में बदनामी होगी। बचपन से उसे यह सिखाने से उसके मन में यह भावना पैदा होगी
कि वह कुछ ऐसा करे जिससे कि देश का नाम रोशन हो। योग-शिक्षा इस मार्ग पर
बच्चे को ले जाने में सहायक है। - स्वामी रामदेव
</li>
<li> स्वदेशी उद्योग, शिक्षा, चिकित्सा, ज्ञान, तकनीक, खानपान, भाषा,
वेशभूषा एवं स्वाभिमान के बिना विश्व का कोई भी देश महान नहीं बन सकता। -
स्वामी रामदेव
</li>
<li> भारतीय संस्कृति और धर्म के नाम पर लोगों को जो परोसा जा रहा है
वह हमें धर्म के अपराधीकरण की ओर ले जा रहा है। इसके लिये पंडे, पुजारी,
पादरी, महंत, मौलवी, राजनेता आदि सभी जिम्मेदार हैं। ये लोग धर्म के नाम पर
नफरत की दुकानें चलाकर समाज को बांटने का काम कर रहे हैं। - स्वामी
रामदेव
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.B8.E0.A5.8D.E0.A4.B5.E0.A4.BE.E0.A4.AE.E0.A5.80_.E0.A4.B6.E0.A4.BF.E0.A4.B5.E0.A4.BE.E0.A4.A8.E0.A4.82.E0.A4.A6">स्वामी शिवानंद</span></h2>
<ul>
<li> मस्तिष्क इन्द्रियों की अपेक्षा महान है, शुद्ध बुद्धिमत्ता
मस्तिष्क से महान है, आत्मा बुद्धि से महान है, और आत्मा से बढकर कुछ भी
नहीं है। - स्वामी शिवानंद
</li>
<li> बारह ज्ञानी एक घंटे में जितने प्रश्नों के उत्तर दे सकते हैं
उससे कहीं अधिक प्रश्न मूर्ख व्यक्ति एक मिनट में पूछ सकता है। - स्वामी
शिवानंद
</li>
<li> संतोष का वृक्ष कड़वा है लेकिन इस पर लगने वाला फल मीठा होता है। - स्वामी शिवानंद
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.B0.E0.A4.B6.E0.A5.8D.E0.A4.AE.E0.A4.BF_.E0.A4.AA.E0.A5.8D.E0.A4.B0.E0.A4.AD.E0.A4.BE">रश्मि प्रभा</span></h2>
<ul>
<li> गलत को गलत कहना हमें आसान नहीं लगता, सही इतना कमज़ोर होता है
इतना अकेला कि, उसके ख़िलाफ़ ही जंग का ऐलान आसान लगता है। - रश्मि प्रभा
</li>
<li> जहाँ सारे तर्क ख़त्म हो जाते हैं, वहाँ से आध्यात्म शुरू होता है। - रश्मि प्रभा
</li>
<li> हिंदी हमारी मातृभाषा है, हमारा गर्व है क्या करें - दूर के ढोल
सुहाने लगते हैं और उस ढोल पर चाल (स्टाइल) बदल जाती है! - रश्मि प्रभा
</li>
<li> जिस तरह फूल पौधों के उचित विकास के लिए समय समय पर काट छांट
ज़रूरी है ठीक उसी तरह बच्चों को उचित बात सिखाने के लिए समय समय पर डांट
ज़रूरी है! - रश्मि प्रभा
</li>
<li> तुम स्वतंत्र होना चाहते तो हो पर स्वतंत्रता देना नहीं चाहते! - रश्मि प्रभा
</li>
<li> कोई तुम्हारे काँधे पर हाथ रखता है तो तुम्हारा हौसला बढ़ता है
पर जब किसी का हाथ काँधे पर नहीं होता तुम अपनी शक्ति खुद बन जाते हो और
वही शक्ति ईश्वर है! - रश्मि प्रभा
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.A1.E0.A5.89._.E0.A4.B6.E0.A4.82.E0.A4.95.E0.A4.B0_.E0.A4.A6.E0.A4.AF.E0.A4.BE.E0.A4.B2_.E0.A4.B6.E0.A4.B0.E0.A5.8D.E0.A4.AE.E0.A4.BE">डॉ. शंकर दयाल शर्मा</span></h2>
<ul>
<li> सहिष्णुता और समझदारी संसदीय लोकतंत्र के लिए उतने ही आवश्यक है जितने संतुलन और मर्यादित चेतना। - डॉ. शंकरदयाल शर्मा
</li>
<li> धर्म का अर्थ तोड़ना नहीं बल्कि जोड़ना है। धर्म एक संयोजक तत्व है। धर्म लोगों को जोड़ता है। - डॉ. शंकर दयाल शर्मा
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.AE.E0.A4.B9.E0.A4.BE.E0.A4.AD.E0.A4.BE.E0.A4.B0.E0.A4.A4">महाभारत</span></h2>
<ul>
<li> धर्म करते हुए मर जाना अच्छा है पर पाप करते हुए विजय प्राप्त करना अच्छा नहीं। - महाभारत
</li>
<li> बुद्धि से विचारकर किए गए कर्म ही सफल होते हैं। - महाभारत
</li>
<li> अपने भाई बंधु जिसका आदर करते हैं, दूसरे भी उसका आदर करते हैं। - महाभारत
</li>
<li> जिस हरे-भरे वृक्ष की छाया का आश्रय लेकर रहा जाए, पहले उपकारों
का ध्यान रखकर उसके एक पत्ते से भी द्रोह नहीं करना चाहिए। - महाभारत
</li>
<li> लक्ष्मी शुभ कार्य से उत्पन्न होती है, चतुरता से बढ़ती है,
अत्यन्त निपुणता से, जड़े जमाती है और संयम से स्थिर रहती है। - महाभारत
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.97.E0.A5.80.E0.A4.A4.E0.A4.BE">गीता</span></h2>
<ul>
<li> फल की अभिलाषा छोड़कर कर्म करनेवाला मनुष्य ही मोक्ष प्राप्त करता है। - गीता
</li>
<li> कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन्। (कर्म करने में ही तुम्हारा अधिकार है, फल में कभी भी नहीं) — गीता
</li>
<li> सन्यास हृदय की एक दशा का नाम है, किसी ऊपरी नियम या वेशभूषा का नहीं। - श्रीमद् भगवदगीता
</li>
<li> हम अपने कार्यों के परिणाम का निर्णय करने वाले कौन हैं? यह तो
भगवान का कार्यक्षेत्र है। हम तो एकमात्र कर्म करने के लिए उत्तरदायी हैं। -
गीता
</li>
<li> हम प्रयास के लिए उत्तरदायी हैं, न कि परिणाम के लिए। - गीता
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.B8.E0.A5.8D.E0.A4.B5.E0.A4.BE.E0.A4.AE.E0.A5.80_.E0.A4.B0.E0.A4.BE.E0.A4.AE.E0.A4.A4.E0.A5.80.E0.A4.B0.E0.A5.8D.E0.A4.A5">स्वामी रामतीर्थ</span></h2>
<ul>
<li> जंज़ीरें, जंज़ीरें ही हैं, चाहे वे लोहे की हों या सोने की, वे समान रूप से तुम्हें गुलाम बनाती हैं। - स्वामी रामतीर्थ
</li>
<li> वही उन्नति करता है जो स्वयं अपने को उपदेश देता है। - स्वामी रामतीर्थ
</li>
<li> केवल प्रकाश का अभाव ही अंधकार नहीं, प्रकाश की अति भी मनुष्य की आँखों के लिए अंधकार है। - स्वामी रामतीर्थ
</li>
<li> त्याग निश्चय ही आपके बल को बढ़ा देता है, आपकी शक्तियों को कई
गुना कर देता है, आपके पराक्रम को दृढ कर देता है, वही आपको ईश्वर बना देता
है। वह आपकी चिंताएं और भय हर लेता है, आप निर्भय तथा आनंदमय हो जाते
हैं। - स्वामी रामतीर्थ
</li>
<li> सूरज और चांद को आप अपने जन्म के समय से ही देखते चले आ रहे हैं। फिर भी यह नहीं जान पाये कि काम कैसे करने चाहिए? - रामतीर्थ
</li>
<li> कृत्रिम प्रेम बहुत दिनों तक चल नहीं पाता, स्वाभाविक प्रेम की नकल नहीं हो सकती। - स्वामी रामतीर्थ
</li>
<li> जो मनुष्य अपने साथी से घृणा करता है, वह उसी मनुष्य के समान हत्यारा है, जिसने सचमुच हत्या की हो। - स्वामी रामतीर्थ
</li>
<li> आलस्य मृत्यु के समान है, और केवल उद्यम ही आपका जीवन है। - स्वामी रामतीर्थ
</li>
<li> सच्चा पड़ोसी वह नहीं जो तुम्हारे साथ, उसी मकान में रहता है,
बल्िक वह है जो तुम्हारे साथ उसी विचार स्तर पर रहता है। - स्वामी
रामतीर्थ
</li>
<li> जब तक तुम्हारें अन्दर दूसरों के, अवगुण ढुंढने या उनके दोष
देखने, की आदत मौजूद है ईश्वर का साक्षात, करना अत्यंत कठिन है। -
स्वामी रामतीर्थ
</li>
<li> व्यक्ति को हानि, पीड़ा और चिंताएं, उसकी किसी आंतरिक दुर्बलता
के कारण होती है, उस दुर्बलता को दूर करके कामयाबी मिल सकती है। - स्वामी
रामतीर्थ
</li>
<li> दुनियावी चीजों में सुख की तलाश, फिजूल होती है। आनन्द का खजाना, तो कहीं हमारे भीतर ही है। - स्वामी रामतीर्थ
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.87.E0.A4.82.E0.A4.A6.E0.A4.BF.E0.A4.B0.E0.A4.BE_.E0.A4.97.E0.A4.BE.E0.A4.82.E0.A4.A7.E0.A5.80">इंदिरा गांधी</span></h2>
<ul>
<li> जीवन का महत्व तभी है जब वह किसी महान ध्येय के लिए समर्पित हो। यह समर्पण ज्ञान और न्याययुक्त हो। - इंदिरा गांधी
</li>
<li> यदि असंतोष की भावना को लगन व धैर्य से रचनात्मक शक्ति में न बदला जाए तो वह ख़तरनाक भी हो सकती है। - इंदिरा गांधी
</li>
<li> यहाँ दो तरह के लोग होते हैं - एक वो जो काम करते हैं और दूसरे
वो जो सिर्फ क्रेडिट लेने की सोचते है। कोशिश करना कि तुम पहले समूह में
रहो क्योंकि वहाँ कम्पटीशन कम है। — इंदिरा गांधी
</li>
<li> आप भींची मुट्ठी से हाथ नहीं मिला सकते। - इंदिरा गांधी
</li>
<li> प्रश्न कर पाने की क्षमता ही मानव प्रगति का आधार है। - इंदिरा गांधी
</li>
<li> एक राष्ट्र की शक्ति उसकी आत्मनिर्भरता में है, दूसरों से उधार लेकर पर काम चलाने में नहीं। - इंदिरा गांधी
</li>
<li> लोग अपने कर्तव्य भूल जाते हैं लेकिन अपने अधिकार उन्हें याद रहते हैं। - इंदिरा गांधी
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.AE.E0.A5.88.E0.A4.A5.E0.A4.BF.E0.A4.B2.E0.A5.80.E0.A4.B6.E0.A4.B0.E0.A4.A3_.E0.A4.97.E0.A5.81.E0.A4.AA.E0.A5.8D.E0.A4.A4">मैथिलीशरण गुप्त</span></h2>
<ul>
<li> अरूणोदय के पूर्व सदैव घनघोर अंधकार होता है। — मैथिलीशरण गुप्त
</li>
<li> नर हो न निराश करो मन को। कुछ काम करो, कुछ काम करो। जग में रहकर कुछ नाम करो॥ — मैथिलीशरण गुप्त
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.86.E0.A4.9A.E0.A4.BE.E0.A4.B0.E0.A5.8D.E0.A4.AF_.E0.A4.B0.E0.A4.9C.E0.A4.A8.E0.A5.80.E0.A4.B6">आचार्य रजनीश</span></h2>
<ul>
<li> जब तुम नहीं होगे, तब तुम पहली बार होगे। - आचार्य रजनीश
</li>
<li> यदि तुम्हारे ह्रदय के तार मुझसे जुड़ गए हैं तो अनंतककाल तक आवाज़ देता रहूँगा। - आचार्य रजनीश
</li>
<li> यथार्थवादी बनो: चम्त्कार की योजना बनाओ। - आचार्य रजनीश
</li>
<li> तुम कहते हो की स्वर्ग में शाश्वत सौंदर्य है, शाश्वत सौंदर्य अभी है यहाँ, स्वर्ग में नही। - आचार्य रजनीश
</li>
<li> मसीहा को मरे जितना समय हो जाता है कर्मकांड उतना ही प्रबल हो
जाता है, अगर आज बुद्ध जीवित होते तो तुम उन्हें पसंद न करते। - आचार्य
रजनीश
</li>
<li> मेरी सारी शिक्षा दो शब्दो की है प्रेम और ध्यान। - आचार्य रजनीश
</li>
<li> धर्म जीवन को परमात्मा में जीने की विधि है, संसार में ऐसे जिया जा सकता है जैसे, कमल सरोवर के कीचड़ में जीते हैं। - आचार्य रजनीश
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.B8.E0.A5.8D.E0.A4.B5.E0.A4.BE.E0.A4.AE.E0.A5.80_.E0.A4.B8.E0.A5.81.E0.A4.A6.E0.A4.B0.E0.A5.8D.E0.A4.B6.E0.A4.A8.E0.A4.BE.E0.A4.9A.E0.A4.BE.E0.A4.B0.E0.A5.8D.E0.A4.AF_.E0.A4.9C.E0.A5.80">स्वामी सुदर्शनाचार्य जी</span></h2>
<ul>
<li> मानवता के दिशा में उठाया गया प्रत्येक कदम आपकी स्वयं की चिंताओं
को कम करने में मील का पत्थर साबित होगा। - स्वामी श्री सुदर्शनाचार्य जी
</li>
<li> आप मृत्यु के उपरांत अपने साथ अपने अच्छे-बुरे कर्मों की पूंजी
साथ ले जाएंगे, इसके अलावा आप कुछ साथ नहीं ले जा सकते, याद रखें 'कुछ
नहीं'। - स्वामी श्री सुदर्शनाचार्य जी
</li>
<li> जिसे इंसान से प्रेम है और इंसानियत की समझ है, उसे अपने आप में ही संतुष्टि मिल जाती है। - स्वामी सुदर्शनाचार्य जी
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.B9.E0.A4.82.E0.A4.B8.E0.A4.B0.E0.A4.BE.E0.A4.9C_.E0.A4.B8.E0.A5.81.E0.A4.9C.E0.A5.8D.E0.A4.9E">हंसराज सुज्ञ</span></h2>
<ul>
<li> अच्छे विचार और अच्छी सोच से आचरण भी अच्छा बनता है। - हंसराज सुज्ञ
</li>
<li> सम्बोधन अच्छे होंगे तभी सम्बंध अच्छे बनेंगे। - हंसराज सुज्ञ
</li>
<li> यदि हमारे विचार सकारात्मक होंगे तो सब कुछ सकारात्मक हो जायेगा। - हंसराज सुज्ञ
</li>
<li> साधारण मानव परिवेश अनुसार ढलता है, असाधारण मानव परिवेश को ही ढालता है। - हंसराज सुज्ञ
</li>
<li> दूसरों का दिल जीतने के लिए फटकार नहीं मधुर व्यवहार चाहिए। - हंसराज सुज्ञ
</li>
<li> परिस्थिति प्रतिकूल देखकर अपना अच्छा भला स्वभाव बदल देना तो स्वेच्छा बरबाद हो जाने के समान है। - हंसराज सुज्ञ
</li>
<li> उत्तम वस्तु को पचाने की क्षमता भी उत्तम चाहिए। - हंसराज सुज्ञ
</li>
<li> दूसरों के दोष देखने और ढूंढने की तीव्रेच्छा, इतनी गाढ़ हो जाती है कि अपने दोष देखने का वक्त ही नहीं मिलता - हंसराज सुज्ञ
</li>
<li> पतन का मार्ग ढलान का मार्ग है, ढलान में ही हमें रूकना सम्हलना होता है। - हंसराज सुज्ञ
</li>
<li> सच्चा सुधारक वही है जो पहले अपना सुधार करता है। - हंसराज सुज्ञ
</li>
<li> जो समय गया सो गया, उसके लिए पश्चाताप करने की अपेक्षा वर्तमान को सार्थक करने की जरूरत है। - हंसराज सुज्ञ
</li>
<li> विनय धर्म का मूल है अत: विनय आने पर, अन्य गुणों की सहज ही प्राप्ति हो जाती है। - हंसराज सुज्ञ
</li>
<li> यदि कोई हमारा एक बार अपमान करे,हम दुबारा उसकी शरण में नहीं
जाते। और यह मान (ईगो) प्रलोभन हमारा बार बार अपमान करवाता है। हम अभिमान
का आश्रय त्याग क्यों नहीं देते? - हंसराज सुज्ञ
</li>
<li> यदि कोई एक बार हमारे साथ धोखा करे हम उससे मुँह मोड़ लेते है।
और हमारा यह लोभ हमें बार बार धोखा देता है, हम अपने लोभ का मुख नोच क्यों
नहीं लेते? - हंसराज सुज्ञ
</li>
<li> जीवन एक कहानी है, महत्व इस बात का नहीं, यह कहानी कितनी लम्बी
है, महत्व इस बात का है, कि कहानी कितनी सार्थक है। - हंसराज सुज्ञ
</li>
<li> विनयहीन ज्ञानी वस्तुत: ज्ञानी ही नहीं है! - हंसराज सुज्ञ
</li>
<li> ज्ञान बढ़ने के साथ ही अहंकार घटना चाहिए, और नम्रता में वृद्धि होनी चाहिए! - हंसराज सुज्ञ
</li>
<li> देह शुद्धि से अधिक, विचारों की शुद्धि आवश्यक है। - हंसराज सुज्ञ
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.B8.E0.A4.82.E0.A4.A4_.E0.A4.AA.E0.A5.8D.E0.A4.B0.E0.A4.B5.E0.A4.B0_.E0.A4.B6.E0.A5.8D.E0.A4.B0.E0.A5.80_.E0.A4.B2.E0.A4.B2.E0.A4.BF.E0.A4.A4.E0.A4.AA.E0.A5.8D.E0.A4.B0.E0.A4.AD_.E0.A4.9C.E0.A5.80">संत प्रवर श्री ललितप्रभ जी</span></h2>
<ul>
<li> जहाँ हिम्मत समाप्त होती हैं वहीं हार की शुरूआत होती हैं। आप धीरज मत खोइये अपना कदम फिर से उठाइये। ~ संत प्रवर श्री ललितप्रभ जी
</li>
<li> आप जीवन में सफल होना चाहते हैं तो धैर्य को अपना धर्म बनाले। ~ संत प्रवर श्री ललितप्रभ जी
</li>
<li> जन्म से महान होना पैतृक विरासत हैं पर आसमान को छूना हैं तो हौसले बुलंद कीजिये। ~ संत प्रवर श्री चंद्रप्रभ जी
</li>
<li> चुनौतियों से घबराइये मत, सामना कीजिये। आग तो हर व्यक्ति के
भीतर छिपी है।, बस उसे जगाने की जरूरत हैं। ~ संत प्रवर श्री चंद्रप्रभ जी
</li>
<li> अर्जित की गई सफलता से बँध कर न रहें, चार कदम आगे बढ़कर दूसरों
के लिये अपने पैरों के निशान छोड़ जाइये। ~ संत प्रवर श्री चंद्रप्रभ जी
</li>
<li> उत्साह जीवन में सबसे बड़ी शक्ति हैं। अगर आपके पास यह हैं तो जीत आपकी हैं। ~ संत प्रवर श्री चंद्रप्रभ जी
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.85.E0.A4.A8.E0.A5.8D.E0.A4.AF">अन्य</span></h2>
<ul>
<li> तलवार ही सब कुछ है, उसके बिना न मनुष्य अपनी रक्षा कर सकता है और न निर्बल की। ~ गुरु गोविंद सिंह
</li>
</ul>
<ul>
<li> निज भाषा उन्नति अहै, सब भाषा को मूल। बिनु निज भाषा ज्ञान के, मिटै न हिय को शूल॥ ~ भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
</li>
</ul>
<ul>
<li> सच्चे साहित्य का निर्माण एकांत चिंतन और एकान्त साधना में होता है। ~ अनंत गोपाल शेवड़े
</li>
</ul>
<ul>
<li> हिंदी भारत की राष्ट्रभाषा है और यदि मुझसे भारत के लिए एक मात्र
भाषा का नाम लेने को कहा जाए तो वह निश्चित रूप से हिंदी ही है। ~ कामराज
</li>
</ul>
<ul>
<li> दुःख का कारण हमारी चित्तवृत्तिओं का प्रभाव ही है। ~ भगवान श्री कृष्ण
</li>
<li> कुलीन और खानदानी मनुष्यों का प्रथम लक्षण है कि नुकसान होते
दिखने पर और हर समय तथा संकट के वक्त भी उनकी कथनी व करनी एक रहती है, तथा
सत्य को स्वयं के और अपने राज्य को नष्ट होने या हानि होने पर भी नहीं
छोड़ते, दूसरा लक्षण है कि वे शरणागत शत्रु को भी आश्रय देकर भयमुक्त
करते है, तीसरा लक्षण है कि उनके भीतर भय कभी भूल कर भी प्रवेश नहीं कर
सकता। ~ भगवान श्री कृष्ण
</li>
<li> हर समय मुस्कराते रहना, चित्त शान्त रहना, उद्विग्नता और
भटकाव का न होना, स्पष्ट विचार, स्पष्ट धारणा और स्पष्ट निर्णय, धीर
पुरूषों और योगीयों के लक्षण है। ~ भगवान श्री कृष्ण
</li>
</ul>
<ul>
<li> सपने पूरे होंगे लेकिन आप सपने देखना शुरू तो करें। ~ अब्दुल कलाम
</li>
<li> सपना वह नहीं होता जो आप नींद में देखते हैं, यह तो कुछ ऐसी चीज है जो आपको सोने नहीं देती है। ~ अब्दुल कलाम
</li>
</ul>
<ul>
<li> किसी की करुणा व पीड़ा को देख कर मोम की तरह दर्याद्र हो
पिघलनेवाला ह्रदय तो रखो परंतु विपत्ति की आंच आने पर कष्टों-प्रतिकूलताओं
के थपेड़े खाते रहने की स्थिति में चट्टान की तरह दृढ़ व ठोस भी बने रहो। ~
द्रोणाचार्य
</li>
</ul>
<ul>
<li> यह सच है कि पानी में तैरनेवाले ही डूबते हैं, किनारे पर खड़े
रहनेवाले नहीं, मगर ऐसे लोग कभी तैरना भी नहीं सीख पाते। ~ वल्लभभाई पटेल
</li>
</ul>
<ul>
<li> मेरी हार्दिक इच्छा है कि मेरे पास जो भी थोड़ा-बहुत धन शेष है,
वह सार्वजनिक हित के कामों में यथाशीघ्र खर्च हो जाए। मेरे अंतिम समय में
एक पाई भी न बचे, मेरे लिए सबसे बड़ा सुख यही होगा। ~ पुरुषोत्तमदास टंडन
</li>
</ul>
<ul>
<li> खुदी को कर बुलन्द इतना, कि हर तकदीर के पहले। खुदा बंदे से खुद पूछे, बता तेरी रजा क्या है? ~ अकबर इलाहाबादी
</li>
</ul>
<ul>
<li> खुदी को कर बुलन्द इतना, के हर तकदीर से पेहले खुदा बन्दे से खुद पूछे, बता तेरी रज़ा क्या है। ~ इक्बाल
</li>
</ul>
<ul>
<li> प्रकृति का तमाशा भी ख़ूब है। सृजन में समय लगता है जबकि विनाश कुछ ही पलों में हो जाता है। ~ ज़क़िया ज़ुबैरी
</li>
</ul>
<ul>
<li> ज्ञान प्राप्ति का एक ही मार्ग है जिसका नाम है, एकाग्रता। शिक्षा
का सार है, मन को एकाग्र करना, तथ्यों का संग्रह करना नहीं। ~ श्री माँ
</li>
</ul>
<ul>
<li> कर्म की उत्पत्ति विचार में है, अतः विचार ही महत्वपूर्ण हैं। ~ साई बाबा
</li>
</ul>
<ul>
<li> छोटा आरम्भ करो, शीघ्र आरम्भ करो। ~ रघुवंश महाकाव्यम्
</li>
</ul>
<ul>
<li> अकर्मण्य मनुष्य श्रेष्ठ होते हुए भी पापी है। ~ ऐतरेय ब्राह्मण - ३३।३
</li>
</ul>
<ul>
<li> जिस प्रकार राख से सना हाथ जैसे-जैसे दर्पण पर घिसा जाता है,
वैसे-वैसे उसके प्रतिबिंब को साफ करता है, उसी प्रकार दुष्ट जैसे-जैसे
सज्जन का अनादर करता है, वैसे-वैसे वह उसकी कांति को बढ़ाता है। ~
वासवदत्ता
</li>
<li> गुणवान पुरुषों को भी अपने स्वरूप का ज्ञान दूसरे के द्वारा ही
होता है। आंख अपनी सुन्दरता का दर्शन दर्पण में ही कर सकती है। ~
वासवदत्ता
</li>
</ul>
<ul>
<li> उर्दू लिखने के लिये देवनागरी अपनाने से उर्दू उत्कर्ष को प्राप्त होगी। ~ खुशवन्त सिंह
</li>
</ul>
<ul>
<li> जब तुम दु:खों का सामना करने से डर जाते हो और रोने लगते हो, तो
मुसीबतों का ढेर लग जाता है। लेकिन जब तुम मुस्कराने लगते हो, तो मुसीबतें
सिकुड़ जाती हैं। ~ सुधांशु महाराज
</li>
</ul>
<ul>
<li> नेकी कर और दरिया में डाल। ~ किस्सा हातिमताई
</li>
</ul>
<ul>
<li> जो अकारण अनुराग होता है उसकी प्रतिक्रिया नहीं होती है क्योंकि
वह तो स्नेहयुक्त सूत्र है जो प्राणियों को भीतर-ही-भीतर (ह्रदय में) सी
देती है। ~ उत्तररामचरित
</li>
</ul>
<ul>
<li> संयम संस्कृति का मूल है। विलासिता निर्बलता और चाटुकारिता के
वातावरण में न तो संस्कृति का उद्भव होता है और न विकास। ~ काका कालेलकर
</li>
</ul>
<ul>
<li> कुल की प्रशंसा करने से क्या लाभ? शील ही (मनुष्य की पहचान का)
मुख्य कारण है। क्षुद्र मंदार आदि के वृक्ष भी उत्तम खेत में पड़ने से अधिक
बढते-फैलते हैं। ~ मृच्छकटिक
</li>
</ul>
<ul>
<li> बुद्धिमान मनुष्य अपनी हानि पर कभी नहीं रोते बल्कि साहस के साथ उसकी क्षतिपूर्ति में लग जाते हैं। ~ विष्णु शर्मा
</li>
<li> जिसके जीने से बहुत से लोग जीवित रहें, वहीं इस संसार में वास्तव में जीता है। ~ विष्णु शर्मा
</li>
</ul>
<ul>
<li> जैसे रात्रि के बाद भोर का आना या दुख के बाद सुख का आना जीवन
चक्र का हिस्सा है वैसे ही प्राचीनता से नवीनता का सफ़र भी निश्चित है। ~
भावना कुँअर
</li>
</ul>
<ul>
<li> प्रत्येक कार्य अपने समय से होता है उसमें उतावली ठीक नहीं, जैसे
पेड़ में कितना ही पानी डाला जाय पर फल वह अपने समय से ही देता है। ~ वृंद
</li>
</ul>
<ul>
<li> निराशा के समान दूसरा पाप नहीं। आशा सर्वोत्कृष्ट प्रकाश है तो निराशा घोर अंधकार है। ~ रश्मिमाला
</li>
</ul>
<ul>
<li> कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। ~ हरिवंश राय बच्चन
</li>
</ul>
<ul>
<li> मनुष्य अपना स्वामी नहीं, परिस्थितियों का दास है। ~ भगवतीचरण वर्मा
</li>
<li> मृत्यु और विनाश बिना बुलाए ही आया करते हैं क्योंकि ये हमारे
मित्रों के रूप में नहीं शत्रुओं के रूप में आते हैं। ~ भगवतीचरण वर्मा
</li>
</ul>
<ul>
<li> सच्चाई से जिसका मन भरा है, वह विद्वान न होने पर भी बहुत देश सेवा कर सकता है। ~ पं. मोतीलाल नेहरू
</li>
</ul>
<ul>
<li> जो भारी कोलाहल में भी संगीत को सुन सकता है, वह महान उपलब्धि को प्राप्त करता है। ~ डॉ. विक्रम साराभाई
</li>
</ul>
<ul>
<li> जैसे जीने के लिए मृत्यु का अस्वीकरण ज़रूरी है वैसे ही सृजनशील बने रहने के लिए प्रतिष्ठा का अस्वीकरण ज़रूरी है। ~ डॉ. रघुवंश
</li>
</ul>
<ul>
<li> काम से ज़्यादा काम के पीछे निहित भावना का महत्व होता है। ~ डॉ. राजेंद्र प्रसाद
</li>
</ul>
<ul>
<li> उजाला एक विश्वास है जो अँधेरे के किसी भी रूप के विरुद्ध संघर्ष
का बिगुल बजाने को तत्पर रहता है। ये हममें साहस और निडरता भरता है। ~ डॉ.
प्रेम जनमेजय
</li>
</ul>
<ul>
<li> अच्छी योजना बनाना बुद्धिमानी का काम है पर उसको ठीक से पूरा करना धैर्य और परिश्रम का। ~ डॉ. तपेश चतुर्वेदी
</li>
</ul>
<ul>
<li> देश-प्रेम के दो शब्दों के सामंजस्य में वशीकरण मंत्र है, जादू का
सम्मिश्रण है। यह वह कसौटी है जिसपर देश भक्तों की परख होती है। - बलभद्र
प्रसाद गुप्त 'रसिक'
</li>
</ul>
<ul>
<li> असत्य फूस के ढेर की तरह है। सत्य की एक चिनगारी भी उसे भस्म कर देती है। ~ हरिभाऊ उपाध्याय
</li>
<li> आनन्द उछलता - कूदता जाता है; शान्ति मुस्कुराती हुई चलती है। ~ हरिभाऊ उपाध्याय
</li>
</ul>
<ul>
<li> जबतक भारत का राजकाज अपनी भाषा में नहीं चलेगा तबतक हम यह नहीं कह सकते कि देश में स्वराज है। ~ मोरारजी देसाई
</li>
</ul>
<ul>
<li> जैसे उल्लू को सूर्य नहीं दिखाई देता वैसे ही दुष्ट को सौजन्य दिखाई नहीं देता। ~ स्वामी भजनानंद
</li>
</ul>
<ul>
<li> सबसे उत्तम विजय प्रेम की है जो सदैव के लिए विजेताओं का हृदय बाँध लेती है। ~ सम्राट अशोक
</li>
</ul>
<ul>
<li> जीवन की जड़ संयम की भूमि में जितनी गहरी जमती है और सदाचार का
जितना जल दिया जाता है उतना ही जीवन हरा भरा होता है और उसमें ज्ञान का
मधुर फल लगता है। ~ दीनानाथ दिनेश
</li>
</ul>
<ul>
<li> प्रत्येक व्यक्ति की अच्छाई ही प्रजातंत्रीय शासन की सफलता का मूल सिद्धांत है। ~ राजगोपालाचारी
</li>
</ul>
<ul>
<li> अपने अनुभव का साहित्य किसी दर्शन के साथ नहीं चलता, वह अपना दर्शन पैदा करता है। ~ कमलेश्वर
</li>
</ul>
<ul>
<li> त्योहार साल की गति के पड़ाव हैं, जहां भिन्न-भिन्न मनोरंजन हैं, भिन्न-भिन्न आनंद हैं, भिन्न-भिन्न क्रीडास्थल हैं। ~ बस्र्आ
</li>
</ul>
<ul>
<li> 'शि' का अर्थ है पापों का नाश करने वाला और 'व' कहते हैं मुक्ति
देने वाले को। भोलेनाथ में ये दोनों गुण हैं इसलिए वे शिव कहलाते हैं। ~
ब्रह्मवैवर्त पुराण
</li>
</ul>
<ul>
<li> चंद्रमा, हिमालय पर्वत, केले के वृक्ष और चंदन शीतल माने गए हैं,
पर इनमें से कुछ भी इतना शीतल नहीं जितना मनुष्य का तृष्णा रहित चित्त। ~
वशिष्ठ
</li>
</ul>
<ul>
<li> इस जन्म में परिश्रम से की गई कमाई का फल मिलता है और उस कमाई से दिए गए दान का फल अगले जन्म में मिलता है। ~ गुरुवाणी
</li>
</ul>
<ul>
<li> ईश्वर ने तुम्हें सिर्फ एक चेहरा दिया है और तुम उस पर कई चेहरे
चढ़ा लेते हो, जो व्यक्ति सोने का बहाना कर रहा है उसे आप उठा नहीं सकते। ~
नवाजो
</li>
</ul>
<ul>
<li> आहार, स्वप्न (नींद) और ब्रम्हचर्य इस शरीर के तीन स्तम्भ हैं। ~ महर्षि चरक
</li>
</ul>
<ul>
<li> संवेदनशीलता न्याय की पहली अनिवार्यता है। ~ कुमार आशीष
</li>
</ul>
<ul>
<li> देश कभी चोर उचक्कों की करतूतों से बरबाद नहीं होता बल्कि शरीफ़ लोगों की कायरता और निकम्मेपन से होता है। ~ शिव खेड़ा
</li>
</ul>
<ul>
<li> बीस वर्ष की आयु में व्यक्ति का जो चेहरा रहता है, वह प्रकृति की
देन है, तीस वर्ष की आयु का चेहरा जिंदगी के उतार-चढ़ाव की देन है लेकिन
पचास वर्ष की आयु का चेहरा व्यक्ति की अपनी कमाई है। ~ अष्टावक्र
</li>
</ul>
<ul>
<li> बेहतर ज़िंदगी का रास्ता बेहतर किताबों से होकर जाता है। ~ शिल्पायन
</li>
</ul>
<ul>
<li> राष्ट्र की एकता को अगर बनाकर रखा जा सकता है तो उसका माध्यम हिंदी ही हो सकती है। ~ सुब्रह्मण्यम भारती
</li>
</ul>
<ul>
<li> बिखरना विनाश का पथ है तो सिमटना निर्माण का। ~ कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर
</li>
</ul>
<ul>
<li> हिंदी ही हिंदुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है। हर महीने कम
से कम एक हिन्दी पुस्तक ख़रीदें! मैं और आप नहीं तो क्या विदेशी लोग हिन्दी
लेखकों को प्रोत्साहन देंगे? ~ शास्त्री फ़िलिप
</li>
</ul>
<ul>
<li> यदि तुम्हें अपने चुने हुए रास्ते पर विश्वास है, यदि इस पर चलने
का साहस है, यदि इसकी कठिनाइयों को जीत लेने की शक्ति है, तो रास्ता
तुम्हारा अनुगमन करता है। ~ धीरूभाई अंबानी
</li>
<li> बड़ी बातें सोचो, तेज सोचो, दूसरो से पहले सोचो। विचारों पर किसी का एकाधिकार नहीं हैं। ~ धीरू भाई अम्बानी
</li>
</ul>
<ul>
<li> एक पल का उन्माद जीवन की क्षणिक चमक का नहीं, अंधकार का पोषक है, जिसका कोई आदि नहीं, कोई अंत नहीं। ~ रांगेय राघव
</li>
</ul>
<ul>
<li> जीवन दूध के समुद्र की तरह है, आप इसे जितना मथेंगे आपको इससे उतना ही मक्खन मिलेगा। ~ घनश्यामदास बिड़ला
</li>
</ul>
<ul>
<li> वसंत ऋतु निश्चय ही रमणीय है। ग्रीष्म ऋतु भी रमणीय है। वर्षा,
शरद, हेमंत और शिशिर भी रमणीय है, अर्थात सब समय उत्तम हैं। ~ सामवेद
</li>
</ul>
<ul>
<li> अंधेरे को कोसने से बेहतर है कि एक दीया जलाया जाए। ~ उपनिषद
</li>
</ul>
<ul>
<li> आंतरिक सौंदर्य का आह्वान करना कठिन काम है। सौंदर्य की अपनी भाषा होती है, ऐसी भाषा जिसमें न शब्द होते हैं न आवाज़। ~ राजश्री
</li>
</ul>
<ul>
<li> हँसी छूत की बीमारी है, आपको हँसी आई नहीं कि दूसरे को ज़बरदस्ती अपने दाँत निकालने पड़ेंगे। ~ प्रेमलता दीप
</li>
</ul>
<ul>
<li> जो बिना ठोकर खाए मंजिल तक पहुँच जाते हैं, उनके हाथ अनुभव से ख़ाली रह जाते हैं। ~ शिवकुमार मिश्र 'रज्जन'
</li>
</ul>
<ul>
<li> कर्मों का फल अवश्य मिलता है, पर हमारी इच्छानुसार नहीं, कार्य के प्रति हमारी आस्था एवं दृष्टि के अनुसार। ~ किशोर काबरा
</li>
</ul>
<ul>
<li> श्रेष्ठ वही है जिसके हृदय में दया व धर्म बसते हैं, जो अमृतवाणी बोलते हैं और जिनके नेत्र विनय से झुके होते हैं। ~ संत मलूकदास
</li>
</ul>
<ul>
<li> जैसे दीपक का प्रकाश घने अंधकार के बाद दिखाई देता है उसी प्रकार सुख का अनुभव भी दुःख के बाद ही होता है। ~ शूद्रक
</li>
</ul>
<ul>
<li> शाला में नया छात्र कुछ लेकर नहीं आता और पुराना कुछ लेकर नहीं जाता फिर भी वहाँ ज्ञान का विकास होता है। ~ राजेन्द्र अवस्थी
</li>
<li> अकेलापन कई बार अपने आप से सार्थक बातें करता है। वैसी सार्थकता भीड़ में या भीड़ के चिंतन में नहीं मिलती। ~ राजेंद्र अवस्थी
</li>
</ul>
<ul>
<li> बूढा होना कोई आसान काम नहीं। इसे बड़ी मेहनत से सीखना पड़ता है। ~ निर्मल वर्मा
</li>
</ul>
<ul>
<li> आपत्तियां मनुष्यता की कसौटी हैं। इन पर खरा उतरे बिना कोई भी व्यक्ति सफल नहीं हो सकता। ~ पंडित रामप्रताप त्रिपाठी
</li>
</ul>
<ul>
<li> कलाविशेष में निपुण भले ही चित्र में कितने ही पुष्प बना दें पर
क्या वे उनमें सुगंध पा सकते हैं और फिर भ्रमर उनसे रस कैसे पी सकेंगे। ~
पंडितराज जगन्नाथ
</li>
</ul>
<ul>
<li> अविश्वास आदमी की प्रवृत्ति को जितना बिगाड़ता है, विश्वास उतना ही बनाता है। ~ धर्मवीर भारती
</li>
</ul>
<ul>
<li> मैं हिन्दुस्तान की तूती हूँ। अगर तुम वास्तव में मुझसे जानना
चाहते हो तो हिन्दवी में पूछो। मैं तुम्हें अनुपम बातें बता सकूँगा। ~
अमीर ख़ुसरो
</li>
</ul>
<ul>
<li> विश्व में अग्रणी भूमिका निभाने की आकांक्षा रखनेवाला कोई भी देश
शुद्ध या दीर्घकालीन अनुसंधान की उपेक्षा नहीं कर सकता। ~ होमी भाभा
</li>
</ul>
<ul>
<li> कोई भी भाषा अपने साथ एक संस्कार, एक सोच, एक पहचान और प्रवृत्ति को लेकर चलती है। ~ भरत प्रसाद
</li>
</ul>
<ul>
<li> कहानी जहाँ खत्म होती है, जीवन वहीं से शुरू होता है।' ~ संजीव
</li>
</ul>
<ul>
<li> हम अमन चाहते हैं जुल्म के ख़िलाफ़, फैसला ग़र जंग से होगा, तो जंग ही सही। ~ राम प्रसाद बिस्मिल
</li>
</ul>
<ul>
<li> सपने हमेशा सच नहीं होते पर ज़िंदगी तो उम्मीद पर टिकी होती हैं। ~ रविकिरण शास्त्री
</li>
</ul>
<ul>
<li> विनम्रता की परीक्षा 'समृद्धि' में और स्वाभिमान की परीक्षा 'अभाव' में होती है। ~ आदित्य चौधरी
</li>
</ul>
<ul>
<li> भ्रमरकुल आर्यवन में ऐसे ही कार्य (मधुपान की चाह) के बिना नहीं
घूमता है। क्या बिना अग्नि के धुएं की शिखा कभी दिखाई देती है? ~
गाथासप्तशती
</li>
</ul>
<ul>
<li> दृढ़ इच्छा शक्ति हो तो आतशी शीशा खुद ब खुद मिल जाता हैं, जो अवसरों को खोज निकालता हैं। ~ शिव खेड़ा
</li>
</ul>
<ul>
<li> सफलता के लिए किसी सफाई की जरूरत नहीं होती और असफलता की कोई सफाई नहीं होती। ~ प्रमोद बत्रा
</li>
</ul>
<ul>
<li> अपनी सफलता के इन्जिनियर आप खुद है। अगर हम अपनी आत्मा की ईंट और
जीवन का सीमेंट उस जगह लगायें जहाँ चाहते हैं तो सफलता की मजबूत इमारत खड़ी
कर सकते हैं अपनी सीमा ऊँचे स्तर पर बनाओ, बड़ा सोचने का साहस करो। ~
नैना लाल किदवई
</li>
</ul>
<ul>
<li> जहाँ अकारण अत्यन्त सत्कार हो, वहाँ परिणाम में दुख की आशंका करनी चाहिये। ~ कुमार सम्भव
</li>
</ul>
<ul>
<li> किताबों में वजन होता है! ये यूँ ही किसी के जीवन की दशा और दिशा नहीं बदल देतीं। ~ इला प्रसाद
</li>
</ul>
<ul>
<li> मानव जीवन धूल की तरह है, रो-धोकर हम इसे कीचड़ बना देते हैं। ~ बकुल वैद्य
</li>
</ul>
<ul>
<li> अकर्मण्यता के जीवन से यशस्वी जीवन और यशस्वी मृत्यु श्रेष्ठ होती है। ~ चंद्रशेखर वेंकट रमण
</li>
</ul>
<ul>
<li> जिस प्रकार जल कमल के पत्ते पर नहीं ठहरता है, उसी प्रकार मुक्त आत्मा के कर्म उससे नहीं चिपकते हैं। ~ छांदोग्य उपनिषद
</li>
</ul>
<ul>
<li> ख्याति नदी की भाँति अपने उद्गम स्थल पर क्षीण ही रहती है किंदु दूर जाकर विस्तृत हो जाती है। ~ भवभूति
</li>
</ul>
<ul>
<li> बुद्धि के सिवाय विचार प्रचार का कोई दूसरा शस्त्र नहीं है, क्योंकि ज्ञान ही अन्याय को मिटा सकता है। ~ शंकराचार्य
</li>
</ul>
<ul>
<li> बच्चों को पालना, उन्हें अच्छे व्यवहार की शिक्षा देना भी सेवाकार्य है, क्योंकि यह उनका जीवन सुखी बनाता है। ~ स्वामी रामसुखदास
</li>
</ul>
<ul>
<li> समस्त भारतीय भाषाओं के लिए यदि कोई एक लिपि आवश्यक हो तो वह देवनागरी ही हो सकती है। ~ (न्यायमूर्ति) कृष्णस्वामी अय्यर
</li>
</ul>
<ul>
<li> ईमानदार के लिए किसी छद्म वेश-भूषा या साज-श्रृंगार की आवश्यकता नहीं होती। इसके लिए सादगी ही प्रर्याप्त है। ~ औटवे
</li>
</ul>
<ul>
<li> जन्म-मरण का सांसारिक चक्र तभी ख़त्म होता है जब व्यक्ति को मोक्ष
मिलता है। उसके बाद आत्मा अपने वास्तविक सत्-चित्-आनन्द स्वभाव को सदा के
लिये पा लेती है। ~ हिन्दू धर्मग्रन्थ
</li>
</ul>
<ul>
<li> कष्ट ही तो वह प्रेरक शक्ति है जो मनुष्य को कसौटी पर परखती है और आगे बढ़ाती है। ~ वीर सावरकर
</li>
</ul>
<ul>
<li> उत्तरदायित्व में महान बल होता है, जहाँ कहीं उत्तरदायित्व होता है, वहीं विकास होता है। ~ दामोदर सातवलेकर
</li>
</ul>
<ul>
<li> जो सत्य विषय हैं वे तो सबमें एक से हैं झगड़ा झूठे विषयों में होता है। ~ सत्यार्थप्रकाश
</li>
</ul>
<ul>
<li> जिस प्रकार रात्रि का अंधकार केवल सूर्य दूर कर सकता है, उसी प्रकार मनुष्य की विपत्ति को केवल ज्ञान दूर कर सकता है। ~ नारदभक्ति
</li>
</ul>
<ul>
<li> सही स्थान पर बोया गया सुकर्म का बीज ही समय आने पर महान फल देता है। ~ कथा सरित्सागर
</li>
</ul>
<ul>
<li> लोकतंत्र के पौधे का, चाहे वह किसी भी किस्म का क्यों न हो तानाशाही में पनपना संदेहास्पद है। ~ जयप्रकाश नारायण
</li>
</ul>
<ul>
<li> बाधाएँ व्यक्ति की परीक्षा होती हैं। उनसे उत्साह बढ़ना चाहिए, मंद नहीं पड़ना चाहिए। ~ यशपाल
</li>
</ul>
<ul>
<li> जैसे अंधे के लिए जगत अंधकारमय है और आँखों वाले के लिए प्रकाशमय
है वैसे ही अज्ञानी के लिए जगत दुखदायक है और ज्ञानी के लिए आनंदमय। ~
संपूर्णानंद
</li>
</ul>
<ul>
<li> दंड द्वारा प्रजा की रक्षा करनी चाहिए लेकिन बिना कारण किसी को दंड नहीं देना चाहिए। ~ रामायण
</li>
</ul>
<ul>
<li> शाश्वत शांति की प्राप्ति के लिए शांति की इच्छा नहीं बल्कि आवश्यक है इच्छाओं की शांति। ~ स्वामी ज्ञानानंद
</li>
</ul>
<ul>
<li> त्योहार साल की गति के पड़ाव हैं, जहाँ भिन्न-भिन्न मनोरंजन हैं, भिन्न-भिन्न आनंद हैं, भिन्न-भिन्न क्रीडास्थल हैं। ~ बरुआ
</li>
</ul>
<ul>
<li> अपने विषय में कुछ कहना प्राय: बहुत कठिन हो जाता है क्यों कि
अपने दोष देखना आपको अप्रिय लगता है और उनको अनदेखा करना औरों को। ~
महादेवी वर्मा
</li>
</ul>
<ul>
<li> ताकतवर होने के लिए अपनी शक्ति में भरोसा रखना जरूरी है, वैसे
व्यक्तियों से अधिक कमज़ोर कोई नहीं होता जिन्हें अपने सामर्थ्य पर
भरोसा नहीं। ~ स्वामी दयानंद सरस्वती
</li>
<li> मनुंष्य का सच्चा जीवन साथी विद्या ही है, जिसके कारण वह विद्वान कहलाता है। ~ स्वामी दयानन्द
</li>
</ul>
<ul>
<li> प्रेम संयम और तप से उत्पन्न होता है, भक्ति साधना से प्राप्त
होती है, श्रद्धा के लिए अभ्यास और निष्ठा की जरूरत होती है। ~ हजारी
प्रसाद द्विवेदी
</li>
</ul>
<ul>
<li> अधिक धन सम्पन्न होने पर भी जो असंतुष्ट रहता है, वह निर्धन
है, धन से रहित होने पर भी जो संतुष्ट है वह सदा धनी है। ~ अश्वघोष
</li>
</ul>
<ul>
<li> भलाई से बढ़कर जीवन और, बुराई से बढ़कर मृत्यु नहीं है। ~ आदिभट्ल नारायण दासु
</li>
</ul>
<ul>
<li> कांच का कटोरा, नेत्रों का जन, मोती और मन यह, एक बार टूटने पर
पहले जैसी स्थिति नहीं होती, अत: पहले से ही सावधानी बरतनी चाहिए। ~
लोकोक्ति
</li>
</ul>
<ul>
<li> जिस प्रकार काठ अपने ही भीतर से प्रकट हुई अग्नि से भस्म होकर
खत्म हो जाता है, उसी प्रकार मनुष्य अपने ही भीतर रहने वाली तृष्णा से
नष्ट हो जाता है। ~ बाणभट्ट
</li>
</ul>
<ul>
<li> जिन्दगी हमारे साथ खेल खेलती है, जो इसे खेल नहीं मानते, वे ही एक दूसरे की शिकायत व आलोचना करते हैं। ~ जैनेंद्र कुमार
</li>
</ul>
<ul>
<li> संसार में सब से दयनीय कौन है? धनवान होकर भी जो कंजूस है। ~ विद्यापति
</li>
</ul>
<ul>
<li> मूर्खों से बहस करके कोई भी व्यक्ति, बु्द्धिमान नहीं कहला सकता,
मूर्ख पर विजय पाने का एकमात्र उपाय यही है कि उसकी ओर ध्यान नहीं दिया
जाए। ~ संत ज्ञानेश्वर
</li>
</ul>
<ul>
<li> प्रयत्न देवता की तरह है जबकि भाग्य दैत्य की भांति, ऐसे में
प्रयत्न देवता की उपासना करना ही श्रेष्ठ काम है। ~ समर्थ गुरु रामदास
</li>
<li> चाहे गुरु पर हो या ईश्वर पर, श्रद्धा अवश्य रखनी चाहिए। क्यों कि बिना श्रद्धा के सब बातें व्यर्थ होती हैं। ~ समर्थ रामदास
</li>
</ul>
<ul>
<li> सत्ता की महत्ता तो मोहक भी बहुत होती है, एक बार हांथ में आने पर और कंटीली होने पर भी छोड़ी नहीं जाती। ~ वृंदावनलाल वर्मा
</li>
</ul>
<ul>
<li> परोपकारी अपने कष्ट को नहीं देखता, क्योंकि वह परकष्ट जनित करूणा से ओत-प्रोत होता है। ~ संत तुकाराम
</li>
</ul>
<ul>
<li> चतुराई और चालबाजी दो चीजें हैं, एक में ईश्वर की प्रेरणा होती है और दूसरा हमारी फितरत से पैदा होता है। ~ सुमन सिन्हा
</li>
</ul>
<ul>
<li> जो शिक्षा मनुष्य को संकीर्ण और स्वार्थी बना देती है, उसका
मूल्य किसी युग में चाहे जो रहा हो, अब नहीं है। ~ शरतचन्द्र
चट्टोपाघ्याय
</li>
</ul>
<ul>
<li> अपनी पीड़ा तो पशु-पक्षी भी महसूस करते हैं, मनुष्य वह है जो दूसरों की वेदना को अनुभव करे। ~ रसनिधि
</li>
</ul>
<ul>
<li> अपना चरित्र उज्जवल होने पर भी सज्जन, अपना दोष ही सामने रखते
हैं, अग्नि का तेज उज्जवल होने पर भी वह पहले धुंआ ही प्रकट करता है। ~
कर्णपूर
</li>
</ul>
<ul>
<li> जो व्यक्ति इंसान की बनाई मूर्ति की पूजा करता है, लेकिन भगवान
की बनाई मूर्ति (इंसान) से नफरत करता है, वह भगवान को कभी प्रिय नहीं हो
सकता। ~ स्वामी ज्योतिनंद
</li>
</ul>
<ul>
<li> कर्म की उत्पत्ति विचार में है, अतः विचार ही महत्वपूर्ण हैं। ~ साई बाबा
</li>
</ul>
<ul>
<li> जीवन की भाग-दौड़ तथा उथल-पुथल में अंदर से शांत बने रहें। ~ दीपक चोपड़ा
</li>
</ul>
<ul>
<li> जिस मनुष्य में आत्मविश्वास नहीं है, वह शक्तिमान होकर भी कायर है और पंडित होकर भी मूर्ख है। ~ रामप्रताप
</li>
</ul>
<ul>
<li> ब्राहमण होकर विद्वान और साधनारत भी है लेकिन दुष्टमार्ग और
दुष्प्रवृत्तियों में लीन हो गया है उसे ब्रहमराक्षस कहते हैं उस पर
नियंत्रण दुष्कर किन्तु अनिवार्य होता है। ~ तंत्र महौदधि
</li>
</ul>
<ul>
<li> जो अप्राप्त वस्तु के लिए चिंता नहीं करता और प्राप्त वस्तु के लिए सम रहता है, वह संतुष्ट कहा जा सकता है। ~ महोपनिषद
</li>
</ul>
<ul>
<li> जल से शरीर शुद्ध होता है, मन से सत्य शुद्ध होता है, विद्या और तप से भूतात्मा तथा ज्ञान से बुद्धि शुद्ध होती है। ~ मनुस्मृति
</li>
<li> अपि यत्सुकरं कर्म तदप्येकेन दुष्करम। (आसानी से होने वाला कार्य भी एक व्यक्ति से होना मुश्किल।) ~ मनुस्मृति
</li>
</ul>
<ul>
<li> विश्व के निर्माण में जिसने सबसे अधिक संघर्ष किया है और सबसे अधिक कष्ट उठाए हैं वह माँ है। ~ हर्ष मोहन
</li>
</ul>
<ul>
<li> कुटिल लोगों के प्रति सरल व्यवहार अच्छी नीति नहीं। ~ श्री हर्ष
</li>
</ul>
<ul>
<li> ईशावास्यमिदं सर्व यत्किज्च जगत्यां जगत - भगवन इस जग के कण कण में विद्यमान है! ~ संतवाणी
</li>
</ul>
</div>Himmat singhhttp://www.blogger.com/profile/11883720728789144629noreply@blogger.com14tag:blogger.com,1999:blog-6286200041083451768.post-4385347885245578542012-02-27T22:21:00.001-08:002012-02-27T22:21:33.964-08:00आचार्य श्रीराम शर्मा के अनमोल वचन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><h2> <span class="mw-headline" id=".E0.A4.86.E0.A4.9A.E0.A4.BE.E0.A4.B0.E0.A5.8D.E0.A4.AF_.E0.A4.B6.E0.A5.8D.E0.A4.B0.E0.A5.80.E0.A4.B0.E0.A4.BE.E0.A4.AE_.E0.A4.B6.E0.A4.B0.E0.A5.8D.E0.A4.AE.E0.A4.BE">आचार्य श्रीराम शर्मा</span></h2><div class="thumb tright"><div class="thumbinner" style="width: 152px;"><a class="image" href="http://hi.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0:Shriram_sharma.jpg"><img alt="" class="thumbimage" height="223" src="http://hi.bharatdiscovery.org/w/images/thumb/1/14/Shriram_sharma.jpg/150px-Shriram_sharma.jpg" width="150" /></a> <div class="thumbcaption"><div class="magnify"><a class="internal" href="http://hi.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0:Shriram_sharma.jpg" title="बड़ा करें"><img alt="" height="11" src="http://hi.bharatdiscovery.org/w/skins/common/images/magnify-clip.png" width="15" /></a></div>आचार्य श्रीराम शर्मा</div></div></div><ul><li> इस संसार में प्यार करने लायक़ दो वस्तुएँ हैं-एक दुख और दूसरा श्रम। दुख के बिना हृदय निर्मल नहीं होता और श्रम के बिना मनुष्यत्व का विकास नहीं होता। - आचार्य श्रीराम शर्मा </li>
<li> संपदा को जोड़-जोड़ कर रखने वाले को भला क्या पता कि दान में कितनी मिठास है। - आचार्य श्रीराम शर्मा </li>
<li> जीवन में दो ही व्यक्ति असफल होते हैं- एक वे जो सोचते हैं पर करते नहीं, दूसरे जो करते हैं पर सोचते नहीं। - आचार्य श्रीराम शर्मा </li>
<li> मानसिक बीमारियों से बचने का एक ही उपाय है कि हृदय को घृणा से और मन को भय व चिन्ता से मुक्त रखा जाय। - आचार्य श्रीराम शर्मा </li>
<li> मनुष्य कुछ और नहीं, भटका हुआ देवता है। - आचार्य श्रीराम शर्मा </li>
<li> असफलता यह बताती है कि सफलता का प्रयत्न पूरे मन से नहीं किया गया। — श्रीराम शर्मा आचार्य </li>
<li> शारीरिक गुलामी से बौद्धिक गुलामी अधिक भयंकर है। — श्रीराम शर्मा, आचार्य </li>
<li> ग्रन्थ, पन्थ हो अथवा व्यक्ति, नहीं किसी की अंधी भक्ति। — श्रीराम शर्मा, आचार्य </li>
<li> जैसी जनता, वैसा राजा। प्रजातन्त्र का यही तकाजा॥ — श्रीराम शर्मा, आचार्य </li>
<li> केवल वे ही असंभव कार्य को कर सकते हैं जो अदृष्य को भी देख लेते हैं। — श्रीराम शर्मा आचार्य </li>
<li> नहीं संगठित सज्जन लोग। रहे इसी से संकट भोग॥ — श्रीराम शर्मा, आचार्य </li>
<li> मनुष्य की वास्तविक पूँजी धन नहीं, विचार हैं। — श्रीराम शर्मा, आचार्य </li>
<li> प्रज्ञा-युग के चार आधार होंगे - समझदारी, इमानदारी, जिम्मेदारी और बहादुरी। — श्रीराम शर्मा, आचार्य </li>
<li> मनःस्थिति बदले, तब परिस्थिति बदले। - पं श्रीराम शर्मा आचार्य </li>
<li> रचनात्मक कार्यों से देश समर्थ बनेगा। — श्रीराम शर्मा, आचार्य </li>
<li> संसार का सबसे बडा दिवालिया वह है जिसने उत्साह खो दिया। — श्रीराम शर्मा, आचार्य </li>
<li> समाज के हित में अपना हित है। — श्रीराम शर्मा, आचार्य </li>
<li> सुख में गर्व न करें, दुःख में धैर्य न छोड़ें। - पं श्री राम शर्मा आचार्य </li>
<li> उसी धर्म का अब उत्थान, जिसका सहयोगी विज्ञान॥ — श्रीराम शर्मा, आचार्य </li>
<li> बड़प्पन अमीरी में नहीं, ईमानदारी और सज्जनता में सन्निहित है। — श्रीराम शर्मा आचार्य </li>
<li> जो बच्चों को सिखाते हैं, उन पर बड़े खुद अमल करें तो यह संसार स्वर्ग बन जाय। — श्रीराम शर्मा आचार्य </li>
<li> विनय अपयश का नाश करता हैं, पराक्रम अनर्थ को दूर करता है, क्षमा सदा ही क्रोध का नाश करती है और सदाचार कुलक्षण का अंत करता है। — श्रीराम शर्मा आचार्य </li>
<li> जब तक व्यक्ति असत्य को ही सत्य समझता रहता है, तब तक उसके मन में सत्य को जानने की जिज्ञासा उत्पन्न नहीं होती है। - पं. श्रीराम शर्मा </li>
<li> अवसर तो सभी को जिन्दगी में मिलते हैं, किंतु उनका सही वक्त पर सही तरीके से इस्तेमाल कुछ ही कर पाते हैं। - श्रीराम शर्मा </li>
</ul></div>Himmat singhhttp://www.blogger.com/profile/11883720728789144629noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6286200041083451768.post-50127656618343605342012-02-27T22:13:00.000-08:002012-02-27T22:13:37.397-08:00माघ के अनमोल वचन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><h2> <span class="mw-headline" id=".E0.A4.AE.E0.A4.BE.E0.A4.98">माघ</span></h2><ul><li> मनस्वी पुरुष पर्वत के समान ऊँचे और समुद्र के समान गंभीर होते हैं। उनका पार पाना कठिन है। - माघ </li>
<li> कुशल पुरुष की वाणी प्रतिकूल बोलनेवाले प्रबुद्ध वक्ताओं को मूक बना देती है और पक्ष में बोलने वाले मंदमति को निपुण। - माघ </li>
<li> जहाँ प्रकाश रहता है वहाँ अंधकार कभी नहीं रह सकता। - माघ्र </li>
</ul></div>Himmat singhhttp://www.blogger.com/profile/11883720728789144629noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6286200041083451768.post-15416304219679563622012-02-27T22:12:00.000-08:002012-02-27T22:12:22.836-08:00संत तिरुवल्लुवर के अनमोल वचन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><h2> <span class="mw-headline" id=".E0.A4.B8.E0.A4.82.E0.A4.A4_.E0.A4.A4.E0.A4.BF.E0.A4.B0.E0.A5.81.E0.A4.B5.E0.A4.B2.E0.A5.8D.E0.A4.B2.E0.A5.81.E0.A4.B5.E0.A4.B0">संत तिरुवल्लुवर</span></h2><ul><li> नेकी से विमुख हो जाना और बदी करना नि:संदेह बुरा है, मगर सामने हँस कर बोलना और पीछे चुगलखोरी करना उससे भी बुरा है। - संत तिरुवल्लुवर </li>
<li> नम्रता और मीठे वचन ही मनुष्य के आभूषण होते हैं। शेष सब नाममात्र के भूषण हैं। - संत तिरुवल्लुर </li>
<li> सोचना, कहना व करना सदा समान हो, नेकी से विमुख हो जाना और बदी करना नि:संदेह बुरा है, मगर सामने हंस कर बोलना और पीछे चुगलखोरी करना उससे भी बुरा है। - संत तिस्र्वल्लुवर </li>
<li> उस मनुष्य का ठाट-बाट जिसे लोग प्यार नहीं करते, गांव के बीचोबीच उगे विषवृक्ष के समान है। - संत तिरुवल्लुवर </li>
<li> जो सबके दिल को खुश कर देने वाली वाणी बोलता है, उसके पास दरिद्रता कभी नहीं फटक सकती। - तिरूवल्लुवर </li>
<li> आलस्य में दरिद्रता बसती है, लेकिन जो, व्यक्ति आलस्य नहीं करते उनकी मेहनत में लक्ष्मी का निवास होता है। - तिरूवल्लुर </li>
<li> बड़प्पन सदैव ही दूसरों की कमज़ोरियों, पर पर्दा डालना चाहता है, लेकिन ओछापन, दूसरों की कमियों बताने के सिवा और कुछ करना ही नहीं जानता। - तिरूवल्लुवर </li>
</ul></div>Himmat singhhttp://www.blogger.com/profile/11883720728789144629noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6286200041083451768.post-78466287718230726982012-02-27T22:11:00.000-08:002012-02-27T22:11:12.381-08:00कौटिल्य के अनमोल वचन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><h2> <span class="mw-headline" id=".E0.A4.95.E0.A5.8C.E0.A4.9F.E0.A4.BF.E0.A4.B2.E0.A5.8D.E0.A4.AF">कौटिल्य</span></h2><ul><li> ज्ञानी जन विवेक से सीखते हैं, साधारण मनुष्य अनुभव से, अज्ञानी पुरुष आवश्यकता से और पशु स्वभाव से। - कौटिल्य </li>
<li> सत्य से कीर्ति प्राप्त की जाती है और सहयोग से मित्र बनाए जाते हैं। - कौटिल्य अर्थशास्त्र </li>
</ul></div>Himmat singhhttp://www.blogger.com/profile/11883720728789144629noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6286200041083451768.post-12688543174258910332012-02-27T22:09:00.000-08:002012-02-27T22:09:14.959-08:00पं. रामप्रताप त्रिपाठी के अनमोल वचन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><h2> <span class="mw-headline" id=".E0.A4.AA.E0.A4.82._.E0.A4.B0.E0.A4.BE.E0.A4.AE.E0.A4.AA.E0.A5.8D.E0.A4.B0.E0.A4.A4.E0.A4.BE.E0.A4.AA_.E0.A4.A4.E0.A5.8D.E0.A4.B0.E0.A4.BF.E0.A4.AA.E0.A4.BE.E0.A4.A0.E0.A5.80">पं. रामप्रताप त्रिपाठी</span></h2><ul><li> आपत्तियाँ मनुष्यता की कसौटी हैं। इन पर खरा उतरे बिना कोई भी व्यक्ति सफल नहीं हो सकता। - पं. रामप्रताप त्रिपाठी </li>
<li> जिस मनुष्य में आत्मविश्वास नहीं है वह शक्तिमान हो कर भी कायर है और पंडित होकर भी मूर्ख है। - पं. रामप्रताप त्रिपाठी </li>
<li> मित्रों का उपहास करना उनके पावन प्रेम को खंडित करना है। - पं. रामप्रताप त्रिपाठी </li>
</ul></div>Himmat singhhttp://www.blogger.com/profile/11883720728789144629noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6286200041083451768.post-7297697108431360792012-02-27T22:07:00.003-08:002012-02-27T22:07:55.841-08:00कबीर के अनमोल वचन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><h2> <span class="mw-headline" id=".E0.A4.95.E0.A4.AC.E0.A5.80.E0.A4.B0">कबीर</span></h2><ul><li> साँप के दाँत में विष रहता है, मक्खी के सिर में और बिच्छू की पूँछ में किंतु दुर्जन के पूरे शरीर में विष रहता है। - कबीर </li>
<li> कष्ट पड़ने पर भी साधु पुरुष मलिन नहीं होते, जैसे सोने को जितना तपाया जाता है वह उतना ही निखरता है। - कबीर </li>
<li> जिस तरह जौहरी ही असली हीरे की पहचान कर सकता है, उसी तरह गुणी ही गुणवान् की पहचान कर सकता है। – कबीर </li>
<li> माया मरी न मन मरा, मर मर गये शरीर। आशा तृष्ना ना मरी, कह गये दास कबीर॥ - कबीर </li>
<li> कबिरा आप ठगाइये, और न ठगिये कोय। आप ठगे सुख होत है, और ठगे दुख होय॥ - कबीर </li>
<li> कबिरा घास न निन्दिये जो पाँवन तर होय। उड़ि कै परै जो आँख में खरो दुहेलो होय॥ - कबीर </li>
<li> यदि सदगुरु मिल जाये तो जानो सब मिल गया, फिर कुछ मिलना शेष नहीं रहा। यदि सदगुरु नहीं मिले तो समझों कोई नहीं मिला, क्योंकि माता-पिता, पुत्र और भाई तो घर-घर में होते हैं। ये सांसारिक नाते सभी को सुलभ है, परन्तु सदगुरु की प्राप्ति दुर्लभ है। - कबीरदास </li>
<li> केवल ज्ञान की कथनी से क्या होता है, आचरण में, स्थिरता नहीं है, जैसे काग़ज़ का महल देखते ही गिर पड़ता है, वैसे आचरण रहित मनुष्य शीघ्र पतित होता है। - कबीर </li>
<li> खेत और बीज उत्तम हो तो भी, किसानों के बोने में मुट्ठी के अंतर से बीज कहीं ज्यादा कहीं कम पड़ते हैं, इसी प्रकार शिष्य उत्तम होने पर भी गुरुओं की भिन्न-भिन्न शैली होने पर भी शिष्यों को कम ज्ञान हुआ तो इसमें शिष्यों का क्या दोष। - संत कबीर </li>
<li> जब आपका जन्म हुआ तो आप रोए और जग हंसा था. अपने जीवन को इस प्रकार से जीएं कि जब आप की मृत्यु हो तो दुनिया रोए और आप हंसें। - कबीर </li>
</ul></div>Himmat singhhttp://www.blogger.com/profile/11883720728789144629noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-6286200041083451768.post-88688955874488613042012-02-27T22:07:00.000-08:002012-02-27T22:07:03.544-08:00रहीम के अनमोल वचन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><h2> <span class="mw-headline" id=".E0.A4.B0.E0.A4.B9.E0.A5.80.E0.A4.AE">रहीम</span></h2><ul><li> उत्तम पुरुषों की संपत्ति का मुख्य प्रयोजन यही है कि औरों की विपत्ति का नाश हो। - रहीम </li>
<li> थोड़े दिन रहने वाली विपत्ति अच्छी है क्यों कि उसी से मित्र और शत्रु की पहचान होती है। - रहीम </li>
</ul></div>Himmat singhhttp://www.blogger.com/profile/11883720728789144629noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6286200041083451768.post-58809460241900477702012-02-27T22:05:00.000-08:002012-02-27T22:05:56.045-08:00गोस्वामी तुलसीदास के अनमोल वचन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><h2> <span class="mw-headline" id=".E0.A4.97.E0.A5.8B.E0.A4.B8.E0.A5.8D.E0.A4.B5.E0.A4.BE.E0.A4.AE.E0.A5.80_.E0.A4.A4.E0.A5.81.E0.A4.B2.E0.A4.B8.E0.A5.80.E0.A4.A6.E0.A4.BE.E0.A4.B8">गोस्वामी तुलसीदास</span></h2><ul><li> फल के आने से वृक्ष झुक जाते हैं, वर्षा के समय बादल झुक जाते हैं, संपत्ति के समय सज्जन भी नम्र होते हैं। परोपकारियों का स्वभाव ही ऐसा है। - तुलसीदास </li>
<li> वृक्ष अपने सिर पर गरमी सहता है पर अपनी छाया में दूसरों का ताप दूर करता है। - तुलसीदास </li>
<li> स्वप्न वही देखना चाहिए, जो पूरा हो सके। - तुलसी </li>
<li> कीरति भनिति भूति भलि सो, सुरसरि सम सबकँह हित होई॥ - तुलसीदास </li>
<li> गगन चढहिं रज पवन प्रसंगा। (हवा का साथ पाकर धूल आकाश पर चढ जाता है) — गोस्वामी तुलसीदास </li>
<li> ईश्वर ने संसार को कर्म प्रधान बना रखा है, इसमें जो मनुष्य जैसा कर्म करता है उसको, वैसा ही फल प्राप्त होता है।। - गोस्वामी तुलसीदास </li>
<li> वृक्ष अपने सिर पर गरमी सहता है पर अपनी, छाया में दूसरों का ताप दूर करता है। - तुलसीदास </li>
<li> अवसर आने पर मनुष्य यदि कौड़ी (दाम) देने में चूक जाये जो तो फिर लाख रुपया देने से क्या होता है ? द्वितीया के चंद्रमा को न देखा जाए फिर पक्ष भर चंद्रमा उदय रहे, उससे क्या होगा? - तुलसीदास </li>
</ul></div>Himmat singhhttp://www.blogger.com/profile/11883720728789144629noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6286200041083451768.post-34057904294972495392012-02-27T22:00:00.000-08:002012-02-27T22:00:15.443-08:00कालिदास के अनमोल विचार<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><h2> <span class="mw-headline" id=".E0.A4.95.E0.A4.BE.E0.A4.B2.E0.A4.BF.E0.A4.A6.E0.A4.BE.E0.A4.B8">कालिदास</span></h2><ul><li> पृथ्वी पर तीन रत्न हैं। जल, अन्न और सुभाषित लेकिन अज्ञानी पत्थर के टुकड़े को ही रत्न कहते हैं। - कालिदास </li>
<li> यशस्वियों का कर्तव्य है कि जो अपने से होड़ करे उससे अपने यश की रक्षा भी करें। - कालिदास </li>
<li> उदय होते समय सूर्य लाल होता है और अस्त होते समय भी। इसी प्रकार संपत्ति और विपत्ति के समय महान पुरुषों में एकरूपता होती है। - कालिदास </li>
<li> काम की समाप्ति संतोषप्रद हो तो परिश्रम की थकान याद नहीं रहती। - कालिदास </li>
<li> सज्जन पुरुष बादलों के समान देने के लिए ही कोई वस्तु ग्रहण करते हैं। - कालिदास </li>
<li> सब प्राचीन अच्छा और सब नया बुरा नहीं होता। बुद्धिमान पुरुष स्वयं परीक्षा द्वारा गुण-दोषों का विवेचन करते हैं। - कालिदास </li>
<li> जिनका चित्त विकार उत्पन्न करने वाली परिस्थितियों में भी अस्थिर नहीं होता वे ही सच्चे धीर पुरुष होते हैं। - कालिदास </li>
<li> सज्जन पुरुष बिना कहे ही दूसरों की आशा पूरी कर देते है जैसे सूर्य स्वयं ही घर-घर जाकर प्रकाश फैला देता है। - कालिदास </li>
<li> दान-पुण्य केवल परलोक में सुख देता है पर योग्य संतान सेवा द्वारा इहलोक और तर्पण द्वारा परलोक दोनों में सुख देती है। - कालिदास </li>
<li> अवगुण नाव की पेंदी में एक छेद के समान है, जो चाहे छोटा हो या बड़ा एक दिन उसे डुबा दे्गा। - कालिदास </li>
</ul></div>Himmat singhhttp://www.blogger.com/profile/11883720728789144629noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6286200041083451768.post-73097016240911557272012-02-27T21:59:00.000-08:002012-02-27T21:59:15.934-08:00सुदर्शन के अनमोल विचार<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><h2> <span class="mw-headline" id=".E0.A4.B8.E0.A5.81.E0.A4.A6.E0.A4.B0.E0.A5.8D.E0.A4.B6.E0.A4.A8">सुदर्शन</span></h2><ul><li> मुहब्बत त्याग की माँ है। वह जहाँ जाती है अपने बेटे को साथ ले जाती है। - सुदर्शन </li>
<li> जो काम घड़ों जल से नहीं होता उसे दवा के दो घूँट कर देते हैं और जो काम तलवार से नहीं होता वह काँटा कर देता है। - सुदर्शन </li>
<li> अधर्म की सेना का सेनापति झूठ है। जहाँ झूठ पहुँच जाता है वहाँ अधर्म-राज्य की विजय-दुंदुभी अवश्य बजती है। - सुदर्शन </li>
<li> धन तो वापस किया जा सकता है परंतु सहानुभूति के शब्द वे ऋण हैं जिसे चुकाना मनुष्य की शक्ति के बाहर है। - सुदर्शन </li>
<li> लक्ष्मी उसी के लिए वरदान बनकर आती है जो उसे दूसरों के लिए वरदान बनाता है। - सुदर्शन </li>
<li> जो अपने को बुद्धिमान समझता है वह सामान्यतः सबसे बड़ा मूर्ख होता है। - सुदर्शन </li>
<li> कीर्ति का नशा शराब के नशे से भी तेज़ है। शराब छोड़ना आसान है, कीर्ति छोड़ना आसान नहीं। - सुदर्शन </li>
<li> करुणा में शीतल अग्नि होती है जो क्रूर से क्रूर व्यक्ति का हृदय भी आर्द्र कर देती है। - सुदर्शन </li>
</ul></div>Himmat singhhttp://www.blogger.com/profile/11883720728789144629noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6286200041083451768.post-57618098919578865852012-02-27T21:57:00.000-08:002012-02-27T21:57:34.624-08:00जयशंकर प्रसाद के अनमोल वचन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><h2> <span class="mw-headline" id=".E0.A4.9C.E0.A4.AF.E0.A4.B6.E0.A4.82.E0.A4.95.E0.A4.B0_.E0.A4.AA.E0.A5.8D.E0.A4.B0.E0.A4.B8.E0.A4.BE.E0.A4.A6">जयशंकर प्रसाद</span></h2><ul><li> पाषाण के भीतर भी मधुर स्रोत होते हैं, उसमें मदिरा नहीं शीतल जल की धारा बहती है। - जयशंकर प्रसाद </li>
<li> पुरुष है कुतूहल व प्रश्न और स्त्री है विश्लेषण, उत्तर और सब बातों का समाधान। - जयशंकर प्रसाद </li>
<li> नारी की करुणा अंतरजगत का उच्चतम विकास है, जिसके बल पर समस्त सदाचार ठहरे हुए हैं। - जयशंकर प्रसाद </li>
<li> संसार भर के उपद्रवों का मूल व्यंग्य है। हृदय में जितना यह घुसता है उतनी कटार नहीं। - जयशंकर प्रसाद </li>
<li> अधिक हर्ष और अधिक उन्नति के बाद ही अधिक दुख और पतन की बारी आती है। - जयशंकर प्रसाद </li>
<li> मनुष्य अपनी दुर्बलता से भली-भांति परिचित रहता है, पर उसे अपने बल से भी अवगत होना चाहिये। — जयशंकर प्रसाद </li>
<li> दरिद्रता सब पापों की जननी है, तथा लोभ उसकी सबसे बड़ी संतान है। - जयशंकर प्रसाद </li>
<li> मनुष्यता का एक पक्ष वह भी है, जहां वर्ण, धर्म और देश को भूलकर मनुष्य, मनुष्य के लिए प्यार करता हैं। - जयशंकर प्रसाद </li>
</ul></div>Himmat singhhttp://www.blogger.com/profile/11883720728789144629noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6286200041083451768.post-38165936115250652822012-02-27T21:55:00.000-08:002012-02-27T21:55:41.476-08:00रामकृष्ण परमहंस के अनमोल वचन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><h2> <span class="mw-headline" id=".E0.A4.B0.E0.A4.BE.E0.A4.AE.E0.A4.95.E0.A5.83.E0.A4.B7.E0.A5.8D.E0.A4.A3_.E0.A4.AA.E0.A4.B0.E0.A4.AE.E0.A4.B9.E0.A4.82.E0.A4.B8">रामकृष्ण परमहंस</span></h2><ul><li> जिस प्रकार मैले दर्पण में सूरज का प्रतिबिंब नहीं पड़ता उसी प्रकार मलिन अंत:करण में ईश्वर के प्रकाश का प्रतिबिंब नहीं पड़ सकता। - रामकृष्ण परमहंस </li>
<li> नाव जल में रहे लेकिन जल नाव में नहीं रहना चाहिए, इसी प्रकार साधक जग में रहे लेकिन जग साधक के मन में नहीं रहना चाहिए। - रामकृष्ण परमहंस </li>
</ul></div>Himmat singhhttp://www.blogger.com/profile/11883720728789144629noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6286200041083451768.post-52066771493609960712012-02-27T21:54:00.000-08:002012-02-27T21:54:23.917-08:00भर्तृहरि के अनमोल वचन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><h2> <span class="mw-headline" id=".E0.A4.AD.E0.A4.B0.E0.A5.8D.E0.A4.A4.E0.A5.83.E0.A4.B9.E0.A4.B0.E0.A4.BF">भर्तृहरि</span></h2><ul><li> आलस्य मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है और उद्यम सबसे बड़ा मित्र, जिसके साथ रहने वाला कभी दुखी नहीं होता। - भर्तृहरि </li>
<li> धैर्यवान मनुष्य आत्मविश्वास की नौका पर सवार होकर आपत्ति की नदियों को सफलतापूर्वक पार कर जाते हैं। - भर्तृहरि </li>
<li> सच्चे वीर को युद्ध में मृत्यु से जितना कष्ट नहीं होता उससे कहीं अधिक कष्ट कायर को युद्ध के भय से होता है। - भतृहरि </li>
<li> इस विश्व में स्वर्ण, गाय और पृथ्वी का दान देनेवाले सुलभ है लेकिन प्राणियों को अभयदान देनेवाले इन्सान दुर्लभ हैं। - भर्तृहरि </li>
<li> जिसके पास न विद्या है, न तप है, न दान है, न ज्ञान है, न शील है, न गुण है और न धर्म है; वे मृत्युलोक पृथ्वी पर भार होते है और मनुष्य रूप तो हैं पर पशु की तरह चरते हैं (जीवन व्यतीत करते हैं)। - भर्तृहरि </li>
<li> जिनके हाथ ही पात्र हैं, भिक्षाटन से प्राप्त अन्न का निस्वादी भोजन करते हैं, विस्तीर्ण चारों दिशाएं ही जिनके वस्त्र हैं, पृथ्वी पर जो शयन करते हैं, अन्तकरण की शुद्धता से जो संतुष्ट हुआ करते हैं और देने भावों को त्याग कर जन्मजात कर्मों को नष्ट करते हैं, ऐसे ही मनुष्य धन्य है। - भर्तृहरि </li>
<li> को लाभो गुणिसंगमः (लाभ क्या है? गुणियों का साथ) — भर्तृहरि </li>
<li> दान, भोग और नाश ये धन की तीन गतियाँ हैं। जो न देता है और न ही भोगता है, उसके धन की तृतीय गति (नाश) होती है। — भर्तृहरि </li>
<li> जब तक शरीर स्वस्थ है, इन्द्रियों की शक्ति क्षीण नहीं हुई तथा बुढ़ापा नहीं आया है, तब तक समझदार को अपने हित साध लेने चाहिए। - भर्तृहरि </li>
</ul></div>Himmat singhhttp://www.blogger.com/profile/11883720728789144629noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6286200041083451768.post-39056010269968672672012-02-27T21:53:00.000-08:002012-02-27T21:53:08.502-08:00रवींद्रनाथ ठाकुर के अनमोल वचन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><h2> <span class="mw-headline" id=".E0.A4.B0.E0.A4.B5.E0.A5.80.E0.A4.82.E0.A4.A6.E0.A5.8D.E0.A4.B0.E0.A4.A8.E0.A4.BE.E0.A4.A5_.E0.A4.A0.E0.A4.BE.E0.A4.95.E0.A5.81.E0.A4.B0">रवींद्रनाथ ठाकुर</span></h2><ul><li> कलाकार प्रकृति का प्रेमी है अत: वह उसका दास भी है और स्वामी भी। - रवींद्रनाथ ठाकुर </li>
<li> जल में मीन का मौन है, पृथ्वी पर पशुओं का कोलाहल और आकाश में पंछियों का संगीत पर मनुष्य में जल का मौन पृथ्वी का कोलाहल और आकाश का संगीत सबकुछ है। - रवींद्रनाथ ठाकुर </li>
<li> विश्वास वह पक्षी है जो प्रभात के पूर्व अंधकार में ही प्रकाश का अनुभव करता है और गाने लगता है। - रवींद्रनाथ ठाकुर </li>
<li> फूल चुन कर एकत्र करने के लिए मत ठहरो। आगे बढ़े चलो, तुम्हारे पथ में फूल निरंतर खिलते रहेंगे। - रवींद्रनाथ ठाकुर </li>
<li> समय परिवर्तन का धन है। परंतु घड़ी उसे केवल परिवर्तन के रूप में दिखाती है, धन के रूप में नहीं। - रवींद्रनाथ ठाकुर </li>
<li> जिस तरह घोंसला सोती हुई चिड़िया को आश्रय देता है उसी तरह मौन तुम्हारी वाणी को आश्रय देता है। - रवींद्रनाथ ठाकुर </li>
<li> ईश्वर बड़े-बड़े साम्राज्यों से ऊब उठता है लेकिन छोटे-छोटे पुष्पों से कभी खिन्न नहीं होता। - रवींद्रनाथ ठाकुर </li>
<li> मनुष्य का जीवन एक महानदी की भाँति है जो अपने बहाव द्वारा नवीन दिशाओं में राह बना लेती है। - रवींद्रनाथ ठाकुर </li>
<li> प्रत्येक बालक यह संदेश लेकर आता है कि ईश्वर अभी मनुष्यों से निराश नहीं हुआ है। - रवींद्रनाथ ठाकुर </li>
<li> यदि तुम जीवन से सूर्य के जाने पर रो पड़ोगे तो आँसू भरी आँखे सितारे कैसे देख सकेंगी? - रवींद्रनाथ ठाकुर </li>
<li> सबसे उत्तम बदला क्षमा करना है। - रवीन्द्रनाथ ठाकुर </li>
<li> अगर आप गलतियों को रोकने के लिये दरवाजे बन्द करते हैं तो सत्य भी बाहर ही रह जाएगा। - रवीन्द्रनाथ ठाकुर </li>
</ul><ul><li> चंद्रमा अपना प्रकाश संपूर्ण आकाश में फैलाता है परंतु अपना कलंक अपने ही पास रखता है। - रवींद्र </li>
<li> विश्वविद्यालय महापुरुषों के निर्माण के कारख़ाने हैं और अध्यापक उन्हें बनाने वाले कारीगर हैं। - रवींद्र </li>
<li> जो दीपक को अपने पीछे रखते हैं वे अपने मार्ग में अपनी ही छाया डालते हैं। - रवींद्र </li>
</ul></div>Himmat singhhttp://www.blogger.com/profile/11883720728789144629noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6286200041083451768.post-66618822375612518062012-02-27T21:51:00.000-08:002012-02-27T21:51:51.886-08:00हितोपदेश के अनमोल विचार<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><h2> <span class="mw-headline" id=".E0.A4.B9.E0.A4.BF.E0.A4.A4.E0.A5.8B.E0.A4.AA.E0.A4.A6.E0.A5.87.E0.A4.B6">हितोपदेश</span></h2><ul><li> विद्वत्ता अच्छे दिनों में आभूषण, विपत्ति में सहायक और बुढ़ापे में संचित धन है। - हितोपदेश </li>
<li> बिना कारण कलह कर बैठना मूर्ख का लक्षण हैं। इसलिए बुद्धिमत्ता इसी में है कि अपनी हानि सह ले लेकिन विवाद न करें। - हितोपदेश </li>
<li> ना तो कोई किसी का मित्र है ना ही शत्रु है। व्यवहार से ही मित्र या शत्रु बनते हैं। - हितोपदेश </li>
<li> लोभी को धन से, अभिमानी को विनम्रता से, मूर्ख को मनोरथ पूरा कर के, और पंडित को सच बोलकर वश में किया जाता है। - हितोपदेश </li>
<li> सभी लोगों के स्वभाव की ही परिक्षा की जाती है, गुणों की नहीं। सब गुणों की अपेक्षा स्वभाव ही सिर पर चढ़ा रहता है (क्योंकि वही सर्वोपरिहै)। - हितोपदेश </li>
<li> ज्ञानं भार: क्रियां बिना। आचरण के बिना ज्ञान केवल भार होता है। — हितोपदेश </li>
<li> मनुष्य के लिए निराशा के समान दूसरा पाप नहीं है। इसलिए मनुष्य को पापरूपिणी निराशा को समूल हटाकर आशावादी बनना चाहिए। - हितोपदेश </li>
</ul></div>Himmat singhhttp://www.blogger.com/profile/11883720728789144629noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6286200041083451768.post-1739261939449484212012-02-27T21:49:00.003-08:002012-02-27T21:49:30.275-08:00रामधारी सिंह दिनकर<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.B0.E0.A4.BE.E0.A4.AE.E0.A4.A7.E0.A4.BE.E0.A4.B0.E0.A5.80_.E0.A4.B8.E0.A4.BF.E0.A4.82.E0.A4.B9_.E0.A4.A6.E0.A4.BF.E0.A4.A8.E0.A4.95.E0.A4.B0">रामधारी सिंह दिनकर</span></h2>
<ul>
<li> कविता गाकर रिझाने के लिए नहीं समझ कर खो जाने के लिए है। - रामधारी सिंह दिनकर
</li>
<li> कविता वह सुरंग है जिसमें से गुज़र कर मनुष्य एक विश्व को छोड़ कर दूसरे विश्व में प्रवेश करता है। - रामधारी सिंह दिनकर
</li>
<li> दुष्टो का बल हिन्सा है, शासको का बल शक्ती है, स्त्रीयों का बल सेवा है और गुणवानो का बल क्षमा है। - रामधारी सिंह दिनकर
</li>
</ul>
</div>Himmat singhhttp://www.blogger.com/profile/11883720728789144629noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6286200041083451768.post-16760349045527323222012-02-27T21:45:00.000-08:002012-02-27T21:45:57.985-08:00चाणक्य अनमोल वचन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><h2> <span class="mw-headline" id=".E0.A4.9A.E0.A4.BE.E0.A4.A3.E0.A4.95.E0.A5.8D.E0.A4.AF">चाणक्य</span></h2><ul><li> मेहनत करने से दरिद्रता नहीं रहती, धर्म करने से पाप नहीं रहता, मौन रहने से कलह नहीं होता और जागते रहने से भय नहीं होता। - चाणक्य </li>
<li> आँख के अंधे को दुनिया नहीं दिखती, काम के अंधे को विवेक नहीं दिखता, मद के अंधे को अपने से श्रेष्ठ नहीं दिखता और स्वार्थी को कहीं भी दोष नहीं दिखता। - चाणक्य </li>
<li> प्रलय होने पर समुद्र भी अपनी मर्यादा को छोड़ देते हैं लेकिन सज्जन लोग महाविपत्ति में भी मर्यादा को नहीं छोड़ते। - चाणक्य </li>
<li> वही पुत्र हैं जो पितृ-भक्त है, वही पिता हैं जो ठीक से पालन करता हैं, वही मित्र है जिस पर विश्वास किया जा सके और वही देश है जहाँ जीविका हो। - चाणक्य </li>
<li> तृण से हल्की रूई होती है और रूई से भी हल्का याचक। हवा इस डर से उसे नहीं उड़ाती कि कहीं उससे भी कुछ न माँग ले। - चाणक्य </li>
<li> धन के लोभी के पास सच्चाई नहीं रहती और व्यभिचारी के पास पवित्रता नहीं रहती। - चाणक्य </li>
<li> पुरुषार्थ से दरिद्रता का नाश होता है, जप से पाप दूर होता है, मौन से कलह की उत्पत्ति नहीं होती और सजगता से भय नहीं होता। - चाणक्य </li>
<li> प्रजा के सुख में ही राजा का सुख और प्रजाओं के हित में ही राजा को अपना हित समझना चाहिए। आत्मप्रियता में राजा का हित नहीं है, प्रजाओं की प्रियता में ही राजा का हित है। - चाणक्य </li>
<li> मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु उसका अज्ञान है। – चाणक्य </li>
<li> कुबेर भी यदि आय से अधिक व्यय करे तो निर्धन हो जाता है। – चाणक्य </li>
<li> आपदर्थे धनं रक्षेद दारान रक्षेद धनैरपि! आत्मान सतत रक्षेद दारैरपि धनैरपि! (विपत्ति के समय काम आने वाले धन की रक्षा करें। धन से स्त्री की रक्षा करें और अपनी रक्षा धन और स्त्री से सदा करें।) - चाणक्य </li>
<li> संसार रूपी कटु-वृक्ष के केवल दो फल ही अमृत के समान हैं; पहला, सुभाषितों का रसास्वाद और दूसरा, अच्छे लोगों की संगति। — चाणक्य </li>
<li> जिसके पास बुद्धि है, उसके पास बल है। बुद्धिहीन के पास बल कहां? - चाणक्य </li>
<li> हमें न अतीत पर कुढ़ना चाहिए और न ही हमें भविष्य के बारे में चिंतित होना चाहिए; विवेकी व्यक्ति केवल वर्तमान क्षण में ही जीते हैं। - चाणक्य </li>
<li> व्यक्ति कर्मों से महान बनता है, जन्म से नहीं। - चाणक्य </li>
<li> एक बार काम शुरू कर लें तो असफलता का डर नहीं रखें और न ही काम को छोड़ें। निष्ठा से काम करने वाले ही सबसे सुखी हैं। - चाणक्य </li>
<li> संसार एक कड़वा वृक्ष है, इसके दो फल ही अमृत जैसे मीठे होते हैं - एक मधुर वाणी और दूसरी सज्जनों की संगति। - चाणक्य </li>
<li> उत्तमता गुणों से आती है, ऊंचे आसन पर बैठ जाने से नहीं, महल के शिखर पर बैठने से कौआ गरूड़ नहीं हो जाता। - चाणक्य नीति </li>
<li> गुणों से ही मानव की पहचान होती है, ऊंचे सिंहासन पर बैठने से नहीं। महल के उच्च शिखर पर बैठने के बावजूद कौवे का गरूड़ होना असंभव है। - चाणक्य </li>
<li> जो वर्तमान में कमाया हुआ धन जोड़ता नहीं, उसे भविष्य में पछताना पड़ता है। - चाणक्य </li>
</ul></div>Himmat singhhttp://www.blogger.com/profile/11883720728789144629noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6286200041083451768.post-53726019365266146052012-02-27T21:36:00.002-08:002012-02-27T21:36:19.626-08:00प्रेमचंद<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<ul>
<li> कुल की प्रतिष्ठा भी विनम्रता और सदव्यवहार से होती है, हेकड़ी और रुआब दिखाने से नहीं। - प्रेमचंद
</li>
<li> मन एक भीरु शत्रु है जो सदैव पीठ के पीछे से वार करता है। - प्रेमचंद
</li>
<li> चापलूसी का ज़हरीला प्याला आपको तब तक नुकसान नहीं पहुँचा सकता जब तक कि आपके कान उसे अमृत समझ कर पी न जाएँ। - प्रेमचंद
</li>
<li> महान व्यक्ति महत्वाकांक्षा के प्रेम से बहुत अधिक आकर्षित होते हैं। - प्रेमचंद
</li>
<li> जिस साहित्य से हमारी सुरुचि न जागे, आध्यात्मिक और मानसिक
तृप्ति न मिले, हममें गति और शक्ति न पैदा हो, हमारा सौंदर्य प्रेम न जागृत
हो, जो हममें संकल्प और कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करने की सच्ची दृढ़ता न
उत्पन्न करे, वह हमारे लिए बेकार है वह साहित्य कहलाने का अधिकारी नहीं
है। - प्रेमचंद
</li>
<li> आकाश में उड़ने वाले पंछी को भी अपने घर की याद आती है। - प्रेमचंद
</li>
<li> जिस प्रकार नेत्रहीन के लिए दर्पण बेकार है उसी प्रकार बुद्धिहीन के लिए विद्या बेकार है। - प्रेमचंद
</li>
<li> न्याय और नीति लक्ष्मी के खिलौने हैं, वह जैसे चाहती है नचाती है। - प्रेमचंद
</li>
<li> युवावस्था आवेशमय होती है, वह क्रोध से आग हो जाती है तो करुणा से पानी भी। - प्रेमचंद
</li>
<li> अपनी भूल अपने ही हाथों से सुधर जाए तो यह उससे कहीं अच्छा है कि कोई दूसरा उसे सुधारे। - प्रेमचंद
</li>
<li> देश का उद्धार विलासियों द्वारा नहीं हो सकता। उसके लिए सच्चा त्यागी होना आवश्यक है। - प्रेमचंद
</li>
<li> मासिक वेतन पूरनमासी का चाँद है जो एक दिन दिखाई देता है और घटते घटते लुप्त हो जाता है। - प्रेमचंद
</li>
<li> क्रोध में मनुष्य अपने मन की बात नहीं कहता, वह केवल दूसरों का दिल दुखाना चाहता है। - प्रेमचंद
</li>
<li> अनुराग, यौवन, रूप या धन से उत्पन्न नहीं होता। अनुराग, अनुराग से उत्पन्न होता है। - प्रेमचंद
</li>
<li> दुखियारों को हमदर्दी के आँसू भी कम प्यारे नहीं होते। - प्रेमचंद
</li>
<li> विजयी व्यक्ति स्वभाव से, बहिर्मुखी होता है। पराजय व्यक्ति को अन्तर्मुखी बनाती है। - प्रेमचंद
</li>
<li> अतीत चाहे जैसा हो, उसकी स्मृतियाँ प्रायः सुखद होती हैं। - प्रेमचंद
</li>
<li> दुखियारों को हमदर्दी के आंसू भी कम प्यारे नहीं होते। - प्रेमचंद
</li>
<li> मै एक मजदूर हूँ। जिस दिन कुछ लिख न लूँ, उस दिन मुझे रोटी खाने का कोई हक नहीं। - प्रेमचंद
</li>
<li> निराशा सम्भव को असम्भव बना देती है। — प्रेमचन्द
</li>
<li> बल की शिकायतें सब सुनते हैं, निर्बल की फरियाद कोई नहीं सुनता। - प्रेमचन्द
</li>
<li> दौलत से आदमी को जो सम्मान मिलता है, वह उसका नहीं, उसकी दौलत का सम्मान है। - प्रेमचन्द
</li>
<li> संसार के सारे नाते स्नेह के नाते हैं, जहां स्नेह नहीं वहां कुछ नहीं है। - प्रेमचन्द
</li>
<li> जिस बंदे को पेट भर रोटी नहीं मिलती, उसके लिए मर्यादा और इज्जत ढोंग है। - प्रेमचंद
</li>
<li> खाने और सोने का नाम जीवन नहीं है, जीवन नाम है, आगे बढ़ते रहने की लगन का। - मुंशी प्रेमचंद
</li>
<li> जीवन की दुर्घटनाओं में अक्सर बड़े महत्व के नैतिक पहलू छिपे हुए होते हैं! - प्रेमचंद
</li>
<li> नमस्कार करने वाला व्यक्ति विनम्रता को ग्रहण करता है और समाज में सभी के प्रेम का पात्र बन जाता है। - प्रेमचंद
</li>
<li> अच्छे कामों की सिद्धि में बड़ी देर लगती है, पर बुरे कामों की सिद्धि में यह बात नहीं। - प्रेमचंद
</li>
</ul>
</div>Himmat singhhttp://www.blogger.com/profile/11883720728789144629noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6286200041083451768.post-74129008779712283142012-02-27T21:35:00.001-08:002012-02-27T21:35:22.438-08:00विनोबा भावे<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<ul>
<li> मनुष्य जितना ज्ञान में घुल गया हो उतना ही कर्म के रंग में रंग जाता है। - विनोबा
</li>
<li> जिस राष्ट्र में चरित्रशीलता नहीं है उसमें कोई योजना काम नहीं कर सकती। - विनोबा
</li>
<li> ऐसे देश को छोड़ देना चाहिए जहाँ न आदर है, न जीविका, न मित्र, न परिवार और न ही ज्ञान की आशा। - विनोबा
</li>
<li> स्वतंत्र वही हो सकता है जो अपना काम अपने आप कर लेता है। - विनोबा
</li>
<li> विचारकों को जो चीज़ आज स्पष्ट दीखती है दुनिया उस पर कल अमल करती है। - विनोबा
</li>
<li> केवल अंग्रेज़ी सीखने में जितना श्रम करना पड़ता है उतने श्रम में भारत की सभी भाषाएँ सीखी जा सकती हैं। - विनोबा
</li>
<li> कलियुग में रहना है या सतयुग में यह तुम स्वयं चुनो, तुम्हारा युग तुम्हारे पास है। - विनोबा
</li>
<li> प्रतिभा का अर्थ है बुद्धि में नई कोपलें फूटते रहना। नई कल्पना,
नया उत्साह, नई खोज और नई स्फूर्ति प्रतिभा के लक्षण हैं। - विनोबा
</li>
<li> महान विचार ही कार्य रूप में परिणत होकर महान कार्य बनते हैं। - विनोबा
</li>
<li> जबतक कष्ट सहने की तैयारी नहीं होती तब तक लाभ दिखाई नहीं देता। लाभ की इमारत कष्ट की धूप में ही बनती है। - विनोबा
</li>
<li> द्वेष बुद्धि को हम द्वेष से नहीं मिटा सकते, प्रेम की शक्ति ही उसे मिटा सकती है। - विनोबा
</li>
<li> जिसने ज्ञान को आचरण में उतार लिया, उसने ईश्वर को मूर्तिमान कर लिया। – विनोबा
</li>
<li> हिन्दुस्तान का आदमी बैल तो पाना चाहता है लेकिन गाय की सेवा
करना नहीं चाहता। वह उसे धार्मिक दृष्टि से पूजन का स्वांग रचता है लेकिन
दूध के लिये तो भैंस की ही कद्र करता है। हिन्दुस्तान के लोग चाहते हैं कि
उनकी माता तो रहे भैंस और पिता हो बैल। योजना तो ठीक है लेकिन वह भगवान को
मंजूर नहीं है। - विनोबा
</li>
<li> मौन और एकान्त, आत्मा के सर्वोत्तम मित्र हैं। — विनोबा भावे
</li>
<li> हिन्दुस्तान की एकता के लिये हिन्दी भाषा जितना काम देगी, उससे बहुत अधिक काम देवनागरी लिपि दे सकती है। — आचार्य विनबा भावे
</li>
<li> गरीब वह नहीं जिसके पास कम है, बल्कि धनवान होते हुए भी जिसकी इच्छा कम नहीं हुई है, वह सबसे अधिक गरीब है। - विनोबा भावे
</li>
<li> सिर्फ धन कम रहने से कोई गरीब नहीं होता, यदि कोई व्यक्ति धनवान है और इसकी इच्छाएं ढेरों हैं तो वही सबसे गरीब है। - विनोबा भावे
</li>
<li> सेवा के लिये पैसे की जरूरत नहीं होती जरूरत है अपना संकुचित जीवन छोड़ने की, गरीबों से एकरूप होने की। - विनोबा भावे
</li>
<li> जिस त्याग से अभिमान उत्पन्न होता है, वह त्याग नहीं, त्याग
से शांति मिलनी चाहिए, अंतत: अभिमान का त्याग ही सच्चा त्याग है। -
विनोबा भावे
</li>
</ul>
</div>Himmat singhhttp://www.blogger.com/profile/11883720728789144629noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6286200041083451768.post-86734140143382040432012-02-27T21:33:00.000-08:002012-02-27T21:33:05.912-08:00मुक्ता के अनमोल वचन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.AE.E0.A5.81.E0.A4.95.E0.A5.8D.E0.A4.A4.E0.A4.BE">मुक्ता</span></h2>
<ul>
<li> रंग में वह जादू है जो रंगने वाले, भीगने वाले और देखने वाले तीनों के मन को विभोर कर देता है। - मुक्ता
</li>
<li> लगन और योग्यता एक साथ मिलें तो निश्चय ही एक अद्वितीय रचना का जन्म होता है। - मुक्ता
</li>
<li> जिस तरह रंग सादगी को निखार देते हैं उसी तरह सादगी भी रंगों को निखार देती है। सहयोग सफलता का सर्वश्रेष्ठ उपाय है। - मुक्ता
</li>
<li> विजय गर्व और प्रतिष्ठा के साथ आती है पर यदि उसकी रक्षा पौरुष के साथ न की जाय तो अपमान का ज़हर पिला कर चली जाती है। - मुक्ता
</li>
<li> रंगों की उमंग खुशी तभी देती है जब उसमें उज्ज्वल विचारों की अबरक़ चमचमा रही हो। - मुक्ता
</li>
<li> सतत परिश्रम, सुकर्म और निरंतर सावधानी से ही स्वतंत्रता का मूल्य चुकाया जा सकता है। - मुक्ता
</li>
<li> ऐश्वर्य के मद से मस्त व्यक्ति ऐश्वर्य के भ्रष्ट होने तक प्रकाश में नहीं आता। - मुक्ता
</li>
<li> प्रतिभा महान कार्यों का आरंभ करती है किंतु पूरा उनको परिश्रम ही करता है। - मुक्ता
</li>
<li> रंग इसलिए हैं कि जीवन की एकरसता दूर हो सके और इसलिए भी कि हम सादगी का मूल्य पहचान सकें। - मुक्ता
</li>
<li> जिस तरह पहली बारिश मौसम का मिजाज बदल देती है उसी प्रकार उदारता नाराज़गी का मौसम बदल देती है - मुक्ता
</li>
<li> अपने देश की भाषा और संस्कृति के समुचित ज्ञान के बिना देशप्रेम की बातें करने वाले केवल स्वार्थी होते हैं। - मुक्ता
</li>
<li> मिथ्या लांछन का सबसे अच्छा उत्तर है शांत रहकर धैर्यपूर्वक अपने काम में निरंतर लगे रहना। - मुक्ता
</li>
<li> जलाने की लकड़ी ही होलिका है जब वह जलती है तब प्रह्लाद की प्राप्ति होती है। प्रह्लाद जो आह्लाद का ही विशेष रुप है। - मुक्ता
</li>
<li> कुछ प्रलोभन परिश्रमी व्यक्ति को हो सकते हैं, किंतु सारे प्रलोभन तो केवल आलसी व्यक्ति पर ही आक्रमण करते हैं। - मुक्ता
</li>
<li> महापुरुष वे ही होते हैं जो विभिन्न परिस्थितियों के रंगों में
रंगे जाने के बाद भी अपने व्यक्तित्व की पहचान को खोने नहीं देते। -
मुक्ता
</li>
<li> रंगों का स्वभाव है बिखरना और मनुष्य का स्वभाव है उन्हें समेटकर अपने जीवन को रंगीन बनाना। - मुक्ता
</li>
<li> आतंक का जन्म असंतोष से होता है असमानता से इसे हवा मिलती है और यह अपनी आग में हज़ारों को लेकर जल मरता है - मुक्ता
</li>
<li> विज्ञान के चमत्कार हमारा जीवन सहज बनाते हैं पर प्रकृति के
चमत्कार धूप, पानी और वनस्पति के बिना तो जीवन का अस्तित्व ही संभव नहीं। -
मुक्ता
</li>
<li> बिना ग्रंथ के ईश्वर मौन है, न्याय निद्रित है, विज्ञान स्तब्ध है और सभी वस्तुएं पूर्ण अंधकार में हैं। - मुक्ता
</li>
</ul>
</div>Himmat singhhttp://www.blogger.com/profile/11883720728789144629noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6286200041083451768.post-44860988697775876072012-02-27T21:28:00.000-08:002012-02-27T21:28:42.987-08:00अज्ञात<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><h2> <span class="mw-headline" id=".E0.A4.85.E0.A4.9C.E0.A5.8D.E0.A4.9E.E0.A4.BE.E0.A4.A4">अज्ञात</span></h2><ul><li> आपके पास जितना समय अभी है उससे अधिक समय कभी नहीं होगा। - अज्ञात </li>
<li> आपको लोग देखते पहले, और सुनते बाद में हैं। - अज्ञात </li>
<li> अगर आप को सफर आसान लगने लगे तो हो सकता है आप उतार में जा रहे हों। - अज्ञात </li>
<li> आपकी मनोवृत्ति ही आपकी महानता को निर्धारित करती है। - अज्ञात </li>
<li> अपनी खराब आदतों पर जीत हासिल करने के समान जीवन में कोई और आनन्द नहीं होता है। - अज्ञात </li>
<li> आप अपने भगवान के सामर्थ्य को अपनी चिंताओं की सूची के आकार को देखकर बता सकते हैं। जितनी लंबी सूची होगी, उतना ही आपके भगवान का सामर्थ्य कम होगा। - अज्ञात </li>
<li> अपनी सोच को कैसे बेहतर बनाया जाए, यह सीखने से उत्कृष्ट कुछ नहीं है। - अज्ञात </li>
<li> आपकी प्रतिभा भगवान का आपको दिया हुआ उपहार है, आप जो कुछ इसके साथ करते हैं, वह आप भगवान को उपहार स्वरूप लौटाते हैं। - अज्ञात </li>
<li> अपने सकारात्मक विचारों को ईमानदारी और बिना थके हुए कार्यों में लगाए और आपको सफलता के लिए प्रयास नहीं करना पड़ेगा, अपितु अपरिमित सफलता आपके कदमों में होंगी। - अज्ञात </li>
<li> अपनी वाणी को जितना हो सके निर्मल और पवित्र रखें, क्योंकि संभव है कि कल आपको उन्हें वापस लेना पड़ सकता है। - अज्ञात </li>
<li> आपके जीवन का नियंत्रण केन्द्र आपका अपना रवैय्या है। - अज्ञात </li>
<li> आपकी कड़ी मेहनत बेकार नहीं जाती है। - अज्ञात </li>
<li> आपको कुव्यसनों की कीमत दो बार चुकानी पड़ती है - एक बार जब आप उनके प्रभाव में आते हैं, तथा दूसरी जब वह आपको प्रभावित करती हैं। - अज्ञात </li>
<li> आप खेत में बुवाई केवल सोचने भर से नहीं कर सकते हैं. (केवल सोचने से कुछ उपलब्धि प्राप्त नहीं होती है)। - अज्ञात </li>
<li> अनुभव की पाठशाला में जो पाठ सीखे जाते हैं, वे पुस्तकों और विश्वविद्यालयों में नहीं मिलते। - अज्ञात </li>
<li> अनुभव-प्राप्ति के लिए काफ़ी मूल्य चुकाना पड़ सकता है पर उससे जो शिक्षा मिलती है वह और कहीं नहीं मिलती। - अज्ञात </li>
<li> अधिकतर लोग नए साल की प्रतीक्षा केवल इसलिए करते हैं कि पुरानी आदतें नए सिरे से फिर शुरू की जा सकें। - अज्ञात </li>
<li> अधिक अनुभव, अधिक सहनशीलता और अधिक अध्ययन यही विद्वत्ता के तीन महास्तंभ हैं। - अज्ञात </li>
<li> आत्महत्या, एक अस्थायी समस्या का स्थायी समाधान है। — अज्ञात </li>
<li> आंतरिक सौन्दर्य का आह्वान करना कठिन काम है, सौन्दर्य की अपनी भाषा होती है, ऐसी भाषा जिसमें न शब्द होते हैं न आवाज। - अज्ञात </li>
</ul><ul><li> जीवन निर्वाह के लिए कमाने में इतने व्यस्त न हो जाएँ कि जीवन जीना भूल जाएँ। - अज्ञात </li>
<li> जब तक अपनी हार को दब्बूपने से स्वीकार नहीं कर लेते, आप हारने के लिए नहीं बने हैं। - अज्ञात </li>
<li> जीवन में बुरी आदत पर विजय प्राप्त करने की तुलना में कोई इससे बड़ा आनन्द नहीं हो सकता है। - अज्ञात </li>
<li> जिस प्रकार थोड़ी-सी वायु से आग भड़क उठती है, उसी प्रकार थोड़ी-सी मेहनत से किस्मत चमक उठती है। - अज्ञात </li>
<li> जिस काम की तुम कल्पना करते हो उसमें जुट जाओ। साहस में प्रतिभा, शक्ति और जादू है। साहस से काम शुरू करो पूरा अवश्य होगा। - अज्ञात </li>
<li> जो मनुष्य एक पाठशाला खोलता है वह एक जेलखाना बंद करता है। - अज्ञात </li>
<li> जिसने अकेले रह कर अकेलेपन को जीता उसने सबकुछ जीता। - अज्ञात </li>
<li> जिस काम की तुम कल्पना करते हो, उसमें जुट जाओ, साहस में प्रतिभा, शक्ति और जादू है, साहस से काम शुरू करो पूरा अवश्य होगा। - अज्ञात </li>
<li> जब भगवान आपकी समस्याएं हल करते हैं, तब आपको उन पर विश्वास रहता है और जब, भगवान आपकी समस्याएं हल नहीं करते तब, उन्हें आप पर विश्वास रहता है। - अज्ञात </li>
<li> जो भारी कोलाहल में संगीत को सुन सकता है, वह महान उपलब्धि को प्राप्त करता है। - अज्ञात </li>
<li> जाति, धर्म अलग-अलग हो सकते हैं, और इबादत करने के तरीके भी भिन्न हो सकते हैं, लेकिन ईश्वर एक है। - अज्ञात </li>
<li> जोखिम उठाएं: यदि आप जीत जाते हैं, तो आप प्रसन्न होंगे; यदि आप हार जाते हैं, तो आप समझदार बन जाएंगे। - अज्ञात </li>
<li> जब दुनिया यह कहती है कि हार मान लो, तो आशा धीरे से कान में कहती है कि एक बार फिर से प्रयास करो। - अज्ञात </li>
</ul><ul><li> हथोड़ा कभी कभी अपना निशाना चूक भी जाता है; लेकिन फूलों का गुलदस्ता कभी नहीं। - अज्ञात </li>
<li> हँसमुख व्यक्ति वह फुहार है जिसके छींटे सबके मन को ठंडा करते हैं। - अज्ञात </li>
<li> हँसते हुए जो समय आप व्यतीत करते हैं, वह ईश्वर के साथ व्यतीत किया समय है। — अज्ञात </li>
<li> हे भगवान! मुझे धैर्य दो, और ये काम अभी करो। — अज्ञात </li>
<li> हमेशा समग्र प्रयास करें, तब भी जब परिस्थितियां आपके अनुकूल न हों। - अज्ञात </li>
</ul><ul><li> ईश्वर बोझ देता है, और कंधे भी। - अज्ञात </li>
<li> इस राष्ट्र को ऐसे नेताओं की आवश्यकता है जो जानते हैं कि इस देश की क्या आवश्यकताएँ हैं। - अज्ञात </li>
<li> ईर्ष्या या घृणा के के विचार मन में प्रवेश होते ही खुशी गायब हो जाती है, प्रेम व शुभ-भावना युक्त विचारों से उदासी दूर हो जाती है। - अज्ञात </li>
</ul><ul><li> करुणा, एक भाषा जिसे बधिर सुन सकते हैं और नेत्रहीन देख सकते हैं। - अज्ञात </li>
<li> कुछ लोग सफलता के सपने देखते हैं, जबकि अन्य व्यक्ति जागते हैं और इसके लिए कड़ी मेहनत करते हैं। - अज्ञात </li>
<li> किताबें ऐसी शिक्षक हैं जो बिना कष्ट दिए, बिना आलोचना किए और बिना परीक्षा लिए हमें शिक्षा देती हैं। - अज्ञात </li>
<li> क्रोध ऐसी आँधी है जो विवेक को नष्ट कर देती है। - अज्ञात </li>
<li> किताबें समय के महासागर में जलदीप की तरह रास्ता दिखाती हैं। - अज्ञात </li>
<li> कविता का बाना पहन कर सत्य और भी चमक उठता है। - अज्ञात </li>
<li> किसी कृतज्ञता को तत्काल चुकाने, का प्रयत्न करना एक प्रकार की, कृतज्ञता ही है। - अज्ञात </li>
<li> क्रोध सदैव मूर्खता से प्रारंभ होता है और पश्चाताप पर समाप्त। — अज्ञात </li>
<li> काम करने में ज़्यादा श्रम नहीं लगता, लेकिन यह निर्णय करने में ज़्यादा श्रम करना पड़ता है कि क्या करना चाहिए। - अज्ञात </li>
<li> कुछ भी ऐसा न करें जिसे आप एक दिन भूलना चाहें. भगवान आपको माफ कर सकता है, लेकिन आप भूल जाएं, वह ऐसा नहीं कर सकते हैं। - अज्ञात </li>
</ul><ul><li> मुस्कुराहट, आपकी ख़ूबसूरती में सुधार करने का एक सस्ता तरीका है। - अज्ञात </li>
<li> मिलने पर मित्र का आदर करो, पीठ पीछे प्रशंसा करो और आवश्यकता के समय उसकी मदद करो। - अज्ञात </li>
<li> मुस्कान पाने वाला मालामाल हो जाता है पर देने वाला दरिद्र नहीं होता। - अज्ञात </li>
<li> मुस्कान थके हुए के लिए विश्राम है, उदास के लिए दिन का प्रकाश है तथा कष्ट के लिए प्रकृति का सर्वोत्तम उपहार है। - अज्ञात </li>
<li> मनुष्य मन की शक्तियों के बादशाह हैं। संसार की समस्त शक्तियाँ उनके सामने नतमस्तक हैं। - अज्ञात </li>
<li> महत्व इस बात का नहीं है आप अपने बच्चों के लिये क्या छोड़कर जाते हैं महत्व तो इस बात का है कि आप इन्हें कैसा बना कर जाते हैं। - अज्ञात </li>
<li> मिलने पर मित्र का आदर करो, पीठ पीछे प्रशंसा करो और आवश्यकता के समय उसकी मदद करो। - अज्ञात </li>
<li> मछली पकड़ने तो हर रोज जाया जा सकता है, लेकिन हर रोज मछली पकड़ में आ जाए ऐसा नहीं होता है। - अज्ञात </li>
</ul><ul><li> स्वयं पर मूक विजय से ही वास्तविक महानता का उदय होता है। - अज्ञात </li>
<li> स्व प्रेरित होकर कार्य करना किसी बुद्धिमान व्यक्ति का सबसे मजबूत गुण होता है। - अज्ञात </li>
<li> साफ़ सुथरे सादे परिधान में ऐसा यौवन होता है जिसमें अधिक उम्र छिप जाती है। - अज्ञात </li>
<li> सबसे अधिक ज्ञानी वही है जो अपनी कमियों को समझकर उनका सुधार कर सकता हो। - अज्ञात </li>
<li> सौभाग्य वीर से डरता है और कायर को डराता है। - अज्ञात </li>
<li> समझौता एक अच्छा छाता भले बन सकता है लेकिन अच्छी छत नहीं। - अज्ञात </li>
<li> सौ बरस जीने के लिए उन सभी सुखों को छोड़ना होता है जिन सुखों के लिए हम सौ बरस जीना चाहते हैं। - अज्ञात </li>
<li> सपना वो नहीं जो नींद में आए, सपने वे हैं जिसे पूरा किए बिना नींद न आए। - अज्ञात </li>
<li> सांप के दांत में विष रहता है, मक्खी के सर में, बिच्छूं की पूंछ में, किन्तु दुर्जनों के पूरे शरीर में विष रहता है। - अज्ञात </li>
<li> समय और समुद्र की लहरें किसी का इंतज़ार नहीं करतीं। – अज्ञात </li>
<li> समय हमेशा कड़ी मेहनत करने वालों का मित्र रहा है। - अज्ञात </li>
<li> समय तब तक दुश्मन नहीं बनता जब तक आप इसे व्यर्थ गंवाने का प्रयास नहीं करते हैं। - अज्ञात </li>
</ul><ul><li> यदि आप अमीर होने की अनुभूति चाहते हैं तो उन वस्तुओं पर विचार करें जो जिन्हें पैसे से नहीं ख़रीदा जा सकता है। - अज्ञात </li>
<li> यदि आप मानसिक शांति के बदले में साम्राज्य भी प्राप्त करते हैं तो भी आप पराजित ही हैं। - अज्ञात </li>
<li> यदि आपने अपने जीवन की महानतम सफलता को प्राप्त करने की प्रक्रिया में किसी के दिल को ठेस पहुंचाई हैं तो आपको स्वयं को सर्वाधिक असफल व्यक्ति मानना चाहिए। - अज्ञात </li>
<li> यदि आवश्यकता आविष्कार की जननी (माता) है, तो असन्तोष विकास का जनक (पिता) है। — अज्ञात </li>
<li> यदि बुद्धिमान हो, तो हँसो। — अज्ञात </li>
<li> यदि आपके जीवन में असफलताएं नहीं हैं, तो आप पर्याप्त जोखिम नहीं उठा रहे हैं। - अज्ञात </li>
</ul><ul><li> पुरुष से नारी अधिक बुद्धिमती होती है, क्योंकि वह जानती कम है पर समझती अधिक है। - अज्ञात </li>
<li> प्रतिध्वनि से किसी मौलिकता की आशा मत करो। - अज्ञात </li>
<li> प्रकृति, समय और धैर्य ये तीन हर दर्द की दवा हैं। - अज्ञात </li>
<li> प्रसिद्ध होने का यह एक दंड है कि मनुष्य को निरंतर उन्नतिशील बने रहना पड़ता है। - अज्ञात </li>
</ul><ul><li> वास्तविक महानता की उत्पत्ति स्वयं पर खामोश विजय से होती है। - अज्ञात </li>
<li> विश्वास हृदय की वह कलम है जो स्वर्गीय वस्तुओं को चित्रित करती है। - अज्ञात </li>
<li> वे ही विजयी हो सकते हैं जिनमें विश्वास है कि वे विजयी होंगे। - अज्ञात </li>
<li> विवेक जीवन का नमक है और कल्पना उसकी मिठास। एक जीवन को सुरक्षित रखता है और दूसरा उसे मधुर बनाता है। - अज्ञात </li>
<li> विफलता नहीं, बल्कि दोयम दर्जे का लक्ष्य एक अपराध है। - अज्ञात </li>
</ul><ul><li> शरीर के मामले में जो स्थान साबुन का है, वही आत्मा के सन्दर्भ में आंसू का है। - अज्ञात </li>
<li> शेष ऋण, शेष अग्नि, तथा शेष रोग पुन: पुन: बढ़ते हैं, अत: इन्हें शेष नहीं छोड़ना चाहिये। - अज्ञात </li>
<li> शुभारम्भ, आधा खतम। - अज्ञात </li>
<li> शारीरिक वीरता एक पाशविक प्रवृत्ति है। मनुष्य की असली वीरता तो मानसिक और नैतिक होती है। - अज्ञात </li>
<li> शब्द पत्तियों की तरह हैं जब वे ज़्यादा होते हैं तो अर्थ के फल दिखाई नहीं देते। - अज्ञात </li>
</ul><ul><li> डर में जीना आधा जीवित रहने जैसा है। - अज्ञात </li>
<li> डूबते को तारना ही अच्छे इंसान का कर्तव्य होता है। - अज्ञात </li>
<li> डर से भागने की बजाय अपने सपनों को साकार करने के लिए हमेशा प्रतिबद्ध रहें। - अज्ञात </li>
</ul><ul><li> धमनियों की कठोरता की तुलना में दिलों की कठोरता से लोग जल्दी बूढ़े होते हैं। - अज्ञात </li>
<li> धैर्यवान व्यक्ति ही समय पर विजय पाता है और असंयमी व्यक्ति अपने स्वभाव के कारण सब कुछ खो देता है। - अज्ञात </li>
</ul><ul><li> दरिद्र व्यक्ति कुछ वस्तुएँ चाहता है, विलासी बहुत-सी और लालची सभी वस्तुएँ चाहता है। - अज्ञात </li>
<li> दिमाग जब बडे-बडे विचार सोचने के अनुरूप बडा हो जाता है, तो पुनः अपने मूल आकार में नहीं लौटता। — अज्ञात </li>
</ul><ul><li> एकता का किला सबसे सुरक्षित होता है। न वह टूटता है और न उसमें रहने वाला कभी दुखी होता है। - अज्ञात </li>
<li> एकता का किला सबसे सुदृढ़ होता है। उसके भीतर रह कर कोई भी प्राणी असुरक्षा अनुभव नहीं करता। - अज्ञात </li>
<li> ऐसी अनेक घटनाएं हैं जो हम नहीं चाहते कि हों, लेकिन वे घटित होती हैं, ऐसी चीजें हैँ जो हम नहीं जानना चाहते, लेकिन वह सीखनी पड़ती हैं, तथा ऐसे लोग होते हैं जिनके बिना हम जिन्दा नहीं रहना चाहते, लेकिन वह हम से बिछुड़ जाते हैं. यह प्रकृति का स्वभाव है। - अज्ञात </li>
</ul><ul><li> ख़ाली बैठना दुनिया में सबसे थकाने वाला काम है क्योंकि सर्वस्व त्याग देना और आराम करना असंभव है। - अज्ञात </li>
<li> खुशी केवल उन्हीं लोगों को प्राप्त होती है जो दूसरों को खुश करने में प्रयासरत रहते हैं। - अज्ञात </li>
</ul><ul><li> भाग्य के भरोसे बैठे रहने पर भाग्य सोया रहता है पर हिम्मत बाँध कर खड़े होने पर भाग्य भी उठ खड़ा होता है। - अज्ञात </li>
<li> भगवान में विश्वास न रखने वाले व्यक्ति के लिए, मृत्यु एक अंत हैं; लेकिन विश्वास करने वाले के लिए यह शुरुआत है। - अज्ञात </li>
</ul><ul><li> निरंहकारिता से सेवा की कीमत बढ़ती है और अहंकार से घटती है। - अज्ञात </li>
<li> निडरता से डर को भी डर लगता है। - अज्ञात </li>
</ul><ul><li> बिना ग्रंथ के ईश्वर मौन है, न्याय निद्रित है, विज्ञान स्तब्ध है और सभी वस्तुएँ पूर्ण अंधकार में हैं। - अज्ञात </li>
<li> चींटी से परिश्रम करना सीखें। — अज्ञात </li>
<li> फल के आने से वृक्ष झुक जाते हैं, वर्षा के समय बादल झुक जाते हैं, सम्पत्ति रहकर भी सज्जन झुक जाते हैं, परोपकारी का यही स्वभाव होता है। - अज्ञात </li>
<li> उड़ने की अपेक्षा जब हम झुकते हैं तब विवेक के अधिक निकट होते हैं। - अज्ञात </li>
<li> रुकावटें वे भयावह वस्तुएं हैं जो आप उस समय देखते हैं जब आप अपने लक्ष्य से ध्यान हटा लेते हैं। - अज्ञात </li>
</ul></div>Himmat singhhttp://www.blogger.com/profile/11883720728789144629noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-6286200041083451768.post-12845188695565276682012-02-27T20:52:00.002-08:002012-02-27T20:57:31.063-08:00महान विचारो का संग्रह 1<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<table style="border-radius: 5px; border: 1px solid #a7d7f9; margin: 0px; padding: 0px; text-align: center;"><tbody>
<tr><td><br /></td>
<td><br /></td>
<td><br /></td>
<td><br /></td>
<td><br /></td>
<td><br /></td>
<td><br /></td>
<td><br /></td>
<td><br /></td>
<td><br /></td>
<td><br /></td>
<td><br /></td>
<td><br /></td>
<td><br /></td>
<td><br /></td></tr>
</tbody></table>
<table id="textboxrt">
<tbody>
<tr>
<td><a class="image" href="http://hi.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0:Blockquote-open.gif"><img alt="Blockquote-open.gif" height="20" src="http://hi.bharatdiscovery.org/w/images/3/3f/Blockquote-open.gif" width="20" /></a>
बुद्धिमानो की बुद्धिमता और बरसों का अनुभव सुभाषितों में संग्रह किया जा सकता है।
<a class="image" href="http://hi.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0:Blockquote-close.gif"><img alt="Blockquote-close.gif" height="20" src="http://hi.bharatdiscovery.org/w/images/9/99/Blockquote-close.gif" width="20" /></a><br />
<br />
<div style="text-align: right;">
<b>- आईजक दिसराली</b></div>
</td></tr>
</tbody></table>
<ul>
<li> हम <b>अनमोल वचन ( Priceless Words / Quotes)</b> (अमृत वचन/
सुविचार/ सुवचन/ सत्य वचन/ सूक्ति/ सुभाषित/ उत्तम (उत्तम) वाणी/ उद्धरण/
धीर गंभीर मृदु वाक्य)उन बातों और लेखों को कहते हैं, जिन्हें संसार के
अनेकानेक विद्वानों ने कहे और लिखे हैं, जो जीवन उपयोगी हैं। इन अनमोल
वचनों को हम अपने जीवन में अपनाकर अपने जीवन में नई उंमग एवं उत्साह का
संचार कर सकते हैं। अनमोल वचन को हम <b>सूक्ति (सु + उक्ति) या सुभाषित (सु + भाषित)</b>
भी कहते हैं। जिसका अर्थ है “सुन्दर भाषा में कहा गया”। इन बातों को अनमोल
इसलिए भी कहा जाता हैं क्योंकि यदि हम इन बातों का अर्थ या सार समझेगें,
तो हम पायेंगे की इन बातों का कोई मोल नहीं लगा सकता। इन बातों को हम अपने
जीवन में अपनाकर अपने जीवन की दिशा को बदल सकते हैं और जीवन की दिशा बदलनें
वाली बातों का कभी कोई मोल नहीं लगा सकता हैं क्योकि ये बातें तो अनमोल
होती हैं।
</li>
<li> वक्ता हो या संत हो, विद्वान हो या लेखक हो, राजनेता हो या फिर
कोई प्रशासक — अपनी बात कहने के साथ-साथ वह उसे सार-रूप में कहता हुआ एक
माला के रूप में पिरोता चलता है। इस सार-रूप में कहे गए वाक्यों में ऐसे
सूत्र छिपे रहते हैं, जिन पर चिंतन करने से विचारों की एक व्यवस्थित
श्रृंखला का सहज रूप से निर्माण होता है। उस समय ऐसा लगता है मानो किसी
विशिष्ट विषय पर लिखी गई पुस्तक के पन्ने एक-एक करके पलट रहे हों।
</li>
<li> सूत्ररूप में कहे गए ये कथन आत्मविकास के लिए अत्यंत उपयोगी हैं।
इसीलिए व्यक्तित्व विकास पर कार्य कर रहे अनुसंधानकर्ताओं और विद्वानों का
कहना है कि प्रत्येक आत्मविकास के इच्छुक को चाहिए कि वह अपने लिए
आदर्शवाक्य चुनकर उसे ऐसे स्थान पर रख या चिपका ले, जहाँ उसकी नज़र
ज़्यादातर पड़ती हो। ऐसा करने से वह विचार अवचेतन में बैठकर उसके
व्यक्तित्व को गहराई तक प्रभावित करेगा। इन वाक्यों का आपसी बातचीत में,
भाषण आदि में प्रयोग करके आप अपने पक्ष को पुष्ट करते हैं। ऐसा करने से
आपकी बातों में वजन तो आता ही है लोगों के बीच आपकी साख भी बढ़ती है।
</li>
</ul>
<div class="poem">
<table id="textboxrt">
<tbody>
<tr>
<td><a class="image" href="http://hi.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0:Blockquote-open.gif"><img alt="Blockquote-open.gif" height="20" src="http://hi.bharatdiscovery.org/w/images/3/3f/Blockquote-open.gif" width="20" /></a>
सुभाषितों की पुस्तक कभी पूरी नहीं हो सकती।
<a class="image" href="http://hi.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0:Blockquote-close.gif"><img alt="Blockquote-close.gif" height="20" src="http://hi.bharatdiscovery.org/w/images/9/99/Blockquote-close.gif" width="20" /></a><br />
<br />
<div style="text-align: right;">
<b>- राबर्ट हेमिल्टन</b></div>
</td></tr>
</tbody></table>
</div>
<ul>
<li> लोग जीवन में कर्म को महत्त्व देते हैं, विचार को नहीं। ऐसा सोचने
वाले शायद यह नहीं जानते कि विचारों का ही स्थूल रूप होता है कर्म अर्थात्
किसी भी कर्म का चेतन-अचेतन रूप से विचार ही कारण होता है। <b>जानाति, इच्छति, यतते—जानता है (विचार करता है), इच्छा करता है फिर प्रयत्न करता है।</b>
यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसे आधुनिक मनोविज्ञान भी स्वीकार करता है।
जानना और इच्छा करना विचार के ही पहलू हैं । आपने यह भी सुना होगा कि
विचारों का ही विस्तार है आपका अतीत, वर्तमान और भविष्य। दूसरे शब्दों में,
आज आप जो भी हैं, अपने विचारों के परिमामस्वरूप ही हैं और भविष्य का
निर्धारण आपके वर्तमान विचार ही करेंगे। तो फिर उज्ज्वल भविष्य की आकांक्षा
करने वाले आप शुभ-विचारों से आपने दिलो-दिमाग को पूरित क्यों नहीं करते।
</li>
<li> शब्द ब्रह्म है। भारतीय दर्शकों में <a href="http://hi.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%B6%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%A6_%28%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A4%A3%29" title="शब्द (व्याकरण)">शब्द</a>
को उत्तम प्रमाण माना गया है। इस संदर्भ में एक अत्यंत प्रचलित कथा का
उल्लेख करना यहां युक्तिसंगत होगा। कथा इस प्रकार है — दस व्यक्तियों ने
बरसाती नदी पार की। पार पहुँचने पर यह जांचने के लिए कि दसों ने नदी पार कर
ली है, कोई नदी में डूब तो नहीं गया, एक ने गिनना शुरू किया। उसके अनुसार
उनका एक साथी नदी में बह गया था। एक-एक करके सभी ने गिनती की, प्रत्येक का
यही मानना था कि कोई बह गया है। सभी उस दसवें व्यक्ति के लिए रोने और विलाप
करने लगे। वहाँ से गुज़र रहे एक बुद्धिमान व्यक्ति ने जब उनसे रोने तथा
विलाप करने का कारण पूछा, तो उन्होंने सारी बात कह सुनाई। उस व्यक्ति ने
उनको एक पंक्ति में खड़ा होने को कहा। जब सब पंक्ति में खड़े हो गए, तब
उनमें से एक को बुलाकर उससे गिनने को कहा। उस व्यक्ति ने नौ तक गिनती गिनी
और चुप हो गया। तब आगन्तुक ने कहा दसवें तुम हो’ इतना सुनते ही सारा
रोना-विलाप करना अपने आप, बिना किसी प्रयास के समाप्त हो गया। आगंतुक ने
क्या किया ? उसके शब्दों ने ही रोने-बिलखने को विदाई दिलवा दी।
</li>
<li> <a class="mw-redirect" href="http://hi.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%B6%E0%A4%82%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AF" title="शंकराचार्य">शंकराचार्य</a>
से जब उनके शिष्यों ने पूछा कि इस संसार - चक्र से मुक्त होने का क्या
उपाय है, तो उनका जवाब था - केवल विचार ही। इसीलिए प्रत्येक धर्म-संप्रदाय
और जाति के महान पुरुषों ने सुझाव दिया कि जिस दिशा में आप अपने व्यक्तित्व
को विकसित करना चाहते हैं, उससे संबंधित विचार को आप किसी ऐसी जगह रखे या
चिपकाएं, जहां आपकी नज़र बार-बार जाती हो। वाक्य का अर्थ आपके भीतर बूस्टर
की सी प्रतिक्रिया करेगा। श्रीमद्भागवद्ग <a href="http://hi.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%97%E0%A5%80%E0%A4%A4%E0%A4%BE" title="गीता">गीता</a> में <a class="mw-redirect" href="http://hi.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%95%E0%A5%83%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A3" title="श्रीकृष्ण">श्रीकृष्ण</a>
ने स्पष्ट कहा कि मनुष्य को स्वयं से स्वयं का उद्धार करना होगा। कोई किसी
की अवनति के लिए न तो उत्तरदायी है, न ही कोई किसी की उन्नति में अवरोध
पैदा कर सकता है। <a href="http://hi.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%A5%E0%A4%B0%E0%A4%BE" title="मंथरा">मंथरा</a> ने <a href="http://hi.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%95%E0%A5%88%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%AF%E0%A5%80" title="कैकेयी">कैकेयी</a> में परिवर्तन कैसे किया ? कैसे वह <a href="http://hi.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE" title="राम">राम</a> के राजा बनने में विरोधी बन गई ? कैसे उसने अपने पति <a href="http://hi.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%A6%E0%A4%B6%E0%A4%B0%E0%A4%A5" title="दशरथ">दशरथ</a> की मृत्यु और अपने वैधव्य की परवाह नहीं की ? इन सभी सवालों का जवाब आपको विचारों के परिवर्तन के इर्द-गिर्द ही घूमता मिलेगा।
</li>
<li> महापुरुषों के वाक्यों को पढ़ते समय उनके व्यक्तित्व की गरिमा भी
आपको प्रभावित करती है, जिससे अचेतन मन वैसा करने या न करने को विवश हो
जाता है। इस प्रकार की बेबसी की स्थिति व्यक्तित्व के विकास के लिए अनुकूल
वातावरण पैदा करती है, क्योंकि तब आपके मन के पास मनमानी करने का न तो अवसर
होता है, न ही सामर्थ्य। अनुभव में एक बात और आई है कि कभी - कभी आपकी ऐसी
शंका का समाधान एक छोटा-सा वाक्य कर जाता है, जिसके लिए आप लंबे समय से
भटक रहे होते हैं। ‘<b>देखन में छोटे लगें, घाव करें गंभीर</b>’ वाली इन
वाक्यों के साथ लागू होती है। बातचीत करते समय, भाषण देते समय, बहस करते
वक़्त या लिखते समय जब आप इन वाक्यों द्वारा अपने कथन की पुष्टि करते हैं
तो आपकी बात में वजन आ जाता है, आपके व्यक्तित्व को प्रभावशाली बनाने में
इनसे सहायता मिलती है।
</li>
<li> हमें विश्वास है कि यह संकलन आपके व्यक्तित्व को विकसित कर आपके
जीवन में नई स्फूर्ति का संचार करते हुए आपमें आत्मविश्वास पैदा करेगा कि
आपसे श्रेष्ठ कोई नहीं है और कौन-सा काम ऐसा है, जिसे आप नहीं कर सकते। <span style="font-size: x-large;"><b> </b></span></li>
<li><span style="font-size: x-large;"><b> तीन बातें</b></span></li>
<li>
<br />
</li>
<li> तीन बातें कभी न भूलें - प्रतिज्ञा करके, क़र्ज़ लेकर और विश्वास देकर। - महावीर
</li>
<li> तीन बातें करो - उत्तम के साथ संगीत, विद्वान् के साथ वार्तालाप और सहृदय के साथ मैत्री। - विनोबा
</li>
<li> तीन अनमोल वचन - धन गया तो कुछ नहीं गया, स्वास्थ्य गया तो कुछ गया और चरित्र गया तो सब गया। - अंग्रेजी कहावत
</li>
<li> तीन से घृणा न करो - रोगी से, दुखी से और निम्न जाती से। - मुहम्मद साहब
</li>
<li> तीन के आंसू पवित्र होते हैं - प्रेम के, करुना के और सहानुभूति के। - बुद्ध
</li>
<li> तीन बातें सुखी जीवन के लिए- अतीत की चिंता मत करो, भविष्य का विश्वास न करो और वर्तमान को व्यर्थ मत जाने दो।
</li>
<li> तीन चीजें किसी का इन्तजार नहीं करती - समय, मौत, ग्राहक।
</li>
<li> तीन चीजें जीवन में एक बार मिलती है - मां, बांप, और जवानी।
</li>
<li> तीन चीजें पर्दे योग्य है - धन, स्त्री और भोजन।
</li>
<li> तीन चीजों से सदा सावधान रहिए - बुरी संगत, परस्त्री और निन्दा।
</li>
<li> तीन चीजों में मन लगाने से उन्नति होती है - ईश्वर, परिश्रम और विद्या।
</li>
<li> तीन चीजों को कभी छोटी ना समझे - बीमारी, कर्जा, शत्रु।
</li>
<li> तीनों चीजों को हमेशा वश में रखो - मन, काम और लोभ।
</li>
<li> तीन चीजें निकलने पर वापिस नहीं आती - तीर कमान से, बात जुबान से और प्राण शरीर से।
</li>
<li> तीन चीजें कमज़ोर बना देती है - बदचलनी, क्रोध और लालच।
</li>
<li> तीन चीज़े असल उद्धेश्य से रोकता हैं - बदचलनी, क्रोध और लालच।
</li>
<li> तीन चीज़ें कोई चुरा नहीं सकता - अकल, चरित्र, हुनर।
</li>
<li> तीन व्यक्ति वक़्त पर पहचाने जाते हैं - स्त्री, भाई, दोस्त।
</li>
<li> तीनों व्यक्ति का सम्मान करो - माता, पिता और गुरु।
</li>
<li> तीनों व्यक्ति पर सदा दया करो - बालक, भूखे और पागल।
</li>
<li> तीन चीज़े कभी नहीं भूलनी चाहिए - कर्ज़, मर्ज़ और फर्ज़।
</li>
<li> तीन बातें कभी मत भूलें - उपकार, उपदेश और उदारता।
</li>
<li> तीन चीज़े याद रखना ज़रुरी हैं - सच्चाई, कर्तव्य और मृत्यु।
</li>
<li> तीन बातें चरित्र को गिरा देती हैं - चोरी, निंदा और झूठ।
</li>
<li> तीन चीज़ें हमेशा दिल में रखनी चाहिए - नम्रता, दया और माफ़ी।
</li>
<li> तीन चीज़ों पर कब्ज़ा करो - ज़बान, आदत और गुस्सा।
</li>
<li> तीन चीज़ों से दूर भागो - आलस्य, खुशामद और बकवास।
</li>
<li> तीन चीज़ों के लिए मर मिटो - धेर्य, देश और मित्र।
</li>
<li> तीन चीज़ें इंसान की अपनी होती हैं - रूप, भाग्य और स्वभाव।
</li>
<li> तीन चीजों पर अभिमान मत करो – ताकत, सुन्दरता, यौवन।
</li>
<li> तीन चीजें अगर चली गयी तो कभी वापस नहीं आती - समय, शब्द और अवसर।
</li>
<li> तीन चीजें इन्सान कभी नहीं खो सकता - शान्ति, आशा और ईमानदारी।
</li>
<li> तीन चीजें जो सबसे अमूल्य है - प्यार, आत्मविश्वास और सच्चा मित्र।
</li>
<li> तीन चीजे जो कभी निश्चित नहीं होती - सपनें, सफलता और भाग्य।
</li>
<li> तीन चीजें, जो जीवन को संवारती है - कड़ी मेहनत, निष्ठा और त्याग।
</li>
<li> तीन चीजें किसी भी इन्सान को बरबाद कर सकती है - शराब, घमन्ड और क्रोध।
</li>
<li> तीन चीजों से बचने की कोशिश करनी चाहिये – बुरी संगत, स्वार्थ और निन्दा।
</li>
<li> कोई भी कार्य करने से पहले – सोचो, समझो, फिर करो।
</li>
<li> </li>
</ul>
</div>Himmat singhhttp://www.blogger.com/profile/11883720728789144629noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6286200041083451768.post-9168333282483845502012-02-27T20:50:00.000-08:002012-02-27T21:11:38.144-08:00महान विचारो का संग्रह 2<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<b> </b><span style="font-size: large;"> अनमोल वचन</span>
<br />
<table class="toc" id="toc"><tbody>
<tr><td><div id="toctitle">
<h2>
विषय सूची</h2>
<span class="toctoggle">[छिपाएं<a href="http://www.blogger.com/goog_1364142734">]</a></span></div>
<ul>
<li class="toclevel-1 tocsection-1"><a href="http://www.blogger.com/goog_373746678"><span class="tocnumber">1</span></a> <span class="toctext">अ</span></li>
<li class="toclevel-1 tocsection-2"><span class="tocnumber">2</span> <span class="toctext">आ</span></li>
<li class="toclevel-1 tocsection-3"><span class="tocnumber">3</span> <span class="toctext">इ</span></li>
<li class="toclevel-1 tocsection-4"><span class="tocnumber">4</span> <span class="toctext">ई</span></li>
<li class="toclevel-1 tocsection-5"><span class="tocnumber">5</span> <span class="toctext">उ</span></li>
<li class="toclevel-1 tocsection-6"><span class="tocnumber">6</span> <span class="toctext">ऊ</span></li>
<li class="toclevel-1 tocsection-7"><span class="tocnumber">7</span> <span class="toctext">ए</span></li>
<li class="toclevel-1 tocsection-8"><span class="tocnumber">8</span> <span class="toctext">क</span></li>
<li class="toclevel-1 tocsection-9"><span class="tocnumber">9</span> <span class="toctext">ख</span></li>
<li class="toclevel-1 tocsection-10"><span class="tocnumber">10</span> <span class="toctext">ग</span></li>
<li class="toclevel-1 tocsection-11"><span class="tocnumber">11</span> <span class="toctext">घ</span></li>
<li class="toclevel-1 tocsection-12"><span class="tocnumber">12</span> <span class="toctext">च</span></li>
<li class="toclevel-1 tocsection-13"><span class="tocnumber">13</span> <span class="toctext">ज</span></li>
<li class="toclevel-1 tocsection-14"><span class="tocnumber">14</span> <span class="toctext">झ</span></li>
<li class="toclevel-1 tocsection-15"><span class="tocnumber">15</span> <span class="toctext">ठ</span></li>
<li class="toclevel-1 tocsection-16"><span class="tocnumber">16</span> <span class="toctext">ड</span></li>
<li class="toclevel-1 tocsection-17"><span class="tocnumber">17</span> <span class="toctext">त्र</span></li>
</ul>
</td></tr>
</tbody></table>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.85">अ</span></h2>
<ul>
<li> अपना मूल्य समझो और विश्वास करो कि तुम संसार के सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति हो।
</li>
<li> अपना सुधार संसार की सबसे बड़ी सेवा है।
</li>
<li> अपना काम दूसरों पर छोड़ना भी एक तरह से दूसरे दिन काम टालने के
समान ही है। ऐसे व्यक्ति का अवसर भी निकल जाता है और उसका काम भी पूरा नहीं
हीता।
</li>
<li> अपना आदर्श उपस्थित करके ही दूसरों को सच्ची शिक्षा दी जा सकती है।
</li>
<li> अपने व्यवहार में पारदर्शिता लाएँ। अगर आप में कुछ कमियाँ भी
हैं, तो उन्हें छिपाएं नहीं; क्योंकि कोई भी पूर्ण नहीं है, सिवाय एक ईश्वर
के।
</li>
<li> अपने हित की अपेक्षा जब परहित को अधिक महत्त्व मिलेगा तभी सच्चा सतयुग प्रकट होगा।
</li>
<li> अपने दोषों से सावधान रहो; क्योंकि यही ऐसे दुश्मन है, जो छिपकर वार करते हैं।
</li>
<li> अपने अज्ञान को दूर करके मन-मन्दिर में ज्ञान का दीपक जलाना भगवान की सच्ची पूजा है।
</li>
<li> अपने दोषों की ओर से अनभिज्ञ रहने से बढ़कर प्रमाद इस संसार में और कोई दूसरा नहीं हो सकता।
</li>
<li> अपने कार्यों में व्यवस्था, नियमितता, सुन्दरता, मनोयोग तथा ज़िम्मेदार का ध्यान रखें।
</li>
<li> अपने जीवन में सत्प्रवृत्तियों को प्रोतसाहन एवं प्रश्रय देने का
नाम ही विवेक है। जो इस स्थिति को पा लेते हैं, उन्हीं का मानव जीवन सफल
कहा जा सकता है।
</li>
<li> अपने आपको सुधार लेने पर संसार की हर बुराई सुधर सकती है।
</li>
<li> अपने आपको जान लेने पर मनुष्य सब कुछ पा सकता है।
</li>
<li> अपने दोषों की ओर से अनभिज्ञ रहने से बड़ा प्रमाद इस संसार में और कोई दूसरा नहीं हो सकता।
</li>
<li> अपने आप को बचाने के लिये तर्क-वितर्क करना हर व्यक्ति की आदत
है, जैसे क्रोधी व लोभी आदमी भी अपने बचाव में कहता मिलेगा कि, यह सब मैंने
तुम्हारे कारण किया है।
</li>
<li> अपने देश का यह दुर्भाग्य है कि आज़ादी के बाद देश और समाज के लिए नि:स्वार्थ भाव से खपने वाले सृजेताओं की कमी रही है।
</li>
<li> अपने गुण, कर्म, स्वभाव का शोधन और जीवन विकास के उच्च गुणों का अभ्यास करना ही साधना है।
</li>
<li> अपने को मनुष्य बनाने का प्रयत्न करो, यदि उसमें सफल हो गये, तो हर काम में सफलता मिलेगी।
</li>
<li> अपने आप को अधिक समझने व मानने से स्वयं अपना रास्ता बनाने वाली बात है।
</li>
<li> अपनी कलम सेवा के काम में लगाओ, न कि प्रतिष्ठा व पैसे के लिये। कलम से ही ज्ञान, साहस और त्याग की भावना प्राप्त करें।
</li>
<li> अपनी स्वंय की <a href="http://hi.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%86%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BE" title="आत्मा">आत्मा</a>
के उत्थान से लेकर, व्यक्ति विशेष या सार्वजनिक लोकहितार्थ में
निष्ठापूर्वक निष्काम भाव आसक्ति को त्याग कर समत्व भाव से किया गया
प्रत्येक कर्म यज्ञ है।
</li>
<li> अपनी आन्तरिक क्षमताओं का पूरा उपयोग करें तो हम पुरुष से महापुरुष, युगपुरुष, मानव से महामानव बन सकते हैं।
</li>
<li> अपनी दिनचर्या में परमार्थ को स्थान दिये बिना आत्मा का निर्मल और निष्कलंक रहना संभव नहीं।
</li>
<li> अपनी प्रशंसा आप न करें, यह कार्य आपके सत्कर्म स्वयं करा लेंगे।
</li>
<li> अपनी विकृत आकांक्षाओं से बढ़कर अकल्याणकारी साथी दुनिया में और कोई दूसरा नहीं।
</li>
<li> अपनी महान संभावनाओं पर अटूट विश्वास ही सच्ची आस्तिकता है।
</li>
<li> अपनी भूलों को स्वीकारना उस झाडू के समान है जो गंदगी को साफ कर उस स्थान को पहले से अधिक स्वच्छ कर देती है।
</li>
<li> अपनी शक्तियो पर भरोसा करने वाला कभी असफल नहीं होता।
</li>
<li> अपनी बुद्धि का अभिमान ही शास्त्रों की, सन्तों की बातों को अन्त: करण में टिकने नहीं देता।
</li>
<li> अपनों के लिये गोली सह सकते हैं, लेकिन बोली नहीं सह सकते। गोली का घाव भर जाता है, पर बोली का नहीं।
</li>
<li> अपनों व अपने प्रिय से धोखा हो या बीमारी से उठे हों या राजनीति
में हार गए हों या श्मशान घर में जाओ; तब जो मन होता है, वैसा मन अगर हमेशा
रहे, तो मनुष्य का कल्याण हो जाए।
</li>
<li> अपनों के चले जाने का दुःख असहनीय होता है, जिसे भुला देना इतना आसान नहीं है; लेकिन ऐसे भी मत खो जाओ कि खुद का भी होश ना रहे।
</li>
<li> अगर किसी को अपना मित्र बनाना चाहते हो, तो उसके दोषों, गुणों और विचारों को अच्छी तरह परख लेना चाहिए।
</li>
<li> अगर हर आदमी अपना-अपना सुधार कर ले तो, सारा संसार सुधर सकता है; क्योंकि एक-एक के जोड़ से ही संसार बनता है।
</li>
<li> अगर कुछ करना व बनाना चाहते हो तो सर्वप्रथम लक्ष्य को निर्धारित करें। वरना जीवन में उचित उपलब्धि नहीं कर पायेंगे।
</li>
<li> अगर आपके पास जेब में सिर्फ दो पैसे हों तो एक पैसे से रोटी ख़रीदें तथा दूसरे से गुलाब की एक कली।
</li>
<li> अतीत की स्म्रतियाँ और भविष्य की कल्पनाएँ मनुष्य को वर्तमान
जीवन का सही आनंद नहीं लेने देतीं। वर्तमान में सही जीने के लिये आवश्य है
अनुकूलता और प्रतिकूलता में सम रहना।
</li>
<li> अतीत को कभी विस्म्रत न करो, अतीत का बोध हमें ग़लतियों से बचाता है।
</li>
<li> अपराध करने के बाद डर पैदा होता है और यही उसका दण्ड है।
</li>
<li> अभागा वह है, जो कृतज्ञता को भूल जाता है।
</li>
<li> अखण्ड ज्योति ही प्रभु का प्रसाद है, वह मिल जाए तो जीवन में चार चाँद लग जाएँ।
</li>
<li> अडिग रूप से चरित्रवान बनें, ताकि लोग आप पर हर परिस्थिति में विश्वास कर सकें।
</li>
<li> अच्छा व ईमानदार जीवन बिताओ और अपने चरित्र को अपनी मंजिल मानो।
</li>
<li> अच्छा साहित्य जीवन के प्रति आस्था ही उत्पन्न नहीं करता, वरन उसके सौंदर्य पक्ष का भी उदघाटन कर उसे पूजनीय बना देता है।
</li>
<li> अधिक सांसारिक ज्ञान अर्जित करने से अंहकार आ सकता है, परन्तु
आध्यात्मिक ज्ञान जितना अधिक अर्जित करते हैं, उतनी ही नम्रता आती है।
</li>
<li> अधिक इच्छाएँ प्रसन्नता की सबसे बड़ी शत्रु हैं।
</li>
<li> अपनापन ही प्यारा लगता है। यह आत्मीयता जिस पदार्थ अथवा प्राणी के साथ जुड़ जाती है, वह आत्मीय, परम प्रिय लगने लगती है।
</li>
<li> अवसर की प्रतीक्षा में मत बैठो। आज का अवसर ही सर्वोत्तम है।
</li>
<li> अवसर उनकी सहायता कभी नहीं करता, जो अपनी सहायता नहीं करते।
</li>
<li> अवसर की प्रतीक्षा में मत बैठों। आज का अवसर ही सर्वोत्तम है।
</li>
<li> अवतार व्यक्ति के रूप में नहीं, आदर्शवादी प्रवाह के रूप में
होते हैं और हर जीवन्त आत्मा को युगधर्म निबाहने के लिए बाधित करते हैं।
</li>
<li> अस्त-व्यस्त रीति से समय गँवाना अपने ही पैरों कुल्हाड़ी मारना है।
</li>
<li> अवांछनीय कमाई से बनाई हुई खुशहाली की अपेक्षा ईमानदारी के आधार पर गरीबों जैसा जीवन बनाये रहना कहीं अच्छा है।
</li>
<li> असत्य से धन कमाया जा सकता है, पर जीवन का आनन्द, पवित्रता और लक्ष्य नहीं प्राप्त किया जा सकता।
</li>
<li> अंध परम्पराएँ मनुष्य को अविवेकी बनाती हैं।
</li>
<li> अंध श्रद्धा का अर्थ है, बिना सोचे-समझे, आँख मूँदकर किसी पर भी विश्वास।
</li>
<li> असफलता केवल यह सिद्ध करती है कि सफलता का प्रयास पूरे मन से नहीं हुआ।
</li>
<li> असफलता मुझे स्वीकार्य है किन्तु प्रयास न करना स्वीकार्य नहीं है।
</li>
<li> असफलताओं की कसौटी पर ही मनुष्य के धैर्य, साहस तथा लगनशील की
परख होती है। जो इसी कसौटी पर खरा उतरता है, वही वास्तव में सच्चा
पुरुषार्थी है।
</li>
<li> अस्वस्थ मन से उत्पन्न कार्य भी अस्वस्थ होंगे।
</li>
<li> असत् से सत् की ओर, अंधकार से आलोक की ओर तथा विनाश से विकास की ओर बढ़ने का नाम ही साधना है।
</li>
<li> अश्लील, अभद्र अथवा भोगप्रधान मनोरंजन पतनकारी होते हैं।
</li>
<li> अंतरंग बदलते ही बहिरंग के उलटने में देर नहीं लगती है।
</li>
<li> अनीति अपनाने से बढ़कर जीवन का तिरस्कार और कुछ हो ही नहीं सकता।
</li>
<li> अव्यवस्थित जीवन, जीवन का ऐसा दुरुपयोग है, जो दरिद्रता की
वृद्धि कर देता है। काम को कल के लिए टालते रहना और आज का दिन आलस्य में
बिताना एक बहुत बड़ी भूल है। आरामतलबी और निष्क्रियता से बढ़कर अनैतिक बात
और दूसरी कोई नहीं हो सकती।
</li>
<li> अहंकार छोड़े बिना सच्चा प्रेम नहीं किया जा सकता।
</li>
<li> अहंकार के स्थान पर आत्मबल बढ़ाने में लगें, तो समझना चाहिए कि ज्ञान की उपलब्धि हो गयी।
</li>
<li> अन्याय में सहयोग देना, अन्याय के ही समान है।
</li>
<li> अल्प ज्ञान ख़तरनाक होता है।
</li>
<li> अहिंसा सर्वोत्तम धर्म है।
</li>
<li> अधिकार जताने से अधिकार सिद्ध नहीं होता।
</li>
<li> अपवित्र विचारों से एक व्यक्ति को चरित्रहीन बनाया जा सकता है,
तो शुद्ध सात्विक एवं पवित्र विचारों से उसे संस्कारवान भी बनाया जा सकता
है।
</li>
<li> असंयम की राह पर चलने से आनन्द की मंजिल नहीं मिलती।
</li>
<li> अज्ञान और कुसंस्कारों से छूटना ही मुक्ति है।
</li>
<li> असत् से सत् की ओर, अंधकार से आलोक की और विनाश से विकास की ओर बढ़ने का नाम ही साधना है।
</li>
<li> 'अखण्ड ज्योति' हमारी वाणी है। जो उसे पढ़ते हैं, वे ही हमारी प्रेरणाओं से परिचित होते हैं।
</li>
<li> अध्ययन, विचार, मनन, विश्वास एवं आचरण द्वार जब एक मार्ग को
मज़बूति से पकड़ लिया जाता है, तो अभीष्ट उद्देश्य को प्राप्त करना बहुत
सरल हो जाता है।
</li>
<li> अनासक्त जीवन ही शुद्ध और सच्चा जीवन है।
</li>
<li> अवकाश का समय व्यर्थ मत जाने दो।
</li>
<li> अन्धेरी रात के बाद चमकीला सुबह अवश्य ही आता है।
</li>
<li> अब भगवान <a href="http://hi.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%97%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%B2" title="गंगाजल">गंगाजल</a>,
गुलाबजल और पंचामृत से स्नान करके संतुष्ट होने वाले नहीं हैं। उनकी माँग
श्रम बिन्दुओं की है। भगवान का सच्चा भक्त वह माना जाएगा जो पसीने की
बूँदों से उन्हें स्नान कराये।
</li>
<li> अज्ञानी वे हैं, जो कुमार्ग पर चलकर सुख की आशा करते हैं।
</li>
<li> अंत:करण मनुष्य का सबसे सच्चा मित्र, नि:स्वार्थ पथप्रदर्शक और
वात्सल्यपूर्ण अभिभावक है। वह न कभी धोखा देता है, न साथ छोड़ता है और न
उपेक्षा करता है।
</li>
<li> अंत:मन्थन उन्हें ख़ासतौर से बेचैन करता है, जिनमें मानवीय
आस्थाएँ अभी भी अपने जीवंत होने का प्रमाण देतीं और कुछ सोचने करने के लिये
नोंचती-कचौटती रहती हैं।
</li>
<li> अच्छाइयों का एक-एक तिनका चुन-चुनकर जीवन भवन का निर्माण होता
है, पर बुराई का एक हलका झोंका ही उसे मिटा डालने के लिए पर्याप्त होता है।
</li>
<li> अच्छाई का अभिमान बुराई की जड़ है।
</li>
<li> अज्ञान, अंधकार, अनाचार और दुराग्रह के माहौल से निकलकर हमें
समुद्र में खड़े स्तंभों की तरह एकाकी खड़े होना चाहिये। भीतर का ईमान,
बाहर का भगवान इन दो को मज़बूती से पकड़ें और विवेक तथा औचित्य के दो पग
बढ़ाते हुये लक्ष्य की ओर एकाकी आगे बढ़ें तो इसमें ही सच्चा शौर्य,
पराक्रम है। भले ही लोग उपहास उड़ाएं या असहयोगी, विरोधी रुख बनाए रहें।
</li>
<li> अधिकांश मनुष्य अपनी शक्तियों का दशमांश ही का प्रयोग करते हैं, शेष 90 प्रतिशत तो सोती रहती हैं।
</li>
<li> अर्जुन की तरह आप अपना चित्त केवल लक्ष्य पर केन्द्रित करें, एकाग्रता ही आपको सफलता दिलायेगी।
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.86">आ</span></h2>
<ul>
<li> आवेश जीवन विकास के मार्ग का भयानक रोड़ा है, जिसको मनुष्य स्वयं ही अपने हाथ अटकाया करता है।
</li>
<li> आँखों से देखा’ एक बार अविश्वसनीय हो सकता है किन्तु ‘अनुभव से सीका’ कभी भी अविश्वसनीय नहीं हो सकता।
</li>
<li> आसक्ति संकुचित वृत्ति है।
</li>
<li> आपकी बुद्धि ही आपका गुरु है।
</li>
<li> आय से अधिक खर्च करने वाले तिरस्कार सहते और कष्ट भोगते हैं।
</li>
<li> आरोग्य हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है।
</li>
<li> आहार से मनुष्य का स्वभाव और प्रकृति तय होती है, शाकाहार से स्वभाव शांत रहता है, मांसाहार मनुष्य को उग्र बनाता है।
</li>
<li> <b>आयुर्वेद</b> हमारी मिट्टी हमारी संस्कृति व प्रकृती से जुड़ी हुई निरापद चिकित्सा पद्धति है।
</li>
<li> आयुर्वेद वस्तुत: जीवन जीने का ज्ञान प्रदान करता है, अत: इसे हम
धर्म से अलग नहीं कर सकते। इसका उद्देश्य भी जीवन के उद्देश्य की भाँति
चार पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति ही है।
</li>
<li> आनन्द प्राप्ति हेतु त्याग व संयम के पथ पर बढ़ना होगा।
</li>
<li> <b>आत्मा</b> को निर्मल बनाकर, इंद्रियों का संयम कर उसे परमात्मा के साथ मिला देने की प्रक्रिया का नाम योग है।
</li>
<li> आत्मा का परिष्कृत रूप ही परमात्मा है। - वाङ्गमय
</li>
<li> आत्मा की उत्कृष्टता संसार की सबसे बड़ी सिद्धि है।
</li>
<li> आत्मा का परिष्कृत रूप ही परमात्मा है।
</li>
<li> आत्म निर्माण का अर्थ है - भाग्य निर्माण।
</li>
<li> आत्म-विश्वास जीवन नैया का एक शक्तिशाली समर्थ मल्लाह है, जो
डूबती नाव को पतवार के सहारे ही नहीं, वरन् अपने हाथों से उठाकर प्रबल
लहरों से पार कर देता है।
</li>
<li> आत्मा की पुकार अनसुनी न करें।
</li>
<li> आत्मा के संतोष का ही दूसरा नाम स्वर्ग है।
</li>
<li> आत्मीयता को जीवित रखने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि ग़लतियों को हम उदारतापूर्वक क्षमा करना सीखें।
</li>
<li> आत्म-निरीक्षण इस संसार का सबसे कठिन, किन्तु करने योग्य कर्म है।
</li>
<li> <b>आत्मबल</b> ही इस संसार का सबसे बड़ा बल है।
</li>
<li> आत्म-निर्माण का ही दूसरा नाम भाग्य निर्माण है।
</li>
<li> आत्म निर्माण ही युग निर्माण है।
</li>
<li> <b>आत्मविश्वासी</b> कभी हारता नहीं, कभी थकता नहीं, कभी गिरता नहीं और कभी मरता नहीं।
</li>
<li> आत्मानुभूति यह भी होनी चाहिए कि सबसे बड़ी पदवी इस संसार में मार्गदर्शक की है।
</li>
<li> आराम की जिन्गदी एक तरह से मौत का निमंत्रण है।
</li>
<li> आलस्य से आराम मिल सकता है, पर यह आराम बड़ा महँगा पड़ता है।
</li>
<li> आज के कर्मों का फल मिले इसमें देरी तो हो सकती है, किन्तु कुछ भी करते रहने और मनचाहे प्रतिफल पाने की छूट किसी को भी नहीं है।
</li>
<li> आज के काम कल पर मत टालिए।
</li>
<li> आज का मनुष्य अपने अभाव से इतना दुखी नहीं है, जितना दूसरे के प्रभाव से होता है।
</li>
<li> आदर्शों के प्रति श्रद्धा और कर्तव्य के प्रति लगन का जहाँ भी
उदय हो रहा है, समझना चाहिए कि वहाँ किसी देवमानव का आविर्भाव हो रहा है।
</li>
<li> आदर्शवाद की लम्बी-चौड़ी बातें बखानना किसी के लिए भी सरल है, पर
जो उसे अपने जीवनक्रम में उतार सके, सच्चाई और हिम्मत का धनी वही है।
</li>
<li> आशावाद और ईश्वरवाद एक ही रहस्य के दो नाम हैं।
</li>
<li> आशावादी हर कठिनाई में अवसर देखता है, पर निराशावादी प्रत्येक अवसर में कठिनाइयाँ ही खोजता है।
</li>
<li> आप समय को नष्ट करेंगे तो समय भी आपको नष्ट कर देगा।
</li>
<li> आप बच्चों के साथ कितना समय बिताते हैं, वह इतना महत्त्वपूर्ण नहीं है, जितना कैसे बिताते हैं।
</li>
<li> आप अपनी अच्छाई का जितना अभिमान करोगे, उतनी ही बुराई पैदा होगी। इसलिए अच्छे बनो, पर अच्छाई का अभिमान मत करो।
</li>
<li> आस्तिकता का अर्थ है- ईश्वर विश्वास और ईश्वर विश्वास का अर्थ है
एक ऐसी न्यायकारी सत्ता के अस्तित्व को स्वीकार करना जो सर्वव्यापी है और
कर्मफल के अनुरूप हमें गिरने एवं उठने का अवसर प्रस्तुत करती है।
</li>
<li> आर्थिक युद्ध में किसी राष्ट्र को नष्ट करने का सुनिश्चित तरीका
है, उसकी मुद्रा को खोटा कर देना और किसी राष्ट्र की संस्कृति और पहचान को
नष्ट करने का सुनिश्चित तरीका है, उसकी भाषा को हीन बना देना।
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.87">इ</span></h2>
<ul>
<li> इंसान को आंका जाता है अपने काम से। जब काम व उत्तम विचार मिलकर काम करें तो मुख पर एक नया - सा, अलग - सा तेज़ आ जाता है।
</li>
<li> इन्सान का जन्म ही, दर्द एवं पीडा के साथ होता है। अत: जीवन भर
जीवन में काँटे रहेंगे। उन काँटों के बीच तुम्हें गुलाब के फूलों की तरह,
अपने जीवन-पुष्प को विकसित करना है।
</li>
<li> इन दोनों व्यक्तियों के गले में पत्थर बाँधकर पानी में डूबा देना
चाहिए- एक दान न करने वाला धनिक तथा दूसरा परिश्रम न करने वाला दरिद्र।
</li>
<li> इस दुनिया में ना कोई ज़िन्दगी जीता है, ना कोई मरता है, सभी सिर्फ़ अपना-अपना कर्ज़ चुकाते हैं।
</li>
<li> इस संसार में कमज़ोर रहना सबसे बड़ा अपराध है।
</li>
<li> इस संसार में अनेक विचार, अनेक आदर्श, अनेक प्रलोभन और अनेक भ्रम भरे पड़े हैं।
</li>
<li> इस संसार में प्यार करने लायक़ दो वस्तुएँ हैं - एक दु:ख और दूसरा श्रम। दुख के बिना <a href="http://hi.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%B9%E0%A5%83%E0%A4%A6%E0%A4%AF" title="हृदय">हृदय</a> निर्मल नहीं होता और श्रम के बिना मनुष्यत्व का विकास नहीं होता।
</li>
<li> 'इदं राष्ट्राय इदन्न मम' मेरा यह जीवन राष्ट्र के लिए है।
</li>
<li> इन दिनों जाग्रत् <a href="http://hi.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%86%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BE" title="आत्मा">आत्मा</a>
मूक दर्शक बनकर न रहे। बिना किसी के समर्थन, विरोध की परवाह किए
आत्म-प्रेरणा के सहारे स्वयंमेव अपनी दिशाधारा का निर्माण-निर्धारण करें।
</li>
<li> इस युग की सबसे बड़ी शक्ति शस्त्र नहीं, सद्विचार है।
</li>
<li> इतराने में नहीं, श्रेष्ठ कार्यों में ऐश्वर्य का उपयोग करो।
</li>
<li> इस बात पर संदेह नहीं करना चाहिये कि विचारवान और उत्साही
व्यक्तियों का एक छोटा सा समूह इस संसार को बदल सकता है। वास्तव मे इस
संसार को छोटे से समूह ने ही बदला है।
</li>
<li> इतिहास और पुराण साक्षी हैं कि मनुष्य के संकल्प के सम्मुख देव-दानव सभी पराजित हो जाते हैं।
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.88">ई</span></h2>
<ul>
<li> <b>ईश्वर</b> की शरण में गए बगैर साधना पूर्ण नहीं होती।
</li>
<li> ईश्वर उपासना की सर्वोपरि सब रोग नाशक औषधि का आप नित्य सेवन करें।
</li>
<li> ईश्वर अर्थात् मानवी गरिमा के अनुरूप अपने को ढालने के लिए विवश करने की व्यवस्था।
</li>
<li> ईमान और भगवान ही मनुष्य के सच्चे मित्र है।
</li>
<li> ईश्वर ने आदमी को अपनी अनुकृतिका बनाया।
</li>
<li> ईश्वर एक ही समय में सर्वत्र उपस्थित नहीं हो सकता था , अतः उसने ‘मां’ बनाया।
</li>
<li> <b>ईमानदार</b> होने का अर्थ है - हज़ार मनकों में अलग चमकने वाला हीरा।
</li>
<li> ईमानदारी, खरा आदमी, भलेमानस-यह तीन उपाधि यदि आपको अपने
अन्तस्तल से मिलती है तो समझ लीजिए कि आपने जीवन फल प्राप्त कर लिया,
स्वर्ग का राज्य अपनी मुट्ठी में ले लिया।
</li>
<li> ईष्र्या न करें, प्रेरणा ग्रहण करें।
</li>
<li> ईष्र्या आदमी को उसी तरह खा जाती है, जैसे कपड़े को कीड़ा।
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.89">उ</span></h2>
<ul>
<li> उसकी जय कभी नहीं हो सकती, जिसका दिल पवित्र नहीं है।
</li>
<li> उठो, जागो और लक्ष्य प्राप्ति होने तक मत रुको।
</li>
<li> उठो, जागो और तब तक रुको नहीं जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाये।
</li>
<li> उच्चस्तरीय महत्त्वाकांक्षा एक ही है कि अपने को इस स्तर तक सुविस्तृत बनाया जाय कि दूसरों का मार्गदर्शन कर सकना संभव हो सके।
</li>
<li> उच्चस्तरीय स्वार्थ का नाम ही परमार्थ है। परमार्थ के लिये त्याग
आवश्यक है पर यह एक बहुत बडा निवेश है जो घाटा उठाने की स्थिति में नहीं
आने देता।
</li>
<li> उदारता, सेवा, सहानुभूति और मधुरता का व्यवहार ही परमार्थ का सार है।
</li>
<li> उतावला आदमी सफलता के अवसरों को बहुधा हाथ से गँवा ही देता है।
</li>
<li> उपदेश देना सरल है, उपाय बताना कठिन।
</li>
<li> उत्कर्ष के साथ संघर्ष न छोड़ो!
</li>
<li> उत्तम पुस्तकें जाग्रत् देवता हैं। उनके अध्ययन-मनन-चिंतन के द्वारा पूजा करने पर तत्काल ही वरदान पाया जा सकता है।
</li>
<li> ‘उत्तम होना’ एक कार्य नहीं बल्कि स्वभाव होता है।
</li>
<li> उत्तम ज्ञान और सद्विचार कभी भी नष्ट नहीं होते हैं।
</li>
<li> उत्कृष्टता का दृष्टिकोण ही जीवन को सुरक्षित एवं सुविकसित बनाने एकमात्र उपाय है।
</li>
<li> उत्कृष्ट जीवन का स्वरूप है- दूसरों के प्रति नम्र और अपने प्रति कठोर होना।
</li>
<li> उनसे दूर रहो जो भविष्य को निराशाजनक बताते हैं।
</li>
<li> उपासना सच्ची तभी है, जब जीवन में ईश्वर घुल जाए।
</li>
<li> उन्नति के किसी भी अवसर को खोना नहीं चाहिए।
</li>
<li> उनकी प्रशंसा करो जो धर्म पर दृढ़ हैं। उनके गुणगान न करो, जिनने अनीति से सफलता प्राप्त की।
</li>
<li> उनकी नकल न करें जिनने अनीतिपूर्वक कमाया और दुव्र्यसनों में
उड़ाया। बुद्धिमान कहलाना आवश्यक नहीं। चतुरता की दृष्टि से पक्षियों में
कौवे को और जानवरों में चीते को प्रमुख गिना जाता है। ऐसे चतुरों और
दुस्साहसियों की बिरादरी जेलखानों में बनी रहती है। ओछों की नकल न करें।
आदर्शों की स्थापना करते समय श्रेष्ठ, सज्जनों को, उदार महामानवों को ही
सामने रखें।
</li>
<li> उद्धेश्य निश्चित कर लेने से आपके मनोभाव आपके आशापूर्ण विचार
आपकी महत्वकांक्षाये एक चुम्बक का काम करती हैं। वे आपके उद्धेश्य की
सिद्धी को सफलता की ओर खींचती हैं।
</li>
<li> उद्धेश्य प्राप्ति हेतु कर्म, विचार और भावना का धु्रवीकरण करना चाहिये।
</li>
<li> उनसे कभी मित्रता न कर, जो तुमसे बेहतर नहीं।
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.8A">ऊ</span></h2>
<ul>
<li> ऊंचे उद्देश्य का निर्धारण करने वाला ही उज्ज्वल भविष्य को देखता है।
</li>
<li> ऊँचे सिद्धान्तों को अपने जीवन में धारण करने की हिम्मत का नाम है - अध्यात्म।
</li>
<li> ऊँचे उठो, प्रसुप्त को जगाओं, जो महान है उसका अवलम्बन करो ओर आगे बढ़ो।
</li>
<li> ऊद्यम ही सफलता की कुंजी है।
</li>
<li> ऊपर की ओर चढ़ना कभी भी दूसरों को पैर के नीचे दबाकर नहीं किया जा सकता वरना ऐसी सफलता भूत बनकर आपका भविष्य बिगाड़ देगी।
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.8F">ए</span></h2>
<ul>
<li> एक ही पुत्र यदि विद्वान और अच्छे स्वभाव वाला हो तो उससे परिवार
को ऐसी ही खुशी होती है, जिस प्रकार एक चन्द्रमा के उत्पन्न होने पर काली
रात चांदनी से खिल उठती है।
</li>
<li> एक <b>झूठ</b> छिपाने के लिये दस झूठ बोलने पडते हैं।
</li>
<li> एक गुण समस्त दोषो को ढक लेता है।
</li>
<li> एक सत्य का आधार ही व्यक्ति को भवसागर से पार कर देता है।
</li>
<li> एक बार लक्ष्य निर्धारित करने के बाद बाधाओं और व्यवधानों के भय
से उसे छोड़ देना कायरता है। इस कायरता का कलंक किसी भी सत्पुरुष को नहीं
लेना चाहिए।
</li>
<li> एकांगी अथवा पक्षपाती मस्तिष्क कभी भी अच्छा मित्र नहीं रहता।
</li>
<li> एकाग्रता से ही विजय मिलती है।
</li>
<li> एक शेर को भी मक्खियों से अपनी रक्षा करनी पड़ती है।
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.95">क</span></h2>
<ul>
<li> कोई भी साधना कितनी ही ऊँची क्यों न हो, सत्य के बिना सफल नहीं हो सकती।
</li>
<li> कोई भी कठिनाई क्यों न हो, अगर हम सचमुच शान्त रहें तो समाधान मिल जाएगा।
</li>
<li> कोई भी कार्य सही या गलत नहीं होता, हमारी सोच उसे सही या गलत बनाती है।
</li>
<li> कोई भी इतना धनि नहीं कि पड़ौसी के बिना काम चला सके।
</li>
<li> कोई अपनी चमड़ी उखाड़ कर भीतर का अंतरंग परखने लगे तो उसे मांस
और हड्डियों में एक तत्व उफनता दृष्टिगोचर होगा, वह है असीम प्रेम। हमने
जीवन में एक ही उपार्जन किया है प्रेम। एक ही संपदा कमाई है - प्रेम। एक ही
रस हमने चखा है वह है प्रेम का।
</li>
<li> कई बच्चे हज़ारों मील दूर बैठे भी माता - पिता से दूर नहीं होते और कई घर में साथ रहते हुई भी हज़ारों मील दूर होते हैं।
</li>
<li> <b>कर्म</b> सरल है, विचार कठिन।
</li>
<li> कर्म करने में ही अधिकार है, फल में नहीं।
</li>
<li> कर्म ही मेरा धर्म है। कर्म ही मेरी पूजा है।
</li>
<li> कर्म करनी ही उपासना करना है, विजय प्राप्त करनी ही त्याग करना
है। स्वयं जीवन ही धर्म है, इसे प्राप्त करना और अधिकार रखना उतना ही कठोर
है जितना कि इसका त्याग करना और विमुख होना।
</li>
<li> कर्म ही पूजा है और कर्त्तव्य पालन भक्ति है।
</li>
<li> कर्म भूमि पर फ़ल के लिए श्रम सबको करना पड़ता है। रब सिर्फ़ लकीरें देता है रंग हमको भरना पड़ता है।
</li>
<li> किसी को आत्म-विश्वास जगाने वाला प्रोत्साहन देना ही सर्वोत्तम उपहार है।
</li>
<li> किसी सदुद्देश्य के लिए जीवन भर कठिनाइयों से जूझते रहना ही महापुरुष होना है।
</li>
<li> किसी महान उद्देश्य को न चलना उतनी लज्जा की बात नहीं होती, जितनी कि चलने के बाद कठिनाइयों के भय से पीछे हट जाना।
</li>
<li> किसी को ग़लत मार्ग पर ले जाने वाली सलाह मत दो।
</li>
<li> किसी के दुर्वचन कहने पर क्रोध न करना क्षमा कहलाता है।
</li>
<li> किसी से ईर्ष्या करके मनुष्य उसका तो कुछ बिगाड़ नहीं सकता है, पर अपनी निद्रा, अपना सुख और अपना सुख-संतोष अवश्य खो देता है।
</li>
<li> किसी महान उद्देश्य को लेकर न चलना उतनी लज्जा की बात नहीं होती,
जितनी कि चलने के बाद कठिनाइयों के भय से रुक जाना अथवा पीछे हट जाना।
</li>
<li> किसी वस्तु की इच्छा कर लेने मात्र से ही वह हासिल नहीं होती, इच्छा पूर्ति के लिए कठोर परिश्रम व प्रयत्न आवश्यक होता हैं।
</li>
<li> किसी बेईमानी का कोई सच्चा मित्र नहीं होता।
</li>
<li> किसी समाज, देश या व्यक्ति का गौरव अन्याय के विरुद्ध लड़ने में ही परखा जा सकता है।
</li>
<li> किसी का अमंगल चाहने पर स्वयं पहले अपना अमंगल होता है।
</li>
<li> किसी भी व्यक्ति को मर्यादा में रखने के लिये तीन कारण
ज़िम्मेदार होते हैं - व्यक्ति का मष्तिष्क, शारीरिक संरचना और
कार्यप्रणाली, तभी उसके व्यक्तित्व का सामान्य विकास हो पाता है।
</li>
<li> किसी का बुरा मत सोचो; क्योंकि बुरा सोचते-सोचते एक दिन अच्छा-भला व्यक्ति भी बुरे रास्ते पर चल पड़ता है।
</li>
<li> किसी आदर्श के लिए हँसते-हँसते जीवन का उत्सर्ग कर देना सबसे बड़ी बहादुरी है।
</li>
<li> किसी को हृदय से प्रेम करना शक्ति प्रदान करता है और किसी के द्वारा हृदय से प्रेम किया जाना साहस।
</li>
<li> किसी का मनोबल बढ़ाने से बढ़कर और अनुदान इस संसार में नहीं है।
</li>
<li> <b>काल (समय)</b> सबसे बड़ा देवता है, उसका निरादर मत करा॥
</li>
<li> कामना करने वाले कभी भक्त नहीं हो सकते। भक्त शब्द के साथ में भगवान की इच्छा पूरी करने की बात जुड़ी रहती है।
</li>
<li> कर्त्तव्यों के विषय में आने वाले कल की कल्पना एक अंध-विश्वास है।
</li>
<li> कर्त्तव्य पालन ही जीवन का सच्चा मूल्य है।
</li>
<li> कभी-कभी मौन से श्रेष्ठ उत्तर नहीं होता, यह मंत्र याद रखो और
किसी बात के उत्तर नहीं देना चाहते हो तो हंसकर पूछो- आप यह क्यों जानना
चाहते हों?
</li>
<li> क्रोध बुद्धि को समाप्त कर देता है। जब क्रोध समाप्त हो जाता है तो बाद में बहुत पश्चाताप होता है।
</li>
<li> क्रोध का प्रत्येक मिनट आपकी साठ सेकण्डों की खुशी को छीन लेता है।
</li>
<li> कल की असफलता वह बीज है जिसे आज बोने पर आने वाले कल में सफलता का फल मिलता है।
</li>
<li> कठिन परिश्रम का कोई भी विकल्प नहीं होता।
</li>
<li> कुमति व कुसंगति को छोड़ अगर सुमति व सुसंगति को बढाते जायेंगे तो एक दिन सुमार्ग को आप अवश्य पा लेंगे।
</li>
<li> कुकर्मी से बढ़कर अभागा और कोई नहीं है; क्योंकि विपत्ति में उसका कोई साथी नहीं होता।
</li>
<li> कार्य उद्यम से सिद्ध होते हैं, मनोरथों से नहीं।
</li>
<li> कुचक्र, छद्म और आतंक के बलबूते उपार्जित की गई सफलताएँ जादू के
तमाशे में हथेली पर सरसों जमाने जैसे चमत्कार दिखाकर तिरोहित हो जाती हैं।
बिना जड़ का पेड़ कब तक टिकेगा और किस प्रकार फलेगा-फूलेगा।
</li>
<li> केवल ज्ञान ही एक ऐसा अक्षय तत्त्व है, जो कहीं भी, किसी अवस्था और किसी काल में भी मनुष्य का साथ नहीं छोड़ता।
</li>
<li> काम छोटा हो या बड़ा, उसकी उत्कृष्टता ही करने वाले का गौरव है।
</li>
<li> कीर्ति वीरोचित कार्यों की सुगन्ध है।
</li>
<li> कायर मृत्यु से पूर्व अनेकों बार मर चुकता है, जबकि बहादुर को मरने के दिन ही मरना पड़ता है।
</li>
<li> करना तो बड़ा काम, नहीं तो बैठे रहना, यह दुराग्रह मूर्खतापूर्ण है।
</li>
<li> कुसंगी है कोयलों की तरह, यदि गर्म होंगे तो जलाएँगे और ठंडे होंगे तो हाथ और वस्त्र काले करेंगे।
</li>
<li> क्या तुम नहीं अनुभव करते कि दूसरों के ऊपर निर्भर रहना
बुद्धिमानी नहीं है। बुद्धिमान व्यक्ति को अपने ही पैरों पर दृढता पूर्वक
खडा होकर कार्य करना चहिए। धीरे धीरे सब कुछ ठीक हो जाएगा।
</li>
<li> कमज़ोरी का इलाज कमज़ोरी का विचार करना नहीं, पर शक्ति का विचार करना है। मनुष्यों को शक्ति की शिक्षा दो, जो पहले से ही उनमें हैं।
</li>
<li> काली मुरग़ी भी सफ़ेद अंडा देती है।
</li>
<li> कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो इसलिए आत्महत्या नहीं करते क्योंकि उन्हें लगता है कि लोग क्या कहेंगे।
</li>
<li> कुछ लोग दुर्भीति (Phobia) के शिकार हो जाते हैं उन्हें उनकी
क्षमता पर पूरा विश्वास नहीं रहता और वे सोचते हैं प्रतियोगिता के दौड़ में
अन्य प्रतियोगी आगे निकल जायेंगे।
</li>
<li> कंजूस के पास जितना होता है उतना ही वह उस के लिए तरसता है जो उस के पास नहीं होता।
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.96">ख</span></h2>
<ul>
<li> खुशामद बड़े-बड़ों को ले डूबती है।
</li>
<li> खुद साफ रहो, सुरक्षित रहो और औरों को भी रोगों से बचाओं।
</li>
<li> खरे बनिये, खरा काम कीजिए और खरी बात कहिए। इससे आपका हृदय हल्का रहेगा।
</li>
<li> खुश होने का यह अर्थ नहीं है कि जीवन में पूर्णता है बल्कि इसका
अर्थ है कि आपने जीवन की अपूर्णता से परे रहने का निश्चय कर लिया है।
</li>
<li> खेती, पाती, बीनती, औ घोड़े की तंग । अपने हाथ संवारिये चाहे लाख
लोग हो संग ।। खेती करना, पत्र लिखना और पढ़ना, तथा घोड़ा या जिस वाहन पर
सवारी करनी हो उसकी जॉंच और तैयारी मनुष्य को स्वयं ही खुद करना चाहिये
भले ही लाखों लोग साथ हों और अनेकों सेवक हों, वरना मनुष्य का नुकसान तय
शुदा है।
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.97">ग</span></h2>
<ul>
<li> गुण व कर्म से ही व्यक्ति स्वयं को ऊपर उठाता है। जैसे कमल कहाँ
पैदा हुआ, इसमें विशेषता नहीं, बल्कि विशेषता इसमें है कि, कीचड़ में रहकर
भी उसने स्वयं को ऊपर उठाया है।
</li>
<li> गुण और दोष प्रत्येक व्यक्ति में होते हैं, योग से जुड़ने के बाद दोषों का शमन हो जाता है और गुणों में बढ़ोत्तरी होने लगती है।
</li>
<li> गुण, कर्म और स्वभाव का परिष्कार ही अपनी सच्ची सेवा है।
</li>
<li> गुण ही नारी का सच्चा आभूषण है।
</li>
<li> गुणों की वृद्धि और क्षय तो अपने कर्मों से होता है।
</li>
<li> गृहस्थ एक तपोवन है, जिसमें संयम, सेवा और सहिष्णुता की साधना करनी पड़ती है।
</li>
<li> गायत्री उपासना का अधिकर हर किसी को है। मनुष्य मात्र बिना किसी भेदभाव के उसे कर सकता है।
</li>
<li> ग़लती को ढूढना, मानना और सुधारना ही मनुष्य का बड़प्पन है।
</li>
<li> गलती करना मनुष्यत्व है और क्षमा करना देवत्व।
</li>
<li> गृहसि एक तपोवन है जिसमें संयम, सेवा, त्याग और सहिष्णुता की साधना करनी पड़ती है।
</li>
<li> गंगा की गोद, हिमालय की छाया, ऋषि विश्वामित्र की तप:स्थली,
अजस्त्र प्राण ऊर्जा का उद्भव स्रोत गायत्री तीर्थ शान्तिकुञ्ज जैसा
जीवन्त स्थान उपासना के लिए दूसरा ढूँढ सकना कठिन है।
</li>
<li> गाली-गलौज, कर्कश, कटु भाषण, अश्लील मजाक, कामोत्तेजक गीत,
निन्दा, चुगली, व्यंग, क्रोध एवं आवेश भरा उच्चारण, वाणी की रुग्णता प्रकट
करते हैं। ऐसे शब्द दूसरों के लिए ही मर्मभेदी नहीं होते वरन् अपने लिए भी
घातक परिणाम उत्पन्न करते हैं।
</li>
<li> खेती, पाती, बीनती, औ घोड़े की तंग । अपने हाथ संवारिये चाहे लाख
लोग हो संग ।। खेती करना, पत्र लिखना और पढ़ना, तथा घोड़ा या जिस वाहन पर
सवारी करनी हो उसकी जॉंच और तैयारी मनुष्य को स्वयं ही खुद करना चाहिये
भले ही लाखों लोग साथ हों और अनेकों सेवक हों, वरना मनुष्य का नुकसान तय
शुदा है।
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.98">घ</span></h2>
<ul>
<li> घृणा करने वाला निन्दा, द्वेष, ईर्ष्या करने वाले व्यक्ति को यह
डर भी हमेशा सताये रहता है, कि जिससे मैं घृणा करता हूँ, कहीं वह भी मेरी
निन्दा व मुझसे घृणा न करना शुरू कर दे।
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.9A">च</span></h2>
<ul>
<li> चरित्र का अर्थ है - अपने महान मानवीय उत्तरदायित्वों का महत्त्व समझना और उसका हर कीमत पर निर्वाह करना।
</li>
<li> चरित्र ही मनुष्य की श्रेष्ठता का उत्तम मापदण्ड है।
</li>
<li> चरित्रवान् व्यक्ति ही किसी राष्ट्र की वास्तविक सम्पदा है। - वाङ्गमय
</li>
<li> चरित्रवान व्यक्ति ही सच्चे अर्थों में भगवद् भक्त हैं।
</li>
<li> चरित्रनिष्ठ व्यक्ति ईश्वर के समान है।
</li>
<li> चिंतन और मनन बिना पुस्तक बिना साथी का स्वाध्याय-सत्संग ही है।
</li>
<li> चिता मरे को जलाती है, पर चिन्ता तो जीवित को ही जला डालती है।
</li>
<li> चोर, उचक्के, व्यसनी, जुआरी भी अपनी बिरादरी निरंतर बढ़ाते रहते
हैं । इसका एक ही कारण है कि उनका चरित्र और चिंतन एक होता है। दोनों के
मिलन पर ही प्रभावोत्पादक शक्ति का उद्भव होता है। किंतु आदर्शों के
क्षेत्र में यही सबसे बड़ी कमी है।
</li>
<li> चेतना के भावपक्ष को उच्चस्तरीय उत्कृष्टता के साथ एकात्म कर देने को 'योग' कहते हैं।
</li>
<li> चिल्ला कर और झल्ला कर बातें करना, बिना सलाह मांगे सलाह देना,
किसी की मजबूरी में अपनी अहमियत दर्शाना और सिद्ध करना, ये कार्य दुनियां
का सबसे कमज़ोर और असहाय व्यक्ति करता है, जो खुद को ताकतवर समझता है और
जीवन भर बेवकूफ बनता है, घृणा का पात्र बन कर दर दर की ठोकरें खाता है।
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.9C">ज</span></h2>
<ul>
<li> जीवन का महत्त्वा इसलिये है, ख्योंकी मृत्यु है। मृत्यु न हो तो
जिन्दगी बोझ बन जायेगी. इसलिये मृत्यु को दोस्त बनाओ, उसी दरो नहीं।
</li>
<li> जीवन का हर क्षण उज्ज्वल भविष्य की संभावना लेकर आता है।
</li>
<li> जीवन का अर्थ है समय। जो जीवन से प्यार करते हों, वे आलस्य में समय न गँवाएँ।
</li>
<li> जीवन को विपत्तियों से धर्म ही सुरक्षित रख सकता है।
</li>
<li> जीवन चलते रहने का नाम है। सोने वाला सतयुग में रहता है, बैठने
वाला द्वापर में, उठ खडा होने वाला त्रेता में, और चलने वाला सतयुग में,
इसलिए चलते रहो।
</li>
<li> जीवन उसी का धन्य है जो अनेकों को प्रकाश दे। प्रभाव उसी का धन्य है जिसके द्वारा अनेकों में आशा जाग्रत हो।
</li>
<li> जीवन एक परख और कसौटी है जिसमें अपनी सामथ्र्य का परिचय देने पर ही कुछ पा सकना संभव होता है।
</li>
<li> जीवन की सफलता के लिए यह नितांत आवश्यक है कि हम विवेकशील और दूरदर्शी बनें।
</li>
<li> जीवन की माप जीवन में ली गई साँसों की संख्या से नहीं होती बल्कि उन क्षणों की संख्या से होती है जो हमारी साँसें रोक देती हैं।
</li>
<li> जीवन भगवान की सबसे बड़ी सौगात है। मनुष्य का जन्म हमारे लिए भगवान का सबसे बड़ा उपहार है।
</li>
<li> जीवन के आनन्द गौरव के साथ, सम्मान के साथ और स्वाभिमान के साथ जीने में है।
</li>
<li> जीवन के प्रकाशवान् क्षण वे हैं, जो सत्कर्म करते हुए बीते।
</li>
<li> जीवन साधना का अर्थ है - अपने समय, श्रम ओर साधनों का कण-कण उपयोगी दिशा में नियोजित किये रहना। - वाङ्गमय
</li>
<li> जीवन दिन काटने के लिए नहीं, कुछ महान कार्य करने के लिए है।
</li>
<li> जीवन उसी का सार्थक है, जो सदा परोपकार में प्रवृत्त है।
</li>
<li> जीवन एक पाठशाला है, जिसमें अनुभवों के आधार पर हम शिक्षा प्राप्त करते हैं।
</li>
<li> जीवन एक परीक्षा है। उसे परीक्षा की कसौटी पर सर्वत्र कसा जाता है।
</li>
<li> जीवन एक पुष्प है और प्रेम उसका मधु है।
</li>
<li> जीवन और मृत्यु में, सुख और दुःख मे ईश्वर समान रूप से विद्यमान
है। समस्त विश्व ईश्वर से पूर्ण हैं। अपने नेत्र खोलों और उसे देखों।
</li>
<li> जीवन में एक मित्र मिल गया तो बहुत है, दो बहुत अधिक है, तीन तो
मिल ही नहीं सकते।
</li>
<li> जीवनी शक्ति पेड़ों की जड़ों की तरह भीतर से ही उपजती है।
</li>
<li> जीवनोद्देश्य की खोज ही सबसे बड़ा सौभाग्य है। उसे और कहीं ढूँढ़ने की अपेक्षा अपने हृदय में ढूँढ़ना चाहिए।
</li>
<li> जब भी आपको महसूस हो, आपसे ग़लती हो गयी है, उसे सुधारने के उपाय तुरंत शुरू करो।
</li>
<li> जब कभी भी हारो, हार के कारणों को मत भूलो।
</li>
<li> जब हम किसी पशु-पक्षी की आत्मा को दु:ख पहुँचाते हैं, तो स्वयं अपनी आत्मा को दु:ख पहुँचाते हैं।
</li>
<li> जब तक मानव के मन में मैं (अहंकार) है, तब तक वह शुभ कार्य नहीं
कर सकता, क्योंकि मैं स्वार्थपूर्ति करता है और शुद्धता से दूर रहता है।
</li>
<li> जब आगे बढ़ना कठिन होता है, तब कठिन परिश्रमी ही आगे बढ़ता है।
</li>
<li> जब तक मनुष्य का लक्ष्य भोग रहेगा, तब तक पाप की जड़ें भी विकसित होती रहेंगी।
</li>
<li> जब अंतराल हुलसता है, तो तर्कवादी के कुतर्की विचार भी ठण्डे पड़ जाते हैं।
</li>
<li> जब मनुष्य दूसरों को भी अपना जीवन सार्थक करने को प्रेरित करता है तो मनुष्य के जीवन में सार्थकता आती है।
</li>
<li> जब तक तुम स्वयं अपने अज्ञान को दूर करने के लिए कटिबद्ध नहीं होत, तब तक कोई तुम्हारा उद्धार नहीं कर सकता।
</li>
<li> जब तक आत्मविश्वास रूपी सेनापति आगे नहीं बढ़ता तब तक सब शक्तियाँ चुपचाप खड़ी उसका मुँह ताकती रहती हैं।
</li>
<li> जब संकटों के बादल सिर पर मँडरा रहे हों तब भी मनुष्य को धैर्य
नहीं छोड़ना चाहिए। धैर्यवान व्यक्ति भीषण परिस्थितियों में भी विजयी होते
हैं।
</li>
<li> जब मेरा अन्तर्जागरण हुआ, तो मैंने स्वयं को संबोधि वृक्ष की छाया में पूर्ण तृप्त पाया।
</li>
<li> जब आत्मा मन से, मन इन्द्रिय से और इन्द्रिय विषय से जुडता है, तभी ज्ञान प्राप्त हो पाता है।
</li>
<li> जब-जब <a href="http://hi.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%B9%E0%A5%83%E0%A4%A6%E0%A4%AF" title="हृदय">हृदय</a> की विशालता बढ़ती है, तो मन प्रफुल्लित होकर आनंद की प्राप्ति कर्ता है और जब संकीर्ण मन होता है, तो व्यक्ति दुःख भोगता है।
</li>
<li> जिस तरह से एक ही सूखे वृक्ष में आग लगने से सारा जंगल जलकर राख
हो सकता है, उसी प्रकार एक मूर्ख पुत्र सारे कुल को नष्ट कर देता है।
</li>
<li> जिस में दया नहीं, उस में कोई सदगुण नहीं।
</li>
<li> जिस प्रकार सुगन्धित फूलों से लदा एक वृक्ष सारे जंगले को सुगन्धित कर देता है, उसी प्रकार एक सुपुत्र से वंश की शोभा बढती है।
</li>
<li> जिस प्रकार मैले दर्पण में सूरज का प्रतिबिम्ब नहीं पड़ता, उसी
प्रकार मलिन अंत:करण में ईश्वर के प्रकाश का प्रतिबिम्ब नहीं पड़ सकता।
</li>
<li> जिस तेज़ी से विज्ञान की प्रगति के साथ उपभोग की वस्तुएँ प्रचुर
मात्रा में बनना शुरू हो गयी हैं, वे मनुष्य के लिये पिंजरा बन रही हैं।
</li>
<li> जिस व्यक्ति का मन चंचल रहता है, उसकी कार्यसिद्धि नहीं होती।
</li>
<li> जिस राष्ट्र में विद्वान् सताए जाते हैं, वह विपत्तिग्रस्त होकर
वैसे ही नष्ट हो जाता है, जैसे टूटी नौका जल में डूबकर नष्ट हो जाती है।
</li>
<li> जिस कर्म से किन्हीं मनुष्यों या अन्य प्राणियों को किसी भी प्रकार का कष्ट या हानि पहुंचे, वे ही दुष्कर्म कहलाते हैं।
</li>
<li> जिस आदर्श के व्यवहार का प्रभाव न हो, वह फिजूल है और जो व्यवहार आदर्श प्रेरित न हो, वह भयंकर है।
</li>
<li> जिस आदर्श के व्यवहार का प्रभाव न हो, वह फिजूल और जो व्यवहार आदर्श प्रेरित न हो, वह भयंकर है।
</li>
<li> जिस भी भले बुरे रास्ते पर चला जाये उस पर साथी - सहयोगी तो
मिलते ही रहते हैं। इस दुनियाँ में न भलाई की कमी है, न बुराई की। पसंदगी
अपनी, हिम्मत अपनी, सहायता दुनियाँ की।
</li>
<li> जिस प्रकार <a href="http://hi.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%AF" title="हिमालय">हिमालय</a>
का वक्ष चीरकर निकलने वाली गंगा अपने प्रियतम समुद्र से मिलने का लक्ष्य
प्राप्त करने के लिए तीर की तरह बहती-सनसनाती बढ़ती चली जाती है और उसक
मार्ग रोकने वाले चट्टान चूर-चूर होते चले जाते हैं उसी प्रकार पुषार्थी
मनुष्य अपने लक्ष्य को अपनी तत्परता एवं प्रखरता के आधार पर प्राप्त कर
सकता है।
</li>
<li> जिस दिन, जिस क्षण किसी के अंदर बुरा विचार आये अथवा कोई
दुष्कर्म करने की प्रवृत्ति उपजे, मानना चाहिए कि वह दिन-वह क्षण मनुष्य के
लिए अशुभ है।
</li>
<li> जो कार्य प्रारंभ में कष्टदायक होते हैं, वे परिणाम में अत्यंत सुखदायक होते हैं।
</li>
<li> जो मिला है और मिल रहा है, उससे संतुष्ट रहो।
</li>
<li> जो दानदाता इस भावना से सुपात्र को दान देता है कि, तेरी
(परमात्मा) वस्तु तुझे ही अर्पित है; परमात्मा उसे अपना प्रिय सखा बनाकर
उसका हाथ थामकर उसके लिये धनों के द्वार खोल देता है; क्योंकि मित्रता सदैव
समान विचार और कर्मों के कर्ता में ही होती है, विपरीत वालों में नहीं।
</li>
<li> जो व्यक्ति कभी कुछ कभी कुछ करते हैं, वे अन्तत: कहीं भी नहीं पहुँच पाते।
</li>
<li> जो सच्चाई के मार्ग पर चलता है, वह भटकता नहीं।
</li>
<li> जो न दान देता है, न भोग करता है, उसका धन स्वतः नष्ट हो जाता है। अतः योग्य पात्र को दान देना चाहिए।
</li>
<li> जो व्यक्ति हर स्थिति में प्रसन्न और शांत रहना सीख लेता है, वह जीने की कला प्राणी मात्र के लिये कल्याणकारी है।
</li>
<li> जो व्यक्ति आचरण की पोथी को नहीं पढता, उसके पृष्ठों को नहीं पलटता, वह भला दूसरों का क्या भला कर पायेगा।
</li>
<li> जो व्यक्ति शत्रु से मित्र होकर मिलता है, व धूल से धन बना सकता है।
</li>
<li> जो मनुष्य अपने समीप रहने वालों की तो सहायता नहीं करता, किन्तु दूरस्थ की सहायता करता है, उसका दान, दान न होकर दिखावा है।
</li>
<li> जो आलस्य और कुकर्म से जितना बचता है, वह ईश्वर का उतना ही बड़ा भक्त है।
</li>
<li> जो टूटे को बनाना, रूठे को मनाना जानता है, वही बुद्धिमान है।
</li>
<li> जो जैसा सोचता है और करता है, वह वैसा ही बन जाता है।
</li>
<li> जो अपनी राह बनाता है वह सफलता के शिखर पर चढ़ता है; पर जो औरों की राह ताकता है सफलता उसकी मुँह ताकती रहती है।
</li>
<li> जो बच्चों को सिखाते हैं, उन पर बड़े खुद अमल करें, तो यह संसार स्वर्ग बन जाय।
</li>
<li> जो प्रेरणा पाप बनकर अपने लिए भयानक हो उठे, उसका परित्याग कर देना ही उचित है।
</li>
<li> जो क्षमा करता है और बीती बातों को भूल जाता है, उसे ईश्वर पुरस्कार देता है।
</li>
<li> जो संसार से ग्रसित रहता है, वह बुद्धू तो हो सकता; लेकिन बुद्ध नहीं हो सकता।
</li>
<li> जो किसी की निन्दा स्तुति में ही अपने समय को बर्बाद करता है, वह बेचारा दया का पात्र है, अबोध है।
</li>
<li> जो मनुष्य मन, वचन और कर्म से, ग़लत कार्यों से बचा रहता है, वह स्वयं भी प्रसन्न रहता है।।
</li>
<li> जो दूसरों को <b>धोखा</b> देना चाहता है, वास्तव में वह अपने आपको ही धोखा देता है।
</li>
<li> जो बीत गया सो गया, जो आने वाला है वह अज्ञात है! लेकिन वर्तमान तो हमारे हाथ में है।
</li>
<li> जो तुम दूसरों से चाहते हो, उसे पहले तुम स्वयं करो।
</li>
<li> जो असत्य को अपनाता है, वह सब कुछ खो बैठता है।
</li>
<li> जो लोग डरने, घबराने में जितनी शक्ति नष्ट करते हैं, उसकी आधी भी
यदि प्रस्तुत कठिनाइयों से निपटने का उपाय सोचने के लिए लगाये तो आधा संकट
तो अपने आप ही टल सकता है।
</li>
<li> जो मन का ग़ुलाम है, वह ईश्वर भक्त नहीं हो सकता। जो ईश्वर भक्त है, उसे मन की ग़ुलामी न स्वीकार हो सकती है, न सहन।
</li>
<li> जो लोग पाप करते हैं उन्हें एक न एक विपत्ति सवदा घेरे ही रहती
है, किन्तु जो पुण्य कर्म किया करते हैं वे सदा सुखी और प्रसन्न रह्ते हैं।
</li>
<li> जो हमारे पास है, वह हमारे उपयोग, उपभोग के लिए है यही असुर भावना है।
</li>
<li> जो तुम दूसरे से चाहते हो, उसे पहले स्वयं करो।
</li>
<li> जो हम सोचते हैं सो करते हैं और जो करते हैं सो भुगतते हैं।
</li>
<li> जो मन की शक्ति के बादशाह होते हैं, उनके चरणों पर संसार नतमस्तक होता है।
</li>
<li> जो जैसा सोचता और करता है, वह वैसा ही बन जाता है।
</li>
<li> जो महापुरुष बनने के लिए प्रयत्नशील हैं, वे धन्य है।
</li>
<li> जो शत्रु बनाने से भय खाता है, उसे कभी सच्चे मित्र नहीं मिलेंगे।
</li>
<li> जो समय को नष्ट करता है, समय भी उसे नष्ट कर देता है, समय का
हनन करने वाले व्यक्ति का चित्त सदा उद्विग्न रहता है, और वह असहाय तथा
भ्रमित होकर यूं ही भटकता रहता है, प्रति पल का उपयोग करने वाले कभी भी
पराजित नहीं हो सकते, समय का हर क्षण का उपयोग मनुष्य को विलक्षण और अदभुत
बना देता है।
</li>
<li> जो किसी से कुछ ले कर भूल जाते हैं, अपने ऊपर किये उपकार को
मानते नहीं, अहसान को भुला देते हैं उल्हें कृतघ्नी कहा जाता है, और जो
सदा इसे याद रख कर प्रति उपकार करने और अहसान चुकाने का प्रयास करते हैं
उन्हें कृतज्ञ कहा जाता है।
</li>
<li> जो विषपान कर सकता है, चाहे विष पराजय का हो, चाहे अपमान का,
वही शंकर का भक्त होने योग्य है और उसे ही शिवत्व की प्राप्ति संभव है,
अपमान और पराजय से विचलित होने वाले लोग शिव भक्त होने योग्य ही नहीं,
ऐसे लोगों की शिव पूजा केवल पाखण्ड है।
</li>
<li> जैसे का साथ तैसा वह भी ब्याज सहित व्यवहार करना ही सर्वोत्तम
नीति है, शठे शाठयम और उपदेशो हि मूर्खाणां प्रकोपाय न शान्तये के सूत्र
को अमल मे लाना ही गुणकारी उपाय है।
</li>
<li> जैसे बाहरी जीवन में युक्ति व शक्ति ज़रूरी है, वैसे ही आतंरिक जीवन के लिये मुक्ति व भक्ति आवश्यक है।
</li>
<li> जैसे प्रकृति का हर कारण उपयोगी है, ऐसे ही हमें अपने जीवन के हर क्षण को परहित में लगाकर स्वयं और सभी के लिये उपयोगी बनाना चाहिए।
</li>
<li> जैसे एक अच्छा गीत तभी सम्भव है, जब संगीत व शब्द लयबद्ध हों;
वैसे ही अच्छे नेतृत्व के लिये ज़रूरी है कि आपकी करनी एवं कथनी में अंतर न
हो।
</li>
<li> जैसा अन्न, वैसा मन।
</li>
<li> जैसा खाय अन्न, वैसा बने मन।
</li>
<li> जैसे कोरे <a href="http://hi.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A4%BC%E0%A4%9C%E0%A4%BC" title="काग़ज़">काग़ज़</a> पर ही पत्र लिखे जा सकते हैं, लिखे हुए पर नहीं, उसी प्रकार निर्मल अंत:करण पर ही योग की शिक्षा और साधना अंकित हो सकती है।
</li>
<li> जहाँ वाद - विवाद होता है, वहां श्रद्धा के फूल नहीं खिल सकते और
जहाँ जीवन में आस्था व श्रद्धा को महत्त्व न मिले, वहां जीवन नीरस हो जाता
है।
</li>
<li> जहाँ भी हो, जैसे भी हो, कर्मशील रहो, भाग्य अवश्य बदलेगा; अतः मनुष्य को कर्मवादी होना चाहिए, भाग्यवादी नहीं।
</li>
<li> जहाँ सत्य होता है, वहां लोगों की भीड़ नहीं हुआ करती; क्योंकि
सत्य ज़हर होता है और ज़हर को कोई पीना या लेना नहीं चाहता है, इसलिए आजकल
हर जगह मेला लगा रहता है।
</li>
<li> जहाँ मैं और मेरा जुड़ जाता है, वहाँ ममता, प्रेम, करुणा एवं समर्पण होते हैं।
</li>
<li> जूँ, खटमल की तरह दूसरों पर नहीं पलना चाहिए, बल्कि अंत समय तक कार्य करते जाओ; क्योंकि गतिशीलता जीवन का आवश्यक अंग है।
</li>
<li> जनसंख्या की अभिवृद्धि हज़ार समस्याओं की जन्मदात्री है।
</li>
<li> जानकारी व वैदिक ज्ञान का भार तो लोग सिर पर गधे की तरह उठाये
फिरते हैं और जल्द अहंकारी भी हो जाते हैं, लेकिन उसकी सरलता का आनंद नहीं
उठा सकते हैं।
</li>
<li> ज़्यादा पैसा कमाने की इच्छा से ग्रसित मनुष्य झूठ, कपट,
बेईमानी, धोखेबाज़ी, विश्वाघात आदि का सहारा लेकर परिणाम में दुःख ही
प्राप्त करता है।
</li>
<li> जिसने जीवन में स्नेह, सौजन्य का समुचित समावेश कर लिया, सचमुच वही सबसे बड़ा कलाकार है।
</li>
<li> जिसका <a href="http://hi.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%B9%E0%A5%83%E0%A4%A6%E0%A4%AF" title="हृदय">हृदय</a> पवित्र है, उसे अपवित्रता छू तक नहीं सकता।
</li>
<li> जिनका प्रत्येक कर्म भगवान को, आदर्शों को समर्पित होता है, वही सबसे बड़ा योगी है।
</li>
<li> जिसका मन-बुद्धि परमात्मा के प्रति वफादार है, उसे मन की शांति अवश्य मिलती है।
</li>
<li> जिसकी मुस्कुराहट कोई छीन न सके, वही असल सफ़ा व्यक्ति है।
</li>
<li> जिसकी इन्द्रियाँ वश में हैं, उसकी बुद्धि स्थिर है।
</li>
<li> जिनकी तुम प्रशंसा करते हो, उनके गुणों को अपनाओ और स्वयं भी प्रशंसा के योग्य बनो।
</li>
<li> जिसके पास कुछ नहीं रहता, उसके पास <b>भगवान</b> रहता है।
</li>
<li> जिनके अंदर ऐय्याशी, फिजूलखर्ची और विलासिता की कुर्बानी देने की हिम्मत नहीं, वे अध्यात्म से कोसों दूर हैं।
</li>
<li> जिसके मन में राग-द्वेष नहीं है और जो तृष्णा को, त्याग कर शील तथा संतोष को ग्रहण किए हुए है, वह संत पुरूष जगत के लिए जहाज है।
</li>
<li> जिसके पास कुछ भी कर्ज़ नहीं, वह बड़ा मालदार है।
</li>
<li> जिनके भीतर-बाहर एक ही बात है, वही निष्कपट व्यक्ति धन्य है।
</li>
<li> जिसने शिष्टता और नम्रता नहीं सीखी, उनका बहुत सीखना भी व्यर्थ रहा।
</li>
<li> जिन्हें लम्बी जिन्दगी जीना हो, वे बिना कड़ी भूख लगे कुछ भी न खाने की आदत डालें।
</li>
<li> जिज्ञासा के बिना ज्ञान नहीं होता।
</li>
<li> जौ भौतिक महत्त्वाकांक्षियों की बेतरह कटौती करते हुए समय की
पुकार पूरी करने के लिए बढ़े-चढ़े अनुदान प्रस्तुत करते और जिसमें महान
परम्परा छोड़ जाने की ललक उफनती रहे, यही है - प्रज्ञापुत्र शब्द का अर्थ।
</li>
<li> ज़माना तब बदलेगा, जब हम स्वयं बदलेंगे।
</li>
<li> जाग्रत आत्माएँ कभी चुप बैठी ही नहीं रह सकतीं। उनके अर्जित
संस्कार व सत्साहस युग की पुकार सुनकर उन्हें आगे बढ़ने व अवतार के
प्रयोजनों हेतु क्रियाशील होने को बाध्य कर देते हैं।
</li>
<li> जाग्रत अत्माएँ कभी अवसर नहीं चूकतीं। वे जिस उद्देश्य को लेकर अवतरित होती हैं, उसे पूरा किये बिना उन्हें चैन नहीं पड़ता।
</li>
<li> जाग्रत् आत्मा का लक्षण है- सत्यम्, शिवम् और सुन्दरम् की ओर उन्मुखता।
</li>
<li> जीभ पर काबू रखो, स्वाद के लिए नहीं, स्वास्थ्य के लिए खाओ।
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.9D">झ</span></h2>
<ul>
<li> झूठे मोती की आब और ताब उसे सच्चा नहीं बना सकती।
</li>
<li> झूठ इन्सान को अंदर से खोखला बना देता है।
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.A0">ठ</span></h2>
<ul>
<li> ठगना बुरी बात है, पर ठगाना उससे कम बुरा नहीं है।
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.A1">ड</span></h2>
<ul>
<li> डरपोक और शक्तिहीन मनुष्य भाग्य के पीछे चलता है।
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.A4.E0.A5.8D.E0.A4.B0">त्र</span></h2>
<ul>
<li> त्रुटियाँ या भूल कैसी भी हो वे आपकी प्रगति में भयंकर रूप से बाधक होती है।
</li>
</ul>
</div>Himmat singhhttp://www.blogger.com/profile/11883720728789144629noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6286200041083451768.post-67431292655605228292012-02-27T20:47:00.002-08:002012-02-27T21:14:53.500-08:00महान विचारो का संग्रह 3<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="font-size: large;"><b> अनमोल वचन</b></span>
<br />
<table class="toc" id="toc"><tbody>
<tr><td><div id="toctitle">
<h2>
विषय सूची</h2>
<span class="toctoggle">[छिपाएं]</span></div>
<ul>
<li class="toclevel-1 tocsection-1"><span class="tocnumber">1</span> <span class="toctext">स</span></li>
<li class="toclevel-1 tocsection-2"><span class="tocnumber">2</span> <span class="toctext">म</span></li>
<li class="toclevel-1 tocsection-3"><span class="tocnumber">3</span> <span class="toctext">द</span></li>
<li class="toclevel-1 tocsection-4"><span class="tocnumber">4</span> <span class="toctext">प</span></li>
<li class="toclevel-1 tocsection-5"><span class="tocnumber">5</span> <span class="toctext">व</span></li>
<li class="toclevel-1 tocsection-6"><span class="tocnumber">6</span> <span class="toctext">य</span></li>
<li class="toclevel-1 tocsection-7"><span class="tocnumber">7</span> <span class="toctext">ब</span></li>
<li class="toclevel-1 tocsection-8"><span class="tocnumber">8</span> <span class="toctext">श</span></li>
<li class="toclevel-1 tocsection-9"><span class="tocnumber">9</span> <span class="toctext">ज्ञ</span></li>
<li class="toclevel-1 tocsection-10"><span class="tocnumber">10</span> <span class="toctext">न</span></li>
<li class="toclevel-1 tocsection-11"><span class="tocnumber">11</span> <span class="toctext">ह</span></li>
<li class="toclevel-1 tocsection-12"><span class="tocnumber">12</span> <span class="toctext">ध</span></li>
<li class="toclevel-1 tocsection-13"><span class="tocnumber">13</span> <span class="toctext">भ</span></li>
<li class="toclevel-1 tocsection-14"><span class="tocnumber">14</span> <span class="toctext">ल</span></li>
<li class="toclevel-1 tocsection-15"><span class="tocnumber">15</span> <span class="toctext">र</span></li>
<li class="toclevel-1 tocsection-16"><span class="tocnumber">16</span> <span class="toctext">श्र</span></li>
<li class="toclevel-1 tocsection-17"><span class="tocnumber">17</span> <span class="toctext">त</span></li>
<li class="toclevel-1 tocsection-18"><span class="tocnumber">18</span> <span class="toctext">फ</span></li>
</ul>
</td></tr>
</tbody></table>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.B8">स</span></h2>
<ul>
<li> <b>संसार</b> की चिंता में पढ़ना तुम्हारा काम नहीं है, बल्कि जो सम्मुख आये, उसे भगवद रूप मानकर उसके अनुरूप उसकी सेवा करो।
</li>
<li> संसार के सारे दु:ख चित्त की मूर्खता के कारण होते हैं। जितनी
मूर्खता ताकतवर उतना ही दुःख मज़बूत, जितनी मूर्खता कम उतना ही दुःख कम।
मूर्खता हटी तो समझो दुःख छू-मंतर हो जायेगी।
</li>
<li> संसार का सबसे बड़ानेता है - सूर्य। वह आजीवन व्रतशील तपस्वी की तरह निरंतर नियमित रूप से अपने सेवा कार्य में संलग्न रहता है।
</li>
<li> संसार कार्यों से, कर्मों के परिणामों से चलता है।
</li>
<li> संसार का सबसे बड़ा दीवालिया वह है, जिसने उत्साह खो दिया।
</li>
<li> संसार में हर वस्तु में अच्छे और बुरे दो पहलू हैं, जो अच्छा
पहलू देखते हैं वे अच्छाई और जिन्हें केवल बुरा पहलू देखना आता है वह बुराई
संग्रह करते हैं।
</li>
<li> संसार में सच्चा सुख ईश्वर और धर्म पर विश्वास रखते हुए पूर्ण परिश्रम के साथ अपना कत्र्तव्य पालन करने में है।
</li>
<li> संसार में रहने का सच्चा तत्त्वज्ञान यही है कि प्रतिदिन एक बार खिलखिलाकर जरूर हँसना चाहिए।
</li>
<li> संसार में केवल मित्रता ही एक ऐसी चीज है जिसकी उपयोगिता के सम्बन्ध में दो मत नहीं है।
</li>
<li> सारा संसार ऐसा नहीं हो सकता, जैसा आप सोचते हैं, अतः समझौतावादी बनो।
</li>
<li> सात्त्विक स्वभाव सोने जैसा होता है, लेकिन सोने को आकृति देने के लिये थोड़ा - सा पीतल मिलाने कि जरुरत होती है।
</li>
<li> सन्यासी स्वरुप बनाने से अहंकार बढ़ता है, कपडे मत रंगवाओ, मन को रंगों तथा भीतर से सन्यासी की तरह रहो।
</li>
<li> सन्यास डरना नहीं सिखाता।
</li>
<li> संन्यास का अर्थ है, मृत्यु के प्रति प्रेम। सांसारिक लोग जीवन
से प्रेम करते हैं, परन्तु संन्यासी के लिए प्रेम करने को मृत्यु है। लेकिन
इसका मतलब यह नहीं है कि हम आत्महत्या कर लें। आत्महत्या करने वालों को तो
कभी मृत्यु प्यारी नहीं होती है। संन्यासी का धर्म है समस्त संसार के हित
के लिए निरंतर आत्मत्याग करते हुए धीरे - धीरे मृत्यु को प्राप्त हो जाना।
</li>
<li> सच्चा दान वही है, जिसका प्रचार न किया जाए।
</li>
<li> सच्चा प्रेम दुर्लभ है, सच्ची मित्रता और भी दुर्लभ है।
</li>
<li> सच्चे नेता आध्यात्मिक सिद्धियों द्वारा आत्म विश्वास फैलाते
हैं। वही फैलकर अपना प्रभाव मुहल्ला, ग्राम, शहर, प्रांत और देश भर में
व्याप्त हो जाता है।
</li>
<li> सच्ची लगन तथा निर्मल उद्देश्य से किया हुआ प्रयत्न कभी निष्फल नहीं जाता।
</li>
<li> सच्चाई, ईमानदारी, सज्जनता और सौजन्य जैसे गुणों के बिना कोई मनुष्य कहलाने का अधिकारी नहीं हो सकता।
</li>
<li> समाज में कुछ लोग ताकत इस्तेमाल कर दोषी व्यक्तियों को बचा लेते
हैं, जिससे दोषी व्यक्ति तो दोष से बच निकलता है और निर्दोष व्यक्ति क़ानून
की गिरफ्त में आ जाता है। इसे नैतिक पतन का तकाजा ही कहा जायेगा।
</li>
<li> समाज सुधार सुशिक्षितों का अनिवार्य धर्म-कत्र्तव्य है।
</li>
<li> समाज का मार्गदर्शन करना एक गुरुतर दायित्व है, जिसका निर्वाह कर कोई नहीं कर सकता।
</li>
<li> सामाजिक और धार्मिक शिक्षा व्यक्ति को नैतिकता एवं अनैतिकता का पाठ पढ़ाती है।
</li>
<li> सामाजिक, राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्रों में जो
विकृतियाँ, विपन्नताएँ दृष्टिगोचर हो रही हैं, वे कहीं आकाश से नहीं टपकी
हैं, वरन् हमारे अग्रणी, बुद्धिजीवी एवं प्रतिभा सम्पन्न लोगों की
भावनात्मक विकृतियों ने उन्हें उत्पन्न किया है।
</li>
<li> सैकड़ों गुण रहित और मूर्ख पुत्रों के बजाय एक गुणवान और विद्वान
पुत्र होना अच्छा है; क्योंकि रात्रि के समय हज़ारों तारों की उपेक्षा एक
चन्द्रमा से ही प्रकाश फैलता है।
</li>
<li> <b>सत्य</b> भावना का सबसे बड़ा धर्म है।
</li>
<li> सत्य, प्रेम और न्याय को आचरण में प्रमुख स्थान देने वाला नर ही नारायण को अति प्रिय है।
</li>
<li> सत्य बोलने तक सीमित नहीं, वह चिंतन और कर्म का प्रकार है, जिसके साथ ऊंचा उद्देश्य अनिवार्य जुड़ा होता है।
</li>
<li> सत्य का पालन ही राजाओं का दया प्रधान सनातन अचार था। राज्य सत्य स्वरुप था और सत्य में लोक प्रतिष्ठित था।
</li>
<li> सत्य के समान कोई धर्म नहीं है। सत्य से उत्तम कुछ भी नहीं हैं और जूठ से बढ़कर तीव्रतर पाप इस जगत में दूसरा नहीं है।
</li>
<li> सत्य बोलते समय हमारे शरीर पर कोई दबाव नहीं पड़ता, लेकिन झूठ
बोलने पर हमारे शरीर पर अनेक प्रकार का दबाव पड़ता है, इसलिए कहा जाता है
कि सत्य के लिये एक हाँ और झूठ के लिये हज़ारों बहाने ढूँढने पड़ते हैं।
</li>
<li> सत्य परायण मनुष्य किसी से घृणा नहीं करता है।
</li>
<li> सत्य एक ऐसी आध्यात्मिक शक्ति है, जो देश, काल, पात्र अथवा परिस्थितियों से प्रभावित नहीं होती।
</li>
<li> सत्य ही वह सार्वकालिक और सार्वदेशिक तथ्य है, जो सूर्य के समान हर स्थान पर समान रूप से चमकता रहता है।
</li>
<li> सत्य का मतलब सच बोलना भर नहीं, वरन् विवेक, कत्र्तव्य, सदाचरण,
परमार्थ जैसी सत्प्रवृत्तियों और सद्भावनाओं से भरा हुआ जीवन जीना है।
</li>
<li> सुख-दुःख, हानि-लाभ, जय-पराजय, मान-अपमान, निंदा-स्तुति, ये
द्वन्द निरंतर एक साथ जगत में रहते हैं और ये हमारे जीवन का एक हिस्सा होते
हैं, दोनों में भगवान को देखें।
</li>
<li> सुख-दुःख जीवन के दो पहलू हैं, धूप व छांव की तरह।
</li>
<li> सुखी होना है तो प्रसन्न रहिए, निश्चिन्त रहिए, मस्त रहिए।
</li>
<li> <b>सुख</b> बाहर से नहीं भीतर से आता है।
</li>
<li> सुखों का मानसिक त्याग करना ही सच्चा सुख है जब तक व्यक्ति लौकिक
सुखों के आधीन रहता है, तब तक उसे अलौकिक सुख की प्राप्ति नहीं हों सकती,
क्योंकि सुखों का शारीरिक त्याग तो आसान काम है, लेकिन मानसिक त्याग अति
कठिन है।
</li>
<li> <b>स्वर्ग</b> व नरक कोई भौगोलिक स्थिति नहीं हैं, बल्कि एक मनोस्थिति है। जैसा सोचोगे, वैसा ही पाओगे।
</li>
<li> स्वर्ग और मुक्ति का द्वार मनुष्य का हृदय ही है।
</li>
<li> 'स्वर्ग' शब्द में जिन गुणों का बोध होता है, सफाई और शुचिता उनमें सर्वप्रमुख है।
</li>
<li> स्वर्ग और नरक कोई स्थान नहीं, वरन् दृष्टिकोण है।
</li>
<li> स्वर्ग में जाकर गुलामी बनने की अपेक्षा नर्क में जाकर राजा बनना बेहतर है।
</li>
<li> सभ्यता एवं संस्कृति में जितना अंतर है, उतना ही अंतर उपासना और धर्म में है।
</li>
<li> सदा, सहज व सरल रहने से आतंरिक खुशी मिलती है।
</li>
<li> सब कर्मों में आत्मज्ञान श्रेष्ठ समझना चाहिए; क्योंकि यह सबसे
उत्तम विद्या है। यह अविद्या का नाश करती है और इससे मुक्ति प्राप्त होती
है।
</li>
<li> सब ने सही जाग्रत् आत्माओं में से जो जीवन्त हों, वे
आपत्तिकालीन समय को समझें और व्यामोह के दायरे से निकलकर बाहर आएँ। उन्हीं
के बिना प्रगति का रथ रुका पड़ा है।
</li>
<li> सब जीवों के प्रति मंगल कामना धर्म का प्रमुख ध्येय है।
</li>
<li> सब कुछ होने पर भी यदि मनुष्य के पास स्वास्थ्य नहीं, तो समझो उसके पास कुछ है ही नहीं।
</li>
<li> सबसे बड़ा दीन दुर्बल वह है, जिसका अपने ऊपर नियंत्रण नहीं।
</li>
<li> सबसे धनी वह नहीं है जिसके पास सब कुछ है, बल्कि वह है जिसकी आवश्यकताएं न्यूनतम हैं।
</li>
<li> सारे काम अपने आप होते रहेंगे, फिर भी आप कार्य करते रहें।
निरंतर कार्य करते रहें, पर उसमें ज़रा भी आसक्त न हों। आप बस कार्य करते
रहें, यह सोचकर कि अब हम जा रहें हैं बस, अब जा रहे हैं।
</li>
<li> <b>समय</b> मूल्यवान है, इसे व्यर्थ नष्ट न करो। आप समय देकर धन
पैदा कर रखते हैं और संसार की सभी वस्तुएं प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन
स्मरण रहे - सब कुछ देकर भी समय प्राप्त नहीं कर सकते अथवा गए समय को वापिस
नहीं ला सकते।
</li>
<li> समय को नियमितता के बंधनों में बाँधा जाना चाहिए।
</li>
<li> समय उस मनुष्य का विनाश कर देता है, जो उसे नष्ट करता रहता है।
</li>
<li> समय महान चिकित्सक है।
</li>
<li> समय किसी की प्रतीक्षा नहीं करता।
</li>
<li> समय की कद्र करो। प्रत्येक दिवस एक जीवन है। एक मिनट भी फिजूल मत
गँवाओ। जिन्दगी की सच्ची कीमत हमारे वक़्त का एक-एक क्षण ठीक उपयोग करने
में है।
</li>
<li> समय का सुदपयोग ही उन्नति का मूलमंत्र है।
</li>
<li> संघर्ष ही जीवन है। संघर्ष से बचे रह सकना किसी के लिए भी संभव नहीं।
</li>
<li> सेवा का मार्ग ज्ञान, तप, योग आदि के मार्ग से भी ऊँचा है।
</li>
<li> स्वार्थ, अहंकार और लापरवाही की मात्रा बढ़ जाना ही किसी व्यक्ति के पतन का कारण होता है।
</li>
<li> स्वार्थ और अभिमान का त्याग करने से साधुता आती है।
</li>
<li> सत्कर्म की प्रेरणा देने से बढ़कर और कोई पुण्य हो ही नहीं सकता।
</li>
<li> सद्गुणों के विकास में किया हुआ कोई भी त्याग कभी व्यर्थ नहीं जाता।
</li>
<li> सद्भावनाओं और सत्प्रवृत्तियों से जिनका जीवन जितना ओतप्रोत है, वह ईश्वर के उतना ही निकट है।
</li>
<li> सारी शक्तियाँ लोभ, मोह और अहंता के लिए वासना, तृष्णा और प्रदर्शन के लिए नहीं खपनी चाहिए।
</li>
<li> समान भाव से आत्मीयता पूर्वक कर्तव्य -कर्मों का पालन किया जाना मनुष्य का धर्म है।
</li>
<li> सत्कर्मों का आत्मसात होना ही उपासना, साधना और आराधना का सारभूत तत्व है।
</li>
<li> सद्विचार तब तक मधुर कल्पना भर बने रहते हैं, जब तक उन्हें कार्य रूप में परिणत नहीं किया जाय।
</li>
<li> सदविचार ही सद्व्यवहार का मूल है।
</li>
<li> सफल नेतृत्व के लिए मिलनसारी, सहानुभूति और कृतज्ञता जैसे दिव्य गुणों की अतीव आवश्यकता है।
</li>
<li> सफल नेता की शिवत्व भावना-सबका भला 'बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय' से प्रेरित होती है।
</li>
<li> सफलता अत्यधिक परिश्रम चाहती है।
</li>
<li> सफलता प्राप्त करने की प्रक्रिया कभी समाप्त नहीं होती और असफलता कभी अंतिम नहीं होती।
</li>
<li> सफलता का एक दरवाजा बंद होता है तो दूसरा खुल जाता हैं लेकिन
अक्सर हम बंद दरवाजे की ओर देखते हैं और उस दरवाजे को देखते ही नहीं जो
हमारे लिए खुला रहता है।
</li>
<li> सफलता-असफलता का विचार कभी मत सोचे, निष्काम भाव से अपने कर्मयुद्ध में डटे रहें अर्जुन की तरह आप सफल प्रतियोगी अवश्य बनेंगे।
</li>
<li> स्वाधीन मन मनुष्य का सच्चा सहायक होता है।
</li>
<li> संकल्प जीवन की उत्कृष्टता का मंत्र है, उसका प्रयोग मनुष्य जीवन के गुण विकास के लिए होना चाहिए।
</li>
<li> संकल्प ही मनुष्य का बल है।
</li>
<li> सदा चेहरे पर प्रसन्नता व मुस्कान रखो। दूसरों को प्रसन्नता दो, तुम्हें प्रसन्नता मिलेगी।
</li>
<li> स्वधर्म में अवस्थित रहकर स्वकर्म से परमात्मा की पूजा करते हुए तुम्हें समाधि व सिद्धि मिलेगी।
</li>
<li> सज्जन व कर्मशील व्यक्ति तो यह जानता है, कि शब्दों की अपेक्षा
कर्म अधिक ज़ोर से बोलते हैं। अत: वह अपने शुभकर्म में ही निमग्न रहता है।
</li>
<li> सज्जनों की कोई भी साधना कठिनाइयों में से होकर निकलने पर ही पूर्ण होती है।
</li>
<li> सज्जनता ऐसी विधा है जो वचन से तो कम; किन्तु व्यवहार से अधिक परखी जाती है।
</li>
<li> सज्जनता और मधुर व्यवहार मनुष्यता की पहली शर्ता है।
</li>
<li> सत्संग और प्रवचनों का - स्वाध्याय और सुदपदेशों का तभी कुछ
मूल्य है, जब उनके अनुसार कार्य करने की प्रेरणा मिले। अन्यथा यह सब भी
कोरी बुद्धिमत्ता मात्र है।
</li>
<li> साधना एक पराक्रम है, संघर्ष है, जो अपनी ही दुष्प्रवृत्तियों से करना होता है।
</li>
<li> समर्पण का अर्थ है - पूर्णरूपेण प्रभु को हृदय में स्वीकार करना,
उनकी इच्छा, प्रेरणाओं के प्रति सदैव जागरूक रहना और जीवन के प्रतयेक क्षण
में उसे परिणत करते रहना।
</li>
<li> समर्पण का अर्थ है - मन अपना विचार इष्ट के, <a href="http://hi.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%B9%E0%A5%83%E0%A4%A6%E0%A4%AF" title="हृदय">हृदय</a> अपना भावनाएँ इष्ट की और आपा अपना किन्तु कर्तव्य समग्र रूप से इष्ट का।
</li>
<li> सम्भव की सीमा जानने का केवल एक ही तरीका है। असम्भव से भी आगे निकल जाना।
</li>
<li> सत्कार्य करके मिलने वाली खुशी से बढ़कर और कोई खुशी नहीं होती।
</li>
<li> सीखना दो प्रकार से होता है, पहला अध्ययन करके और दूसरा बुद्धिमानों से संगत करके।
</li>
<li> सबसे महान धर्म है, अपनी आत्मा के प्रति सच्चा बनना।
</li>
<li> सद्व्यवहार में शक्ति है। जो सोचता है कि मैं दूसरों के काम आ सकने के लिए कुछ करूँ, वही आत्मोन्नति का सच्चा पथिक है।
</li>
<li> सलाह सबकी सुनो पर करो वह जिसके लिए तुम्हारा साहस और विवेक समर्थन करे।
</li>
<li> सलाह सबकी सुनो, पर करो वह जिसके लिए तुम्हारा साहस और विवेक समर्थन करे।
</li>
<li> सत्प्रयत्न कभी निरर्थक नहीं होते।
</li>
<li> सादगी सबसे बड़ा फैशन है।
</li>
<li> 'स्वाध्यान्मा प्रमद:' अर्थात् स्वाध्याय में प्रमाद न करें।
</li>
<li> सम्मान पद में नहीं, मनुष्यता में है।
</li>
<li> सबकी मंगल कामना करो, इससे आपका भी मंगल होगा।
</li>
<li> स्वाध्याय एक अनिवार्य दैनिक धर्म कत्र्तव्य है।
</li>
<li> स्वाध्याय को साधना का एक अनिवार्य अंग मानकर अपने आवश्यक नित्य कर्मों में स्थान दें।
</li>
<li> स्वाध्याय एक वैसी ही आत्मिक आवश्यकता है जैसे शरीर के लिए भोजन।
</li>
<li> स्वार्थपरता की कलंक कालिमा से जिन्होंने अपना चेहरा पोत लिया है, वे असुर है।
</li>
<li> सूर्य प्रतिदिन निकलता है और डूबते हुए आयु का एक दिन छीन ले
जाता है, पर माया-मोह में डूबे मनुष्य समझते नहीं कि उन्हें यह बहुमूल्य
जीवन क्यों मिला ?
</li>
<li> सबके सुख में ही हमारा सुख सन्निहित है।
</li>
<li> सेवा से बढ़कर पुण्य-परमार्थ इस संसार में और कुछ नहीं हो सकता।
</li>
<li> सेवा में बड़ी शक्ति है। उससे भगवान भी वश में हो सकते हैं।
</li>
<li> स्वयं उत्कृष्ट बनने और दूसरों को उत्कृष्ट बनाने का कार्य आत्म कल्याण का एकमात्र उपाय है।
</li>
<li> स्वयं प्रकाशित दीप को भी प्रकाश के लिए तेल और बत्ती का जतन करना पड़ता है बुद्धिमान भी अपने विकास के लिए निरंतर यत्न करते हैं।
</li>
<li> सतोगुणी भोजन से ही मन की सात्विकता स्थिर रहती है।
</li>
<li> समस्त हिंसा, द्वेष, बैर और विरोध की भीषण लपटें दया का संस्पर्श पाकर शान्त हो जाती हैं।
</li>
<li> साहस ही एकमात्र ऐसा साथी है, जिसको साथ लेकर मनुष्य एकाकी भी
दुर्गम दीखने वाले पथ पर चल पड़ते एवं लक्ष्य तक जा पहुँचने में समर्थ हो
सकता है।
</li>
<li> साहस और हिम्मत से खतरों में भी आगे बढ़िये। जोखित उठाये बिना जीवन में कोई महत्त्वपूर्ण सफलता नहीं पाई जा सकती।
</li>
<li> सुख बाँटने की वस्तु है और दु:खे बँटा लेने की। इसी आधार पर
आंतरिक उल्लास और अन्यान्यों का सद्भाव प्राप्त होता है। महानता इसी आधार
पर उपलब्ध होती है।
</li>
<li> सहानुभूति मनुष्य के <a href="http://hi.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%B9%E0%A5%83%E0%A4%A6%E0%A4%AF" title="हृदय">हृदय</a> में निवास करने वाली वह कोमलता है, जिसका निर्माण संवेदना, दया, प्रेम तथा करुणा के सम्मिश्रण से होता है।
</li>
<li> सन्मार्ग का राजपथ कभी भी न छोड़े।
</li>
<li> स्वच्छता सभ्यता का प्रथम सोपान है।
</li>
<li> स्वाधीन मन मनुष्य का सच्चा सहायक होता है।
</li>
<li> साधना का अर्थ है - कठिनाइयों से संघर्ष करते हुए भी सत्प्रयास जारी रखना।
</li>
<li> सर्दी-गर्मी, भय-अनुराग, सम्पती अथवा दरिद्रता ये जिसके कार्यो मे बाधा नहीं डालते वही ज्ञानवान (विवेकशील) कहलाता है।
</li>
<li> सभी मन्त्रों से महामंत्र है - कर्म मंत्र, कर्म करते हुए भजन करते रहना ही प्रभु की सच्ची भक्ति है।
</li>
<li> संयम की शक्ति जीवं में सुरभि व सुगंध भर देती है।
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.AE">म</span></h2>
<ul>
<li> <b>मनुष्य</b> को उत्तम शिक्षा अच्चा स्वभाव, धर्म, योगाभ्यास और विज्ञान का सार्थक ग्रहण करके जीवन में सफलता प्राप्त करनी चाहिए।
</li>
<li> मनुष्य का मन कछुए की भाँति होना चाहिए, जो बाहर की चोटें सहते
हुए भी अपने लक्ष्य को नहीं छोड़ता और धीरे-धीरे मंजिल पर पहुँच जाता है।
</li>
<li> मनुष्य की सफलता के पीछे मुख्यता उसकी सोच, शैली एवं जीने का नज़रिया होता है।
</li>
<li> मनुष्य अपने अंदर की बुराई पर ध्यान नहीं देता और दूसरों की उतनी
ही बुराई की आलोचना करता है, अपने पाप का तो बड़ा नगर बसाता है और दूसरे
का छोटा गाँव भी ज़रा-सा सहन नहीं कर सकता है।
</li>
<li> मनुष्य का जीवन तीन मुख्य तत्वों का समागम है - शरीर, विचार एवं मन।
</li>
<li> मनुष्य जीवन का पूरा विकास ग़लत स्थानों, ग़लत विचारों और ग़लत
दृष्टिकोणों से मन और शरीर को बचाकर उचित मार्ग पर आरूढ़ कराने से होता है।
</li>
<li> मनुष्य के भावों में प्रबल रचना शक्ति है, वे अपनी दुनिया आप बसा लेते हैं।
</li>
<li> मनुष्य बुद्धिमानी का गर्व करता है, पर किस काम की वह
बुद्धिमानी-जिससे जीवन की साधारण कला हँस-खेल कर जीने की प्रक्रिया भी हाथ न
आए।
</li>
<li> मनुष्य परिस्थितियों का दास नहीं, वह उनका निर्माता, नियंत्रणकर्ता और स्वामी है।
</li>
<li> मनुष्य को आध्यात्मिक ज्ञान और आत्म-विज्ञान की जानकारी हुए बिना यह संभव नहीं है कि मनुष्य दुष्कर्मों का परित्याग करे।
</li>
<li> मनुष्य की संकल्प शक्ति संसार का सबसे बड़ा चमत्कार है।
</li>
<li> मनुष्य जन्म सरल है, पर मनुष्यता कठिन प्रयत्न करके कमानी पड़ती है।
</li>
<li> मनुष्य एक भटका हुआ देवता है। सही दिशा पर चल सके, तो उससे बढ़कर श्रेष्ठ और कोई नहीं।
</li>
<li> मनुष्य दु:खी, निराशा, चिंतित, उदिग्न बैठा रहता हो तो समझना
चाहिए सही सोचने की विधि से अपरिचित होने का ही यह परिणाम है। - वाङ्गमय
</li>
<li> मनुष्य कर्म करने में स्वतंत्र है; परन्तु इनके परिणामों में चुनाव की कोई सुविधा नहीं।
</li>
<li> मनुष्य परिस्थितियों का ग़ुलाम नहीं, अपने भाग्य का निर्माता और विधाता है।
</li>
<li> मनुष्य अपने <b>भाग्य</b> का निर्माता आप है।
</li>
<li> मनुष्य उपाधियों से नहीं, श्रेष्ठ कार्यों से सज्जन बनता है।
</li>
<li> मनुष्य का अपने आपसे बढ़कर न कोई शत्रु है, न मित्र।
</li>
<li> मनुष्य को एक ही प्रकार की उन्नति से संतुष्ट न होकर जीवन की सभी
दिशाओं में उन्नति करनी चाहिए। केवल एक ही दिशा में उन्नति के लिए अत्यधिक
प्रयत्न करना और अन्य दिशाओं की उपेक्षा करना और उनकी ओर से उदासीन रहना
उचित नहीं है।
</li>
<li> मनुष्यता सबसे अधिक मूल्यवान है। उसकी रक्षा करना प्रत्येक जागरूक व्यक्ति का परम कर्तव्य है।
</li>
<li> <b>मां</b> है मोहब्बत का नाम, मां से बिछुड़कर चैन कहाँ।
</li>
<li> माँ का जीवन बलिदान का, त्याग का जीवन है। उसका बदला कोई भी पुत्र नहीं चुका सकता चाहे वह भूमंडल का स्वामी ही क्यों न हो।
</li>
<li> माँ-बेटी का रिश्ता इतना अनूठा, इतना अलग होता है कि उसकी
व्याख्या करना मुश्किल है, इस रिश्ते से सदैव पहली बारिश की फुहारों-सी
ताजगी रहती है, तभी तो माँ के साथ बिताया हर क्षण होता है अमिट, अलग उनके
साथ गुज़ारा हर पल शानदार होता है।
</li>
<li> <b>माता-पिता</b> के चरणों में चारों धाम हैं। माता-पिता इस धरती के भगवान हैं।
</li>
<li> माता-पिता का बच्चों के प्रति, आचार्य का शिष्यों के प्रति, राष्ट्रभक्त का मातृभूमि के प्रति ही सच्चा प्रेम है।
</li>
<li> 'मातृ देवो भव, पितृ देवो भव, आचार्यदेवो भव, अतिथिदेवो भव' की संस्कृति अपनाओ!
</li>
<li> मृत्यु दो बार नहीं आती और जब आने को होती है, उससे पहले भी नहीं आती है।
</li>
<li> महान प्यार और महान उपलब्धियों के खतरे भी महान होते हैं।
</li>
<li> महान उद्देश्य की प्राप्ति के लिये बहुत कष्ट सहना पड़ता है, जो
तप के समान होता है; क्योंकि ऊंचाई पर स्थिर रह पाना आसान काम नहीं है।
</li>
<li> मानसिक शांति के लिये मन-शुद्धी, श्वास-शुद्धी एवं इन्द्रिय-शुद्धी का होना अति आवश्यक है।
</li>
<li> मन की शांति के लिये अंदरूनी संघर्ष को बंद करना ज़रूरी है, जब तक अंदरूनी युद्ध चलता रहेगा, शांति नहीं मिल सकती।
</li>
<li> मन का नियन्त्रण मनुष्य का एक आवश्यक कत्र्तव्य है।
</li>
<li> मन-बुद्धि की भाषा है - मैं, मेरी, इसके बिना बाहर के जगत का कोई
व्यवहार नहीं चलेगा, अगर अंदर स्वयं को जगा लिया तो भीतर तेरा-तेरा शुरू
होने से व्यक्ति परम शांति प्राप्त कर लेता है।
</li>
<li> मरते वे हैं, जो शरीर के सुख और इन्द्रीय वासनाओं की तृप्ति के लिए रात-दिन खपते रहते हैं।
</li>
<li> मस्तिष्क में जिस प्रकार के विचार भरे रहते हैं वस्तुत: उसका
संग्रह ही सच्ची परिस्थिति है। उसी के प्रभाव से जीवन की दिशाएँ बनती और
मुड़ती रहती हैं।
</li>
<li> महात्मा वह है, जिसके सामान्य शरीर में असामान्य आत्मा निवास करती है।
</li>
<li> मानव जीवन की सफलता का श्रेय जिस महानता पर निर्भर है, उसे एक शब्द में धार्मिकता कह सकते हैं।
</li>
<li> <b>मानवता</b> की सेवा से बढ़कर और कोई बड़ा काम नहीं हो सकता।
</li>
<li> मांसाहार मानवता को त्यागकर ही किया जा सकता है।
</li>
<li> मेहनत, हिम्मत और लगन से कल्पना साकार होती है।
</li>
<li> मुस्कान प्रेम की भाषा है।
</li>
<li> मैं परमात्मा का प्रतिनिधि हूँ।
</li>
<li> मैं माँ भारती का अमृतपुत्र हूँ, 'माता भूमि: पुत्रोहं प्रथिव्या:'।
</li>
<li> मैं पहले माँ भारती का पुत्र हूँ, बाद में सन्यासी, ग्रहस्थ, नेता, अभिनेता, कर्मचारी, अधिकारी या व्यापारी हूँ।
</li>
<li> मैं सदा प्रभु में हूँ, मेरा प्रभु सदा मुझमें है।
</li>
<li> मैं सौभाग्यशाली हूँ कि मैंने इस पवित्र भूमि व देश में जन्म लिया है।
</li>
<li> मैं अपने जीवन पुष्प से माँ भारती की आराधना करुँगा।
</li>
<li> मैं पुरुषार्थवादी, राष्ट्रवादी, मानवतावादी व अध्यात्मवादी हूँ।
</li>
<li> मैं मात्र एक व्यक्ति नहीं, अपितु सम्पूर्ण राष्ट्र व देश की सभ्यता व संस्कृति की अभिव्यक्ति हूँ।
</li>
<li> मेरे भीतर संकल्प की अग्नि निरंतर प्रज्ज्वलित है। मेरे जीवन का पथ सदा प्रकाशमान है।
</li>
<li> मेरे पूर्वज, मेरे स्वाभिमान हैं।
</li>
<li> मेरे मस्तिष्क में ब्रह्माण्ड सा तेज़, मेधा, प्रज्ञा व विवेक है।
</li>
<li> मनोविकार भले ही छोटे हों या बड़े, यह शत्रु के समान हैं और प्रताड़ना के ही योग्य हैं।
</li>
<li> मनोविकारों से परेशान, दु:खी, चिंतित मनुष्य के लिए उनके दु:ख-दर्द के समय श्रेष्ठ पुस्तकें ही सहारा है।
</li>
<li> महानता के विकास में अहंकार सबसे घातक शत्रु है।
</li>
<li> महानता का गुण न तो किसी के लिए सुरक्षित है और न प्रतिबंधित। जो चाहे अपनी शुभेच्छाओं से उसे प्राप्त कर सकता है।
</li>
<li> महापुरुषों का ग्रंथ सबसे बड़ा सत्संग है।
</li>
<li> मात्र हवन, धूपबत्ती और जप की संख्या के नाम पर प्रसन्न होकर
आदमी की मनोकामना पूरी कर दिया करे, ऐसी देवी दुनिया मेंं कहीं नहीं है।
</li>
<li> मजदूर के दो हाथ जो अर्जित कर सकते हैं वह मालिक अपनी पूरी संपत्ति द्वारा भी प्राप्त नहीं कर सकता।
</li>
<li> मेरा निराशावाद इतना सघन है कि मुझे निराशावादियों की मंशा पर भी संदेह होता है।
</li>
<li> मूर्ख व्यक्ति दूसरे को मूर्ख बनाने की चेष्टा करके आसानी से अपनी मूर्खता सिद्ध कर देते हैं।
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.A6">द</span></h2>
<ul>
<li> दुनिया में आलस्य को पोषण देने जैसा दूसरा भयंकर पाप नहीं है।
</li>
<li> दुनिया में भलमनसाहत का व्यवहार करने वाला एक चमकता हुआ हीरा है।
</li>
<li> दुनिया में सफलता एक चीज़ के बदले में मिलती है और वह है आदमी की उत्कृष्ट व्यक्तित्व।
</li>
<li> दूसरों की निन्दा और त्रूटियाँ सुनने में अपना समय नष्ट मत करो।
</li>
<li> दूसरों की निन्दा करके किसी को कुछ नहीं मिला, जिसने अपने को सुधारा उसने बहुत कुछ पाया।
</li>
<li> दूसरों के साथ वह व्यवहार न करो, जो तुम्हें अपने लिए पसन्द नहीं।
</li>
<li> दूसरों के साथ सदैव नम्रता, मधुरता, सज्जनता, उदारता एवं सहृदयता का व्यवहार करें।
</li>
<li> दूसरों के जैसे बनने के प्रयास में अपना निजीपन नष्ट मत करो।
</li>
<li> दूसरों की सबसे बड़ी सहायता यही की जा सकती है कि उनके सोचने में जो त्रुटि है, उसे सुधार दिया जाए।
</li>
<li> दूसरों से प्रेम करना अपने आप से प्रेम करना है।
</li>
<li> दूसरों को पीड़ा न देना ही <b>मानव धर्म</b> है।
</li>
<li> दूसरों पर भरोसा लादे मत बैठे रहो। अपनी ही हिम्मत पर खड़ा रह
सकना और आगे बढ़् सकना संभव हो सकता है। सलाह सबकी सुनो, पर करो वह जिसके
लिए तुम्हारा साहस और विवेक समर्थन करे।
</li>
<li> दूसरे के लिए पाप की बात सोचने में पहले स्वयं को ही पाप का भागी बनना पड़ता है।
</li>
<li> दुष्कर्मों के बढ़ जाने पर सच्चाई निष्क्रिय हो जाती है, जिसके परिणाम स्वरुप वह राहत के बदले प्रतिक्रया करना शुरू कर देती है।
</li>
<li> दुष्कर्म स्वत: ही एक अभिशाप है, जो कर्ता को भस्म किये बिना नहीं रहता।
</li>
<li> दण्ड देने की शक्ति होने पर भी दण्ड न देना सच्चे क्षमा है।
</li>
<li> दुःख देने वाले और हृदय को जलाने वाले बहुत से पुत्रों से क्या लाभ? कुल को सहारा देने वाला एक पुत्र ही श्रेष्ठ होता है।
</li>
<li> दु:ख का मूल है पाप। पाप का परिणाम है-पतन, दु:ख, कष्ट, कलह और विषाद। यह सब अनीति के अवश्यंभावी परिणाम हैं।
</li>
<li> दिन में अधूरी इच्छा को व्यक्ति रात को स्वप्न के रूप में देखता है, इसलिए जितना मन अशांत होगा, उतने ही अधिक स्वप्न आते हैं।
</li>
<li> दो प्रकार की प्रेरणा होती है- एक बाहरी व दूसरी अंतर प्रेरणा,
आतंरिक प्रेरणा बहुत महत्त्वपूर्ण होती है; क्योंकि वह स्वयं की निर्मात्री
होती है।
</li>
<li> दो याद रखने योग्य हैं-एक कर्त्तव्य और दूसरा मरण।
</li>
<li> दान की वृत्ति दीपक की ज्योति के समान होनी चाहिए, जो समीप से अधिक प्रकाश देती है और ऐसे दानी अमरपद को प्राप्त करते हैं।
</li>
<li> दरिद्रता कोई दैवी प्रकोप नहीं, उसे आलस्य, प्रमाद, अपव्यय एवं दुर्गुणों के एकत्रीकरण का प्रतिफल ही करना चाहिए।
</li>
<li> दिल खोलकर हँसना और मुस्कराते रहना चित्त को प्रफुल्लित रखने की एक अचूक औषधि है।
</li>
<li> दीनता वस्तुत: मानसिक हीनता का ही प्रतिफल है।
</li>
<li> दुष्ट चिंतन आग में खेलने की तरह है।
</li>
<li> दैवी शक्तियों के अवतरण के लिए पहली शर्त है - साधक की पात्रता, पवित्रता और प्रामाणिकता।
</li>
<li> देवमानव वे हैं, जो आदर्शों के क्रियान्वयन की योजना बनाते और
सुविधा की ललक-लिप्सा को अस्वीकार करके युगधर्म के निर्वाह की काँटों भरी
राह पर एकाकी चल पड़ते हैं।
</li>
<li> दरिद्रता पैसे की कमी का नाम नहीं है, वरन् मनुष्य की कृपणता का नाम दरिद्रता है।
</li>
<li> दुष्टता वस्तुत: पह्ले दर्जे की कायरता का ही नाम है। उसमें जो
आतंक दिखता है वह प्रतिरोध के अभाव से ही पनपता है। घर के बच्चें भी जाग
पड़े तो बलवान चोर के पैर उखड़ते देर नहीं लगती। स्वाध्याय से योग की
उपासना करे और योग से स्वाध्याय का अभ्यास करें। स्वाध्याय की सम्पत्ति से
परमात्मा का साक्षात्कार होता है।
</li>
<li> दया का दान लड़खड़ाते पैरा में नई शक्ति देना, निराश हृदय में
जागृति की नई प्रेरणा फूँकना, गिरे हुए को उठाने की सामथ्र्य प्रदान करना
एवं अंधकार में भटके हुए को प्रकाश देना।
</li>
<li> दृढ़ता हो, ज़िद्द नहीं। बहादुरी हो, जल्दबाज़ी नहीं। दया हो, कमज़ोरी नहीं।
</li>
<li> दृष्टिकोण की श्रेष्ठता ही वस्तुत: मानव जीवन की श्रेष्ठता है।
</li>
<li> दृढ़ आत्मविश्वास ही सफलता की एकमात्र कुंजी है।
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.AA">प</span></h2>
<ul>
<li> परमात्मा वास्तविक स्वरुप को न मानकर उसकी कथित पूजा करना अथवा
अपात्र को दान देना, ऐसे कर्म क्रमश: कोई कर्म-फल प्राप्त नहीं कराते,
बल्कि पाप का भागी बनाते हैं।
</li>
<li> परमात्मा के गुण, कर्म और स्वभाव के समान अपने स्वयं के गुण, कर्म व स्वभावों को समयानुसार धारण करना ही परमात्मा की सच्ची पूजा है।
</li>
<li> परमात्मा की सृष्टि का हर व्यक्ति समान है। चाहे उसका रंग वर्ण, कुल और गोत्र कुछ भी क्यों न हो।
</li>
<li> परमात्मा जिसे जीवन में कोई विशेष अभ्युदय-अनुग्रह करना चाहता है, उसकी बहुत-सी सुविधाओं को समाप्त कर दिया करता है।
</li>
<li> परमात्मा की सच्ची पूजा सद्व्यवहार है।
</li>
<li> पिता सिखाते हैं पैरों पर संतुलन बनाकर व ऊंगली थाम कर चलना, पर
माँ सिखाती है सभी के साथ संतुलन बनाकर दुनिया के साथ चलना, तभी वह अलग है,
महान है।
</li>
<li> पाप आत्मा का शत्रु है और सद्गुण आत्मा का मित्र।
</li>
<li> <b>पाप</b> अपने साथ रोग, शोक, पतन और संकट भी लेकर आता है।
</li>
<li> पाप की एक शाखा है - असावधानी।
</li>
<li> पापों का नाश प्रायश्चित करने और इससे सदा बचने के संकल्प से होता है।
</li>
<li> पढ़ना एक गुण, चिंतन दो गुना, आचरण चौगुना करना चाहिए।
</li>
<li> परोपकारी, निष्कामी और सत्यवादी यानी निर्भय होकर मन, वचन व कर्म से सत्य का आचरण करने वाला देव है।
</li>
<li> प्रेम करने का मतलब सम-व्यवहार ज़रूरी नहीं, बल्कि समभाव होना
चाहिए, जिसके लिये घोड़े की लगाम की भाँति व्यवहार में ढील देना पड़ती है
और कभी खींचना भी ज़रूरी हो जाता है।
</li>
<li> पूर्वजों के गुणों का अनुसरण करना ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि देना है।
</li>
<li> पांच वर्ष की आयु तक पुत्र को प्यार करना चाहिए। इसके बाद दस
वर्ष तक इस पर निगरानी राखी जानी चाहिए और ग़लती करने पर उसे दण्ड भी दिया
जा सकता है, परन्तु सोलह वर्ष की आयु के बाद उससे मित्रता कर एक मित्र के
समान व्यवहार करना चाहिए।
</li>
<li> पूरी दुनिया में 350 धर्म हैं, हर <b>धर्म</b> का मूल तत्व एक ही है, परन्तु आज लोगों का धर्म की उपेक्षा अपने-अपने भजन व पंथ से अधिक लगाव है।
</li>
<li> परमार्थ मानव जीवन का सच्चा स्वार्थ है।
</li>
<li> परोपकार से बढ़कर और निरापत दूसरा कोई धर्म नहीं।
</li>
<li> परावलम्बी जीवित तो रहते हैं, पर मृत तुल्य ही।
</li>
<li> प्रतिभा किसी पर आसमान से नहीं बरसती, वह अंदर से जागती है और उसे जगाने के लिए केवल मनुष्य होना पर्याप्त है।
</li>
<li> पुण्य की जय-पाप की भी जय ऐसा समदर्शन तो व्यक्ति को दार्शनिक भूल-भुलैयों में उलझा कर संसार का सर्वनाश ही कर देगा।
</li>
<li> प्रतिभावान् व्यक्तित्व अर्जित कर लेना, धनाध्यक्ष बनने की तुलना में कहीं अधिक श्रेष्ठ और श्रेयस्कर है।
</li>
<li> पादरी, मौलवी और महंत भी जब तक एक तरह की बात नहीं कहते, तो दो व्यक्तियों में एकमत की आशा की ही कैसे जाए?
</li>
<li> पग-पग पर शिक्षक मौजूद हैं, पर आज सीखना कौन चाहता है?
</li>
<li> प्रकृतित: हर मनुष्य अपने आप में सुयोग्य एवं समर्थ है।
</li>
<li> प्रस्तुत उलझनें और दुष्प्रवृत्तियाँ कहीं आसमान से नहीं टपकीं। वे मनुष्य की अपनी बोयी, उगाई और बढ़ाई हुई हैं।
</li>
<li> पूरी तरह तैरने का नाम तीर्थ है। एक मात्र पानी में डुबकी लगाना ही तीर्थस्नान नहीं।
</li>
<li> प्रचंड वायु में भी पहाड़ विचलित नहीं होते।
</li>
<li> प्रसन्नता स्वास्थ्य देती है, विषाद रोग देते हैं।
</li>
<li> प्रसन्न करने का उपाय है, स्वयं प्रसन्न रहना।
</li>
<li> प्रत्येक अच्छा कार्य पहले असम्भव नज़र आता है।
</li>
<li> प्रकृति के सब काम धीरे-धीरे होते हैं।
</li>
<li> प्रकृति के अनुकूल चलें, स्वस्थ रहें।
</li>
<li> प्रकृति जानवरों तक को अपने मित्र पहचानने की सूझ-बूझ दे देती है।
</li>
<li> प्रत्येक जीव की आत्मा में मेरा परमात्मा विराजमान है।
</li>
<li> पराक्रमशीलता, राष्ट्रवादिता, पारदर्शिता, दूरदर्शिता, आध्यात्मिक, मानवता एवं विनयशीलता मेरी कार्यशैली के आदर्श हैं।
</li>
<li> पवित्र विचार-प्रवाह ही जीवन है तथा विचार-प्रवाह का विघटन ही मृत्यु है।
</li>
<li> पवित्र विचार प्रवाह ही मधुर व प्रभावशाली वाणी का मूल स्रोत है।
</li>
<li> प्रेम, वासना नहीं उपासना है। वासना का उत्कर्ष प्रेम की हत्या है, प्रेम समर्पण एवं विश्वास की परकाष्ठा है।
</li>
<li> प्रखर और सजीव आध्यात्मिकता वह है, जिसमें अपने आपका निर्माण
दुनिया वालों की अँधी भेड़चाल के अनुकरण से नहीं, वरन् स्वतंत्र विवेक के
आधार पर कर सकना संभव हो सके।
</li>
<li> प्रगति के लिए संघर्ष करो। अनीति को रोकने के लिए संघर्ष करो और इसलिए भी संघर्ष करो कि संघर्ष के कारणों का अन्त हो सके।
</li>
<li> पढ़ने का लाभ तभी है जब उसे व्यवहार में लाया जाए।
</li>
<li> परोपकार से बढ़कर और निरापद दूसरा कोई धर्म नहीं।
</li>
<li> प्रशंसा और प्रतिष्ठा वही सच्ची है, जो उत्कृष्ट कार्य करने के लिए प्राप्त हो।
</li>
<li> प्रसुप्त देवत्व का जागरण ही सबसे बड़ी ईश्वर पूजा है।
</li>
<li> प्रतिकूल परिस्थितियों करके ही दूसरों को सच्ची शिक्षा दी जा सकती है।
</li>
<li> प्रतिकूल परिस्थिति में भी हम अधीर न हों।
</li>
<li> परिश्रम ही स्वस्थ जीवन का मूलमंत्र है।
</li>
<li> परिवार एक छोटा समाज एवं छोटा राष्ट्र है। उसकी सुव्यवस्था एवं
शालीनता उतनी ही महत्त्वपूर्ण है जितनी बड़े रूप में समूचे राष्ट्र की।
</li>
<li> परिजन हमारे लिए भगवान की प्रतिकृति हैं और उनसे अधिकाधिक गहरा
प्रेम प्रसंग बनाए रखने की उत्कंठा उमड़ती रहती है। इस वेदना के पीछे भी एक
ऐसा दिव्य आनंद झाँकता है इसे भक्तियोग के मर्मज्ञ ही जान सकते हैं।
</li>
<li> प्रगतिशील जीवन केवल वे ही जी सकते हैं, जिनने हृदय में कोमलता,
मस्तिष्क में तीष्णता, रक्त में उष्णता और स्वभाव में दृढ़ता का समुतिच
समावेश कर लिया है।
</li>
<li> परमार्थ के बदले यदि हमको कुछ मूल्य मिले, चाहे वह पैसे के रूप
में प्रभाव, प्रभुत्व व पद-प्रतिष्ठा के रूप में तो वह सच्चा परमार्थ नहीं
है। इसे कत्र्तव्य पालन कह सकते हैं।
</li>
<li> पराये धन के प्रति लोभ पैदा करना अपनी हानि करना है।
</li>
<li> पेट और मस्तिष्क स्वास्थ्य की गाड़ी को ठीक प्रकार चलाने वाले दो पहिए हैं। इनमें से एक बिगड़ गया तो दूसरा भी बेकार ही बना रहेगा।
</li>
<li> पुण्य-परमार्थ का कोई अवसर टालना नहीं चाहिए; क्योंकि अगले क्षण यह देह रहे या न रहे क्या ठिकाना।
</li>
<li> पराधीनता समाज के समस्त मौलिक निमयों के विरुद्ध है।
</li>
<li> पति को कभी कभी अँधा और कभी कभी बहरा होना चाहिए।
</li>
<li> प्रत्येक मनुष्य को जीवन में केवल अपने भाग्य की परिक्षा का अवसर मिलता हे। वही भविष्य का निर्णय कर देता है।
</li>
<li> प्रत्येक अच्छा कार्य पहले असंभव नजर आता है।
</li>
<li> पड़े पड़े तो अच्छे से अच्छे फौलाद में भी जंग लग जाता है,
निष्क्रिय हो जाने से, सारी दैवीय शक्तियां स्वत: मनुष्य का साथ छोड़
देतीं हैं।
</li>
<li> प्रति पल का उपयोग करने वाले कभी भी पराजित नहीं हो सकते, समय का हर क्षण का उपयोग मनुष्य को विलक्षण और अदभुत बना देता है।
</li>
<li> प्रवीण व्यक्ति वही होता हें जो हर प्रकार की परिस्थितियों में दक्षता से काम कर सके।
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.B5">व</span></h2>
<ul>
<li> व्रतों से सत्य सर्वोपरि है।
</li>
<li> विधा, बुद्धि और ज्ञान को जितना खर्च करो, उतना ही बढ़ते हैं।
</li>
<li> वह सत्य नहीं जिसमें हिंसा भरी हो। यदि दया युक्त हो तो असत्य भी सत्य ही कहा जाता है। जिसमें मनुष्य का हित होता हो, वही सत्य है।
</li>
<li> वह स्थान मंदिर है, जहाँ पुस्तकों के रूप में मूक; किन्तु ज्ञान की चेतनायुक्त देवता निवास करते हैं।
</li>
<li> वही उन्नति कर सकता है, जो स्वयं को उपदेश देता है।
</li>
<li> वही सबसे तेज़ चलता है, जो अकेला चलता है।
</li>
<li> वही जीवति है, जिसका <a href="http://hi.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%AE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%95" title="मस्तिष्क">मस्तिष्क</a> ठण्डा, रक्त गरम, हृदय कोमल और पुरुषार्थ प्रखर है।
</li>
<li> वे माता-पिता धन्य हैं, जो अपनी संतान के लिए उत्तम पुस्तकों का एक संग्रह छोड़ जाते हैं।
</li>
<li> व्यक्ति का चिंतन और चरित्र इतना ढीला हो गया है कि स्वार्थ के लिए अनर्थ करने में व्यक्ति चूकता नहीं।
</li>
<li> व्यक्ति दौलत से नहीं, ज्ञान से अमीर होता है।
</li>
<li> वर्ण, आश्रम आदि की जो विशेषता है, वह दूसरों की सेवा करने के लिए है, अभिमान करने के लिए नहीं।
</li>
<li> विवेकशील व्यक्ति उचित अनुचित पर विचार करता है और अनुचित को किसी भी मूल्य पर स्वीकार नहीं करता।
</li>
<li> व्यक्तित्व की अपनी वाणी है, जो जीभ या कलम का इस्तेमाल किये बिना भी लोगों के अंतराल को छूती है।
</li>
<li> वह मनुष्य विवेकवान् है, जो भविष्य से न तो आशा रखता है और न भयभीत ही होता है।
</li>
<li> विपरीत प्रतिकूलताएँ नेता के आत्म विश्वास को चमका देती हैं।
</li>
<li> विपरीत दिशा में कभी न घबराएं, बल्कि पक्की ईंट की तरह मज़बूत
बनना चाहिय और जीवन की हर चुनौती को परीक्षा एवं तपस्या समझकर निरंतर आगे
बढना चाहिए।
</li>
<li> विवेक बहादुरी का उत्तम अंश है।
</li>
<li> विवेक और पुरुषार्थ जिसके साथी हैं, वही प्रकाश प्राप्त करेंगे।
</li>
<li> विश्वास से आश्चर्य-जनक प्रोत्साहन मिलता है।
</li>
<li> विचार शहादत, कुर्बानी, शक्ति, शौर्य, साहस व स्वाभिमान है। विचार आग व तूफ़ान है, साथ ही शान्ति व सन्तुष्टी का पैगाम है।
</li>
<li> विचार ही सम्पूर्ण खुशियों का आधार हैं।
</li>
<li> विचारों की अपवित्रता ही हिंसा, अपराध, क्रूरता, शोषण, अन्याय, अधर्म और भ्रष्टाचार का कारण है।
</li>
<li> विचारों की पवित्रता ही नैतिकता है।
</li>
<li> विचारों की पवित्रता स्वयं एक स्वास्थ्यवर्धक रसायन है।
</li>
<li> विचारों का ही परिणाम है - हमारा सम्पूर्ण जीवन। विचार ही बीज है, जीवनरुपी इस व्रक्ष का।
</li>
<li> विचारों को कार्यरूप देना ही सफलता का रहस्य है।
</li>
<li> विचारवान व संस्कारवान ही अमीर व महान है तथा विचारहीन ही कंगाल व दरिद्र है।
</li>
<li> विचारशीलता ही मनुष्यता और विचारहीनता ही पशुता है।
</li>
<li> वैचारिक दरिद्रता ही देश के दुःख, अभाव पीड़ा व अवनति का कारण है। वैचारिक दृढ़ता ही देश की सुख-समृद्धि व विकास का मूल मंत्र है।
</li>
<li> विद्या की आकांक्षा यदि सच्ची हो, गहरी हो तो उसके रह्ते कोई व्यक्ति कदापि मूर्ख, अशिक्षित नहीं रह सकता। - वाङ्गमय
</li>
<li> विद्या वह अच्छी, जिसके पढ़ने से बैर द्वेष भूल जाएँ। जो विद्वान बैर द्वेष रखता है, यह जैसा पढ़ा, वैसा न पढ़ा।
</li>
<li> वास्तविक सौन्दर्य के आधर हैं - स्वस्थ शरीर, निर्विकार मन और पवित्र आचरण।
</li>
<li> विषयों, व्यसनों और विलासों में सुख खोजना और पाने की आशा करना एक भयानक दुराशा है।
</li>
<li> वत मत करो, जिसके लिए पीछे पछताना पड़े।
</li>
<li> व्यसनों के वश में होकर अपनी महत्ता को खो बैठे वह मूर्ख है।
</li>
<li> <b>वृद्धावस्था</b> बीमारी नहीं, विधि का विधान है, इस दौरान सक्रिय रहें।
</li>
<li> वाणी नहीं, आचरण एवं व्यक्तित्व ही प्रभावशाली उपदेश है
</li>
<li> व्यक्तिगत स्वार्थों का उत्सर्ग सामाजिक प्रगति के लिए करने की
परम्परा जब तक प्रचलित न होगी, तब तक कोई राष्ट्र सच्चे अर्थों में
सामथ्र्यवान् नहीं बन सकता है। -वाङ्गमय
</li>
<li> वासना और तृष्णा की कीचड़ से जिन्होंने अपना उद्धार कर लिया और
आदर्शों के लिए जीवित रहने का जिन्होंने व्रत धारण कर लिया वही जीवन मुक्त
है।
</li>
<li> व्यक्तिवाद के प्रति उपेक्षा और समूहवाद के प्रति निष्ठा रखने वाले व्यक्तियों का समाज ही समुन्नत होता है।
</li>
<li> विपत्ति से असली हानि उसकी उपस्थिति से नहीं होती, जब मन:स्थिति
उससे लोहा लेने में असमर्थता प्रकट करती है तभी व्यक्ति टूटता है और हानि
सहता है।
</li>
<li> विपन्नता की स्थिति में धैर्य न छोड़ना मानसिक संतुलन नष्ट न
होने देना, आशा पुरुषार्थ को न छोड़ना, आस्तिकता अर्थात् ईश्वर विश्वास का
प्रथम चिन्ह है।
</li>
<li> वहाँ मत देखो जहाँ आप गिरे। वहाँ देखो जहाँ से आप फिसले।
</li>
<li> विद्वत्ता युवकों को संयमी बनाती है। यह बुढ़ापे का सहारा है, निर्धनता में धन है, और धनवानों के लिए आभूषण है।
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.AF">य</span></h2>
<ul>
<li> यदि तुम फूल चाहते हो तो जल से पौधों को सींचना भी सीखो।
</li>
<li> यदि कोई दूसरों की जिन्दगी को खुशहाल बनाता है तो उसकी जिन्दगी अपने आप खुशहाल बन जाती है।
</li>
<li> यदि कोई तुम्हारे समीप अन्य किसी साथी की निन्दा करना चाहे, तो
तुम उस ओर बिल्कुल ध्यान न दो। इन बातों को सुनना भी महान पाप है, उससे
भविष्य में विवाद का सूत्रपात होगा।
</li>
<li> यदि व्यक्ति के संस्कार प्रबल होते हैं तो वह नैतिकता से भटकता नहीं है।
</li>
<li> यदि पुत्र विद्वान और माता-पिता की सेवा करने वाला न हो तो उसका धरती पर जन्म लेना व्यर्थ है।
</li>
<li> यदि ज़्यादा पैसा कमाना हाथ की बात नहीं तो कम खर्च करना तो हाथ
की बात है; क्योंकि खर्चीला जीवन बनाना अपनी स्वतन्त्रता को खोना है।
</li>
<li> यदि सज्जनो के मार्ग पर पुरा नहीं चला जा सकता तो थोडा ही चले। सन्मार्ग पर चलने वाला पुरूष नष्ट नहीं होता।
</li>
<li> यदि आपको मरने का डर है, तो इसका यही अर्थ है, की आप जीवन के महत्त्व को ही नहीं समझते।
</li>
<li> यदि आपको कोई कार्य कठिन लगता है तो इसका अर्थ है कि आप उस कार्य को गलत तरीके से कर रहे हैं।
</li>
<li> यदि बचपन व माँ की कोख की याद रहे, तो हम कभी भी माँ-बाप के
कृतघ्न नहीं हो सकते। अपमान की ऊचाईयाँ छूने के बाद भी अतीत की याद व्यक्ति
के ज़मीन से पैर नहीं उखड़ने देती।
</li>
<li> यदि मनुष्य कुछ सीखना चाहे, तो उसकी प्रत्येक भूल कुछ न कुछ सिखा देती है।
</li>
<li> यदि उपयोगी और महत्वपूर्ण बन कर विश्व में सम्मानित रहना है तो सबके काम के बनो और सदा सक्रिय रहो।
</li>
<li> यह सच है कि सच्चाई को अपनाना बहुत अच्छी बात है, लेकिन किसी सच
से दूसरे का नुकसान होता हो तो, ऐसा सच बोलते समय सौ बार सोच लेना चाहिए।
</li>
<li> यह संसार कर्म की कसौटी है। यहाँ मनुष्य की पहचान उसके कर्मों से होती है।
</li>
<li> यह आपत्तिकालीन समय है। आपत्ति <a href="http://hi.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%A7%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE" title="धर्म">धर्म</a>
का अर्थ है-सामान्य सुख-सुविधाओं की बात ताक पर रख देना और वह करने में
जुट जाना जिसके लिए मनुष्य की गरिमा भरी अंतरात्मा पुकारती है।
</li>
<li> युग निर्माण योजना का लक्ष्य है - शुचिता, पवित्रता, सच्चरित्रता, समता, उदारता, सहकारिता उत्पन्न करना। - वाङ्गमय
</li>
<li> युग निर्माण योजना का आरम्भ दूसरों को उपदेश देने से नहीं, वरन् अपने मन को समझाने से शुरू होगा।
</li>
<li> यज्ञ, दान और तप से त्याग करने योग्य कर्म ही नहीं, अपितु
अनिवार्य कर्त्तव्य कर्म भी हैं; क्योंकि यज्ञ, दान व तप बुद्धिमान लोगों
को पवित्र करने वाले हैं।
</li>
<li> यथार्थ को समझना ही सत्य है। इसी को विवेक कहते हैं।
</li>
<li> योग के दृष्टिकोण से तुम जो करते हो वह नहीं, बल्कि तुम कैसे करते हो, वह बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण है।
</li>
<li> योग्यता आपको सफलता की ऊँचाई तक पहुँचा सकती है किन्तु चरित्र आपको उस ऊँचाई पर बनाये रखती है।
</li>
<li> या तो हाथीवाले से मित्रता न करो, या फिर ऐसा मकान बनवाओ जहां
उसका हाथी आकर खड़ा हो सके।
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.AC">ब</span></h2>
<ul>
<li> बुद्धिमान बनने का तरीका यह है कि आज हम जितना जानते हैं, भविष्य में उससे अधिक जानने के लिए प्रयत्नशील रहें।
</li>
<li> बुद्धिमान वह है, जो किसी को ग़लतियों से हानि होते देखकर अपनी ग़लतियाँ सुधार लेता है।
</li>
<li> बड़प्पन बड़े आदमियों के संपर्क से नहीं, अपने गुण, कर्म और स्वभाव की निर्मलता से मिला करता है।
</li>
<li> बड़प्पन सुविधा संवर्धन में नहीं, सद्गुण संवर्धन का नाम है।
</li>
<li> बड़प्पन सादगी और शालीनता में है।
</li>
<li> बाहर मैं, मेरा और अंदर तू, तेरा, तेरी के भाव के साथ जीने का आभास जिसे हो गया, वह उसके जीवन की एक महान व उत्तम प्राप्ति है।
</li>
<li> बिना गुरु के ज्ञान नहीं होता।
</li>
<li> बिना सेवा के चित्त शुद्धि नहीं होती और चित्तशुद्धि के बिना परमात्मतत्व की अनुभूति नहीं होती।
</li>
<li> बिना अनुभव के कोरा शाब्दिक ज्ञान अंधा है।
</li>
<li> बहुमूल्य समय का सदुपयोग करने की कला जिसे आ गई उसने सफलता का रहस्य समझ लिया।
</li>
<li> बहुमूल्य वर्तमान का सदुपयोग कीजिए।
</li>
<li> बच्चे की प्रथम पाठशाला उसकी माता की गोद में होती है।
</li>
<li> ब्रह्म विद्या मनुष्य को ब्रह्म - परमात्मा के चरणों में बिठा देती है और चित्त की मूर्खता छुडवा देती है।
</li>
<li> बुरी मंत्रणा से राजा, विषयों की आसक्ति से योगी, स्वाध्याय न
करने से विद्वान, अधिक प्यार से पुत्र, दुष्टों की संगती से चरित्र, प्रदेश
में रहने से प्रेम, अन्याय से ऐश्वर्य, प्रेम न होने से मित्रता तथा
प्रमोद से धन नष्ट हो जाता है; अतः बुद्धिमान अपना सभी प्रकार का धन
संभालकर रखता है, बुरे समय का हमें हमेशा ध्यान रहता है।
</li>
<li> बुराई मनुष्य के बुरे कर्मों की नहीं, वरन् बुरे विचारों की देन होती है।
</li>
<li> बुराई के अवसर दिन में सौ बार आते हैं तो भलाई के साल में एकाध बार।
</li>
<li> बहुमत की आवाज़ न्याय का द्योतक नहीं है।
</li>
<li> बाह्य जगत में प्रसिद्धि की तीव्र लालसा का अर्थ है-तुम्हें आन्तरिक सम्रध्द व शान्ति उपलब्ध नहीं हो पाई है।
</li>
<li> बुढ़ापा आयु नहीं, विचारों का परिणाम है।
</li>
<li> बलिदान वही कर सकता है, जो शुद्ध है, निर्भय है और योग्य है।
</li>
<li> बातचीत का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह होता है कि ध्यानपूर्वक यह सुना जाए कि कहा क्या जा रहा है।
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.B6">श</span></h2>
<ul>
<li> शुभ कार्यों को कल के लिए मत टालिए, क्योंकि कल कभी आता नहीं।
</li>
<li> शुभ कार्यों के लिए हर दिन शुभ और अशुभ कार्यों के लिए हर दिना अशुभ है।
</li>
<li> शक्ति उनमें होती है, जिनकी कथनी और करनी एक हो, जो प्रतिपादन करें, उनके पीछे मन, वचन और कर्म का त्रिविध समावेश हो।
</li>
<li> शालीनता बिना मूल्य मिलती है, पर उससे सब कुछ ख़रीदा जा सकता है।
</li>
<li> शत्रु की घात विफल हो सकती है, किन्तु आस्तीन के साँप बने मित्र की घात विफल नहीं होती।
</li>
<li> शत्रु को पराजित करने के लिए ढाल तथा तलवार की आवश्यकता होती है। इसलिए अंग्रेज़ी और संस्कृत का अध्ययन मन लगाकर करो।
</li>
<li> शरीर स्वस्थ और निरोग हो, तो ही व्यक्ति दिनचर्या का पालन विधिवत कर सकता है, दैनिक कार्य और श्रम कर सकता है।
</li>
<li> शरीर और मन की प्रसन्नता के लिए जिसने आत्म-प्रयोजन का बलिदान कर दिया, उससे बढ़कर अभागा एवं दुबुद्धि और कौन हो सकता है?
</li>
<li> शिक्षा का स्थान स्कूल हो सकते हैं, पर दीक्षा का स्थान तो घर ही है।
</li>
<li> शिक्षक राष्ट्र मंदिर के कुशल शिल्पी हैं।
</li>
<li> शिक्षक नई पीढ़ी के निर्माता होत हैं।
</li>
<li> शूरता है सभी परिस्थितियों में परम सत्य के लिए डटे रह सकना,
विरोध में भी उसकी घोषण करना और जब कभी आवश्यकता हो तो उसके लिए युद्ध
करना।
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.9C.E0.A5.8D.E0.A4.9E">ज्ञ</span></h2>
<ul>
<li> ज्ञान मूर्खता छुडवाता है और परमात्मा का सुख देता है। यही आत्मसाक्षात्कार का मार्ग है।
</li>
<li> ज्ञान अक्षय है। उसकी प्राप्ति मनुष्य शय्या तक बन पड़े तो भी उस अवसर को हाथ से न जाने देना चाहिए।
</li>
<li> ज्ञान ही धन और ज्ञान ही जीवन है। उसके लिए किया गया कोई भी बलिदान व्यर्थ नहीं जाता।
</li>
<li> ज्ञान और आचरण में बोध और विवेक में जो सामञ्जस्य पैदा कर सके उसे ही विद्या कहते हैं।
</li>
<li> ज्ञान के नेत्र हमें अपनी दुर्बलता से परिचित कराने आते हैं। जब
तक इंद्रियों में सुख दीखता है, तब तक आँखों पर पर्दा हुआ मानना चाहिए।
</li>
<li> ज्ञान से एकता पैदा होती है और अज्ञान से संकट।
</li>
<li> ज्ञान का अर्थ मात्र जानना नहीं, वैसा हो जाना है।
</li>
<li> <b>ज्ञान</b> का अर्थ है - जानने की शक्ति। सच को झूठ को सच से पृथक् करने वाली जो विवेक बुद्धि है- उसी का नाम ज्ञान है।
</li>
<li> ज्ञान अक्षय है, उसकी प्राप्ति शैय्या तक बन पड़े तो भी उस अवसर को हाथ से नहीं जाने देना चाहिए।
</li>
<li> ज्ञानदान से बढ़कर आज की परिस्थितियों में और कोई दान नहीं।
</li>
<li> ज्ञान की आराधना से ही मनुष्य तुच्छ से महान बनता है।
</li>
<li> ज्ञान की सार्थकता तभी है, जब वह आचरण में आए।
</li>
<li> ज्ञान का जितना भाग व्यवहार में लाया जा सके वही सार्थक है, अन्यथा वह गधे पर लदे बोझ के समान है।
</li>
<li> ज्ञान का अंतिम लक्ष्य चरित्र निर्माण ही है।
</li>
<li> ज्ञान और आचरण में जो सामंजस्य पैदा कर सके, उसे ही विद्या कहते हैं।
</li>
<li> ज्ञान मुक्त करता है, पर ज्ञान का अभिमान नरकों में ले जाता है।
</li>
<li> ज्ञानयोगी की तरह सोचें, कर्मयोगी की तरह पुरुषार्थ करें और भक्तियोगी की तरह सहृदयता उभारें।
</li>
<li> ज्ञानीजन विद्या विनय युक्त ब्राम्हण तथा गौ हाथी कुत्ते और चाण्डाल मे भी समदर्शी होते हैं।
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.A8">न</span></h2>
<ul>
<li> न तो दरिद्रता में मोक्ष है और न सम्पन्नता में, बंधन धनी हो या निर्धन दोनों ही स्थितियों में ज्ञान से मोक्ष मिलता है।
</li>
<li> न तो किसी तरह का कर्म करने से नष्ट हुई वस्तु मिल सकती है, न
चिंता से। कोई ऐसा दाता भी नहीं है, जो मनुष्य को विनष्ट वस्तु दे दे,
विधाता के विधान के अनुसार मनुष्य बारी-बारी से समय पर सब कुछ पा लेता है।
</li>
<li> नेतृत्व पहले विशुद्ध रूप से सेवा का मार्ग था। एक कष्ट साध्य कार्य जिसे थोड़े से सक्षम व्यक्ति ही कर पाते थे।
</li>
<li> नेतृत्व ईश्वर का सबसे बड़ा वरदान है, क्योंकि वह प्रामाणिकता, उदारता और साहसिकता के बदले ख़रीदा जाता है।
</li>
<li> नेतृत्व का अर्थ है वह वर्चस्व जिसके सहारे परिचितों और अपरिचितों को अंकुश में रखा जा सके, अनुशासन में चलाया जा सके।
</li>
<li> निश्चित रूप से ध्वंस सरल होता है और निर्माण कठिन है।
</li>
<li> नरक कोई स्थान नहीं, संकीर्ण स्वार्थपरता की और निकृष्ट दृष्टिकोण की प्रतिक्रिया मात्र है।
</li>
<li> नेता शिक्षित और सुयोग्य ही नहीं, प्रखर संकल्प वाला भी होना चाहिए, जो अपनी कथनी और करनी को एकरूप में रख सके।
</li>
<li> नास्तिकता ईश्वर की अस्वीकृति को नहीं, आदर्शों की अवहेलना को कहते हैं।
</li>
<li> निरंकुश स्वतंत्रता जहाँ बच्चों के विकास में बाधा बनती है, वहीं कठोर अनुशासन भी उनकी प्रतिभा को कुंठित करता है।
</li>
<li> निष्काम कर्म, कर्म का अभाव नहीं, कर्तृत्व के अहंकार का अभाव होता है।
</li>
<li> 'न' के लिए अनुमति नहीं है।
</li>
<li> निन्दक दूसरों के आर-पार देखना पसन्द करता है, परन्तु खुद अपने आर-पार देखना नहीं चाहता।
</li>
<li> नित्य गायत्री जप, उदित होते स्वर्णिम सविता का ध्यान, नित्य
यज्ञ, अखण्ड दीप का सान्निध्य, दिव्यनाद की अवधारणा, आत्मदेव की साधना की
दिव्य संगम स्थली है- शांतिकुञ्ज गायत्री तीर्थ।
</li>
<li> निरभिमानी धन्य है; क्योंकि उन्हीं के हृदय में ईश्वर का निवास होता है।
</li>
<li> निकृष्ट चिंतन एवं घृणित कर्तृत्व हमारी गौरव गरिमा पर लगा हुआ कलंक है। - वाङ्गमय
</li>
<li> नैतिकता, प्रतिष्ठाओं में सबसे अधिक मूल्यवान् है।
</li>
<li> नर और नारी एक ही आत्मा के दो रूप है।
</li>
<li> नारी का असली श्रृंगार, सादा जीवन उच्च विचार।
</li>
<li> नाव स्वयं ही नदी पार नहीं करती। पीठ पर अनेकों को भी लाद कर उतारती है। सन्त अपनी सेवा भावना का उपयोग इसी प्रकार किया करते हैं।
</li>
<li> नौकर रखना बुरा है लेकिन मालिक रखना और भी बुरा है।
</li>
<li> निराशापूर्ण विचार ही आपकी अवनति के कारण है।
</li>
<li> न्याय नहीं बल्कि त्याग और केवल त्याग ही मित्रता का नियम है।
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.B9">ह</span></h2>
<ul>
<li> हर शाम में एक जीवन का समापन हो रहा है और हर सवेरे में नए जीवन की शुरुआत होती है।
</li>
<li> हर व्यक्ति संवेदनशील होता है, पत्थर कोई नहीं होता; लेकिन सज्जन व्यक्ति पर बाहरी प्रभाव पानी की लकीर की भाँति होता है।
</li>
<li> हर व्यक्ति जाने या अनजाने में अपनी परिस्थितियों का निर्माण आप करता है।
</li>
<li> हर दिन वर्ष का सर्वोत्तम दिन है।
</li>
<li> हर चीज़ बदलती है, नष्ट कोई चीज़ नहीं होती।
</li>
<li> हर मनुष्य का <b>भाग्य</b> उसकी मुट्ठी में है।
</li>
<li> हर वक्त, हर स्थिति में मुस्कराते रहिये, निर्भय रहिये, कत्र्तव्य करते रहिये और प्रसन्न रहिये।
</li>
<li> हमारा शरीर ईश्वर के मन्दिर के समान है, इसलिये इसे स्वस्थ रखना भी एक तरह की इश्वर - आराधना है।
</li>
<li> हीन से हीन प्राणी में भी एकाध गुण होते हैं। उसी के आधार पर वह जीवन जी रहा है।
</li>
<li> हमें अपने अभाव एवं स्वभाव दोनों को ही ठीक करना चाहिए; क्योंकि ये दोनों ही उन्नति के रास्ते में बाधक होते हैं।
</li>
<li> हमारे शरीर को नियमितता भाती है, लेकिन मन सदैव परिवर्तन चाहता है।
</li>
<li> हमारे वचन चाहे कितने भी श्रेष्ठ क्यों न हों, परन्तु दुनिया हमें हमारे कर्मों के द्वारा पहचानती है।
</li>
<li> हमारे सुख-दुःख का कारण दूसरे व्यक्ति या परिस्थितियाँ नहीं अपितु हमारे अच्छे या बूरे विचार होते हैं।
</li>
<li> हमारा जीना व दुनियाँ से जाना ही गौरवपूर्ण होने चाहिए।
</li>
<li> हँसती-हँसाती जिन्दगी ही सार्थक है।
</li>
<li> हम क्या करते हैं, इसका महत्त्व कम है; किन्तु उसे हम किस भाव से करते हैं इसका बहुत महत्त्व है।
</li>
<li> हम अपनी कमियों को पहचानें और इन्हें हटाने और उनके स्थान पर
सत्प्रवृत्तियाँ स्थापित करने का उपाय सोचें इसी में अपना व मानव मात्र का
कल्याण है।
</li>
<li> हम कोई ऐसा काम न करें, जिसमें अपनी अंतरात्मा ही अपने को धिक्कारे। - वाङ्गमय
</li>
<li> हम आमोद-प्रमोद मनाते चलें और आस-पास का समाज आँसुओं से भीगता रहे, ऐसी हमारी हँसी-खुशी को धिक्कार है।
</li>
<li> हम मात्र प्रवचन से नहीं अपितु आचरण से परिवर्तन करने की संस्कृति में विश्वास रखते हैं।
</li>
<li> हम किसी बड़ी खुशी के इन्तिजार में छोटी-छोटी खुशियों को
नजरअन्दाज कर देते हैं किन्तु वास्तविकता यह है कि छोटी-छोटी खुशियाँ ही
मिलकर एक बड़ी खुशी बनती है। इसलिए छोटी-छोटी खुशियों का आनन्द लीजिए, बाद
में जब आप उन्हें याद करेंगे तो वही आपको बड़ी खुशियाँ लगेंगी।
</li>
<li> हमारी कितने रातें सिसकते बीती हैं - कितनी बार हम फूट-फूट कर
रोये हैं इसे कोई कहाँ जानता है? लोग हमें संत, सिद्ध, ज्ञानी मानते हैं,
कोई लेखक, विद्वान, वक्ता, नेता, समझा हैं। कोई उसे देख सका होता तो उसे
मानवीय व्यथा वेदना की अनुभूतियों से करुण कराह से हाहाकार करती एक
उद्विग्न आत्मा भर इस हड्डियों के ढ़ाँचे में बैठी बिलखती दिखाई पड़ती है।
</li>
<li> हम स्वयं ऐसे बनें, जैसा दूसरों को बनाना चाहते हैं। हमारे
क्रियाकलाप अंदर और बाहर से उसी स्तर के बनें जैसा हम दूसरों द्वारा
क्रियान्वित किये जाने की अपेक्षा करते हैं।
</li>
<li> हे मनुष्य! यश के पीछे मत भाग, कत्र्तव्य के पीछे भाग। लोग क्या
कहते हैं यह न सुनकर विवेक के पीछे भाग। दुनिया चाहे कुछ भी कहे, सत्य का
सहारा मत छोड़।
</li>
<li> हाथी कभी भी अपने दाँत को ढोते हुए नहीं थकता।
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.A7">ध</span></h2>
<ul>
<li> <b>धर्म</b> का मार्ग फूलों सेज नहीं, इसमें बड़े-बड़े कष्ट सहन करने पड़ते हैं।
</li>
<li> धर्म अंत:करण को प्रभावित और प्रशासित करता है, उसमें उत्कृष्टता
अपनाने, आदर्शों को कार्यान्वित करने की उमंग उत्पन्न करता है। - वाङ्गमय
</li>
<li> धर्म की रक्षा और अधर्म का उन्मूलन करना ही अवतार और उसके
अनुयायियों का कत्र्तव्य है। इसमें चाहे निजी हानि कितनी ही होती हो,
कठिनाई कितनी ही उइानी पड़ती हो।
</li>
<li> धर्म को आडम्बरयुक्त मत बनाओ, वरन् उसे अपने जीवन में धुला
डालो। धर्मानुकूल ही सोचो और करो। शास्त्र की उक्ति है कि रक्षा किया हुआ
धर्म अपनी रक्षा करता है और धर्म को जो मारता है, धर्म उसे मार डालता है,
इस तथ्य को।
</li>
<li> धर्मवान् बनने का विशुद्ध अर्थ बुद्धिमान, दूरदर्शी, विवेकशील एवं सुरुचि सम्पन्न बनना ही है।
</li>
<li> धीरे बोल, जल्दी सोचों और छोटे-से विवाद पर पुरानी दोस्ती कुर्बान मत करो।
</li>
<li> <b>धन</b> अच्छा सेवक भी है और बुरा मालिक भी।
</li>
<li> ध्यान-उपासना के द्वारा जब तुम ईश्वरीय शक्तियों के संवाहक बन जाते हो, तब तुम्हें निमित्त बनाकर भागवत शक्ति कार्य कर रही होती है।
</li>
<li> धन अपना पराया नहीं देखता।
</li>
<li> धनवाद नहीं, चरित्रवान सुख पाते हैं।
</li>
<li> धैर्य, अनुद्वेग, साहस, प्रसन्नता, दृढ़ता और समता की संतुलित स्थिति सदेव बनाये रखें।
</li>
<li> धरती पर स्वर्ग अवतरित करने का प्रारम्भ सफाई और स्वच्छता से करें।
</li>
<li> ध्यान में रखकर ही अपने जीवन का नीति निर्धारण किया जाना चाहिए।
</li>
<li> धन्य है वे जिन्होंने करने के लिए अपना काम प्राप्त कर लिया है
और वे उसमें लीन है। अब उन्हें किसी और वरदान की याचना नहीं करना चाहिए।
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.AD">भ</span></h2>
<ul>
<li> <b>भगवान</b> से निराश कभी मत होना, संसार से आशा कभी मत करना; क्योंकि संसार स्वार्थी है। इसका नमूना तुम्हारा खुद शरीर है।
</li>
<li> भगवान की दण्ड संहिता में असामाजिक प्रवृत्ति भी अपराध है।
</li>
<li> भगवान को घट-घट वासी और न्यायकारी मानकर पापों से हर घड़ी बचते रहना ही सच्ची भक्ति है।
</li>
<li> भगवान को अनुशासन एवं सुव्यवस्थितपना बहुत पसंद है। अतः उन्हें ऐसे लोग ही पसंद आते हैं, जो सुव्यवस्था व अनुशासन को अपनाते हैं।
</li>
<li> भगवान प्रेम के भूखे हैं, पूजा के नहीं।
</li>
<li> भगवान सदा हमें हमारी क्षमता, पात्रता व श्रम से अधिक ही प्रदान करते हैं।
</li>
<li> भगवान जिसे सच्चे मन से प्यार करते हैं, उसे अग्नि परीक्षाओं में होकर गुजारते हैं।
</li>
<li> भगवान के काम में लग जाने वाले कभी घाटे में नहीं रह सकते।
</li>
<li> भगवान की सच्ची पूजा सत्कर्मों में ही हो सकती है।
</li>
<li> भगवान आदर्शों, श्रेष्ठताओं के समूच्चय का नाम है। सिद्धान्तों
के प्रति मनुष्य के जो त्याग और बलिदान है, वस्तुत: यही भगवान की भक्ति है।
</li>
<li> भगवान भावना की उत्कृष्टता को ही प्यार करता है और सर्वोत्तम
सद्भावना का एकमात्र प्रमाण जनकल्याण के कार्यों में बढ़-चढ़कर योगदान
करना है।
</li>
<li> भगवान का अवतार तो होता है, परन्तु वह निराकार होता है। उनकी
वास्तविक शक्ति जाग्रत् आत्मा होती है, जो भगवान का संदेश प्राप्त करके
अपना रोल अदा करती है।
</li>
<li> भाग्य को मनुष्य स्वयं बनाता है, ईश्वर नहीं।
</li>
<li> भाग्य साहसी का साथ देता है।
</li>
<li> भाग्य पर नहीं, चरित्र पर निर्भर रहो।
</li>
<li> भाग्य भरोसे बैठे रहने वाले आलसी सदा दीन-हीन ही रहेंगे।
</li>
<li> भाग्यशाली होते हैं वे, जो अपने जीवन के संघर्ष के बीच एक मात्र सहारा परमात्मा को मानते हुए आगे बढ़ते जाते हैं।
</li>
<li> भले बनकर तुम दूसरों की भलाई का कारण भी बन जाते हो।
</li>
<li> भले ही आपका जन्म सामान्य हो, आपकी मृत्यु इतिहास बन सकती है।
</li>
<li> भीड़ में खोया हुआ इंसान खोज लिया जाता है, परन्तु विचारों की भीड़ के बीहड़ में भटकते हुए इंसान का पूरा जीवन अंधकारमय हो जाता है।
</li>
<li> भलमनसाहत का व्यवहार करने वाला एक चमकता हुआ हीरा है।
</li>
<li> भूत लौटने वाला नहीं, भविष्य का कोई निश्चय नहीं; सँभालने और बनाने योग्य तो वर्तमान है।
</li>
<li> भूत इतिहास होता है, भविष्य रहस्य होता है और वर्तमान ईश्वर का वरदान होता है।
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.B2">ल</span></h2>
<ul>
<li> लोगों को चाहिए कि इस जगत में मनुष्यता धारण कर उत्तम शिक्षा,
अच्छा स्वभाव, धर्म, योग्याभ्यास और विज्ञान का सम्यक ग्रहण करके सुख का
प्रयत्न करें, यही जीवन की सफलता है।
</li>
<li> लोग तुम्हारी स्तुति करें या निन्दा, लक्ष्मी तुम्हारे ऊपर
कृपालु हो या न हो, तुम्हारा देहान्त आज हो या एक युग मे, तुम न्यायपथ से
कभी भ्रष्ट न हो।
</li>
<li> लोग क्या कहते हैं - इस पर ध्यान मत दो। सिर्फ़ यह देखो कि जो करने योग्य था, वह बनपड़ा या नहीं?
</li>
<li> लोकसेवी नया प्रजनन बंद कर सकें, जितना हो चुका उसी के निर्वाह
की बात सोचें तो उतने भर से उन समस्याओं का आधा समाधान हो सकता है जो पर्वत
की तरह भारी और विशालकाय दीखती है।
</li>
<li> लोभ आपदा की खाई है संतोष आनन्द का कोष।
</li>
<li> लज्जा से रहित व्यक्ति ही स्वार्थ के साधक होते हैं।
</li>
<li> लकीर के फ़कीर बनने से अच्छा है कि आत्महत्या कर ली जाये, लीक
लीक गाड़ी चले, लीक ही चलें कपूत । लीक छोड़ तीनों चलें शायर, सिंह, सपूत
।।
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.B0">र</span></h2>
<ul>
<li> <b>रोग</b> का सूत्रपान मानव मन में होता है।
</li>
<li> राष्ट्र निर्माण जागरूक बुद्धिजीवियों से ही संभव है।
</li>
<li> राष्ट्रोत्कर्ष हेतु संत समाज का योगदान अपेक्षित है।
</li>
<li> राष्ट्र को समृद्ध और शक्तिशाली बनाने के लिए आदर्शवाद, नैतिकता,
मानवता, परमार्थ, देश भक्ति एवं समाज निष्ठा की भावना की जागृति नितान्त
आवश्यक है।
</li>
<li> राष्ट्रीय स्तर की व्यापक समस्याएँ नैतिक दृष्टि धूमिल होने और निकृष्टता की मात्रा बढ़ जाने के कारण ही उत्पन्न होती है।
</li>
<li> राष्ट्र के नव निर्माण में अनेकों घटकों का योगदान होता है।
प्रगति एवं उत्कर्ष के लिए विभिन्न प्रकार के प्रयास चलते और उसके अनुरूप
सफलता-असफलताएँ भी मिलती हैं।
</li>
<li> राष्ट्रों, राज्यों और जातियों के जीवन में आदिकाल से उल्लेखनीय
धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक क्रान्तियाँ हुई हैं। उन
परिस्थितियों में श्रेय भले ही एक व्यक्ति या वर्ग को मार्गदर्शन को मिला
हो, सच्ची बात यह रही है कि बुद्धिजीवियों, विचारवान् व्यक्तियों ने उन
क्रान्तियों को पैदा किया, जन-जन तक फैलाया और सफल बनाया।
</li>
<li> राष्ट्र का विकास, बिना आत्म बलिदान के नहीं हो सकता।
</li>
<li> राग-द्वेष की भावना अगर प्रेम, सदाचार और कर्त्तव्य को महत्त्व दें तो, मन की सभी समस्याओं का समाधान हो सकता है।
</li>
<li> राष्ट्र को बुराइयों से बचाये रखने का उत्तरदायित्व पुरोहितों का है।
</li>
<li> राजा यदि लोभी है तो दरिद्र से दरिद्र है और दरिद्र यदि दिल का उदार है तो राजा से भी सुखी है।
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.B6.E0.A5.8D.E0.A4.B0">श्र</span></h2>
<ul>
<li> श्रम और तितिक्षा से शरीर मज़बूत बनता है।
</li>
<li> श्रेष्ठता रहना देवत्व के समीप रहना है।
</li>
<li> श्रद्धा की प्रेरणा है - श्रेष्ठता के प्रति घनिष्ठता, तन्मयता
एवं समर्पण की प्रवृतित। परमेश्वर के प्रति इसी भाव संवेदना को विकसित करने
का नमा है-भक्ति।
</li>
<li> श्रेष्ठ मार्ग पर क़दम बढ़ाने के लिए ईश्वर विश्वास एक सुयोग्य साथी की तरह सहायक सिद्ध होता है।
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.A4">त</span></h2>
<ul>
<li> तुम सेवा करने के लिए आये हो, हुकूमत करने के लिए नहीं। जान लो
कष्ट सहने और परिश्रम करने के लिए तुम बुलाये गये हो, आलसी और वार्तालाप
में समय नष्ट करने के लिए नहीं।
</li>
<li> तीनों लोकों में प्रत्येक व्यक्ति सुख के लिये दौड़ता फिरता है,
दुखों के लिये बिल्कुल नहीं, किन्तु दुःख के दो स्रोत हैं-एक है देह के
प्रति मैं का भाव और दूसरा संसार की वस्तुओं के प्रति मेरेपन का भाव।
</li>
<li> तुम्हारा प्रत्येक छल सत्य के उस स्वच्छ प्रकाश में एक बाधा है
जिसे तुम्हारे द्वारा उसी प्रकार प्रकाशित होना चाहिए जैसे साफ शीशे के
द्वारा सूर्य का प्रकाश प्रकाशित होता है।
</li>
<li> तर्क से विज्ञान में वृद्धि होती है, कुतर्क से अज्ञान बढ़ता है और वितर्क से अध्यात्मिक ज्ञान बढ़ता है।
</li>
</ul>
<h2>
<span class="mw-headline" id=".E0.A4.AB">फ</span></h2>
<ul>
<li> फूलों की तरह हँसते-मुस्कराते जीवन व्यतीत करो।
</li>
<li> फल की सुरक्षा के लिये छिलका जितना जरूरी है, धर्म को जीवित रखने के लिये सम्प्रदाय भी उतना ही काम का है।
</li>
<li> फल के लिए प्रयत्न करो, परन्तु दुविधा में खड़े न रह जाओ। कोई भी कार्य ऐसा नहीं जिसे खोज और प्रयत्न से पूर्ण न कर सको।
</li>
</ul>
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